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उत्तराखंड को बाहर से नहीं खरीदनी होगी बिजली, 1200 मेगावाट बिजली मिलने की बढ़ी उम्मीद - टीएचडीसी से बिजली

उत्तराखंड के पास टीएचडीसी जैसे बड़े पावर प्लांट होने के बावजूद करोड़ों रुपए की बिजली बाहर से खरीदनी पड़ रही है. अब सुप्रीम कोर्ट से फैसला राज्य के पक्ष में आ सकता है, लेकिन इसके लिए सरकार को मजबूती से पक्ष रखना होगा. इतना ही नहीं इससे प्रदेशवासियों को सस्ती बिजली भी मिल सकेगी.

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टीएचडीसी
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Published : Sep 16, 2021, 10:52 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड को अपने हक के मुताबिक टीएचडीसी पावर प्लांट से पर्याप्त मात्रा में बिजली मिलने की उम्मीद बढ़ गई है. उत्तराखंड विद्युत लोकपाल सुभाष कुमार की मानें तो साल 2012 से टीएचडीसी उत्तर प्रदेश के अधीन है. ऐसे में ऊर्जा के संबंध में वाद सुप्रीम कोर्ट में दायर है. अगर वकालत मजबूती से की जाती है तो फैसला राज्य के हित में आ सकता है. ऐसे में उत्तराखंड को करोड़ों रुपए की बिजली बाहर से नहीं खरीदनी नहीं पड़ेगी.

उत्तराखंड विद्युत लोकपाल सुभाष शर्मा के मुताबिक, साल 2012 से टिहरी गढ़वाल में स्थित टीएचडीसी (टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन) जैसे बड़े पावर प्लांट को उत्तराखंड के हक में लाने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में वाद चल रहा है. हालांकि, उत्तराखंड राज्य के तमाम अधिकारों की पक्ष को समझते हुए कोर्ट ने पहले ही टीएचडीसी (पूर्व नाम टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कारपोरेशन लिमिटेड) प्लांट की बिजली राज्य को देने के हक में फैसला लिया था, लेकिन इस फैसले पर यूपी सरकार की ओर से पुनर्विचार याचिका कोर्ट में दाखिल किया गया है.

ये भी पढ़ेंः टिहरी बांध: दिसंबर 2022 तक पूरा होगा पीएसपी परियोजना, ऊर्जा जरूरतों के लिए फायदेमंद

लोकपाल सुभाष कुमार की मानें तो टीएचडीसी जैसे बड़े पावर प्लांट उत्तराखंड से संचालित हो रहे हैं इस परियोजना से पर्याप्त बिजली न मिलना राज्य हित में कदापि उचित नहीं है. अब कोर्ट में तमाम तरह के पक्ष राज्य के परिपेक्ष में होने के बाद विद्युत लोकपाल की ओर से सीएम पुष्कर सिंह धामी से इस संबंध में बातचीत की गई है. ताकि यह मसला राजनीतिक रूप में भी हल हो सके. इतना ही नहीं मामले में सर्वोच्च अदालत में दायर याचिका को मजबूती से लड़ा जाता हैं तो उत्तराखंड को 1200 मेगावाट बिजली मिलनी शुरू हो जाएगी. ऐसी सूरत में राज्य को बाहर से विद्युत खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

टीएचडीसी का अधिकार मिलने से सामान्य दर पर मिल सकती है बिजलीः बता दें कि साल 1988-89 में टिहरी गढ़वाल जो उस समय उत्तर प्रदेश के अधीन था. टीएचडीसी जैसा बड़ा पावर प्रोजेक्ट लगाया गया था. उस समय के यूपी सरकार का प्रावधान था कि जो भी टीएचडीसी प्रोजेक्ट लगाएगा, उसका इस परियोजना में 75 फीसदी खर्च होगा. जबकि 25 प्रतिशत खर्च राज्य सरकार उठाएगी. ऐसे में नवंबर 2000 में उत्तराखंड राज्य यूपी से अलग होने के बाद दोनों ही राज्यों की परिसंपत्ति बंटवारे में टीएचडीसी विवाद सामने आया.

