हरिद्वारः बड़ा अखाड़ा उदासीन के महामंडलेश्वर महंत स्वामी रूपेंद्र प्रकाश महाराज ने धर्मांतरण और वेल्हम कॉलेज को लेकर सवाल उठाए हैं. उन्होंने आरोप लगाया है कि देश में हिंदू धर्म के लोगों को खतरा है. बड़ी संख्या में हिंदू धर्म के लोगों का धर्मांतरण किया जा रहा है. जो बहुत गंभीर मुद्दा है. उन्होंने पूरे देश में धर्मांतरण निषेध विधेयक लाने की पैरवी की है.
रूपेंद्र प्रकाश ने कहा कि केरल में बड़ी संख्या में धर्मांतरण किया जा रहा है. उनका आरोप है कि देश में ईसाई मिशनरी और इस्लामिक संगठन बड़ी संख्या में हिंदुओं के धर्मांतरण का काम कर रहे हैं. इस्लामिक देशों की दृष्टि भारत पर है. वो अलग-अलग माध्यम से देश के लोगों का धर्मांतरण करने में लगे हैं. हाल ही में कश्मीर में दो हिंदू युवतियों के साथ हुई घटना निंदनीय है.
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स्वामी रूपेंद्र प्रकाश ने कहा कि देश के कई राज्यों में बड़ी संख्या में धर्मांतरण चल रहा है. इस पर रोक लगना जरूरी है. ऐसे में उनकी मांग है कि केंद्र सरकार के साथ ही राज्यों की सरकारें भी इस विषय पर गंभीरता से विचार करें और जल्द ही देश में धर्मांतरण निषेध विधेयक लाए.
उत्तराखंड धर्मांतरण निषेध विधेयक वाला सातवां राज्य
बता दें कि बीते 24 मार्च 2018 को उत्तराखंड सरकार ने विधानसभा सदन में धर्म स्वतंत्रता विधेयक ध्वनिमत से पारित किया था. इसमें गैर कानूनी ढंग से धर्म बदलने पर कठोर कार्रवाई का प्रावधान है. उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता विधेयक का प्रारूप 23 अगस्त 2017 को विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की ओर से तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को सौंपा गया था. जिस पर 13 मार्च 2018 को मंत्रिमंडल ने इस प्रारूप को मंजूरी दी थी.
गैरसैंण विधानसभा सत्र के दौरान सरकार इस पर विधेयक लेकर आई और 24 मार्च को यह विधेयक पारित किया गया. उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2018 अन्य छह राज्यों की तुलना में सबसे सशक्त अधिनियम माना जाता है. इस अधिनियम में लव जिहाद के खिलाफ स्पष्ट प्रावधान किए गए हैं. बिना अनुमति के यदि अब कोई धर्मांतरण या फिर साजिश में शामिल रहता है तो उसे अधिकतम पांच साल जेल की सजा काटनी होगी. सरकार ने ऐसे धर्मांतरण को शून्य भी घोषित करने का प्रावधान कर दिया है.
इस अधिनियम में केवल विवाह के लिए किए जाने वाले धर्मांतरण को भी कानून के दायरे में लाया गया है. पूर्व में उच्च न्यायालय ने भी विवाह के लिए धर्मांतरण के मामले में सरकार को कानून बनाने का निर्देश दिया था. साथ ही इस अधिनियम में अनुसूचित जाति, जनजाति, महिला, नाबालिग के धर्मांतरण के खिलाफ सख्त प्रावधान किए गए हैं. जिसमें सजा का प्रावधान सात वर्ष तक है.
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इन पर होगा लागू
- प्रलोभन देना (नकद, रोजगार, निशुल्क शिक्षा, बेहतर जीवन, दैवीय कृपा)
- धमकाना (कोई व्यक्ति यदि किसी को डरा-धमका कर धर्मांतरण को विवश करता है)
- षड़यंत्र (धर्मांतरण कराने के लिए किसी की सहायता करना, मनोवैज्ञानिक दबाव या फिर साजिश रचना. इसमें पारिवारिक सदस्य भी होंगे तो वे भी दायरे में आएंगे.)
ये होगी प्रक्रिया
कोई व्यक्ति यदि अपना धर्म परिवर्तन करने का इच्छुक है तो उसे कम से कम एक महीने पहले जिलाधिकारी को शपथ पत्र देना होगा, जिसमें उल्लेख होगा कि वह खुद की इच्छा से अपना धर्म परिवर्तन करना चाहता है. धार्मिक पुजारी भी सामूहिक धर्म परिवर्तन कराएंगे तो उन्हें भी एक महीने पहले डीएम से अनुमित लेनी होगी. डीएम और पुलिस ऐसे आवेदनों की जांच के बाद अनुमति देंगे.
