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विश्व पर्यावरण दिवस: लॉकडाउन ने बदली पर्यावरण की सूरत, सेहत को संजोए रखने की चुनौती

पर्यावरण को बचाने और पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. पहली बार 1972 में पर्यावरण दिवस मनाया गया था. जिसमें ये बात रखी गई थी कि प्रकृति के बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है.

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लॉकडाउन ने बदली पर्यावरण की सूरत
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Published : Jun 5, 2020, 5:04 AM IST

देहरादून: कोरोना वायरस और लॉकडाउन से भले ही देश दुनिया को खासा नुकसान हुआ हो, लेकिन इससे प्रकृति एक बार फिर से चमक उठी है. लॉकडाउन से प्रकृति में आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिले हैं. जिसके बाद से ही प्रकृति में सकारात्मकता नजर आई है. लॉकडाउन के बाद पर्यावरणीय प्रदूषण का स्तर घटा है, नदियां साफ हुई हैं. जिसका सीधा असर हमारे जीवन पर पड़ा है. आज गंगा 20 साल पहले की तरह साफ है, मैदानी इलाकों से ही हिमालय के दर्शन हो रहे हैं. लॉकडाउन के बाद प्रकृति एक बार फिर से खिलखिलाकर हंसने लगी है. ऐसा लग रहा है मानों लॉकडाउन के बीच प्रकृति ने खुद ही अपनी मरम्मत कर ली हो.

लॉकडाउन ने बदली पर्यावरण की सूरत.
क्यों मनाया जाता है पर्यावरण दिवसआज भले ही लॉकडाउन के कारण पर्यावरण साफ हो मगर सबसे पहले पर्यावरण को बचाये रखने वाले कदमों की बात करें तो 5 जून को इसके लिए विशेष तौर पर जाना जाता है. पर्यावरण को बचाने और लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. पहली बार 1972 में पर्यावरण दिवस मनाया गया था. जिसमें ये बात रखी गई थी कि प्रकृति के बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है. दरअसल, 5 जून 1972 में यूएन ने स्वीडन के स्टॉकहोम में पर्यावरण और प्रदूषण को लेकर एक सम्मेलन का आयोजन किया था, जिसमें 119 देशों ने हिस्सा लिया. जिसके बाद से ही पर्यावरण को बचाने और पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है.

पढ़ें- अपणुं उत्तराखंडः दिनभरै खास खबर, एक नजर मा

लॉकडाउन के बीच प्रकृति ने की अपनी मरम्मत

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के डायरेक्टर कालाचंद साईं ने बताया कि पृथ्वी और पर्यावरण पर अभी तक तक जो चोट लगी थी उस पर लॉकडाउन ने मरहम लगाने का काम किया है. यही नहीं पूरे देश के पर्यावरण के साथ ही पानी, हवा भी पूरी तरह से साफ हो गई है. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के कारण पर्यावरण इतना साफ हो गया है कि मैदानी इलाकों से ही हिमालय की चोटियों के दर्शन हो रहे हैं. जिसेसे साफतौर पर कहा जा सकता है कि लॉकडाउन ने प्रकृति के जख्मों पर मरहम लगाया है.

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इंसानों ने हीं पहुंचाया प्रकृति को नुकसान

लॉकडाउन के दौरान प्रकृति का जो रूप देखने को मिला है इससे साफ जाहिर है कि प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाले इंसान ही है. इस लॉकडाउन के दौरान देश की सभी इंडस्ट्री बंद थी. लोग घरों में कैद थे, सड़कों पर गाड़ियां भी नहीं दौड़ रही थी. जिससे प्रदूषण पर रोक लगी और पर्यावरण हर बीतते दिन के साथ साफ होता चला गया. यही नहीं लॉकडाउन से पहले जहां गंगोत्री के पास गंदगी का अंबार नजर आता था वो इस लॉकडाउन के बाद पूरी तरह साफ हो गया है.

