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गंगा जी की रक्षा के लिए मदन मोहन मालवीय ने बनाई थी ये संस्था, कई बार अंग्रेजों को सिखाया सबक

पंडित मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में चल रहे इस जन आंदोलन ने अंग्रेजी सरकार को घुटने टेकने को मजबूर कर दिया. जिसके बाद कुछ दिन तो अंग्रेजी शासन चुप रहा लेकिन कुछ समय बाद बांध बनाने का प्रयत्न फिर से शुरू कर दिया.

गंगा सभा की स्थापना.
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Published : Mar 31, 2019, 8:15 PM IST

Updated : Apr 1, 2019, 1:52 PM IST

हरिद्वार: धर्मनगरी के हरकी पैड़ी की देखरेख औरमां गंगा आरती काविशेष आयोजन करने वाले तीर्थपुरोहितों की संस्थाश्री गंगा सभा का इतिहास आजादी से भी पुराना है. जिसके इतिहास को कम ही लोग जानते हैं औरविश्व में बांध विरोध आंदोलन हरिद्वार से ही सबसेपहले शुरू हुआ था.एक बड़े संग्राम के बाद गंगा सभा की स्थापना हुई थी. गंगा सभा ने ब्रिटिश सरकार की नीतियों केखिलाफ वर्ष 1914 में विरोध का बिगुल फूंका था.जिस जन आंदोलन नेब्रिटिश हुकूमत को अपनी ताकतसे रूबरू कराया और घूटने टेकने को विवश किया था. ईटीवी भारत की धर्मनगरी के इस गौरवशाली इतिहास पर ये है खास रिपोर्ट.

गंगा सभा की स्थापना.

पं. मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में आंदोलन

श्री गंगा सभा की स्थापना के वक्त देश गुलामी के जंजीरों में जकड़ा हुआ था.सन् 1914 में तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत भीमगोड़ा में गंगा पर बांध का निर्माण कर रही थी. तब पुरोहितों ने इसका जमकर विरोध किया औरयह कहते हुए निर्माणशुरू नहीं होने दिया कि बंधे हुए जल में देव पितृ तर्पण और धार्मिक कर्मकांड शास्त्रों में वार्जित है. जब अंग्रेजी हुकूमत ने पुरोहितों की आवाज को दबाना चाहती थी लेकिन पुरोहितों ने आंदोलन को तेज कर दिया. जिस आंदोलन कीकमान पंडितमदनमोहन मालवीय ने स्वयं संभाली थी.अंग्रेजों के इस फैसले का विरोध इतना बढ़ा कि इसने एक बड़े आंदोलन का रूप ले लिया था. पंडितमदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में चल रहे इस जन आंदोलन ने अंग्रेजी सरकार को घुटने टेकने कोमजबूर कर दिया. जिसके बाद कुछ दिन तो अंग्रेजी शासन चुप रहालेकिन कुछ समय बाद बांध बनाने का प्रयत्न फिर से शुरू कर दिया.

अंग्रेज करने लगे थे गंगा जी का अपमान

जिसके बाद अंग्रेजों ने पवित्र गंगाजल का अपमान करना शुरू कर दिया. इस पर हरिद्वार के तीर्थ पुरोहितों एवं श्री महंत ने फिर से एक बार विराट आंदोलन शुरू किया. परिणाम स्वरूप तत्कालीन गवर्नर जेम्स मेस्टन का सिंहासन डोल गया था और विवश होकर अंग्रेजी हुकूमत को आंदोलनकारियों की सभी बातों कोमाननापड़ा था.ब्रिटिश सत्ता को अंत में जन आंदोलन के आगे झुकना पड़ा और बांध का प्रस्ताव रद्द करना पड़ा था.

आंदोलन को कई राजा महाराजाओं का था समर्थन

इस आंदोलन को तत्कालीन समय के ग्वालियर, जयपुर, बीकानेर, पटियाला, अलवर और बनारस जैसे कई रियासतों के राजाओं का समर्थन प्राप्त था. अंग्रेजों फिर से कोई हरकत ना करें इसके लिए मदन मोहन मालवीय ने हरिद्वार के तीर्थ पुरोहित और महंतो के सहयोग से सन 1916 में श्री गंगा सभा की स्थापना की. तब से आज तक 103 साल बाद भी श्री गंगा सभाअपनी कार्य तत्पर्ता से कर रही है.

श्री गंगा सभा रजि. की कार्यशैली पर एक नजर

  • हरकी पैड़ी की पूरी व्यवस्था देखना.
  • सुबह-शाम हरकी पौड़ी पर भव्य गंगा आरती का आयोजन करना.
  • हरिद्वार, कनखल और ज्वालापुर में विभिन्न धर्मशालाओं, चिकित्सालयों द्वारा मानवता की सेवा करना
  • श्री गंगा सभा को सरकार या किसी संस्था से कोई सहयोग प्राप्त नहीं.
  • श्री गंगा सभा अपने सभी कार्य मिलने वाले दान से करता है.

