देहरादून: तत्कालीन बिहार राज्य और वर्तमान झारखंड के बोकारो जिले में 29 जुलाई 1960 को जन्म लेने वाले उत्तराखंड के वर्तमान मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह अपनी 34 साल की सर्विस के बाद आज रिटायर हो रहे हैं. 30 साल से ज्यादा की अपनी सर्विस में उन्होंने यूपी के मुजफ्फरनगर और आजमगढ़ जैसे चुनौती भरे जिलों से लेकर पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में अपनी सेवाएं दी हैं. उत्पल कुमार सिंह के पिता का नाम बृजकिशोर सिंह था, जो पेशे से इंजीनियर थे.
क्लास में टॉपर नहीं थे लेकिन सामान्य से बेहतर थे उत्पल कुमार
मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह की प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा पश्चिम बंगाल आसनसोल के सेंट पैट्रिक हायर सेकेंडरी स्कूल से हुई. उन्होंने 10वीं कक्षा वहीं से पास की. इसके बाद उन्होंने साइंस कॉलेज ऑफ पटना से विज्ञान विषय में 12वीं की. स्कूली शिक्षा के बाद उच्च शिक्षा के लिए वह दिल्ली चले गए थे और किरोड़ीमल कॉलेज से ग्रेजुएशन व पोस्ट ग्रेजुएशन किया. फिर एमफिल इतिहास की पढ़ाई की. इसी दौरान कॉलेज के माहौल और सेल्फ ऑब्जर्वेशन में उन्होंने भविष्य का रास्ता तय कर लिया.
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मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने बताया कि वह पढ़ाई में तो कभी टॉपर नहीं रहे लेकिन सामान्य से बेहतर थे. पढ़ाई ही नहीं खेलकूद में भी उन्हें खासी रुचि रही है. साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी वह सहयोगी के तौर पर हमेशा भाग लेते थे.
माहौल ने प्रशासनिक सेवाओं की ओर मोड़ा
मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने बताया कि जब वह दिल्ली यूनिवर्सिटी में एम.फिल की तैयारी कर रहे थे तो उन्हें अखबार पढ़ना और दुनियाभर की जानकारी रखना बेहद पसंद था. इसके बाद वहां पर उन्होंने अपने साथ के तमाम छात्र-छात्राओं को सिविल सर्विस की तैयारी करते देख तो उन्होंने तय किया कि उन्हें भी प्रशासनिक सेवाओं में ही जाना है.
दूसरे अटेम्प्ट में निकाली परीक्षा
दिल्ली यूनिवर्सिटी से एम.फिल के दौरान ही उत्पल कुमार सिंह ने सिविल सर्विस एग्जाम का फॉर्म भरा और तकरीबन 6 महीने तक लगकर तैयारी की. उन्होंने दूसरे अटेम्प्ड में परीक्षा पास की. उसके बाद 26 साल की उम्र में सिविल सर्विसेज ज्वाइन की और ट्रेनिंग के लिए एकेडमी चले गए.
पहली पोस्टिंग बतौर SDM इटावा में हुई
1986 बैच के IAS अधिकारी उत्पल कुमार सिंह को पहली पोस्टिंग उत्तर प्रदेश जिले के इटावा जिल में बतौर एसडीएम मिली. इस दौरान ही उनकी शादी भी हुई. शादी के कुछ महीनों बाद उत्पल कुमार सिंह का ट्रांसफर उस समय उत्तर प्रदेश में पड़ने वाले अल्मोड़ा जिले के रानीखेत तहसील में बतौर एसडीएम हुआ.
रानीखेत की पोस्टिंग सबसे यादगार
34 साल के कार्यकाल में उन्हें देश के कई अलग-अलग जगहों पर और अलग-अलग जिम्मेदारियों को निभाने का मौका मिला लेकिन रानीखेत की पोस्टिंग उनके और उनकी पत्नी के लिए सबसे यादगार पोस्टिंग है. उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी बंगाल से है और उनकी शिक्षा-दीक्षा दार्जिलिंग से हुई है. ऐसे में उन्हें भी प्रकृति और पहाड़ों से प्यार है और रानीखेत एक ऐसी जगह थी जिसने दोनों के विचारों को एकमत किया कि अगर कभी पोस्टिंग पहाड़ में मिलती है तो उत्तराखंड ही पहला विकल्प होगा. उत्तराखंड राज्य गठन होते ही उन्होंने बिल्कुल सोचने में समय नहीं लगाया और तय किया कि उत्तराखंड ही रहना है.
