देहरादून: देश में किसानों के विरोध के आगे आखिरकार केंद्र की मोदी सरकार को झुकना ही पड़ा. कुछ यही स्थिति उत्तराखंड में भी बनती हुई दिखाई दे रही है. दरअसल, प्रदेश में भी देवस्थानम बोर्ड को लेकर एक लंबे समय से तीर्थ पुरोहित और हकहकूक धारी सरकार से बोर्ड को भंग किए जाने की मांग कर रहे हैं. ऐसे में उम्मीद लगाई जा रही है कि कृषि कानून की तरह राज्य सरकार भी उत्तराखंड में देवस्थानम बोर्ड (Devasthanam board) पर रोलबैक कर सकती है.
दरअसल, भाजपा ने किसानों की मांग के आधार पर इस कानून को वापस लेने की बात कही है. ऐसे में उत्तराखंड सरकार से पूछा जा रहा है कि देवस्थानम पर तीर्थ पुरोहित और हकहकूक धारियों की मांग पर क्या धामी सरकार बोर्ड को भंग करेगी? इस मामले पर जब कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत से सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इसको लेकर सरकार बेहद ज्यादा गंभीर है. खुद मुख्यमंत्री धामी भी इस मामले पर बातचीत कर रहे हैं. इसके लिए बकायदा कमेटी का गठन किया गया और उसके बाद कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सरकार को भी सौंपी है. ऐसे उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्दी बातचीत के बाद अंतिम फैसला ले लिया जाएगा.
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माना जा रहा है कि 30 नवंबर से पहले देवस्थानम बोर्ड को लेकर भी सरकार कोई बड़ा फैसला ले सकती है. कांग्रेस पहले ही यह बात साफ कर चुकी है कि यदि सरकार उनकी आती है, तो इस बोर्ड को खत्म कर दिया जाएगा. कृषि कानून के बहाने देवस्थानम बोर्ड पर भी विपक्ष को धामी सरकार को घेरने का मौका मिल गया है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल कहते हैं कि कृषि कानून की तरह देवस्थानम बोर्ड पर भी धामी सरकार को उत्तराखंड में झुकना ही पड़ेगा और कांग्रेस सरकार आते ही इस कानून को खत्म कर दिया जाएगा.
देवस्थानम बोर्ड 2019 हुआ लागू: उत्तराखंड सरकार ने साल 2019 में विश्व विख्यात चारधाम समेत प्रदेश के अन्य 51 मंदिरों को एक बोर्ड के अधीन लाने को लेकर उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का गठन किया. बोर्ड के गठन के बाद से ही लगातार धामों से जुड़े तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी इसका विरोध कर रहे हैं. बावजूद इसके तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तीर्थ पुरोहितों के विरोध को दरकिनार करते हुए चारधाम देवस्थानम बोर्ड को लागू किया.
1939 का बीकेटीसी अधिनियम: संयुक्त उत्तर प्रदेश में साल 1939 में बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति अधिनियम लाया गया था. इसके तहत गठित बदरी-केदार मंदिर समिति (बीकेटीसी) तब से बदरीनाथ और केदारनाथ की व्यवस्थाएं देखती आ रही थी. इनमें बदरीनाथ से जुड़े 29 और केदारनाथ से जुड़े 14 मंदिर भी शामिल थे. इस तरह कुल 45 मंदिरों का जिम्मा बीकेटीसी के पास था.
साल 1939 से साल 2020 बदरी-केदार मंदिर समिति का अधिनियम चल रहा था, लेकिन यमुनोत्री और गंगोत्री धाम के लिए कोई अधिनियम नहीं था. इस वजह से यमुनोत्री और गंगोत्री धाम की यात्रा के संचालन के लिए अलग से व्यवस्था करनी पड़ती थी. लेकिन उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड प्रभावी होने के बाद से ही चारों धाम समेत 51 मंदिर एक बोर्ड के अधीन आ गए और 80 साल से चली रही बदरी-केदार मंदिर समिति की परम्परा समाप्त हो गयी.
क्यों शुरू हुई बोर्ड बनाने की कवायद: बदरीनाथ और केदारनाथ धाम की अपनी एक अलग ही मान्यता है, यही वजह है कि हर साल इन दोनों धामों में ही लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं. यह दोनों ही धाम पर्वतीय क्षेत्रों में मौजूद हैं, जहां सुख सुविधाएं विकसित करना पहाड़ जैसी चुनौती है. क्योंकि पहले से ही बदरी और केदार धाम के लिए मौजूद बीकेटीसी के माध्यम से तमाम व्यवस्थाएं मुकम्मल नहीं हो पा रही थीं, इसके अतिरिक्त गंगोत्री धाम के लिए अलग गंगोत्री मंदिर समिति और यमुनोत्री धाम के लिए अलग यमुनोत्री मंदिर समिति कार्य कर रही थीं.
