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श्राद्ध पक्ष के 16 दिन इसलिए बढ़ जाता है कौवों और कुत्तों का महत्व

श्राद्ध पक्ष में कौवों और कुतों का विशेष महत्व माना जाता है. पुराणों के अनुसार कौवे पितृ पक्ष के दौरान पितरों के रूप में पितृ लोक से भू लोक पर आते हैं. यही कारण है कि पितृ पक्ष में लोग इन कौवों के निमित्त भोजन निकालते हैं.

श्राद्ध पक्ष में कौवों और कुत्तों का महत्व.
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Published : Sep 18, 2019, 11:34 AM IST

Updated : Sep 18, 2019, 12:20 PM IST

हरिद्वार: श्राद्ध पक्ष में कौवों और कुतों का विशेष महत्व माना जाता है. भादौ महीने के 16 दिन कौवा हर घर की छत का मेहमान बनता है. वहीं श्राद्ध पक्ष के ये 16 दिन कौवों और लोगों के लिए खास होते हैं. लोग अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए कौवे और कुत्तों को भोजन कराकर अपने पितरों की मुक्ति की कामना करते हैं. वहीं महानगरों में बढ़ते प्रदूषण के कारण जहां कौवों की संख्या में तेजी से कमी आ रही है.

श्राद्ध पक्ष में कौवों और कुत्तों का महत्व.

धर्मनगरी हरिद्वार में पितृ पक्ष के इन दिनों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु कौवे और कुतों को भोजन कराने के लिए उमड़ रहे हैं और नारायणी शिला पर अपने पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्ध कर अपने कर्तव्य का निर्वहन करते दिखाई दे रहे हैं.

अपने रंग आवाज और फितरत के चलते कौवां समाज में शुरू से हाशिए पर रहे हैं, लेकिन श्राद्ध पक्ष के इन दिनों में इन्हीं कौवों के दर्शन ही नहीं, बल्कि इन्हें भोजन देने के लिए भी लोग तरसते हैं. प्रदूषण और लगातार पेड़ों की कमी के चलते कौवों की संख्या में भारी कमी हो रही है. पुराणों के अनुसार कौवे पितृ पक्ष के दौरान पितरों के रूप में पितृ लोक से भू लोक पर आते हैं. यही कारण है कि पितृ पक्ष में लोग इन कौवों के निमित्त भोजन निकालते हैं.

पढ़ें-आश्चर्य: 14000 फीट, जहां परिंदे भी नहीं पहुंच पाते वहां कौन करता है धान की खेती?

कौवे और कुत्तों को भोजन कराने का महत्व

माना जाता है कि श्राद्ध पक्ष में कौवे और कुत्तों को भोजन कराने से पित्र तृप्त होते हैं. इसलिए बड़ी संख्या में लोग अपने पितरों की तृप्ति के लिए कौवे और कुत्तों को भोजन कराते हैं. साथ ही मुक्ति के द्वार हरिद्वार के नारायणी शिला मंदिर में आकर अपने पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्ध कर्म करते हैं. नारायणी शिला के मुख्य पुजारी मनोज त्रिपाठी का कहना है कि श्राद्ध पक्ष में जब हम अपने पितरों के प्रति श्राद्ध कर्म करते हैं और ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं. तब पांच प्रकार की बलि का विशेष तौर पर महत्व बताया गया है. पहली है विश्व देव, दूसरी है गोग्रास, तीसरी है चींटी के लिए भोजन, चौथी है कौवों के लिए काकबली और पांचवी है स्वांगबली जो कुत्तों को दी जाती है.

इन सब में कौवें का विशेष महत्व है क्योंकि कौवों को माना जाता है कि वह इस लोक और परलोक में प्रवेश करने में सक्षम हैं. कौवे का एक नेत्र नीचे और एक नेत्र ऊपर रहता है जो पित्र हमारे अधोगति चले जाते हैं वह सिर्फ दो रूपों में ही आकर हमसे हमारा प्रसाद या भाव स्वीकार करते हैं. एक स्वांगबलि के रूप में एक ताकबलि के रूप में इसलिए कौवे का विशेष महत्व माना जाता है कि अगर कौवे ने भोजन कर लिया तो यह भोजन पितरों ने स्वीकार कर लिया और यह श्राद्ध स्वीकार करने से उनको अधोगति से मुक्त होकर उत्तम गति में चले जाएगा यानी कि पित्र लोक चले जाएगे इसलिए श्राद्ध में कौवों का विशेष तौर पर महत्व माना जाता है.

