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उत्तराखंड के जंगलों में घूमता दिखेगा अफ्रीकी चीता ?

अगर मध्यप्रदेश में अफ्रीकी चीता का प्रयोग सफल रहा तो उत्तराखंड में भी चीता लाने पर विचार किया जाएगा.

अफ्रीकी चीता
अफ्रीकी चीता
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Published : Feb 10, 2020, 4:34 PM IST

Updated : Feb 10, 2020, 5:38 PM IST

देहरादूनः सुप्रीम कोर्ट से भारतीय अभयारण्यों के लिए अफ्रीकी चीता लाने की इजाजत देने के बाद अब मध्यप्रदेश में अफ्रीकी चीता लाने की तैयारी की जा रही है. भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून ने इस प्रोजेक्ट के लिए कुनो पालपुर और नौरादेही अभयारण्य को चुना था. उत्तराखंड प्रमुख वन संरक्षक जयराज का कहना है कि अगर मध्यप्रदेश में अफ्रीकी चीता का प्रयोग सफल रहा तो उत्तराखंड में भी चीता लाने पर विचार किया जाएगा. ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट में जानिए चीता का भारत से जुड़ा रोचक इतिहास.

उत्तराखंड में भी अफ्रीकी चीता लाने पर विचार किया जाएगा.

सबसे पहले आपको बता दें कि देश में चीता नहीं है. साल 1948 में सरगुजा के जंगल में आखिरी बार चीता देखा गया था. जिसे देखते हुए अब केंद्र सरकार देश में चीता को दोबारा से लाने को कोशिश में लगी हुई है. इसी सिलसिले में भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून ने इस प्रोजेक्ट के लिए मध्यप्रदेश के कुनो पालपुर और नौरादेही अभयारण्य को चुना था. क्योंकि दोनों ही अभयारण्यों में लंबे खुले घास के मैदान हैं और चीता को शिकार करने के लिए छोटे वन्यप्राणी और लंबे खुले मैदान वाला क्षेत्र चाहिए.

शिकार और एक्सपोर्ट के चलते खत्म हुआ चीते का अस्तित्व
भारत में चीता के विलुप्त होने की मुख्य वजह राजा-महाराजाओं के समय इनका सबसे ज्यादा शिकार रहा. ब्रिटिश काल के समय भी चीते की खाल का बड़ी संख्या में निर्यात किया गया. यही नहीं राजा-महाराजा और ब्रिटिश काल के दौरान रसूखदार लोग शानों-शौकत और दिखावे के लिए चीते का शिकार करते थे. जिस वजह से धीरे-धीरे चीते की प्रजाति देश से विलुप्त होती चली गई. लेकिन अब विलुप्त चीते को देश में दोबारा पुनर्स्थापित करने की कवायाद तेज हो गयी है. लिहाजा अब लोगों को समझने की जरुरत है कि विकास की अवधारणा बायो डायवर्सिटी को खत्म करके बिल्कुल नहीं हो सकती.

पढ़ेंः कॉर्बेट टाइगर पार्क में जल्द नजर आएंगे गैंडे, सरकार ने तेज की कवायद

शेर और चीते का नेचुरल कनफ्लिक्ट
देश में पहले से ही शेर और चीते एक साथ रहे हैं. यही नहीं जब मध्यप्रदेश में चीता हुआ करते थे तो उस दौरान भी वहां शेर, बाघ आदि वन्य जीव भी मौजूद थे. लेकिन शेर और चीते के बीच कनफ्लिक्ट होना नेचुरल पार्ट है. लिहाजा जो जीव ताकतवर होता है वह जीतता है. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है कि शेर और चीता एक साथ नहीं चल पाएंगे या एक साथ नहीं रह पाएंगे.

वन्य जीव को रखने से पहले साइंटिफिक स्टडी
देश में चीता के पुनर्स्थापना से पहले आपको ये जानना जरूरी है कि चीता को ऐसे ही कहीं भी नहीं रखा जा सकता. इसके लिए पुरानी हिस्ट्री खंगाली जाती है और साइंटिफिक स्टडी तैयार की जाती है. इसके बाद ही चीता रखने की जगह का निर्णय लिया जाता है कि वह जगह उसके लिए अनुकूल है या नहीं. यही नहीं अगर एक जगह से दूसरी जगह किसी भी जीव को लाया जाता है तो सीधा उसे जंगल में नहीं छोड़ दिया जाता, बल्कि पहले उसे बाड़ों में रखा जाता है ताकि वह धीरे-धीरे उस कल्चर को एडॉप्ट करे. इसके बाद फिर जंतुओं को जंगल में सॉफ्ट रिलीज किया जाता है.