1954 में पहली बार संसद में धर्म परिवर्तन का मुद्दा उठा था
संसद में पहली बार इस मुद्दे को साल 1954 में उठाया गया था. उस समय इस बिल का नाम भारतीय धर्मांतरण (नियम और पंजीकरण) विधेयक था. इस बिल को वर्ष 1960 में फिर से संसद में उठाया गया. अल्पसंख्यकों के विरोध की वजह से इस बिल को समर्थन नहीं मिल सका और यह बिल पास नहीं हो पाया.
देश के 9 राज्यों में धर्मांतरण को लेकर कानून लाया जा चुका है. ओडिशा में यह कानून सबसे पहले लाया गया था. ओडिशा में 1967 में यह कानून लागू किया गया था.
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किस राज्य में क्या कानून और कितनी सजा
- ओडिशा (1967)- कानून के उल्लंघन पर 1 साल की सजा, ₹5 हजार जुर्माना/एससी-एसटी मामले में 2 साल सजा, ₹10 हजार जुर्माना.
- मध्य प्रदेश (1968)- कानून के उल्लंघन पर 1 साल की सजा, ₹5 हजार जुर्माना. एससी-एसटी मामले में 2 साल सजा, ₹10 हजार जुर्माना.
- अरुणाचल प्रदेश (1978)- कानून के उल्लंघन पर 2 साल की सजा, ₹10 हजार जुर्माना. एससी-एसटी मामले में 2 की साल सजा और ₹10 हजार जुर्माना भी है.
- छत्तीसगढ़ (2006)- कानून के उल्लंघन पर 3 साल की सजा और ₹20 हजार का जुर्माना. एससी-एसटी मामले में 4 साल की सजा समेत ₹20 का हजार जुर्माना है.
- गुजरात (2003)- कानून के उल्लंघन पर 3 साल की सजा, ₹50 हजार जुर्माना. एससी-एसटी मामले में 4 साल सजा और ₹1 लाख का जुर्माना है. बीते 1 अप्रैल 2021 को गुजरात में जबरन धर्मांतरण कराने के मामले में दस साल तक की सजा प्रावधान किया गया है. गुजरात विधानसभा ने इससे जुड़े विधेयक को पारित कर दिया है.
- हिमाचल प्रदेश (2019)- कानून के उल्लंघन पर 1-5 साल तक की सजा का प्रावधान है. एससी-एसटी मामले में 2-7 साल तक की सजा है.
- झारखंड (2017)- कानून के उल्लंघन पर 3 साल की सजा, ₹50 हजार जुर्माना है. एससी-एसटी मामले में 4 साल सजा और ₹1 लाख का जुर्माना है.
- उत्तराखंड (2018)- कानून के उल्लंघन पर 1-5 साल तक की सजा. एससी-एसटी मामले में 2-7 साल तक की सजा का प्रावधान है.
- यूपी (2020)- कानून के उल्लंघन पर 1-5 साल तक की सजा और ₹15 हजार या उससे ज्यादा का जुर्माना है. वहीं, एससी-एसटी मामले में 2-10 साल तक की सजा और 25 हजार या उससे ज्यादा का जुर्माना है. वहीं, 24 फरवरी 2021 में उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध विधेयक 2021 विधानसभा में पास किया गया है.
तमिलनाडु और राजस्थान में हुआ कानून वापस
- तमिलनाडु में साल 2002 में धर्मांतरण कानून पास किया गया, लेकिन ईसाई मिशनरियों के भारी विरोध के बाद 2006 में इसे वापस ले लिया गया.
- राजस्थान में भी साल 2008 में इस तरह का विधेयक पारित किया था, लेकिन यह कानून नहीं बन सका क्योंकि केंद्र ने कुछ स्पष्टीकरण के लिए इसे वापस भेज दिया था.
संसद में 3 बार हुई धर्मांतरण निषेध कानून पास कराने की नाकाम कोशिश
- संसद में पहली बार 1954 में भारतीय धर्मांतरण विनियमन एवं पंजीकरणः विधेयक 1954 में पेश किया गया, लेकिन पास नहीं हो सका.
- साल 1960 और 1979 में भी प्रयास किए गए थे, लेकिन इस बार भी विधेयक पास नहीं हो सका.
- साल 2015 में तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने राष्ट्रव्यापी स्तर पर धर्मांतरण निरोधक कानून बनाने पर जोर दिया था.