अब तक देश के कई जानी मानी हस्तियां, नेता, राजनीतिज्ञ और जज आदि श्री गंगा सभा द्वारा आयोजित गंगा आरती में प्रतिभाग करने हरिद्वार पहुंच चुके हैं. जिसमें देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, वर्तमान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई जैसे नाम शामिल हैं.


हरिद्वार: धर्मनगरी के हरकी पैड़ी की देखरेख औरमां गंगा आरती काविशेष आयोजन करने वाले तीर्थपुरोहितों की संस्थाश्री गंगा सभा का इतिहास आजादी से भी पुराना है. जिसके इतिहास को कम ही लोग जानते हैं औरविश्व में बांध विरोध आंदोलन हरिद्वार से ही सबसेपहले शुरू हुआ था.एक बड़े संग्राम के बाद गंगा सभा की स्थापना हुई थी. गंगा सभा ने ब्रिटिश सरकार की नीतियों केखिलाफ वर्ष 1914 में विरोध का बिगुल फूंका था.जिस जन आंदोलन नेब्रिटिश हुकूमत को अपनी ताकतसे रूबरू कराया और घूटने टेकने को विवश किया था. ईटीवी भारत की धर्मनगरी के इस गौरवशाली इतिहास पर ये है खास रिपोर्ट.

गंगा सभा की स्थापना.

पं. मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में आंदोलन

श्री गंगा सभा की स्थापना के वक्त देश गुलामी के जंजीरों में जकड़ा हुआ था.सन् 1914 में तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत भीमगोड़ा में गंगा पर बांध का निर्माण कर रही थी. तब पुरोहितों ने इसका जमकर विरोध किया औरयह कहते हुए निर्माणशुरू नहीं होने दिया कि बंधे हुए जल में देव पितृ तर्पण और धार्मिक कर्मकांड शास्त्रों में वार्जित है. जब अंग्रेजी हुकूमत ने पुरोहितों की आवाज को दबाना चाहती थी लेकिन पुरोहितों ने आंदोलन को तेज कर दिया. जिस आंदोलन कीकमान पंडितमदनमोहन मालवीय ने स्वयं संभाली थी.अंग्रेजों के इस फैसले का विरोध इतना बढ़ा कि इसने एक बड़े आंदोलन का रूप ले लिया था. पंडितमदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में चल रहे इस जन आंदोलन ने अंग्रेजी सरकार को घुटने टेकने कोमजबूर कर दिया. जिसके बाद कुछ दिन तो अंग्रेजी शासन चुप रहालेकिन कुछ समय बाद बांध बनाने का प्रयत्न फिर से शुरू कर दिया.

अंग्रेज करने लगे थे गंगा जी का अपमान

जिसके बाद अंग्रेजों ने पवित्र गंगाजल का अपमान करना शुरू कर दिया. इस पर हरिद्वार के तीर्थ पुरोहितों एवं श्री महंत ने फिर से एक बार विराट आंदोलन शुरू किया. परिणाम स्वरूप तत्कालीन गवर्नर जेम्स मेस्टन का सिंहासन डोल गया था और विवश होकर अंग्रेजी हुकूमत को आंदोलनकारियों की सभी बातों कोमाननापड़ा था.ब्रिटिश सत्ता को अंत में जन आंदोलन के आगे झुकना पड़ा और बांध का प्रस्ताव रद्द करना पड़ा था.

आंदोलन को कई राजा महाराजाओं का था समर्थन

इस आंदोलन को तत्कालीन समय के ग्वालियर, जयपुर, बीकानेर, पटियाला, अलवर और बनारस जैसे कई रियासतों के राजाओं का समर्थन प्राप्त था. अंग्रेजों फिर से कोई हरकत ना करें इसके लिए मदन मोहन मालवीय ने हरिद्वार के तीर्थ पुरोहित और महंतो के सहयोग से सन 1916 में श्री गंगा सभा की स्थापना की. तब से आज तक 103 साल बाद भी श्री गंगा सभाअपनी कार्य तत्पर्ता से कर रही है.

श्री गंगा सभा रजि. की कार्यशैली पर एक नजर

  • हरकी पैड़ी की पूरी व्यवस्था देखना.
  • सुबह-शाम हरकी पौड़ी पर भव्य गंगा आरती का आयोजन करना.
  • हरिद्वार, कनखल और ज्वालापुर में विभिन्न धर्मशालाओं, चिकित्सालयों द्वारा मानवता की सेवा करना
  • श्री गंगा सभा को सरकार या किसी संस्था से कोई सहयोग प्राप्त नहीं.
  • श्री गंगा सभा अपने सभी कार्य मिलने वाले दान से करता है.

अब तक देश के कई जानी मानी हस्तियां, नेता, राजनीतिज्ञ और जज आदि श्री गंगा सभा द्वारा आयोजित गंगा आरती में प्रतिभाग करने हरिद्वार पहुंच चुके हैं. जिसमें देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, वर्तमान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई जैसे नाम शामिल हैं.


