देहरादून: कोरोना संकट काल में सरकार की तरफ से कुछ राहत जरूर दी गई है. लेकिन, वकील समुदाय को कोरोना महामारी ने घर में फुर्सत में बैठने के लिए मजबूर कर दिया है. जिसकी वजह से समाज में शाही रूतबा रखने वाले वकीलों को भी आर्थिक तौर पर बड़ा नुकसान हुआ है. मौजूदा समय में कोर्ट-कहचरी की दयनीय स्थिति को देखते हुए अब वकालत का सपना देखने वाले युवा वर्ग इस रोजगार से मुंह मोड़ते नजर आ रहे हैं.
कोरोना काल में वकीलों का काम प्रभावित हुआ है, उन्हें अब पहले की तरह क्लाइंट नहीं मिल रहे हैं. लेकिन इस महामारी के दौर में उन्हीं कोर्ट-कचहरियों में काम कर रहे वकील काम के बंद होने से परेशानियों से जूझ रहे हैं. ईटीवी भारत में उत्तराखंड बार काउंसिल के सदस्य एडवोकेट चंद्रशेखर तिवारी का कहना है कि भले ही पूरे देश में अनलॉक-4 शुरू हो गया है. लेकिन कोर्ट-कचहरी में अभी भी पाबंदियां पूर्ण रूप से चल रही है. ऐसे में अगर सरकार जल्द ही SOP जारी कर अदालतों में कानूनी प्रक्रिया शुरू नहीं करती तो पूर्णकालिन वकालत करने वाले अधिवक्ता सड़कों पर आ जाएंगे.
एडवोकेट तिवारी का कहना है कि राज्य में 16 हजार 500 से अधिक पंजीकृत अधिवक्ता अलग-अलग जिलों में प्रैक्टिस कर रहे हैं. इसमें से 45 से 50 प्रतिशत युवा वकील जो पूर्ण रूप से वकालत के पेशे से जुड़े हुए हैं, उनकी आर्थिक हालत कोरोना काल में दयनीय हो गई. हालांकि 50 फीसदी ऐसे भी सीनियर अधिवक्ता हैं, जो वकालत के अलावा अन्य तरह के रोजगार से जुड़े होने के कारण फिलहाल आर्थिक से फिलहाल बचे हुए हैं. वर्तमान की हालत देखते हुए युवा वर्ग वकालत को छोड़ अन्य रोजगार की तलाश में जुट गए हैं.
ये भी पढ़ें: राज्य आंदोलनकारियों की जुबानी, खटीमा और मसूरी गोलीकांड की कहानी
उत्तराखंड बार काउंसिल कर रहा मदद
एडवोकेट चंद्रशेखर तिवारी ने बताया कि अधिवक्ताओं पर रोजी-रोटी के संकट को देखते हुए उत्तराखंड बार काउंसिल ने पिछले दिनों प्रति अधिवक्ता 5 हजार 500 रुपये की सहायता राशि किश्त के रूप में उपलब्ध कराई है. हालांकि यह राशि ऊंट के मुंह में जीरा जैसा ही है.
जबकि सामान्य रूप से वकालत करने वाले को अपने घर चलाने के लिए 25 से 30 हजार रुपए प्रतिमाह की जरूरत होती है. संकट की घड़ी में सरकार द्वारा किसी तरह की मदद न मिलने पर उत्तराखंड बार काउंसिल अपने वेलफेयर फंड और अधिवक्ताओं की पंजीकृत शुल्क जमा धनराशि से जरूरतमंद वकीलों को आर्थिक सहायता देने में जुटा हुआ है.
देहरादून के वकीलों का कहना है कि अति आवश्यक कार्यों के साथ-साथ अदालतों में वर्चुअल और ऑनलाइन कार्रवाई सीमित दायरे में हो रही है. वहीं, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक वरिष्ठ अधिवक्ता ही आवश्यक कार्य कर रहे हैं. लेकिन इन सबके बीच सामान्य तरह की कानूनी प्रक्रिया में वकालत करने वाले अधिवक्ता लंबे समय से खाली बैठे हैं.