पढ़ेंः कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में प्लास्टिक खाते दिखे तीन बाघ, पार्क प्रशासन में मचा हड़कंप

एक्सपेरिमेंट के तौर पर देश में लाए जा रहे चीते
उत्तराखंड के प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने बताया कि यह स्वागत योग्य प्रस्ताव है कि सुप्रीम कोर्ट ने अफ्रीका से चीता लाने की मंजूरी दी है. इसके तहत राजस्थान और मध्यप्रदेश एक अच्छी जगह है, जहां पर पहले चीते हुआ करते थे. रिकॉर्ड की बात करें तो भारत देश में 1950 से पहले राजस्थान और मध्यप्रदेश में चीता हुआ करते थे. इसके बाद देश से चीते विलुप्त हो गए. उन्होंने बताया कि अफ्रीकन चीता भारत में आता है तो उसके लिए पहले से ही जलवायु परिवर्तन यहां पर मौजूद है. ऐसे में अफ्रीका से जो चीता मंगाया जायेगा, वह एक तरह से एक्सपेरिमेंट होगा, क्योंकि कुछ संख्या में ही चीता को देश में लाया जाएगा. उन्होंने कहा कि अगर मध्यप्रदेश में अफ्रीकी चीता लाने का प्रयोग सफल रहा तो उत्तराखंड में भी चीता लाने पर विचार किया जायेगा.

उत्तराखंड के वन्य क्षेत्रों में अफ्रीकी चीता लाए जाने से न सिर्फ वन्य जीवों की तादाद में इजाफा होगा, बल्कि बायोडायवर्सिटी के लिहाज से भी ये काफी महत्वपूर्ण होगा. ऐसे में अब देखना होगा कि दूसरे प्रांतों की तरह ही उत्तराखंड वन विभाग आखिर इस चीते को उत्तराखंड लाने में कितना सफल हो पायेगा?

देहरादूनः सुप्रीम कोर्ट से भारतीय अभयारण्यों के लिए अफ्रीकी चीता लाने की इजाजत देने के बाद अब मध्यप्रदेश में अफ्रीकी चीता लाने की तैयारी की जा रही है. भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून ने इस प्रोजेक्ट के लिए कुनो पालपुर और नौरादेही अभयारण्य को चुना था. उत्तराखंड प्रमुख वन संरक्षक जयराज का कहना है कि अगर मध्यप्रदेश में अफ्रीकी चीता का प्रयोग सफल रहा तो उत्तराखंड में भी चीता लाने पर विचार किया जाएगा. ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट में जानिए चीता का भारत से जुड़ा रोचक इतिहास.

उत्तराखंड में भी अफ्रीकी चीता लाने पर विचार किया जाएगा.

सबसे पहले आपको बता दें कि देश में चीता नहीं है. साल 1948 में सरगुजा के जंगल में आखिरी बार चीता देखा गया था. जिसे देखते हुए अब केंद्र सरकार देश में चीता को दोबारा से लाने को कोशिश में लगी हुई है. इसी सिलसिले में भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून ने इस प्रोजेक्ट के लिए मध्यप्रदेश के कुनो पालपुर और नौरादेही अभयारण्य को चुना था. क्योंकि दोनों ही अभयारण्यों में लंबे खुले घास के मैदान हैं और चीता को शिकार करने के लिए छोटे वन्यप्राणी और लंबे खुले मैदान वाला क्षेत्र चाहिए.

शिकार और एक्सपोर्ट के चलते खत्म हुआ चीते का अस्तित्व
भारत में चीता के विलुप्त होने की मुख्य वजह राजा-महाराजाओं के समय इनका सबसे ज्यादा शिकार रहा. ब्रिटिश काल के समय भी चीते की खाल का बड़ी संख्या में निर्यात किया गया. यही नहीं राजा-महाराजा और ब्रिटिश काल के दौरान रसूखदार लोग शानों-शौकत और दिखावे के लिए चीते का शिकार करते थे. जिस वजह से धीरे-धीरे चीते की प्रजाति देश से विलुप्त होती चली गई. लेकिन अब विलुप्त चीते को देश में दोबारा पुनर्स्थापित करने की कवायाद तेज हो गयी है. लिहाजा अब लोगों को समझने की जरुरत है कि विकास की अवधारणा बायो डायवर्सिटी को खत्म करके बिल्कुल नहीं हो सकती.

पढ़ेंः कॉर्बेट टाइगर पार्क में जल्द नजर आएंगे गैंडे, सरकार ने तेज की कवायद

शेर और चीते का नेचुरल कनफ्लिक्ट
देश में पहले से ही शेर और चीते एक साथ रहे हैं. यही नहीं जब मध्यप्रदेश में चीता हुआ करते थे तो उस दौरान भी वहां शेर, बाघ आदि वन्य जीव भी मौजूद थे. लेकिन शेर और चीते के बीच कनफ्लिक्ट होना नेचुरल पार्ट है. लिहाजा जो जीव ताकतवर होता है वह जीतता है. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है कि शेर और चीता एक साथ नहीं चल पाएंगे या एक साथ नहीं रह पाएंगे.