पहले पर्यटक बनकर आये थे उत्तराखंड
सिविल सर्विस में आने से पहले वह कई बार उत्तराखंड आए थे. वह पहली दफा 70 के दशक में उत्तराखंड आए थे. उसके बाद कई बार उत्तराखंड में औली, मसूरी, नैनीताल और देहरादून जैसी कई जगहों पर एक पर्यटक के तौर पर घूमने पहुंचे थे. यूपीएससी के एग्जाम देने के बाद वो औली घूमने आए थे लेकिन तब परीक्षा के परिणाम नहीं आए थे. हालांकि, उस वक्त तक यह तय नहीं था कि वह सिविल सर्विसेज में जाएंगे और अगर जाएंगे भी तो किस क्षेत्र में जाएंगे, कौन सा कैडर मिलेगा लेकिन उत्तराखंड ने उन्हें अपनी तरफ तभी खींच लिया था. उसी दौरान यहां की चुनौतियों को भी उन्होंने समझा.
सचिवालय का पहला अनुभव
इटावा और रानीखेत दोनों मिलाकर एसडीएम पद पर 2 साल के कार्यकाल पूरा होने के बाद उत्पल कुमार सिंह को पहली दफा प्रदेश मुख्यालय यानी सचिवालय जाने का मौका मिला. फिर उन्हें लखनऊ में वित्त विभाग संयुक्त सचिव के साथ-साथ खेल विभाग की भी जिम्मेदारी दी गयी. उन्होंने बताया कि यह उनका पहला अनुभव था कि सचिवालय स्तर पर सरकारी तंत्र किस तरह से काम करता है और किस तरह से नीति निर्धारण के साथ-साथ किस तरह से योजनाओं का क्रियान्वयन होता है.
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लखनऊ सचिवालय में उनकी पोस्टिंग तकरीबन डेढ़ साल तक रही और इसके बाद अक्टूबर 1991 में उन्हें मुख्य विकास अधिकारी आजमगढ़ की जिम्मेदारी मिली. इस दौरान उन्होंने जमीनी स्तर पर सरकारी योजना को पहुंचाने का काम किया. साथ ही यह भी जाना कि जमीनी स्तर पर सरकारी योजनाओं को पहुंचने में किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
उस दौरान जवाहर रोजगार योजना चला करती थी. इसके अलावा कई ऐसे विकास के कार्य थे जिनको जमीनी स्तर पर पहुंचाना उनकी जिम्मेदारी थी. इस दौरान उन्होंने ये अनुभव लिया कि जनप्रतिनिधियों के साथ किस तरह से काम करना है और पंचायती राज संगठनों के साथ किस तरह से तालमेल बैठाना है, सांसद विधायकों के साथ किस तरह से सामंजस्य बैठाकर योजनाओं का गठन और उनको अमलीजामा पहनाना है.
नेपाल से सटे जिले में डायरिया महामारी के दौर में संभाला DM का पद
नेपाल से सटे उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में उत्पल कुमार सिंह की बतौर डीएम पहली पोस्टिंग हुई थी. उन्होंने बताया कि इस दौरान यह जिला उल्टी-दस्त जैसी महामारी से जूझ रहा था. इस बीमारी से किस तरह निपटना है और कैसे लोगों तक राहत पहुंचानी है, वहां इस चैलेंज का उन्होंने सामना किया. यहां तकरीबन 5 महीने तक उनकी पोस्टिंग रही और उसके बाद एक बार फिर से वह लखनऊ मुख्यालय में आ गए.
लखनऊ सचिवालय में अलग-अलग विभागों में कई तरह की जिम्मेदारियां निभाने के बाद मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह को उद्यान विभाग में एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई. इसी दौरान उन्हें देश से बाहर विदेश में एक ट्रेनिंग पर जाने का मौका मिला. USA में ट्रेनिंग लेने के बाद जब उत्पल कुमार सिंह वापस लौटे तो फिर उन्हें मुज्जफरनगर जिले की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई.
