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सिविल अस्पताल में शुरू नहीं हुआ एसएनसीयू, सरकार के दावे फेल - एसएनसीयू की सुविधा

रुड़की में 12 बेड का स्पेशल न्यूबोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) का काम अधर में लटका है. ऐसे में एसएनसीयू की सुविधा ना मिलने के कारण जच्चा-बच्चा को रेफर करना पड़ रहा है.

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रुड़की सिविल अस्पताल
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Published : Jan 16, 2020, 3:56 PM IST

रुड़की: सरकार भले ही प्रदेश में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने के लाख दावे करती हो, लेकिन धरातल पर सभी दावे खोखले नजर आ रहे हैं. इसकी बानगी रुड़की में देखने को मिल रहा है. जहां प्रदेश के सबसे बड़े अस्पतालों में शुमार सिविल अस्पताल में स्पेशल न्यूबोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) की सुविधा जच्चा-बच्चा को नहीं मिल पा रही है. इतना ही नहीं तीन साल बीत जाने के बाद भी एसएनसीयू शुरू नहीं हो पाया है. ऐसे में जच्चा-बच्चा को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

रुड़की सिविल अस्पताल में एसएनसीयू सुविधा की कमी.

दरअसल, रुड़की के सिविल अस्पताल में डिलीवरी की बढ़ती संख्या को देखते हुए बीते मार्च 2016 को चार बेड के एनबीएसयू को अपग्रेड करने की बात की गई थी, लेकिन इसे अपग्रेड करने की जगह बंद ही कर दिया गया. जिसके बाद 12 बेड का स्पेशल न्यूबोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) बनाने का काम शुरू किया गया.

ये भी पढ़ेंः पिथौरागढ़ः पहाड़ नहीं चढ़ रहे डॉक्टर, पटरी से उतरी स्वास्थ्य सेवाएं

जहां एसएनसीयू के लिए एक हॉल तैयार किया गया, लेकिन साढ़े तीन साल बीत जाने के बाद भी अभीतक इसे शुरू नहीं किया गया है. ऐसे में नवजात को रेफर करना पड़ता है. इतना ही नहीं समय पर इलाज न मिल पाने के कारण कई नवजात अपनी जान भी गवां चुके हैं. वहीं, सिविल अस्पताल में एकमात्र बाल रोग विशेषज्ञ है. ऐसे में वो जब छुट्टी पर होते हैं तो बच्चों का चेकअप भी नहीं हो पाता है.

वहीं, इस मामले में अस्पताल के सीएमएस संजय कंसल का कहना है कि एसएनसीयू के लिए ठेकेदार ने जो कंट्रक्शन का कार्य किया था. उसमें खामी पाई गई थी. जिसे उचित ना मानते हुए शासन से और अधिक बजट की मांग की गई है. बजट मिलने के बाद कंट्रक्शन का काम पूरा करवाया जाएगा और एसएनसीयू की सुविधा शुरू कर दी जाएगी.

ये भी पढ़ेंः पौड़ीः महिला अस्पताल में तैनात दो डॉक्टरों का तबादला, लोगों का चढ़ा पारा

बता दें कि जन्म के बाद नवजात के लिए 26 डिग्री से ज्यादा रूम टेंपचर की जरूरत होती है. ठंड में तापमान को बनाए रखने के लिए शिशु को एसएनसीयू में रखा जाता है. जहां शिशु को कम से कम 24 घंटे तक एसएनसीयू में रखने की जरूरत होती है. जिससे शिशु स्थिर हो सके.

इस दौरान नवजात को कोई दिक्कत हो तो एसएनसीयू में उसे पूरा इलाज मिल जाता है. इसके अलावा समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चे या फिर कमजोर शिशुओं के लिए एसएनसीयू की जरूरत होती है, लेकिन रुड़की सिविल अस्पताल में ये सुविधा नहीं मिल पा रही है.

रुड़की: सरकार भले ही प्रदेश में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने के लाख दावे करती हो, लेकिन धरातल पर सभी दावे खोखले नजर आ रहे हैं. इसकी बानगी रुड़की में देखने को मिल रहा है. जहां प्रदेश के सबसे बड़े अस्पतालों में शुमार सिविल अस्पताल में स्पेशल न्यूबोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) की सुविधा जच्चा-बच्चा को नहीं मिल पा रही है. इतना ही नहीं तीन साल बीत जाने के बाद भी एसएनसीयू शुरू नहीं हो पाया है. ऐसे में जच्चा-बच्चा को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

रुड़की सिविल अस्पताल में एसएनसीयू सुविधा की कमी.

दरअसल, रुड़की के सिविल अस्पताल में डिलीवरी की बढ़ती संख्या को देखते हुए बीते मार्च 2016 को चार बेड के एनबीएसयू को अपग्रेड करने की बात की गई थी, लेकिन इसे अपग्रेड करने की जगह बंद ही कर दिया गया. जिसके बाद 12 बेड का स्पेशल न्यूबोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) बनाने का काम शुरू किया गया.