वन्य जीव को रखने से पहले साइंटिफिक स्टडी
देश में चीता के पुनर्स्थापना से पहले आपको ये जानना जरूरी है कि चीता को ऐसे ही कहीं भी नहीं रखा जा सकता. इसके लिए पुरानी हिस्ट्री खंगाली जाती है और साइंटिफिक स्टडी तैयार की जाती है. इसके बाद ही चीता रखने की जगह का निर्णय लिया जाता है कि वह जगह उसके लिए अनुकूल है या नहीं. यही नहीं अगर एक जगह से दूसरी जगह किसी भी जीव को लाया जाता है तो सीधा उसे जंगल में नहीं छोड़ दिया जाता, बल्कि पहले उसे बाड़ों में रखा जाता है ताकि वह धीरे-धीरे उस कल्चर को एडॉप्ट करे. इसके बाद फिर जंतुओं को जंगल में सॉफ्ट रिलीज किया जाता है.

पढ़ेंः कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में प्लास्टिक खाते दिखे तीन बाघ, पार्क प्रशासन में मचा हड़कंप

एक्सपेरिमेंट के तौर पर देश में लाए जा रहे चीते
उत्तराखंड के प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने बताया कि यह स्वागत योग्य प्रस्ताव है कि सुप्रीम कोर्ट ने अफ्रीका से चीता लाने की मंजूरी दी है. इसके तहत राजस्थान और मध्यप्रदेश एक अच्छी जगह है, जहां पर पहले चीते हुआ करते थे. रिकॉर्ड की बात करें तो भारत देश में 1950 से पहले राजस्थान और मध्यप्रदेश में चीता हुआ करते थे. इसके बाद देश से चीते विलुप्त हो गए. उन्होंने बताया कि अफ्रीकन चीता भारत में आता है तो उसके लिए पहले से ही जलवायु परिवर्तन यहां पर मौजूद है. ऐसे में अफ्रीका से जो चीता मंगाया जायेगा, वह एक तरह से एक्सपेरिमेंट होगा, क्योंकि कुछ संख्या में ही चीता को देश में लाया जाएगा. उन्होंने कहा कि अगर मध्यप्रदेश में अफ्रीकी चीता लाने का प्रयोग सफल रहा तो उत्तराखंड में भी चीता लाने पर विचार किया जायेगा.

उत्तराखंड के वन्य क्षेत्रों में अफ्रीकी चीता लाए जाने से न सिर्फ वन्य जीवों की तादाद में इजाफा होगा, बल्कि बायोडायवर्सिटी के लिहाज से भी ये काफी महत्वपूर्ण होगा. ऐसे में अब देखना होगा कि दूसरे प्रांतों की तरह ही उत्तराखंड वन विभाग आखिर इस चीते को उत्तराखंड लाने में कितना सफल हो पायेगा?

Intro:Special Story.....
Ready To Air.....

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय अभयारण्यों के लिए अफ्रीकी चीता लाने की इजाजत देने के बाद अब मध्यप्रदेश में अफ्रीकी चीता लाने की तैयारी की जा रहा है। क्योकि भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून ने इस प्रोजेक्ट के लिए कुनो पालपुर और नौरादेही अभयारण्य को चुना था। तो वही उत्तराखंड प्रमुख वन संरक्षक ने कहा कि अगर मध्यप्रदेश में अफ्रीकी चीता का प्रयोग सफल रहा तो उत्तराखंड में भी चीता लाने पर विचार किया जाएगा। आख़िर क्या रहा है देश मे चीता का इतिहास, देश से कैसे विलुप्त हो गया चीता, वन्य जीवों के लिए कैसे तय किया जाता है जगह? देखिये ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.......



Body:गौर हो कि देश से अब चीते नहीं हैं। हालांकि साल 1948 में सरगुजा के जंगल में आखिरी बार चीता देखा गया था। जिसे देखते हुए केंद्र सरकार ने देश में चीते को दोबारा से लाने को कोशिश में लगी हुई थी। इसी सिलसिले में भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून ने इस प्रोजेक्ट के लिए मध्यप्रदेश के कुनो पालपुर और नौरादेही अभयारण्य को चुना था। क्योकि दोनों ही अभयारण्यों में लंबे खुले घास के मैदान हैं। चीता को शिकार करने के लिए छोटे वन्यप्राणी और लंबे खुले मैदान वाला क्षेत्र चाहिए। 


शिकार और एक्सपोर्ट के चलते देश से ख़त्म हुए चीते...........