क्यों पड़ी बोर्ड की जरूरत: बदरी-केदार हो या गंगोत्री-यमुनोत्री, ये मंदिर प्राइवेट नहीं हैं. यह लोगों ने बनवाए हैं. यहां बेशुमार पैसे के अलावा चांदी-सोना भी चढ़ता है. लेकिन उस पैसे का कोई हिसाब नहीं होता. यही सब पहले वैष्णो देवी मंदिर में भी होता था लेकिन जब उसे श्राइन बोर्ड बना दिया गया तो सब बदल गया. अब वहां मंदिर के पैसे से ही स्कूल चल रहे हैं, अस्पताल चल रहे हैं. धर्मशालाएं बनाई गई हैं और यूनिवर्सिटी भी बना दी है. उत्तराखंड सरकार भी अपनी यही मंशा बता रही है.
क्या था सरकार का मकसद: राज्य सरकार का कहना है कि चारधाम देवस्थानम अधिनियम गंगोत्री, यमुनोत्री, बदरीनाथ, केदारनाथ और उनके आसपास के मंदिरों की व्यवस्था में सुधार के लिए है, जिसका मकसद यह है कि यहां आने वाले यात्रियों का ठीक से स्वागत हो और उन्हें बेहतर सुविधाएं मिल सकें. इसके साथ ही बोर्ड भविष्य की जरूरतों को भी पूरा कर सकेगा.
लगातार हो रहा बोर्ड का विरोध: साल 2019 में जब देवस्थानम बोर्ड बनाने के प्रस्ताव पर जब कैबिनेट में मुहर लगी थी, उसके बाद से ही तीर्थ पुरोहितों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया था. शुरुआती दौर में तीर्थ पुरोहितों के विरोध करने की मुख्य वजह यह थी कि राज्य सरकार ने बोर्ड का नाम वैष्णो देवी के श्राइन बोर्ड के नाम पर रखा था. बोर्ड बनाने का जो प्रस्ताव तैयार किया गया था उसमें पहले इस बोर्ड का नाम उत्तराखंड चारधाम श्राइन बोर्ड रखा गया था. जिसके बाद राज्य सरकार ने साल 2020 में उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड रख दिया. बावजूद इसके तीर्थ पुरोहितों ने अपना विरोध जारी रखा है.
पूर्व सीएम को लौटाया: देवस्थाम बोर्ड भंग करने की मांग को लेकर 1 नवंबर को चारों धामों के तीर्थ पुरोहितों और हकूकधारियों ने केदारनाथ धाम पहुंचे पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को संगम पुल पर रोका और धक्का देकर लौटा दिया था. तीर्थ पुरोहितों का कहना था कि राज्य सरकार ने दो महीने का समय मांगा था लेकिन सरकार वादाखिलाफी कर रही है. देवस्थानम बोर्ड पर कोई फैसला ना आने से तीर्थ पुरोहितों में आक्रोश है.
क्या अरबों का चढ़ावा है विरोध की वजह: एक मुख्य वजह यह भी बताई जा रही है कि हर साल धामों में अरबों रुपए का चढ़ावा चढ़ता है ऐसे में अब इस चढ़ावे का पूरा हिसाब किताब रखा जाएगा यानी जो चढ़ावा चढ़ता है उसकी बंदरबांट नहीं हो पाएगी. जिसके चलते भी तीर्थ पुरोहित और हक हकूकधारी बोर्ड का विरोध कर रहे हैं.
बता दें, उत्तराखंड के कई जिलों सहित अन्य प्रांतों के कई स्थानों पर कुल 60 ऐसे स्थान हैं, जहां पर बाबा केदारनाथ और बदरीनाथ के नाम भू-सम्पत्तियां दस्तावेजों में दर्ज हैं. हालांकि इन संपत्तियों का रखरखाव अभी तक बदरी-केदार मंदिर समिति करती थी लेकिन अब बोर्ड बन जाने के बाद इन संपत्तियों का रखरखाव देवस्थानम बोर्ड कर रहा है.
ज्यादा जानकारी देते हुए बोर्ड के सीईओ रविनाथ रमन ने बताया कि जो मंदिर की संपत्ति है, वह मंदिर की ही रहेगी और बोर्ड भी इस बात को मानता है कि जो भू संपत्तियां मंदिर के नाम हैं वह मंदिर के ही नाम रहेंगी, न कि इस बोर्ड के नाम होंगी. हालांकि, भू-संपत्तियों के मामले में बोर्ड का मकसद सिर्फ और सिर्फ भू संपत्तियों का रखरखाव मेंटेनेंस और संरक्षण करना है.