मनोज त्रिपाठी का कहना है कि श्राद्ध पक्ष में कौवे का दर्शन ही दुर्लभ हो जाते हैं मगर जो कौवे को भोजन करा देते हैं उनके पितरों को मुक्ति मिल जाती है. कौवे के साथ ही कुत्तों को भी भोजन कराने का महत्व माना जाता है, कुत्ते को अधोगति माना जाता है. जिसके दर्शन भी गलत बताए गए हैं और ऐसा कहा जाता है कि जिस घर में कुत्ता पाला हो उस घर में पितृ और देवता हव्य और कव्य स्वीकार नहीं करते हैं, इसलिए कौवे के लिए स्वांगबली निकालते हैं और स्वांगबलि देने के समय पर यही माना जाता है कि जो अधोगति गया हुआ पितृ है, वह उसको स्वीकार करके वहां से मुक्त हो जाएगा मगर कुछ कुल के ब्राह्मण मानते हैं कि काकबली और स्वांगबली नहीं होती है, क्योंकि उनके यहां यह माना जाता है कि उनके पितृ कभी अधोगति नहीं जाते हैं यह सामवेदी ब्राह्मण होते हैं और यह कभी भी श्राद्ध कर्म में कौवे और कुत्ते के लिए भोजन नहीं निकालते हैं. आधुनिकता के इस दौर में इंसान चांद तक भले ही पहुंच गया हो लेकिन आज भी हमारे रीति इसलिए कौवों की भी पितृ पक्ष के इन सोलह दिनों में भारी डिमांड रहती है और लोग अपने पितरों की मुक्ति के लिए इन कौवे और कुत्तों को भोजन कराकर पितरों की मुक्ति की कामना करते हैं.

हरिद्वार: श्राद्ध पक्ष में कौवों और कुतों का विशेष महत्व माना जाता है. भादौ महीने के 16 दिन कौवा हर घर की छत का मेहमान बनता है. वहीं श्राद्ध पक्ष के ये 16 दिन कौवों और लोगों के लिए खास होते हैं. लोग अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए कौवे और कुत्तों को भोजन कराकर अपने पितरों की मुक्ति की कामना करते हैं. वहीं महानगरों में बढ़ते प्रदूषण के कारण जहां कौवों की संख्या में तेजी से कमी आ रही है.

श्राद्ध पक्ष में कौवों और कुत्तों का महत्व.

धर्मनगरी हरिद्वार में पितृ पक्ष के इन दिनों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु कौवे और कुतों को भोजन कराने के लिए उमड़ रहे हैं और नारायणी शिला पर अपने पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्ध कर अपने कर्तव्य का निर्वहन करते दिखाई दे रहे हैं.

अपने रंग आवाज और फितरत के चलते कौवां समाज में शुरू से हाशिए पर रहे हैं, लेकिन श्राद्ध पक्ष के इन दिनों में इन्हीं कौवों के दर्शन ही नहीं, बल्कि इन्हें भोजन देने के लिए भी लोग तरसते हैं. प्रदूषण और लगातार पेड़ों की कमी के चलते कौवों की संख्या में भारी कमी हो रही है. पुराणों के अनुसार कौवे पितृ पक्ष के दौरान पितरों के रूप में पितृ लोक से भू लोक पर आते हैं. यही कारण है कि पितृ पक्ष में लोग इन कौवों के निमित्त भोजन निकालते हैं.

पढ़ें-आश्चर्य: 14000 फीट, जहां परिंदे भी नहीं पहुंच पाते वहां कौन करता है धान की खेती?

कौवे और कुत्तों को भोजन कराने का महत्व

माना जाता है कि श्राद्ध पक्ष में कौवे और कुत्तों को भोजन कराने से पित्र तृप्त होते हैं. इसलिए बड़ी संख्या में लोग अपने पितरों की तृप्ति के लिए कौवे और कुत्तों को भोजन कराते हैं. साथ ही मुक्ति के द्वार हरिद्वार के नारायणी शिला मंदिर में आकर अपने पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्ध कर्म करते हैं. नारायणी शिला के मुख्य पुजारी मनोज त्रिपाठी का कहना है कि श्राद्ध पक्ष में जब हम अपने पितरों के प्रति श्राद्ध कर्म करते हैं और ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं. तब पांच प्रकार की बलि का विशेष तौर पर महत्व बताया गया है. पहली है विश्व देव, दूसरी है गोग्रास, तीसरी है चींटी के लिए भोजन, चौथी है कौवों के लिए काकबली और पांचवी है स्वांगबली जो कुत्तों को दी जाती है.

