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हिममानव के पैरों के निशान का वैज्ञानिकों ने किया अध्ययन, बताई विशालकाय जानवर की सच्चाई - मकालू-बरुन नेशनल पार्क

डब्लूआईआई के डीन जीएस रावत ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि येति महज एक कल्पना के अवाला कुछ नहीं है.

हिममानव
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Published : May 2, 2019, 11:56 PM IST

देहरादून: भारतीय सेना के हिममानव 'येति' के पैरों के निशान देखने के दावे को डब्लूआईआई (वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया) के वैज्ञानिकों ने पूरी तरह खारिज कर दिया है. वैज्ञानिकों ने ऐसे कोई चीज न होने की बात कही है. वैज्ञानिकों को कहना है कि इस लेकर काफी खोज की गई है, लेकिन आजतक ये कोई साक्ष्य या सबूत नहीं मिले है, जिसके आधार पर कहा जा सके कि यति यानी हिममानव होते हैं.

पढ़ें- हिमालय पर 'हिममानव' की मौजूदगी के सबूत, भारतीय सेना ने जारी की तस्वीरें

डब्लूआईआई के डीन जीएस रावत ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि येति महज एक कल्पना के अवाला कुछ नहीं है. धरती पर ऐसा कोई जानवर नहीं होता है. भारतीय सेना ने बर्फ पर येति के निशान की जो तस्वीरें शेयर की उस पर रावत ने तर्क देते हुए बताया कि वो तिब्बत में पाया जाने वाला ब्राउन भालू हो सकता है. रावत के मुताबिक बर्फ काफी नरम होती है और जब ब्राउन भालू बर्फ पर दौड़ता है तो उसके पैर के निशान बड़े लगने लगते हैं. उसके कारण कभी-कभी लोगों को अभास होता है कि ये कोई विशालकाय जानवर होगा.

डब्लूआईआई के डीन जीएस रावत

रावत ने बताया कि उन्होंने फोटो का अध्यन किया है. फोटो से देखने पर यही लगता है कि ये ब्राउन भालू या फिर इसी तरह के किसी अन्य जानवर के पैरों के निशान हैं. जिस स्थान पर ये निशान देखे गए हैं, वहां पर तिबेतियन ब्राउन भालू पाया जाता है.

पढ़ें- नैनीताल की ऑर्गेनिक चाय का जायका कमाल, स्वाद के साथ दे रही रोजगार

हालांकि जब उन से येति की मौजूदगी के बारे में पूछा गया था तो उन्होंने बताया कि येति का जिक्र नेपाली साहित्य में काफी पुराने जमाने से है. येति के बारे में कई किताबें लिखी गई हैं. लेकिन आजतक इसका कोई प्रमाण नहीं मिला है. येति को लेकर रावत ने बताया कि इस पर डब्लूआईआई ने तो कोई खोज नहीं की, लेकिन बाहर के कुछ वैज्ञानिकों इस पर जरुर रिसर्च किया है. लेकिन उन रिसर्च में साफ हो गया था कि इस तरह का कोई जानवार इस धरती पर नहीं है. ये सिर्फ कल्पना है, इसलिए डब्लूआईआई ने इस पर कभी भी आगे रिसर्ज करने जरुरत नहीं समझी. यति पर वैज्ञानिक दृष्टि से बात करना समय की बर्बादी होगी.

बता दें कि रविवार को भारतीय सेना ने हिमालय में हिम मानव 'येति' की मौजूदगी का दावा किया है. इसको लेकर सेना ने सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीर भी शेयर की थीं. जिनमें विशालकाय पैरों के निशान दिखाई दे रहे हैं. ये निशान आकार में 32x15 इंच तक हैं, जो असामान्य हैं. इसके माध्यम से भारतीय सेना ने हिमालय में हिममानव की मौजूदगी के संकेत दिए थे. बर्फ पर पैरों के ये निशाना नेपाल के पास स्थित मकालू बेस कैंप पर पाए गए थे. सेना की ओर से ये भी कहा गया कि मकालू बरुण नेशनल पार्क में पहले भी हिम मानव के दिखने का आभास हुआ है.

देहरादून: भारतीय सेना के हिममानव 'येति' के पैरों के निशान देखने के दावे को डब्लूआईआई (वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया) के वैज्ञानिकों ने पूरी तरह खारिज कर दिया है. वैज्ञानिकों ने ऐसे कोई चीज न होने की बात कही है. वैज्ञानिकों को कहना है कि इस लेकर काफी खोज की गई है, लेकिन आजतक ये कोई साक्ष्य या सबूत नहीं मिले है, जिसके आधार पर कहा जा सके कि यति यानी हिममानव होते हैं.

