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देवोत्थान एकादशी: आखिर तुलसी ने क्यों दिया भगवान विष्णु को श्राप, जानिए वजह?

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Published : Nov 8, 2019, 1:36 AM IST

Updated : Nov 8, 2019, 7:06 AM IST

8 नवंबर को देवोत्थान एकादशी है. इस दिन भगवान विष्णु और तुलसी का विवाह बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. वहीं, इस पर्व के पीछे एक बहुत ही रोचक कहानी है.

देवोत्थान एकादशी.

हरिद्वार: धर्मनगरी में देवोत्थान एकादशी पर तुलसी और भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम के विवाह का उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन तुलसी पूजन को विधि-विधान से करने पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है. हिन्दू धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्व होता है. कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकदशी यानी देव शयनी के दिन भगवान विष्णु निद्रा में चले जाते हैं जिसके बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन देवोत्थान उत्सव होने पर भगवान जागते हैं.

देवोत्थान एकादशी.

मान्यता है कि इस दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी का विवाह संपन्न करवाने से वैवाहिक जीवन में आ रही समस्याओं का अंत हो जाता है. साथ ही जिन लोगों के विवाह नहीं हो रहे हैं, उनका रिश्ता पक्का हो जाता है. मान्यता है कि तुलसी विवाह कराने से कन्यादान जैसा पुण्य मिलता है.

पौराणिक कथा के अनुसार, तुलसी जिनको वृंदा नाम से भी जाना जाता था. उन्होंने भगवान विष्णु को ये शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है इसलिए तुम पत्थर के हो जाओ. यही पत्थर शालिग्राम के रूप में जाना जाता है. जब भगवान पत्थर के हो गए तो उनकी अर्धांगिनी माता लक्ष्मी ने तुलसी से आग्रह किया कि वो भगवान विष्णु को दोबारा उनके असली रूप में ला दें, जिस पर तुलसी ने माता लक्ष्मी का आग्रह मानते हुए भगवान विष्णु को उनके असली रूप में वापस जाने की अनुमति दे दी. इसके बाद से ये दिन तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाने लगा.

ये भी पढ़ें: CM त्रिवेंद्र और सीएम योगी के गांव से शुरू होगी चकबंदी, जीपीएस से होगा सर्वे

भगवान विष्णु के पत्थर वाले रूप शालिग्राम का विवाह तुलसी से करवाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु की किसी भी पूजा में अगर तुलसी का प्रयोग न किया जाए तो भगवान विष्णु की पूजा पूरी नहीं मानी जाती है. तुलसी पूजा के दिन विधि विधान से माता तुलसी और भगवान शालिग्राम का विवाह करवाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. ऐसी मान्यता है कि देवोत्थान एकादशी के दिन सुबह स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा अर्चना कर उनके प्रिय मंत्र ॐ विष्णवे नमः का जाप करना चाहिए. साथ ही दूध से बनी मिठाई चढ़ाने से विशेष लाभ प्राप्त होता है. हिंदू धर्म के अनुसार ऐसा माना जाता है कि आज के दिन से ही शुभ काम फिर से प्रारंभ किए कर दिए जाते हैं.

हरिद्वार: धर्मनगरी में देवोत्थान एकादशी पर तुलसी और भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम के विवाह का उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन तुलसी पूजन को विधि-विधान से करने पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है. हिन्दू धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्व होता है. कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकदशी यानी देव शयनी के दिन भगवान विष्णु निद्रा में चले जाते हैं जिसके बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन देवोत्थान उत्सव होने पर भगवान जागते हैं.

देवोत्थान एकादशी.

मान्यता है कि इस दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी का विवाह संपन्न करवाने से वैवाहिक जीवन में आ रही समस्याओं का अंत हो जाता है. साथ ही जिन लोगों के विवाह नहीं हो रहे हैं, उनका रिश्ता पक्का हो जाता है. मान्यता है कि तुलसी विवाह कराने से कन्यादान जैसा पुण्य मिलता है.

पौराणिक कथा के अनुसार, तुलसी जिनको वृंदा नाम से भी जाना जाता था. उन्होंने भगवान विष्णु को ये शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है इसलिए तुम पत्थर के हो जाओ. यही पत्थर शालिग्राम के रूप में जाना जाता है. जब भगवान पत्थर के हो गए तो उनकी अर्धांगिनी माता लक्ष्मी ने तुलसी से आग्रह किया कि वो भगवान विष्णु को दोबारा उनके असली रूप में ला दें, जिस पर तुलसी ने माता लक्ष्मी का आग्रह मानते हुए भगवान विष्णु को उनके असली रूप में वापस जाने की अनुमति दे दी. इसके बाद से ये दिन तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाने लगा.

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भगवान विष्णु के पत्थर वाले रूप शालिग्राम का विवाह तुलसी से करवाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु की किसी भी पूजा में अगर तुलसी का प्रयोग न किया जाए तो भगवान विष्णु की पूजा पूरी नहीं मानी जाती है. तुलसी पूजा के दिन विधि विधान से माता तुलसी और भगवान शालिग्राम का विवाह करवाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. ऐसी मान्यता है कि देवोत्थान एकादशी के दिन सुबह स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा अर्चना कर उनके प्रिय मंत्र ॐ विष्णवे नमः का जाप करना चाहिए. साथ ही दूध से बनी मिठाई चढ़ाने से विशेष लाभ प्राप्त होता है. हिंदू धर्म के अनुसार ऐसा माना जाता है कि आज के दिन से ही शुभ काम फिर से प्रारंभ किए कर दिए जाते हैं.

Intro:एंकर -देवउठनी एकादशी पर तुलसी और भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम के विवाह के उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन तुलसी पूजन को विधि-विधान से करने पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है। हिन्दू धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी का विवाह संपन्न करवाने से वैवाहिक जीवन में आ रही समस्याओं का अंत हो जाता है। साथ ही जिन लोगों के विवाह नहीं हो रहे हैं उनका रिश्तात पक्का हो जाता है। मान्यता है कि तुलसी विवाह कराने से कन्यादान जैसा पुण्य मिलता है।



Body:VO 1 - एक पौराणिक कथा के अनुसार तुलसी जिसे वृंदा नाम से भी जाना जाता था उसने विष्णु जी को यह शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है इसलिए तुम पत्थर के हो जाओ। यही पत्थर शालिग्राम कहलाया। जब भगवान पत्थर के हो गए तो उनकी अर्धांगिनी माता लक्ष्मी ने तुलसी से आग्रह किया कि वह भगवान विष्णु को दोबारा उनकी असली रूप में ला दे जिस पर तुलसी ने माता लक्ष्मी का आग्रह मानते हुए भगवान विष्णु को उनके असली रूप में वापस जाने की अनुमति दे दी लेकिन इसके बाद से यह दिन तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाने लगा जिस दिन भगवान विष्णु के पत्थर वाले शुरू शालीमार का विवाह तुलसी से करवाया जाता है, ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु की किसी भी पूजा में अगर तुलसी का प्रयोग ना किया जाए तो भगवान विष्णु की पूजा के पूरे फल नहीं मिलता है। तुलसी पूजा के दिन विधि विधान से माता तुलसी और भगवान का विवाह करवाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है उन सभी मनोकामनाएं पूर्ण होते हैं।Conclusion:Byte - देवेन्द्र आचार्य, पंडित
Byte - संदीप आचार्य, ज्योतिषाचार्य
Last Updated : Nov 8, 2019, 7:06 AM IST
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