रुड़की: सैकड़ों वर्ष बीत गए लेकिन हजरत इमाम हुसैन की शहादत सभी के दिलों में आज भी जिंदा है. मंगलवार को पूरे देश में हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद कर मोहर्रम मनाया जाएगा. ऐसे में रुड़की, मंगलौर और आसपास के क्षेत्रों में देर रात दहकते अंगारों पर हजरत इमाम को याद किया गया. वहीं, शिया समुदाय के लोगों ने मातम किया.
कहा जाता है कि, दहकते अंगारे भी हजरत इमाम हुसैन के चाहने वालों का कुछ नहीं बिगाड़ सकते और सालों से ये रस्म चली आ रही है कि, जब हजरत इमाम हुसैन को मानने वाले दहकते अंगारों पर नंगे पांव ऐसे दौड़ते हैं, जैसे कि नीचे फूलों का दरिया हो. इस दौरान इमाम हुसैन को चाहने वाले जरा भी उफ तक नहीं करते और उनका नाम लेते हुए इन जलते अंगारों को पार कर जाते हैं.
हुसैन को मानने वाले लोगों का कहना है कि, इमाम हुसैन की इराक के कर्बला मैदान में जहां शहादत हुई थी, वहां की मिट्टी यानी कर्बला की मिट्टी इतनी पाक होती है कि, जिस्म पर लगाने के बाद मरहम का काम करती है.
वहीं, मंगलवार को हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 वफादार साथियों की शहादत को लेकर पूरे देश में मातम-अजादारी के ताजिए निकाले जाएंगे. देश के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले महात्मा गांधी भी हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की शहादत से बहुत प्रेरित थे और उन्होंने हुसैन को लेकर कई ऐसी बातें लिखीं हैं जिन्हें लोग आज भी देश की बड़ी-बड़ी लाइब्रेरियों में पढ़ते हैं.