देहरादून: वैश्विक कोरोना महामारी का आम लोगों के साथ साथ तमाम विभागों पर भी आर्थिक रूप से असर पड़ा है. इसी क्रम में उत्तराखंड परिवहन निगम भी उन विभागों में शामिल है, जिस पर आर्थिक संकट गहरा गया है. कोरोना काल की वजह से वर्तमान वित्तीय वर्ष 2020-21 में 174.22 करोड़ रुपए की हानि होने की आशंका है. लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि उत्तराखंड परिवहन निगम, वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के आने के कई सालों पहले से ही घाटे में चल रहा है. साल दर साल परिवहन विभाग के घाटे का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में परिवहन विभाग अपने घाटे की प्रतिपूर्ति को लेकर क्या कुछ रणनीतियां बना रहा है. आखिर क्या है परिवहन विभाग के घाटे में जाने के पीछे की वजह? देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.
उत्तराखंड परिवहन निगम आवागमन के लिए राज्य की रीढ़ की हड्डी है. क्योंकि परिवहन निगम से संचालित होने वाली बसें ना सिर्फ लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाती हैं, बल्कि एक बड़ी आर्थिकी भी परिवहन निगम से कहीं ना कहीं जुड़ी हुई है. हालांकि, परिवहन निगम खुद घाटे में जरूर है, लेकिन परिवहन निगम की बसों से आने वाले लोगों और पर्यटकों की वजह से राज्य को ना सिर्फ राजस्व प्राप्त होता है, बल्कि हजारों लोगों का व्यापार भी चलता है. कोरोना काल से पहले उत्तराखंड की बसों में रोजाना लाखों लोग सफर करते रहे हैं, लेकिन अब कोरोना काल के दौरान स्थिति बहुत भयावह हो गई है. क्योंकि फिलहाल राज्य के भीतर सीमित संख्या में ही बसों का संचालन किया जा रहा है.
हर साल करीब 4 करोड़ से अधिक यात्री करते हैं यात्रा
उत्तराखंड परिवहन निगम यात्रियों को प्रदेश एवं दूसरे राज्यों में यातायात की सुविधायें प्रदान करता है. निगम के तहत देहरादून, नैनीताल तथा टनकपुर में तीन डिवीजन कार्यालय और 22 डिपो कार्यरत हैं, जो 371 रूटों पर 883 सेवायें प्रदान कर रहा है. वित्तीय वर्ष 2018-19 में निगम की 1,334 बसों से कुल 1438.26 लाख किलोमीटर का संचालन किया गया था. जिसमें 377.83 लाख यात्रियों ने यात्रा की थी. इसके साथ ही वित्तीय वर्ष 2019-20 में नवंबर 2019 तक निगम द्वारा 1,298 बसें संचालित की गईं जो 890.53 लाख किलोमीटर तक चलीं. जिसके दौरान 243.26 लाख यात्रियों ने यात्रा की. यही नहीं, आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल दिसंबर तक निगम की 1,254 बसों में से 520 बसें पर्वतीय तथा 734 बसें मैदानी क्षेत्रों में संचालित हो रही थीं. जिनमें 1,161 साधारण, 48 एसी और 45 वॉल्वो बसें शामिल हैं. बसों के संचालन के लिए कुल 2,287 चालक और 2,830 परिचालक हैं.
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सैलरी देने के लिए परिवहन निगम के पास नहीं है पैसा
परिवहन निगम के महाप्रबंधक दीपक जैन ने बताया कि कोरोना काल से पहले जब बसें संचालित हो रही थीं तो उस दौरान हर साल करीब 35 से 40 करोड़ रुपये का नुकसान होता था. बावजूद इसके परिवहन निगम को पैसे की कमी नहीं होती थी. परिवहन की जो आय होती थी, उससे परिवहन निगम के सारे खर्चे चलते रहते थे, लेकिन कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से बसों का संचालन पूरी तरह से ठप है, जिसके चलते पिछले 4 महीनों से कर्मचारियों की वेतन नहीं मिला है.
बसों के संचालन से नुकसान की भरपाई की उम्मीद
दीपक जैन ने बताया कि जब तक सही ढंग से बसों का संचालन शुरू नहीं हो जाता, तब तक किसी भी नुकसान की प्रतिपूर्ति करना संभव नहीं है. कोरोना काल के दौरान बसों के ना चलने की वजह से करीब 150 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है. वहीं, परिवहन मंत्री यशपाल आर्य ने बताया कि भारत सरकार की जो गाइडलाइन है उसका अनुपालन किया जाएगा. हालांकि, वर्तमान समय में परिवहन निगम बहुत अधिक घाटे में चल रहा है और अभी आय का कोई स्रोत भी नहीं है. जिस वजह से कर्मचारियों की सैलरी का भुगतान भी नहीं हो पाया है.
परिवहन निगम के घाटे को लेकर मंथन की जरूरत
वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने बताया कि आम तौर पर देखा जाए तो उत्तराखंड राज्य में हर साल करोड़ों की संख्या में सैलानी पहुंचते हैं. बावजूद इसके परिवहन विभाग का लगातार घाटे में जाना तमाम तरह के सवाल खड़े करता है. मौजूदा समय में उत्तराखंड परिवहन निगम सैकड़ों करोड़ रुपए के घाटे में चल रहा है. यही वजह है कि परिवहन निगम के कर्मचारियों को समय से वेतन नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में राज्य सरकार को परिवहन निगम के घाटे को लेकर नए सिरे से मंथन करने की जरूरत है. लगातार घाटे में होना कहीं ना कहीं सीधा परिवहन विभाग में भ्रष्टाचार की ओर इशारा कर रहा है.
परिवहन निगम के खर्चों की प्रतिपूर्ति करे सरकार
वहीं, कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि परिवहन निगम एक ऐसा निगम हो गया है कि जब सरकार को कोई योजनाएं शुरू करनी होती है या फिर महिलाओं, बुजुर्गों के लिए मुफ्त सफर की योजनाएं शुरू होती हैं, तो उन सबका भार परिवहन विभाग के ऊपर ही पड़ता है. बावजूद इसके सरकार इन योजनाओं की प्रतिपूर्ति नहीं करती है. यही वजह है कि परिवहन निगम लगातार घाटे में जा रहा है. ऐसे में सरकारों को चाहिए कि जब परिवहन निगम से जुड़ी योजनाएं शुरू होती हैं तो उसमें आने वाले खर्च की प्रतिपूर्ति सरकार करें.
हर साल परिवहन निगम को करोड़ों का नुकसान
वहीं, परिवहन निगम ने 2020-21 में होने वाले घाटे का आकलन अभी से कर लिया है. परिवहन निगम के अनुसार वर्तमान वित्तीय वर्ष में 174 करोड़ 22 लाख रुपए का नुकसान होने की आशंका है.