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जहां एसएनसीयू के लिए एक हॉल तैयार किया गया, लेकिन साढ़े तीन साल बीत जाने के बाद भी अभीतक इसे शुरू नहीं किया गया है. ऐसे में नवजात को रेफर करना पड़ता है. इतना ही नहीं समय पर इलाज न मिल पाने के कारण कई नवजात अपनी जान भी गवां चुके हैं. वहीं, सिविल अस्पताल में एकमात्र बाल रोग विशेषज्ञ है. ऐसे में वो जब छुट्टी पर होते हैं तो बच्चों का चेकअप भी नहीं हो पाता है.

वहीं, इस मामले में अस्पताल के सीएमएस संजय कंसल का कहना है कि एसएनसीयू के लिए ठेकेदार ने जो कंट्रक्शन का कार्य किया था. उसमें खामी पाई गई थी. जिसे उचित ना मानते हुए शासन से और अधिक बजट की मांग की गई है. बजट मिलने के बाद कंट्रक्शन का काम पूरा करवाया जाएगा और एसएनसीयू की सुविधा शुरू कर दी जाएगी.

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बता दें कि जन्म के बाद नवजात के लिए 26 डिग्री से ज्यादा रूम टेंपचर की जरूरत होती है. ठंड में तापमान को बनाए रखने के लिए शिशु को एसएनसीयू में रखा जाता है. जहां शिशु को कम से कम 24 घंटे तक एसएनसीयू में रखने की जरूरत होती है. जिससे शिशु स्थिर हो सके.

इस दौरान नवजात को कोई दिक्कत हो तो एसएनसीयू में उसे पूरा इलाज मिल जाता है. इसके अलावा समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चे या फिर कमजोर शिशुओं के लिए एसएनसीयू की जरूरत होती है, लेकिन रुड़की सिविल अस्पताल में ये सुविधा नहीं मिल पा रही है.

Intro:रुड़की

रुड़की: केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार बेहतर स्वास्थ्य सेवा देने का दम भरती है, और जच्चा, बच्चा के लिए सरकारी अस्पतालों में लाखों करोड़ों प्रचार प्रसार पर खर्च करती है लेकिन हक़ीक़त इससे बिल्कुल विपरीत है।
रुड़की का सिविल अस्पताल उत्तराखंड प्रदेश के बड़े अस्पतालों में शुमार है। अस्पताल में होने वाली डिलीवरी की संख्या को देखते हुए मार्च 2016 में चार बेड के (एनबीएसयू) को अपग्रेड करने की बात कहते हुए उसे बंद कर दिया गया था। इसके बाद 12 बेड का एसएनसीयू (स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट) बनाने का काम शुरू किया गया। एसएनसीयू के लिए हॉल तैयार हुए भी साढ़े तीन साल बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक इसे शुरू नहीं हो किया गया है। ऐसे में अक्सर नवजात को रेफर करना अस्पताल प्रशासन की मजबूरी बन जाती है। वहीं कई बार समय पर इलाज न मिल पाने पर नवजात को जान भी गंवानी पड़ती है। वहीं सिविल अस्पताल में एकमात्र बाल रोग विशेषज्ञ हैं। ऐसे में यदि वह छुट्टी पर होते हैं तो नवजात का चेकअप तक नहीं हो पाता है।

Body:बता दे कि जन्म के बाद नवजात के लिए 26 डिग्री से अधिक रूम टेंपरेचर की जरूरत होती है। ठंड में तापमान को बनाए रखने के लिए शिशु को एसएनसीयू में रखा जाता है। शिशु को कम से कम 24 घंटे तक एसएनसीयू में रखने की जरूरत होती है ताकि शिशु स्थिर हो सके। इस दौरान यदि शिशु को कोई दिक्कत हो, तो एसएनसीयू में उसे पूरा उपचार मिल जाता है। इसके अलावा समय से पूर्व जन्म लेने वाले बच्चे या फिर कमजोर शिशुओं के लिए एसएनसीयू की जरूरत होती है, ऐसे में रुड़की का सिविल अस्पताल जन्म लेने वाले शिशुओं के लिए पूर्ण नही है। क्योंकि यहाँ अभी तक एसएनसीयू को नही चलाया गया। जिसके चलते अधिकांश शिशु को अस्पताल प्रशासन रैफर करता है। अस्पताल के सीएमएस ने बताया कि एसएनसीयू के लिए जो कंट्रक्शन का कार्य ठेकेदार द्वारा किया गया था उसमें खामी थी, जिसको उचित ना मानते हुए शासन से और अधिक बजट की मांग की गई थी, जैसे ही बजट उन्हें प्राप्त होगा वैसे कंट्रक्शन कम्प्लीट कराकर एसएनसीयू की सुविधा शुरू कर दी जाएगी।

बाइट-- संजय कंसल (सीएमएस सिविल अस्पताल)Conclusion:
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