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गमखारी और गुनाहों से बचना है रमजान के पवित्र महीने का उद्देश्य

रमजान का पवित्र महीना शुरू हो गया है. इसकी समाप्ति एक मई को होगी और उसके अगले ही दिन ईद का त्योहार मनाया जाएगा. इस्लाम धर्म के कैलेंडर के मुताबिक, साल का 9वां महीना रमजान का होता है. रमजान के पूरे महीने लोग रोजा रखते हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है रोजा का महत्व...

roorkee
रुड़की रमजान
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Published : Apr 3, 2022, 2:38 PM IST

Updated : Apr 3, 2022, 2:46 PM IST

रुड़की: इस्लाम मजहब में बड़ी अहमियत रखने वाला महीना माहे रमजान शुरू हो गया है. देर शाम चांद दिखाई देने के बाद रमजान के महीने का आगाज हो गया. रात से ही रजान में पढ़ी जाने वाली तराबीह की नमाज भी शुरू हो गई. इसके बाद सहरी करके पहले रोजे से रमजान की शुरुआत भी हो गई. मुस्लिम धर्मगुरु के मुताबिक, रमजान का महीना बड़ी बरकतों और रहमतों वाला महीना है. इस महीने में सवाब (पुण्य) करने पर 70 फीसदी ज्यादा पुण्य मिलता है. यही वजह है कि इस महीने में मुसलमान ज्यादा से ज्यादा पुण्य के कामों को अंजाम देता है. इस महीने में गरीबों की मदद करना, मजलूमों पर रहम करना, गमखारी और गुनाहों से बचना रमजान का मुख्य उद्देश्य है.

गौर हो, मजहब-ए-इस्लाम में रमजान माह की बड़ी-बड़ी फजीलते बयान की गईं हैं. रमजान एक ऐसा बा-बरकत महीना है, जिसका इंतेजार साल के ग्यारह महीने हर मुसलमान को रहता है. इस्लाम के मुताबिक, इस महीने के एक दिन को आम दिनों की हजार साल से ज्यादा बेहतर (खास) माना गया है. मुस्लिम समुदाय के सभी लोगों पर रोजा फर्ज होता है, जिसे पूरी दुनिया में दूसरे नंबर की आबादी रखने वाला मुसलमान बड़ी संजीदगी से लागू करने की फिक्र रखते हैं.

गमखारी और गुनाहों से बचना है रमजान के पवित्र महीने का उद्देश्य.

माह-ए-रमजान में रखा जाने वाला रोजा हर तंदुरुस्त (सेहतमंद) मर्द और औरत पर फर्ज होता है. रोजा छोटे बच्चों, बीमारों और सूझ समझ ना रखने वालों पर लागू नहीं होता. हालांकि, ये रोजे इतने खास माने जाते हैं कि इन दिनों में किसी बीमारी से ग्रस्त पीड़ित या पीड़िता के ठीक होने के बाद इन 30 दिनों में से छूटे हुए रोजों को रखना जरूरी होता है. रमजान में सहरी, इफ्तार के अलावा तराबीह की नमाज की भी बेहद अहमियत मानी जाती है.

क्या होती है तराबीह: वैसे तो, रमजान जिसे इबादत के महीने के नाम से जाना जाता है, जो इस महीने के चांद के दिखते ही शुरू हो जाता है. रमजान का चांद दिखते ही लोग एक दूसरे को इस महीने की मुबारकबाद देते हैं, फिर उसी रात से तराबीह नमाज का सिलसिला शुरू हो जाता है. तराबीह एक नमाज है, जिसमें इमाम (नमाज पढ़ाने वाला) नमाज की हालत में बिना देखे (हिफ़्ज़) कुरान पढ़कर नमाज में शामिल लोगों को सुनाता है. इसका मकसद, लोगों की कुरान के जरिए अल्लाह की तरफ से भेजी हुई बातों के बारे में बताना है.
पढ़ें- पुनरुद्धार के बाद पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनी गर्तांगली, जानें घूमने का कितना है शुल्क

तराबीह को रात की आखरी, यानि (इशा) की नमाज के बाद पढ़ा जाता है. कुरान बहुत बड़ी किताब होने की वजह से एक बार में नमाज की हालत में सुनना मुश्किल होता है. इसलिए इस किताब को तराबीह में पढ़ने और सुनने के लिए रमजान के दिनों में से कुछ दिन तय कर लिए जाते हैं. इसमें हर मस्जिद अपनी सहूलियत के मुताबिक, रमजान के 30 दिनों में से तराबीह पढ़े जाने के दिन तय कर लेती है. उन्हीं दिनों में कुरान को पूरा पढ़ते और सुनते हैं. आमतौर पर तराबीह की नमाज में डेढ़ से दो घंटों का वक़्त लग जाता है.

