हरिद्वार: 22 जनवरी का पूरे देश को बेसब्री से इंतजार इंतजार है. इस दिन अयोध्या में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है. जो सपना साधु संतों और विश्व हिंदू परिषद द्वारा देखा गया था, वह अब साकार होने जा रहा है. राम मंदिर के लिए बनाई गई रणनीति और किस तरह की यह यात्रा रही इस पर बात करें तो साधु संतों का ध्यान सबसे पहले आता है. राम मंदिर को बनाने के लिए हरिद्वार का बहुत बड़ा योगदान रहा. महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव श्री महंत रवींद्र पुरी जो इस समय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष भी हैं, ने राम मंदिर आंदोलन की यादों को साझा किया.
राम मंदिर बनने की खुशी और राम मंदिर से जुड़ी बातें को साझा करते हुए श्री महंत रविंद्र पुरी ने बताया कि 500 सालों के संघर्ष की अब जाकर विजय हुई है. इसमें संत परंपरा से जुड़े संन्यासी, वैष्णव, उदासीन सभी संप्रदाय के लोगों ने अपना बलिदान दिया है. हमारे पूर्वजों द्वारा इसके लिए कोर्ट में केस तक लड़ा गया है. लंबी अदालती लड़ाई के साथ ग्राउंड लेवल पर भी बड़ा बलिदान दिया गया.
अयोध्या में हुई मीटिंग के बाद संत हुए थे एकत्र: अखाड़ा परिषद अध्यक्ष श्री महंत रविंद्र पुरी ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि अयोध्या में संतों को एकत्र करने के लिए मीटिंग की गई थी. जिसके बाद जगह-जगह से संतों को राम मंदिर आंदोलन से जोड़ा गया. फिर संपूर्ण भारतवर्ष में उसकी शाखाएं बनाई गईं. इस तरह राम मंदिर आंदोलन पूरे भारत का आंदोलन बन गया.
शिला पूजन के बाद आंदोलन में आई थी जान: अखाड़ा परिषद अध्यक्ष श्री महंत रविंद्र पुरी ने बताया कि जैसे ही शिला पूजन हुआ, उसके बाद राम मंदिर आंदोलन ने जोड़ पकड़ लिया था. इसके बाद हमारे द्वारा एक ईंट और एक रुपए का अभियान चलाया गया. इसका कई जगह-जगह बहुत विरोध हुआ, जिसमें हमारे द्वारा पुलिस के डंडे तक खाये गए. इसके बावजूद हमारा संघर्ष थमा नहीं.
कार सेवकों को हुई थी कठिनाई: श्री महंत रवींद्र पुरी ने बताया कि कार सेवकों को जिन राज्यों में भाजपा की सरकार थी, वहां तो भरपूर सहयोग मिला. जिन राज्यों में भाजपा की सरकार नहीं थी, वहां कर सेवकों को बहुत ही परेशानी का सामना करना पड़ा था. भारत के उस समय के प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के द्वारा यह आदेश दिया गया कि था कि साधु संतों को रोका जाए. इसके बाद साधु संतों को रोका जाने लगा. उन्हें जगह-जगह स्थाई जेल बनाकर रखा गया. जैसे कि सामुदायिक केंद्रों या फिर स्कूलों में साधु संतों को रखा गया.
हरिद्वार की रही अहम भूमिका: अखाड़ा परिषद अध्यक्ष रवींद्र पुरी बताते हैं कि हरिद्वार की इस राम मंदिर आंदोलन में अहम भूमिका रही है. हरिद्वार में ही धर्म संसद की पहली सभा 1986 में हुई थी. उसके बाद दूसरी बड़ी मीटिंग 2001 में हरिद्वार में हुई थी. आज भी उसी क्रम को विश्व हिंदू परिषद ने बनाए रखा है और मार्गदर्शक मंडल की प्रत्येक वर्ष एक बैठक हरिद्वार में आयोजित की जाती है.
22 जनवरी से रामराज की होगी शुरुआत: अखाड़ा परिषद अध्यक्ष श्री महंत रविंद्र पुरी ने कहा कि देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी कहा था कि जिस दिन देश के हर नागरिक तक सरकार द्वारा दी जा रही सुविधा पहुंचेगी, उस दिन वास्तविकता में राम राज्य की शुरुआत होगी. इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कर दी गई है. मुझे उम्मीद है कि आने वाला दशक सनातन प्रेमियों और धर्म से जुड़े लोगों का होगा.
हरिद्वार से बुलाए गए 250 अधिक संत: साधु संतों की सर्वोच्च संस्था के अध्यक्ष श्री महंत रविंद्र पुरी ने बताया कि हरिद्वार से ढाई सौ से अधिक साधु संतों को अयोध्या से आमंत्रण पत्र मिला है. इसमें सभी अखाड़ों के प्रतिनिधि और महामंडलेश्वर को प्राण प्रतिष्ठा समारोह में सम्मिलित होने के लिए बुलाया गया है. इससे साधु संतों में अपार उत्साह है.
ये भी पढ़ें: श्रीराम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा को लेकर उत्तराखंड के मार्केट में आया बूम, खरीदारी के लिए उमड़े लोग
ये भी पढ़ें: राम मंदिर आंदोलन की कहानी संत की जुबानी, सालों किया संघर्ष, कई बार गये जेल, फिर भी नहीं डिगी आस्था