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भूमिया मंदिर की है विशेष महत्ता, नाग देवता के पूजन मात्र से पूरी होती हैं मनोकामनाएं - Kankhal Temple of Haridwar

भूमिया मंदिर के छोटे से स्थान का बहुत बड़ा महत्व है. जब भगवान शिव की अर्धांगिनी मां सती अपने पिता द्वारा कराए जा रहे यज्ञ में अपने पति के अपमान को सहन नहीं कर सकी तब उन्होंने इस यज्ञ कुंड में खुद को स्वाहा कर लिया.

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धर्मनगरी के भूमिया मंदिर की है विशेष महत्ता
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Published : Jul 27, 2020, 6:34 AM IST

Updated : Jul 27, 2020, 10:04 PM IST

हरिद्वार: भगवान शिव की ससुराल कनखल के बारे में मान्यता है कि यहां के कण-कण में भगवान शिव बसते हैं. इसी कनखल में भगवान शंकर के कई ऐसे सिद्ध स्थान भी हैं जिसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं. भूमिया मंदिर ऐसे ही एक स्थान है. भूमिया मंदिर कि मान्यता है कि जब मां सती ने हवन कुंड में कूद कर अपने शरीर का त्याग किया था उस वक्त भगवान शिव के क्रोध से धरती भी डोल गई थी. तब देवी-देवताओं के आग्रह करने पर इस स्थान पर भगवान शिव ने अपनी मृगछाला रखी थी. जिसके बाद पृथ्वी का डोलना बंद हो गया था. कहा जाता है कि जो भी यहां सांप की पूजा करता है उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. पौराणिक काल से ही इस स्थान पपर की गई पूजा का विशेष महत्व माना जाता है.

भूमिया मंदिर का महत्व.

अगर आपके जीवन में सुख शांति नहीं है या फिर आपको जमीन जायदाद का सुख नहीं मिल रहा है तो बस एक बार इस मंदिर में सच्चे मन से नाग देवता की पूजा करे. आपके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे. धर्म के जानकार डॉक्टर प्रतीक मिश्रपुरी बताते हैं कि इस छोटे से स्थान का बहुत बड़ा महत्व है. जब भगवान शिव की अर्धांगिनी मां सती अपने पिता द्वारा कराए जा रहे यज्ञ में अपने पति के अपमान को सहन नहीं कर सकी तब उन्होंने इस यज्ञ कुंड में कूद कर खुद को स्वाहा कर लिया.

पढ़ें- केंद्र सरकार के सहयोग से प्रदेश में विकसित होंगी तीन हवाई पट्टियां, कवायद तेज

तब भगवान शंकर के क्रोध से धरती डोलने लगी थी. धरती को अपने फन पर टिकाए हुए शेषनाग भी डगमगाने लगे थे. पूरी सृष्टि में भय व्याप्त हो गया था. तब भगवान शंकर ने देवताओं के आग्रह पर अपने क्रोध पर काबू किया था. जिसके बाद कनखल के इस इस स्थान पर भगवान शिव ने अपनी मृगछाला उतार कर रख दी थी. तब पृथ्वी का भी डोलना बंद हो गया था.

बाद में भगवान शंकर ने कहा था कि जो भी इस जगह पर सर्प देवता की पूजा करेगा उसके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे. इस स्थान पर एक पेड़ के नीचे स्थित एक छोटा सा मंदिर है. जिसमें नाग देवता विराजमान रहते हैं. डॉक्टर प्रतीक बताते हैं कि जीवन में व्याप्त घोर निराशा और कष्टों से बचने के लिए विधि विधान के साथ सच्चे मन से यहां पर नाग देवता की पूजा करनी चाहिए. एक छोटा सा चांदी का नाग बनाकर उसकी पूजा करने से जीवन में खुशहाली लौट आती है.

पढ़ें- सरकारी घोषणा में 'कैद' वीरभूमि की शौर्यगाथा, आखिर कब मिलेगा शहादत को सम्मान?

इस मंदिर के बारे में श्रद्धालुओं का कहना है कि इस मंदिर में आकर मनौतियां पूरी होती हैं. इस मंदिर में आकर मन को बहुत शांति मिलती है. हरिद्वार देवभूमि में कई बड़े मंदिर हैं. मगर इस मंदिर का इतना पुराना इतिहास होने के बावजूद भी इसका जीर्णोंद्धार नहीं किया गया. उत्तराखंड सरकार और हरिद्वार के ब्राह्मण समाज को इस मंदिर का जीर्णोंद्धार करना चाहिए. श्रद्धालुओं का कहना है कि इस मंदिर से लोगों की आस्था जुड़ी है.