सहरी से शुरू होता है रोजा: वहीं, रोजे की शुरुआत सहरी से होती है. सहरी उस खाने को कहा जाता है जो सहर यानि (सुबह) की शुरुआत होने से पहले खाया जाए. इस्लाम के मुताबिक, इस खाने को काफी फायदेमंद बताया गया है. बताया जाता है कि लोगों को रात के आखिर हिस्से में अगर एक खजूर या थोड़ा सा पानी ही खाने-पीने का मौका मिले, तो उन्हें खा लेना चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं है कि बिना सहरी के रोजा नहीं रखा जा सकता, अगर किसी वजह से सहरी छूट जाती है, तो भी रोजे को नहीं छोड़ा जा सकता.

रोजे का मकसद: बता दें, रोजे के मायने सिर्फ यही नहीं है कि इसमें सुबह से शाम तक भूखे-प्यासे रहो बल्कि रोजा वो अमल है, जो रोजेदार को पूरी तरह से पाकीजगी का रास्ता दिखाता है. रोजा इंसान को बुराइयों के रास्ते से हटाकर अच्छाई का रास्ता दिखाता है. महीने भर के रोजों के जरिए अल्लाह चाहता है कि इंसान अपनी रोजाना की जिंदगी को रमजान के दिनों के मुताबिक गुजारने वाला बन जाए.

रोजा सिर्फ ना खाने या ना पीने का ही नहीं होता बल्कि रोजा शरीर के हर अंग का होता है. इसमें इंसान के दिमाग का भी रोजा होता है, ताकि इंसान को खयाल रहे कि उसका रोजा है, तो उसे कुछ गलत बातें गुमान नहीं करनी. उसकी आंखों का भी रोजा है, ताकि उसे ये याद रहे कि इसी तरह आख, कान, मुंह का भी रोजा होता है, ताकि वो किसी से भी कोई बुरे अल्फाज ना कहे और अगर कोई उससे किसी तरह के बुरे अल्फाज कहे तो वो उसे भी इसलिए माफ कर दें कि उसका रोजा है. इस तरह इंसान के पूरे शरीर का रोजा होता है.

गमखारी का महीना है रमजान: कुल मिलाकर रमजान का मकसद इंसान को बुराइयों के रास्ते से हटाकर अच्छाई के रास्ते पर लाना है. इसका मकसद एक दूसरे से मोहब्बत, प्रेम, भाईचारा और खुशियां बांटना है. रमजान का मकसद सिर्फ यही नहीं होता कि एक मुसलमान सिर्फ किसी मुसलमान से ही अपने अच्छे अखलाक रखे, बल्कि मुसलमान पर ये भी फर्ज है कि वो किसी और भी मजहब के मानने वालों से भी मोहब्बत, प्रेम, इज्जत, सम्मान, अच्छा अखलाक रखे, ताकि दुनिया के हर इंसान का एक दूसरे से भाईचारा बना रहे, साथ ही गरीब, मजलूम का भी ख्याल रखें.

रुड़की: इस्लाम मजहब में बड़ी अहमियत रखने वाला महीना माहे रमजान शुरू हो गया है. देर शाम चांद दिखाई देने के बाद रमजान के महीने का आगाज हो गया. रात से ही रजान में पढ़ी जाने वाली तराबीह की नमाज भी शुरू हो गई. इसके बाद सहरी करके पहले रोजे से रमजान की शुरुआत भी हो गई. मुस्लिम धर्मगुरु के मुताबिक, रमजान का महीना बड़ी बरकतों और रहमतों वाला महीना है. इस महीने में सवाब (पुण्य) करने पर 70 फीसदी ज्यादा पुण्य मिलता है. यही वजह है कि इस महीने में मुसलमान ज्यादा से ज्यादा पुण्य के कामों को अंजाम देता है. इस महीने में गरीबों की मदद करना, मजलूमों पर रहम करना, गमखारी और गुनाहों से बचना रमजान का मुख्य उद्देश्य है.

गौर हो, मजहब-ए-इस्लाम में रमजान माह की बड़ी-बड़ी फजीलते बयान की गईं हैं. रमजान एक ऐसा बा-बरकत महीना है, जिसका इंतेजार साल के ग्यारह महीने हर मुसलमान को रहता है. इस्लाम के मुताबिक, इस महीने के एक दिन को आम दिनों की हजार साल से ज्यादा बेहतर (खास) माना गया है. मुस्लिम समुदाय के सभी लोगों पर रोजा फर्ज होता है, जिसे पूरी दुनिया में दूसरे नंबर की आबादी रखने वाला मुसलमान बड़ी संजीदगी से लागू करने की फिक्र रखते हैं.

गमखारी और गुनाहों से बचना है रमजान के पवित्र महीने का उद्देश्य.

माह-ए-रमजान में रखा जाने वाला रोजा हर तंदुरुस्त (सेहतमंद) मर्द और औरत पर फर्ज होता है. रोजा छोटे बच्चों, बीमारों और सूझ समझ ना रखने वालों पर लागू नहीं होता. हालांकि, ये रोजे इतने खास माने जाते हैं कि इन दिनों में किसी बीमारी से ग्रस्त पीड़ित या पीड़िता के ठीक होने के बाद इन 30 दिनों में से छूटे हुए रोजों को रखना जरूरी होता है. रमजान में सहरी, इफ्तार के अलावा तराबीह की नमाज की भी बेहद अहमियत मानी जाती है.