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आज तक टीएचडीसी उत्तर प्रदेश के ही अधीन है. यही कारण है कि इसकी शत-प्रतिशत बिजली उत्तर प्रदेश को जाती है. जबकि, उत्तराखंड की धरती पर संचालित होने वाले इस विद्युत परियोजना का पर्याप्त लाभ नहीं मिल पा रहा है. जिस कारण राज्य को बाहर से बिजली खरीदनी पड़ती है. ऐसे में अब अगर सुप्रीम कोर्ट से टीएचडीसी का अधिकार उत्तराखंड राज्य के हित में आता है तो प्रदेश को महंगी दर पर बाहर से बिजली खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी. इतना ही नहीं राज्यवासियों को भी सामान्य दर पर बिजली मिलेगी.

देहरादूनः उत्तराखंड को अपने हक के मुताबिक टीएचडीसी पावर प्लांट से पर्याप्त मात्रा में बिजली मिलने की उम्मीद बढ़ गई है. उत्तराखंड विद्युत लोकपाल सुभाष कुमार की मानें तो साल 2012 से टीएचडीसी उत्तर प्रदेश के अधीन है. ऐसे में ऊर्जा के संबंध में वाद सुप्रीम कोर्ट में दायर है. अगर वकालत मजबूती से की जाती है तो फैसला राज्य के हित में आ सकता है. ऐसे में उत्तराखंड को करोड़ों रुपए की बिजली बाहर से नहीं खरीदनी नहीं पड़ेगी.

उत्तराखंड विद्युत लोकपाल सुभाष शर्मा के मुताबिक, साल 2012 से टिहरी गढ़वाल में स्थित टीएचडीसी (टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन) जैसे बड़े पावर प्लांट को उत्तराखंड के हक में लाने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में वाद चल रहा है. हालांकि, उत्तराखंड राज्य के तमाम अधिकारों की पक्ष को समझते हुए कोर्ट ने पहले ही टीएचडीसी (पूर्व नाम टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कारपोरेशन लिमिटेड) प्लांट की बिजली राज्य को देने के हक में फैसला लिया था, लेकिन इस फैसले पर यूपी सरकार की ओर से पुनर्विचार याचिका कोर्ट में दाखिल किया गया है.

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लोकपाल सुभाष कुमार की मानें तो टीएचडीसी जैसे बड़े पावर प्लांट उत्तराखंड से संचालित हो रहे हैं इस परियोजना से पर्याप्त बिजली न मिलना राज्य हित में कदापि उचित नहीं है. अब कोर्ट में तमाम तरह के पक्ष राज्य के परिपेक्ष में होने के बाद विद्युत लोकपाल की ओर से सीएम पुष्कर सिंह धामी से इस संबंध में बातचीत की गई है. ताकि यह मसला राजनीतिक रूप में भी हल हो सके. इतना ही नहीं मामले में सर्वोच्च अदालत में दायर याचिका को मजबूती से लड़ा जाता हैं तो उत्तराखंड को 1200 मेगावाट बिजली मिलनी शुरू हो जाएगी. ऐसी सूरत में राज्य को बाहर से विद्युत खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

टीएचडीसी का अधिकार मिलने से सामान्य दर पर मिल सकती है बिजलीः बता दें कि साल 1988-89 में टिहरी गढ़वाल जो उस समय उत्तर प्रदेश के अधीन था. टीएचडीसी जैसा बड़ा पावर प्रोजेक्ट लगाया गया था. उस समय के यूपी सरकार का प्रावधान था कि जो भी टीएचडीसी प्रोजेक्ट लगाएगा, उसका इस परियोजना में 75 फीसदी खर्च होगा. जबकि 25 प्रतिशत खर्च राज्य सरकार उठाएगी. ऐसे में नवंबर 2000 में उत्तराखंड राज्य यूपी से अलग होने के बाद दोनों ही राज्यों की परिसंपत्ति बंटवारे में टीएचडीसी विवाद सामने आया.

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आज तक टीएचडीसी उत्तर प्रदेश के ही अधीन है. यही कारण है कि इसकी शत-प्रतिशत बिजली उत्तर प्रदेश को जाती है. जबकि, उत्तराखंड की धरती पर संचालित होने वाले इस विद्युत परियोजना का पर्याप्त लाभ नहीं मिल पा रहा है. जिस कारण राज्य को बाहर से बिजली खरीदनी पड़ती है. ऐसे में अब अगर सुप्रीम कोर्ट से टीएचडीसी का अधिकार उत्तराखंड राज्य के हित में आता है तो प्रदेश को महंगी दर पर बाहर से बिजली खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी. इतना ही नहीं राज्यवासियों को भी सामान्य दर पर बिजली मिलेगी.

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