पढ़ें-सरकार ने चारधाम यात्रा की दी अनुमति, गंगोत्री धाम के पुरोहितों ने किया विरोध

वहीं, हरी का द्वार हरिद्वार में कई पौराणिक मंदिर हैं. जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं. कनखल में स्थापित भूमिया मंदिर में श्रद्धालु अपने जीवन में चल रही उथल-पुथल को शांत करने के लिए पहुंचते हैं. मगर पौराणिक आस्था का प्रतीक होने के बावजूद भी इस मंदिर की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया. इस मंदिर को लेकर लोगों में अटूट श्रद्धा है.

हरिद्वार: भगवान शिव की ससुराल कनखल के बारे में मान्यता है कि यहां के कण-कण में भगवान शिव बसते हैं. इसी कनखल में भगवान शंकर के कई ऐसे सिद्ध स्थान भी हैं जिसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं. भूमिया मंदिर ऐसे ही एक स्थान है. भूमिया मंदिर कि मान्यता है कि जब मां सती ने हवन कुंड में कूद कर अपने शरीर का त्याग किया था उस वक्त भगवान शिव के क्रोध से धरती भी डोल गई थी. तब देवी-देवताओं के आग्रह करने पर इस स्थान पर भगवान शिव ने अपनी मृगछाला रखी थी. जिसके बाद पृथ्वी का डोलना बंद हो गया था. कहा जाता है कि जो भी यहां सांप की पूजा करता है उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. पौराणिक काल से ही इस स्थान पपर की गई पूजा का विशेष महत्व माना जाता है.

भूमिया मंदिर का महत्व.

अगर आपके जीवन में सुख शांति नहीं है या फिर आपको जमीन जायदाद का सुख नहीं मिल रहा है तो बस एक बार इस मंदिर में सच्चे मन से नाग देवता की पूजा करे. आपके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे. धर्म के जानकार डॉक्टर प्रतीक मिश्रपुरी बताते हैं कि इस छोटे से स्थान का बहुत बड़ा महत्व है. जब भगवान शिव की अर्धांगिनी मां सती अपने पिता द्वारा कराए जा रहे यज्ञ में अपने पति के अपमान को सहन नहीं कर सकी तब उन्होंने इस यज्ञ कुंड में कूद कर खुद को स्वाहा कर लिया.

पढ़ें- केंद्र सरकार के सहयोग से प्रदेश में विकसित होंगी तीन हवाई पट्टियां, कवायद तेज

तब भगवान शंकर के क्रोध से धरती डोलने लगी थी. धरती को अपने फन पर टिकाए हुए शेषनाग भी डगमगाने लगे थे. पूरी सृष्टि में भय व्याप्त हो गया था. तब भगवान शंकर ने देवताओं के आग्रह पर अपने क्रोध पर काबू किया था. जिसके बाद कनखल के इस इस स्थान पर भगवान शिव ने अपनी मृगछाला उतार कर रख दी थी. तब पृथ्वी का भी डोलना बंद हो गया था.

बाद में भगवान शंकर ने कहा था कि जो भी इस जगह पर सर्प देवता की पूजा करेगा उसके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे. इस स्थान पर एक पेड़ के नीचे स्थित एक छोटा सा मंदिर है. जिसमें नाग देवता विराजमान रहते हैं. डॉक्टर प्रतीक बताते हैं कि जीवन में व्याप्त घोर निराशा और कष्टों से बचने के लिए विधि विधान के साथ सच्चे मन से यहां पर नाग देवता की पूजा करनी चाहिए. एक छोटा सा चांदी का नाग बनाकर उसकी पूजा करने से जीवन में खुशहाली लौट आती है.

पढ़ें- सरकारी घोषणा में 'कैद' वीरभूमि की शौर्यगाथा, आखिर कब मिलेगा शहादत को सम्मान?

इस मंदिर के बारे में श्रद्धालुओं का कहना है कि इस मंदिर में आकर मनौतियां पूरी होती हैं. इस मंदिर में आकर मन को बहुत शांति मिलती है. हरिद्वार देवभूमि में कई बड़े मंदिर हैं. मगर इस मंदिर का इतना पुराना इतिहास होने के बावजूद भी इसका जीर्णोंद्धार नहीं किया गया. उत्तराखंड सरकार और हरिद्वार के ब्राह्मण समाज को इस मंदिर का जीर्णोंद्धार करना चाहिए. श्रद्धालुओं का कहना है कि इस मंदिर से लोगों की आस्था जुड़ी है.

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वहीं, हरी का द्वार हरिद्वार में कई पौराणिक मंदिर हैं. जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं. कनखल में स्थापित भूमिया मंदिर में श्रद्धालु अपने जीवन में चल रही उथल-पुथल को शांत करने के लिए पहुंचते हैं. मगर पौराणिक आस्था का प्रतीक होने के बावजूद भी इस मंदिर की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया. इस मंदिर को लेकर लोगों में अटूट श्रद्धा है.

Last Updated : Jul 27, 2020, 10:04 PM IST
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