क्या होती है तराबीह: वैसे तो, रमजान जिसे इबादत के महीने के नाम से जाना जाता है, जो इस महीने के चांद के दिखते ही शुरू हो जाता है. रमजान का चांद दिखते ही लोग एक दूसरे को इस महीने की मुबारकबाद देते हैं, फिर उसी रात से तराबीह नमाज का सिलसिला शुरू हो जाता है. तराबीह एक नमाज है, जिसमें इमाम (नमाज पढ़ाने वाला) नमाज की हालत में बिना देखे (हिफ़्ज़) कुरान पढ़कर नमाज में शामिल लोगों को सुनाता है. इसका मकसद, लोगों की कुरान के जरिए अल्लाह की तरफ से भेजी हुई बातों के बारे में बताना है.
पढ़ें- पुनरुद्धार के बाद पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनी गर्तांगली, जानें घूमने का कितना है शुल्क

तराबीह को रात की आखरी, यानि (इशा) की नमाज के बाद पढ़ा जाता है. कुरान बहुत बड़ी किताब होने की वजह से एक बार में नमाज की हालत में सुनना मुश्किल होता है. इसलिए इस किताब को तराबीह में पढ़ने और सुनने के लिए रमजान के दिनों में से कुछ दिन तय कर लिए जाते हैं. इसमें हर मस्जिद अपनी सहूलियत के मुताबिक, रमजान के 30 दिनों में से तराबीह पढ़े जाने के दिन तय कर लेती है. उन्हीं दिनों में कुरान को पूरा पढ़ते और सुनते हैं. आमतौर पर तराबीह की नमाज में डेढ़ से दो घंटों का वक़्त लग जाता है.

सहरी से शुरू होता है रोजा: वहीं, रोजे की शुरुआत सहरी से होती है. सहरी उस खाने को कहा जाता है जो सहर यानि (सुबह) की शुरुआत होने से पहले खाया जाए. इस्लाम के मुताबिक, इस खाने को काफी फायदेमंद बताया गया है. बताया जाता है कि लोगों को रात के आखिर हिस्से में अगर एक खजूर या थोड़ा सा पानी ही खाने-पीने का मौका मिले, तो उन्हें खा लेना चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं है कि बिना सहरी के रोजा नहीं रखा जा सकता, अगर किसी वजह से सहरी छूट जाती है, तो भी रोजे को नहीं छोड़ा जा सकता.

रोजे का मकसद: बता दें, रोजे के मायने सिर्फ यही नहीं है कि इसमें सुबह से शाम तक भूखे-प्यासे रहो बल्कि रोजा वो अमल है, जो रोजेदार को पूरी तरह से पाकीजगी का रास्ता दिखाता है. रोजा इंसान को बुराइयों के रास्ते से हटाकर अच्छाई का रास्ता दिखाता है. महीने भर के रोजों के जरिए अल्लाह चाहता है कि इंसान अपनी रोजाना की जिंदगी को रमजान के दिनों के मुताबिक गुजारने वाला बन जाए.

रोजा सिर्फ ना खाने या ना पीने का ही नहीं होता बल्कि रोजा शरीर के हर अंग का होता है. इसमें इंसान के दिमाग का भी रोजा होता है, ताकि इंसान को खयाल रहे कि उसका रोजा है, तो उसे कुछ गलत बातें गुमान नहीं करनी. उसकी आंखों का भी रोजा है, ताकि उसे ये याद रहे कि इसी तरह आख, कान, मुंह का भी रोजा होता है, ताकि वो किसी से भी कोई बुरे अल्फाज ना कहे और अगर कोई उससे किसी तरह के बुरे अल्फाज कहे तो वो उसे भी इसलिए माफ कर दें कि उसका रोजा है. इस तरह इंसान के पूरे शरीर का रोजा होता है.

गमखारी का महीना है रमजान: कुल मिलाकर रमजान का मकसद इंसान को बुराइयों के रास्ते से हटाकर अच्छाई के रास्ते पर लाना है. इसका मकसद एक दूसरे से मोहब्बत, प्रेम, भाईचारा और खुशियां बांटना है. रमजान का मकसद सिर्फ यही नहीं होता कि एक मुसलमान सिर्फ किसी मुसलमान से ही अपने अच्छे अखलाक रखे, बल्कि मुसलमान पर ये भी फर्ज है कि वो किसी और भी मजहब के मानने वालों से भी मोहब्बत, प्रेम, इज्जत, सम्मान, अच्छा अखलाक रखे, ताकि दुनिया के हर इंसान का एक दूसरे से भाईचारा बना रहे, साथ ही गरीब, मजलूम का भी ख्याल रखें.

Last Updated : Apr 3, 2022, 2:46 PM IST
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