पढ़ें- 40 नये मामलों के साथ 1125 पहुंचा कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा, 285 स्वस्थ


प्रकृति पर नहीं है इंसानों का कोई नियंत्रण

पर्यावरण विद् पदम श्री डॉ. अनिल जोशी ने बताया कि वैश्विक महामारी कोरोना आने के बाद अब सभी को एक बात यह समझने की जरूरत है कि प्रकृति सबसे ऊपर है. इस पर इंसानों का कोई नियंत्रण नहीं है. यही नहीं बिना प्रकृति के किसी भी चीज की बेहतरी या फिर इंसान अपने जीवन को भी नहीं चला सकता है. उन्होंने कहा विश्व पर्यावरण दिवस सिर्फ 5 जून को ही नहीं मनाया जाना चाहिए, बल्कि हमें हर दिन प्रकृति के लिए देना चाहिए.

पढ़ें- हाशिए पर लोक कलाकार: दर-दर ठोकरें खाते संस्कृति के 'रक्षक', लॉकडाउन ने बिगाड़े हालात

प्रकृति से जुड़ी चीजों का ना हो दुरुपयोग

पदम श्री डॉ. अनिल जोशी ने कहा लोगों को चाहिए कि प्रकृति को समझें और प्रकृति के साथ ही जीवन जीना सीखें. उन्होंने कहा अगर 21 दिन में प्रकृति अपने आप की करीब 70 फीसदी मरम्मत कर सकती है. अगर 7 दिन में 2 दिन प्रकृति को रेस्ट दिया जाए तो ऐसे में प्रकृति अपने आपको बैलेंस रख पाएगी.

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पर्यावरण के दृष्टिगत मापदंडों का रोजमर्रा की जिंदगी में करें पालन
वहीं, शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक ने विश्व पर्यावरण दिवस की बधाई देते कहा कि जब भी हम पर्यावरण की बात करते हैं तो सभी के जहन में ही रहता है कि अच्छे ढंग से काम करते हुए कम से कम गंदगी फैलाये. साथ ही उन्होंने कहा लॉकडाउन की वजह से गंगा नदी, शीशे की तरह साफ हो गई है. जिसकी सराहना देश दुनिया में हो रही है. मदन कौशिक ने कहा अगर हम पर्यावरण के दृष्टिगत मापदंडों का पालन अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में करते हैं तो इससे पर्यावरण को सुरक्षित रखा जा सकता है.

देहरादून: कोरोना वायरस और लॉकडाउन से भले ही देश दुनिया को खासा नुकसान हुआ हो, लेकिन इससे प्रकृति एक बार फिर से चमक उठी है. लॉकडाउन से प्रकृति में आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिले हैं. जिसके बाद से ही प्रकृति में सकारात्मकता नजर आई है. लॉकडाउन के बाद पर्यावरणीय प्रदूषण का स्तर घटा है, नदियां साफ हुई हैं. जिसका सीधा असर हमारे जीवन पर पड़ा है. आज गंगा 20 साल पहले की तरह साफ है, मैदानी इलाकों से ही हिमालय के दर्शन हो रहे हैं. लॉकडाउन के बाद प्रकृति एक बार फिर से खिलखिलाकर हंसने लगी है. ऐसा लग रहा है मानों लॉकडाउन के बीच प्रकृति ने खुद ही अपनी मरम्मत कर ली हो.

लॉकडाउन ने बदली पर्यावरण की सूरत.
क्यों मनाया जाता है पर्यावरण दिवसआज भले ही लॉकडाउन के कारण पर्यावरण साफ हो मगर सबसे पहले पर्यावरण को बचाये रखने वाले कदमों की बात करें तो 5 जून को इसके लिए विशेष तौर पर जाना जाता है. पर्यावरण को बचाने और लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. पहली बार 1972 में पर्यावरण दिवस मनाया गया था. जिसमें ये बात रखी गई थी कि प्रकृति के बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है. दरअसल, 5 जून 1972 में यूएन ने स्वीडन के स्टॉकहोम में पर्यावरण और प्रदूषण को लेकर एक सम्मेलन का आयोजन किया था, जिसमें 119 देशों ने हिस्सा लिया. जिसके बाद से ही पर्यावरण को बचाने और पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है.