इन सब में कौवें का विशेष महत्व है क्योंकि कौवों को माना जाता है कि वह इस लोक और परलोक में प्रवेश करने में सक्षम हैं. कौवे का एक नेत्र नीचे और एक नेत्र ऊपर रहता है जो पित्र हमारे अधोगति चले जाते हैं वह सिर्फ दो रूपों में ही आकर हमसे हमारा प्रसाद या भाव स्वीकार करते हैं. एक स्वांगबलि के रूप में एक ताकबलि के रूप में इसलिए कौवे का विशेष महत्व माना जाता है कि अगर कौवे ने भोजन कर लिया तो यह भोजन पितरों ने स्वीकार कर लिया और यह श्राद्ध स्वीकार करने से उनको अधोगति से मुक्त होकर उत्तम गति में चले जाएगा यानी कि पित्र लोक चले जाएगे इसलिए श्राद्ध में कौवों का विशेष तौर पर महत्व माना जाता है.

मनोज त्रिपाठी का कहना है कि श्राद्ध पक्ष में कौवे का दर्शन ही दुर्लभ हो जाते हैं मगर जो कौवे को भोजन करा देते हैं उनके पितरों को मुक्ति मिल जाती है. कौवे के साथ ही कुत्तों को भी भोजन कराने का महत्व माना जाता है, कुत्ते को अधोगति माना जाता है. जिसके दर्शन भी गलत बताए गए हैं और ऐसा कहा जाता है कि जिस घर में कुत्ता पाला हो उस घर में पितृ और देवता हव्य और कव्य स्वीकार नहीं करते हैं, इसलिए कौवे के लिए स्वांगबली निकालते हैं और स्वांगबलि देने के समय पर यही माना जाता है कि जो अधोगति गया हुआ पितृ है, वह उसको स्वीकार करके वहां से मुक्त हो जाएगा मगर कुछ कुल के ब्राह्मण मानते हैं कि काकबली और स्वांगबली नहीं होती है, क्योंकि उनके यहां यह माना जाता है कि उनके पितृ कभी अधोगति नहीं जाते हैं यह सामवेदी ब्राह्मण होते हैं और यह कभी भी श्राद्ध कर्म में कौवे और कुत्ते के लिए भोजन नहीं निकालते हैं. आधुनिकता के इस दौर में इंसान चांद तक भले ही पहुंच गया हो लेकिन आज भी हमारे रीति इसलिए कौवों की भी पितृ पक्ष के इन सोलह दिनों में भारी डिमांड रहती है और लोग अपने पितरों की मुक्ति के लिए इन कौवे और कुत्तों को भोजन कराकर पितरों की मुक्ति की कामना करते हैं.

Intro:कौवे को हमेशा अपनी कर्कश आवाज और कहीं कहीं अपशकुन के तौर पर जाना जाता है लेकिन पितृ या अपने दिवंगत परिजनों को समर्पित श्राद्ध पक्ष में कौवों और कुतो का विशेष महत्व माना जाता है और लोग अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए कौवे और कुत्तों को भोजन कराकर अपने पितरों की मुक्ति की कामना करते हैं महानगरों में बढते प्रदूषण के कारण जहां कौवों की संख्या में तेजी से कमी आ रही है तो वहीं हरिद्वार में पितृ पक्ष के इन दिनों में बडी संख्या में श्रद्धालू कौवे और कुतो को भोजन कराने के लिए उमड रहे हैं और साथ ही हरिद्वार नारायणी शिला पर अपने पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्ध क्रम कर रहे हैंBody:अपने रंग आवाज और फितरत के चलते कौवे समाज में शुरू से हाशिए पर रहे हैं लेकिन श्राद्ध पक्ष के इन दिनों में इन्हीं कौवे के दर्शन ही नहीं बल्कि इन्हें भोजन देने के लिए भी लोग तरसते हैं प्रदूषण और लगातार पेडों की कमी के चलते कौवे की संख्या में भारी कमी हो चली है पुराणों के अनुसार कौवे पितृ पक्ष के दौरान पितरों के रूप में पितृ लोक से भू लोक पर आते हैं यही कारण है कि पितृ पक्ष में लोग इन कौवे के निमित्त भोजन निकालते हैं क्या महत्व है श्राद्ध पक्ष में कौवे और कुत्तों भोजन कराने का आप भी देखिए 