भारत देश में चीते के विलुप्त होने की मुख्य वजह, राजा - महाराजाओं के समय इन चीतों का भारी मात्रा में हुआ शिकार हुआ और ब्रिटिश काल के समय भी इन जानवरों का भारी मात्रा में हुआ एक्सपोर्ट ही है। यही नहीं राजा - महाराजाओं और ब्रिटिश काल के दौरान लोग शानो-शौकत के चलते शिकार करते थे। जिस वजह से धीरे धीरे चीते की प्रजाति, देश से विलुप्त होती चली गयी। लेकिन अब विलुप्त हुए चीते को देश में दोबारा पुनर्स्थापित करने की कवायात तेज हो गयी है। लिहाजा अब लोगो को समझने की जरुरत है कि विकास की अवधारणा बायोडायवर्सिटी को खत्म करके बिल्कुल नहीं हो सकती। 


शेर और चीते का कनफ्लिक्ट है नेचुरल.........

देश में पहले से ही शेर और चीते एक साथ रहे हैं। यही नहीं जब मध्यप्रदेश में चीता हुआ करते थे तो उस दौरान भी वहां शेर, बाघ आदि वन्य जीव भी मौजूद थे। लेकिन शेर और चीते के बीच कनफ्लिक्ट होना नेचुरल पार्ट है। लिहाजा जो जीव ताकतवर होता है वह जीतता है। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है कि शेर और चीता एक साथ नहीं चल पाएगे या एक साथ नहीं रह पाएंगे।


वन्य जीव को रखने के लिए पहले होता है साइंटिफिक स्टडी.........

चीता को देश में कहां रखा जा सकता है। इसके लिए पुरानी हिस्ट्री खंगाली जाती है, और साइंटिफिक स्टडी बनाई जाती है। इसके बाद ही चीता रखने की जगह को आईडेंटिफाई किया जाता है कि वह जगह उसके लिए अनुकूल है की नहीं। यही नहीं अगर एक जगह से दूसरी जगह किसी भी जीव को लाया जाता है। तो सीधा उसे जंगल में नहीं छोड़ दिया जाता, बल्कि पहले उसे बाड़ो में रखा जाता है। ताकि वह धीरे-धीरे उस कल्चर को एडॉप्ट करें, इसके बाद फिर जंतुओं को जंगल में सॉफ्ट रिलीज किया जाता है।    


एक्सपेरिमेंट के तौर पर देश में लाये जा रहे है चीते..........

उत्तराखंड के प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने बताया कि यह स्वागत योग्य प्रस्ताव है कि सुप्रीम कोर्ट ने अफ्रीका से चीता लाने की मंजूरी दी है। इसके तहत राजस्थान, मध्य प्रदेश एक अच्छी जगह है जहां पर पहले चीते हुआ करते थे। रिकॉर्ड की बात करें तो भारत देश में 1950 से पहले, राजस्थान और मध्यप्रदेश में चीता हुआ करते थे, इसके बाद देश से चीते विलुप्त हो गए। साथ ही बताया कि अफ्रीकी चीता भारत देश में आता है तो उसके लिए पहले से ही जलवायु परिवर्तन यहां पर मौजूद है। ऐसे में अफ्रीका से जो चीता मंगाया जायेगा, वह एक तरह से एक्सपेरिमेंट होगा, क्योंकि कुछ संख्या में ही चीता को देश में लाया जाएगा।  


प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने बताया कि जब इंटरनेशनल लेवल पर या फिर देश के किसी राज्य से ही जीव लाते हैं तो यह बायोडायवर्सिटी के हिसाब से बहुत अच्छा है। यही नहीं इस पॉइंट से भी अच्छा है कि कहीं किसी क्षेत्र में इन जानवरों पर कोई बीमारी लगती है और वो जीव खत्म होने के कगार पर हो, तो ऐसे में ख़त्म होने वाले वन्य जीव के इस प्रजाति कही अन्य जगहों पर मौजूद होंगी, जहां से इनके प्रजाति को बचाया जा सकेगा। साथ ही बताया कि मध्यप्रदेश में अफ़्रीकी चीता लाने का प्रयोग सफल रहा तो, उत्तराखंड में भी चीता लाने पर विचार किया जायेगा। 

बाइट - जयराज, प्रमुख वन संरक्षक, उत्तराखंड




Conclusion:उत्तराखंड के वन्य क्षेत्रो में अफ़्रीकी चीता लाये जाने से न सिर्फ वन्य जीवो की तादात में इजाफा होगा, बल्कि बायोडायवर्सिटी के लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण होगा। ऐसे में अब देखना होगा कि दूसरे प्रांतो की तरह ही उत्तराखंड वन विभाग आखिर, इस चीते को उत्तराखंड, लाने में कितना सफल हो पायेगा।  
Last Updated : Feb 10, 2020, 5:38 PM IST
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