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लॉकडाउन के बीच प्रकृति ने की अपनी मरम्मत

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के डायरेक्टर कालाचंद साईं ने बताया कि पृथ्वी और पर्यावरण पर अभी तक तक जो चोट लगी थी उस पर लॉकडाउन ने मरहम लगाने का काम किया है. यही नहीं पूरे देश के पर्यावरण के साथ ही पानी, हवा भी पूरी तरह से साफ हो गई है. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के कारण पर्यावरण इतना साफ हो गया है कि मैदानी इलाकों से ही हिमालय की चोटियों के दर्शन हो रहे हैं. जिसेसे साफतौर पर कहा जा सकता है कि लॉकडाउन ने प्रकृति के जख्मों पर मरहम लगाया है.

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इंसानों ने हीं पहुंचाया प्रकृति को नुकसान

लॉकडाउन के दौरान प्रकृति का जो रूप देखने को मिला है इससे साफ जाहिर है कि प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाले इंसान ही है. इस लॉकडाउन के दौरान देश की सभी इंडस्ट्री बंद थी. लोग घरों में कैद थे, सड़कों पर गाड़ियां भी नहीं दौड़ रही थी. जिससे प्रदूषण पर रोक लगी और पर्यावरण हर बीतते दिन के साथ साफ होता चला गया. यही नहीं लॉकडाउन से पहले जहां गंगोत्री के पास गंदगी का अंबार नजर आता था वो इस लॉकडाउन के बाद पूरी तरह साफ हो गया है.

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प्रकृति पर नहीं है इंसानों का कोई नियंत्रण

पर्यावरण विद् पदम श्री डॉ. अनिल जोशी ने बताया कि वैश्विक महामारी कोरोना आने के बाद अब सभी को एक बात यह समझने की जरूरत है कि प्रकृति सबसे ऊपर है. इस पर इंसानों का कोई नियंत्रण नहीं है. यही नहीं बिना प्रकृति के किसी भी चीज की बेहतरी या फिर इंसान अपने जीवन को भी नहीं चला सकता है. उन्होंने कहा विश्व पर्यावरण दिवस सिर्फ 5 जून को ही नहीं मनाया जाना चाहिए, बल्कि हमें हर दिन प्रकृति के लिए देना चाहिए.

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प्रकृति से जुड़ी चीजों का ना हो दुरुपयोग

पदम श्री डॉ. अनिल जोशी ने कहा लोगों को चाहिए कि प्रकृति को समझें और प्रकृति के साथ ही जीवन जीना सीखें. उन्होंने कहा अगर 21 दिन में प्रकृति अपने आप की करीब 70 फीसदी मरम्मत कर सकती है. अगर 7 दिन में 2 दिन प्रकृति को रेस्ट दिया जाए तो ऐसे में प्रकृति अपने आपको बैलेंस रख पाएगी.

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पर्यावरण के दृष्टिगत मापदंडों का रोजमर्रा की जिंदगी में करें पालन
वहीं, शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक ने विश्व पर्यावरण दिवस की बधाई देते कहा कि जब भी हम पर्यावरण की बात करते हैं तो सभी के जहन में ही रहता है कि अच्छे ढंग से काम करते हुए कम से कम गंदगी फैलाये. साथ ही उन्होंने कहा लॉकडाउन की वजह से गंगा नदी, शीशे की तरह साफ हो गई है. जिसकी सराहना देश दुनिया में हो रही है. मदन कौशिक ने कहा अगर हम पर्यावरण के दृष्टिगत मापदंडों का पालन अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में करते हैं तो इससे पर्यावरण को सुरक्षित रखा जा सकता है.

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