श्राद्ध पक्ष में कौवे और कुत्तों को भोजन कराने से पित्र तृप्त होते हैं इसलिए बड़ी संख्या में लोग अपने पितरों की तृप्ति के लिए कौवे और कुत्तों को भोजन कराते हैं और साथ ही मुक्ति के द्वार हरिद्वार के नारायणी शिला मंदिर में आकर अपने पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्ध कर्म करते हैं नारायणी शिला के मुख्य पुजारी मनोज त्रिपाठी का कहना है कि श्राद्ध पक्ष में जब हम अपने पितरों के प्रति श्राद्ध कर्म करते हैं और ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं तब पांच प्रकार की बलि का विशेष तौर पर महत्व बताया गया है पहली है विश्व देव दूसरी है गोग्रास तीसरी है चींटी के लिए भोजन चौथी है कौवा के लिए काकबली और पांचवी है स्वांगबली जो कुत्तों को दी जाती है इन सब में कौवे का विशेष महत्व है क्योंकि कौवा को माना जाता है कि वह इस लोक और परलोक में प्रवेश करने में सक्षम है कौवे का एक नेत्र नीचे और एक नेत्र ऊपर रहता है जो पित्र हमारे अधोगति चले जाते हैं वह सिर्फ दो रूपों में ही आकर हमसे हमारा प्रसाद या भाव स्वीकार करते हैं एक स्वांगबलि के रूप में एक ताकबलि के रूप में इसलिए कौवे का विशेष महत्व माना जाता है कि अगर कौवे ने भोजन कर लिया तो यह भोजन पितरों ने स्वीकार कर लिया और यह श्राद्ध स्वीकार करने से उनको अधोगति से मुक्त होकर उत्तम गति में चले जाएगा यानी कि पित्र लोक चले जाएगे इसलिए श्राद्ध में कौवे का विशेष तौर पर महत्व माना जाता है

बाइट मनोज त्रिपाठी मुख्य पुजारी नारायणी शिला मंदिर

मनोज त्रिपाठी का कहना है कि श्राद्ध पक्ष में कौवे का दर्शन ही दुर्लभ हो जाते हैं मगर जो कौवे को भोजन करा देते हैं उनके पितरों को मुक्ति मिल जाती है कौवे के साथ ही कुत्तों को भी भोजन कराने का महत्व माना जाता है कुत्ते को अधोगति माना जाता है जिसके दर्शन भी गलत बताए गए हैं और ऐसा कहा जाता है कि जिस घर में कुत्ता पल्ला हो उस घर में पितृ और देवता हव्य और कव्य स्वीकार नहीं करते हैं इसलिए कौवे के लिए स्वांगबली निकालते हैं और स्वांगबलि देने के समय पर यही माना जाता है कि जो अधोगति गया हुआ पितृ है वह उसको स्वीकार करके वहां से मुक्त हो जाएगा मगर कुछ कुल के ब्राह्मण मानते हैं कि काकबली और स्वांगबली नहीं होती है क्योंकि उनके यहां यह माना जाता है की उनके पितृ कभी अधोगति नहीं जाते हैं यह सामवेदी ब्राह्मण होते हैं और यह कभी भी श्राद्ध कर्म में कौवे और कुत्ते के लिए भोजन नहीं निकालते हैं  

बाइट मनोज त्रिपाठी मुख्य पुजारी नारायणी शिला मंदिर

श्राद्ध पक्ष में इन कौवे की जमकर पूछ हो रही है दूर दूर से लोग इनके दर्शन और इनको भोजन कराने के लिए आ रहे हैं हरिद्वार में इन दिनों दिन भर ये नजारा देखा जा सकता है लोग यहां आकर गंगा किनारे अपने पितरों का तर्पण करने के बाद इन कौवों को भोजन कराना नहीं भूलते महानगरों के प्रदूषण से दूर यहां कौवों की भारी संख्या देखी जा सकती है और हो भी क्यों ना श्राद्ध पक्ष जो चल रहे हैं लोगों का कहना है कि श्राद्ध पक्ष में कौवा और कुत्तों को भोजन कराने से पितृ तृप्त हो जाते हैं इसलिए हम कौवा और कुत्तों को भोजन करा रहे हैं इससे पितरों को मुक्ति मिलती है और वह हमको आशीर्वाद प्रदान करते हैं

बाइट--रजत अग्रवाल---श्रद्धालू
बाइट--शरद शर्मा---श्रद्धालूConclusion:तेजी से बदल रहे आधुनिकता के इस दौर में इंसान चांद तक भले ही पहुंच गया हो लेकिन आज भी हमारे रीति रिवाज और संस्कृति की जडें हमारे संस्कारों और जीवन में गहरी हैं और हमारी संस्कृति सबको पूजनीय बनाती है इसीलिए कौवों की भी पितृ पक्ष के इन सोलह दिनों में भारी डिमांड रहती है और लोग अपने पितरों की मुक्ति के लिए इन कौवे और कुत्तों को भोजन कराकर पितरों की मुक्ति की कामना करते हैं
Last Updated : Sep 18, 2019, 12:20 PM IST
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