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गंगा जी की रक्षा के लिए मदन मोहन मालवीय ने बनाई थी ये संस्था, कई बार अंग्रेजों को सिखाया सबक





हरिद्वार: धर्मनगरी के हरिद्वार के पर्याय विश्व प्रसिद्ध हरकी पौड़ी की देखरेख करने वाली व मां गंगा आरती का भव्य आयोजन करने वाली तीर्थ पुरोहितों की सबसे सर्वोच्च संस्था श्री गंगा सभा इतिहास आजादी से भी पुराना है. श्री गंगा सभा की स्थापना के पीछे अंग्रेजों के दांत खट्टे करने का एक बहुत बड़े आंदोलन की कहानी छुपी हुई है. जिसे कई लोग नहीं जानते. हरकी पौड़ी पर आपने कई बार स्नान किया होगा लेकिन उसके साथ जुड़ी हुई श्री गंगा सभा के इस गौरवशाली इतिहास के बारे में आप शायद ही जानते होंगे. जिसे ईटीवी भारत आपको बताने जा रहा है.



श्री गंगा सभा का निर्माण उस वक्त हुआ जब भारत अंग्रेजों का गुलाम हुआ करता था.  सन् 1914 में तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत के नहर विभाग ने गंगा जी की प्राकृतिक एवं अविरल धारा पर बांध बनाने का निर्णय किया था. अंग्रेजों की मंशा थी कि वह गंगा की अविरल धारा को अवरुद्ध करके उसे कृत्रिम एवं नियंत्रित धारा के रूप में हरकी पौड़ी में परिवर्तित करें. हरकी पौड़ी जिसे सनातन धर्म में एक बड़ा ही पवित्र स्थल माना जाता है. उसके साथ अंग्रेजों द्वारा इस तरह के खिलवाड़ करने को लेकर हरिद्वार के स्थानीय तीर्थ पुरोहितों एवं महंतों ने रोष व्यक्त किया था. 



पं. मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में आंदोलन

अंग्रेजों के इस फैसले का विरोध इतना बढ़ा कि इसने एक बड़े आंदोलन का रूप ले लिया. आंदोलन की संवेदनशीलता को देखते हुए भारत के गौरव भारतरत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने इस आंदोलन को अपना नेतृत्व दिया. मालवीय जी के नेतृत्व में चल रहे इस जन आंदोलन ने अंग्रेजी सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. जिसके बाद कुछ दिन तो अंग्रेजी शासन चुप रहा लेकिन फिर से नहर विभाग द्वारा फिर से बांध बनाने का प्रयत्न शुरू कर दिया. 



अंग्रेज करने लगे थे गंगा जी का अपमान

अंग्रेजों ने पवित्र गंगाजल का अपमान करना शुरू कर दिया. जैसे गंगा में जूते पहनकर उतरना, गंगा में मछली पकड़ने का व्यापार शुरू करना. इस पर हरिद्वार के तीर्थ पुरोहितों एवं श्री महंत ने फिर से एक बार विराट आंदोलन शुरू किया. परिणाम स्वरूप तत्कालीन गवर्नर जेम्स मेस्टन का सिंहासन डोल उठा. विवश होकर अंग्रेजी हुकूमत को आंदोलनकारियों की सभी बातें माननी पड़ीं. 



आंदोलन को कई राजा महाराजाओं का था समर्थन

आंदोलन के विराट स्वरूप का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस आंदोलन को तत्कालीन समय के ग्वालियर, जयपुर, बीकानेर, पटियाला, अलवर और बनारस जैसे कई रियासतों के राजा महाराजाओं का समर्थन प्राप्त था. फिर से अंग्रेजों द्वारा इस प्रकार की कोई हरकत ना की जाए, इसके लिए भारतरत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने हरिद्वार के तीर्थ पुरोहित व एवं श्री महंतो के सहयोग से सन 1916 में श्री गंगा सभा रजिस्टर्ड की स्थापना की. तब से आज तक 103 साल बाद भी श्री गंगा सभा मां गंगा की सेवा के लिए तत्पर है.



श्री गंगा सभा रजि. की कार्यशैली पर एक नजर

हरकी पौड़ी की पूरी व्यवस्था देखना.

सुबह-शाम हरकी पौड़ी पर भव्य गंगा आरती का आयोजन करना.

हरिद्वार, कनखल और ज्वालापुर में विभिन्न धर्मशालाओं, चिकित्सालयों द्वारा मानवता की सेवा करना

श्री गंगा सभा को सरकार या किसी संस्था से कोई सहयोग प्राप्त नहीं.

श्री गंगा सभा अपने सभी कार्य मिलने वाले दान से करता है. 



अब तक देश के कई जानी मानी हस्तियां, नेता, राजनीतिज्ञ और जज आदि श्री गंगा सभा द्वारा आयोजित गंगा आरती में प्रतिभाग करने हरिद्वार पहुंच चुके हैं. जिसमें देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, वर्तमान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई जैसे नाम शामिल हैं.


Conclusion:
Last Updated : Apr 1, 2019, 1:52 PM IST
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