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डब्लूआईआई के डीन जीएस रावत ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि येति महज एक कल्पना के अवाला कुछ नहीं है. धरती पर ऐसा कोई जानवर नहीं होता है. भारतीय सेना ने बर्फ पर येति के निशान की जो तस्वीरें शेयर की उस पर रावत ने तर्क देते हुए बताया कि वो तिब्बत में पाया जाने वाला ब्राउन भालू हो सकता है. रावत के मुताबिक बर्फ काफी नरम होती है और जब ब्राउन भालू बर्फ पर दौड़ता है तो उसके पैर के निशान बड़े लगने लगते हैं. उसके कारण कभी-कभी लोगों को अभास होता है कि ये कोई विशालकाय जानवर होगा.

डब्लूआईआई के डीन जीएस रावत

रावत ने बताया कि उन्होंने फोटो का अध्यन किया है. फोटो से देखने पर यही लगता है कि ये ब्राउन भालू या फिर इसी तरह के किसी अन्य जानवर के पैरों के निशान हैं. जिस स्थान पर ये निशान देखे गए हैं, वहां पर तिबेतियन ब्राउन भालू पाया जाता है.

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हालांकि जब उन से येति की मौजूदगी के बारे में पूछा गया था तो उन्होंने बताया कि येति का जिक्र नेपाली साहित्य में काफी पुराने जमाने से है. येति के बारे में कई किताबें लिखी गई हैं. लेकिन आजतक इसका कोई प्रमाण नहीं मिला है. येति को लेकर रावत ने बताया कि इस पर डब्लूआईआई ने तो कोई खोज नहीं की, लेकिन बाहर के कुछ वैज्ञानिकों इस पर जरुर रिसर्च किया है. लेकिन उन रिसर्च में साफ हो गया था कि इस तरह का कोई जानवार इस धरती पर नहीं है. ये सिर्फ कल्पना है, इसलिए डब्लूआईआई ने इस पर कभी भी आगे रिसर्ज करने जरुरत नहीं समझी. यति पर वैज्ञानिक दृष्टि से बात करना समय की बर्बादी होगी.

बता दें कि रविवार को भारतीय सेना ने हिमालय में हिम मानव 'येति' की मौजूदगी का दावा किया है. इसको लेकर सेना ने सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीर भी शेयर की थीं. जिनमें विशालकाय पैरों के निशान दिखाई दे रहे हैं. ये निशान आकार में 32x15 इंच तक हैं, जो असामान्य हैं. इसके माध्यम से भारतीय सेना ने हिमालय में हिममानव की मौजूदगी के संकेत दिए थे. बर्फ पर पैरों के ये निशाना नेपाल के पास स्थित मकालू बेस कैंप पर पाए गए थे. सेना की ओर से ये भी कहा गया कि मकालू बरुण नेशनल पार्क में पहले भी हिम मानव के दिखने का आभास हुआ है.

Intro:फीड लाइव यु से भेजी गई है।
slag name-yati

भारतीय सेना ने महामानव यानी यदि को लेकर भले ही कोई भी दावा या फोटोग्राफ्स जारी किया हो लेकिन डब्लूआईआई के वैज्ञानिकों ने इस को खारिज कर दिया है। ईटीवी भारत से बात करते हुए डब्लू आई आई के डीन ने यति के बारे में बात करना समय की बर्बादी बताया और इसे महज एक कल्पना का ही रूप दिया।


Body:कहानियों और किदवंतियों में अनेक ऐसे किरदार होते हैं जो सुने और सुनाएं तो जाते हैं लेकिन हकीकत में वैज्ञानिक रूप से इनका कोई आधार नहीं होता। ऐसा ही एक किरदार यति का भी है यति जानी महामानव। किसी किरदार को लेकर हाल ही में सेना ने कुछ फोटोग्राफ्स जारी किए हैं जिसके बाद एक बार फिर इस महामानव को लेकर चर्चाएं गर्म हो गई है कहा जा रहा है कि नेपाल के मकालु बेस कैंप से यह फोटोग्राफ्स लिए गए हैं जहां महामानव के फुटप्रिंट दिखाई दिए हैं। हालांकि अब डब्लू आई आई के डीन जी एस रावत ने ऐसे किसी भी किरदार के होने को साफ तौर पर नकार दिया है। जी एस रावत ने कहा कि महामानव यानी यति पर बात करना समय की बर्बादी है और ऐसी कोई भी किरदार मौजूद नहीं है वैज्ञानिक रिसर्च में भी यह बात साफ हो गई है कि यह किरदार महज कल्पना के हैं। जिस फुटप्रिंट की बात सेना कर रही है वह ब्राउन बियर के होने की भी संभावना जताई जो नरम बर्फ में पाव रखने पर यह बड़े आकार के हो जाते हैं।

बाइट जी एस रावत डीन वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया


Conclusion:वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने इस बात को खारिज कर कर साफ कर दिया है कि महामानव कल भी एक कल्पना था और आज भी एक कल्पना ही है ऐसे में इस पर बात करना महज समय की बर्बादी ही है। ये नाम साहित्यकारों द्वारा या एक काल्पनिक रूप से कहानियों के रूप में ही प्रयोग किया जाता है।
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