आज भी मुज्जफरनगर के लोगों से है सम्पर्क
उत्पल कुमार सिंह को 1996-97 के दौर में मुजफ्फरनगर का डीएम बनाया गया था. हालांकि, यहां पर उनका कार्यकाल छोटा था लेकिन लोगों का स्नेह और प्यार इतना मिला कि आज भी उन लोगों से संपर्क बना हुआ है. उस समय मुजफ्फरनगर और शामली एक ही जिला हुआ करता था. उस दौरान वहां पर आपराधिक घटनाएं भी कई ज्यादा बढ़ी हुई थीं. हालांकि, उनके कार्यकाल के दौरान कोई ऐसी घटना नहीं हुई जिससे कि लॉ एंड ऑर्डर बिगड़ा हो. उन्होंने बताया कि वहां बेहद गर्मजोशी वाले लोग थे लेकिन यह गर्मजोशी, सम्मान और प्रेम उत्तराखंड में भी देखने को मिलता है.
तकरीबन 5 महीने मुजफ्फरनगर डीएम रहने के बाद एक बार फिर उत्पल कुमार सिंह लखनऊ सचिवालय में पर्यटन निगम में बतौर अपर प्रबंध निदेशक आए और उसके बाद वह झांसी के डीएम बनाए गए. करीब 6 महीने झांसी डीएम रहने के बाद उन्हें बुंदेलखंड का कार्यभार मिला, जहां पर गरीबी ज्यादा थी और विकास कम हुआ था. ऐसे में बुंदेलखंड में काम करने का एक अलग अनुभव मिला. इसके बाद उन्हें DM शाहजहांपुर भेजा गया और वहां पर वह पूरे 2 साल डीएम रहे.
उत्तराखंड के ही हो गये
जून 2000 में उत्पल कुमार सिंह की पोस्टिंग कुमाऊं मंडल विकास निगम में बतौर मैनेजिंग डायरेक्टर हुई. उन्होंने बताया कि इस दौरान राज्य बनाने की घोषणा नहीं हुई थी लेकिन जैसे ही उन्होंने केएमवीएन में पोस्टिंग ली उसके कुछ समय बाद राज्य बनने की घोषणा हो गई. राज्य स्थापना के बाद उन्हें नैनीताल जिले का डीएम बनाया गया, जहां उन्होंने तकरीबन सवा साल तक अपनी सेवाएं दी और इसके बाद उनकी पदोन्नति सचिव स्तर पर हो गई. साल 2002 में उत्पल कुमार सिंह को एमडी गढ़वाल मंडल विकास निगम बनाया गया.
2003 में अर्धकुंभ मेला अधिकारी रहे उत्पल कुमार
सचिव स्तर पर पदोन्नति पाने के बाद आईएएस अधिकारी उत्पल कुमार सिंह को वर्ष 2003 में अर्धकुंभ मेला अधिकारी बनाया गया. उन्होंने अर्धकुंभ 2004 में सफलतापूर्वक अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया. इसके बाद वह अपनी आगे की पढ़ाई के लिए विदेश चले गए और तकरीबन 1 साल बाद वर्ष 2005 में वापस लौटे. फिर उन्हें उद्यान विभाग सचिव की जिम्मेदारी दी गई. वर्ष 2006 में उन्हें पीडब्ल्यूडी सचिव बनाया गया, उसके बाद जलागम सचिव. एक के बाद एक विभागों का अनुभव उन्हें उत्तराखंड में मिलता गया.
वर्ष 2012 में चले गए थे केंद्र, 2017 में लौटे
आईएएस अधिकारी उत्पल कुमार सिंह की कुशल कार्यक्षमता और उनकी बेहतरीन कार्यशैली को देखते हुए उन्हें वर्ष 2012 में भारत सरकार में भेजा गया, जहां उन्होंने कृषि मंत्रालय में संयुक्त सचिव की जिम्मेदारी का निर्वहन किया. यहां उन्हें पदोन्नति के बाद अपर सचिव बनाया गया और उसके बाद अक्टूबर 2017 में उत्तराखंड सरकार ने उन्हें वापस उत्तराखंड बतौर मुख्य सचिव बुला लिया. इसके बाद वह लगातार उत्तराखंड में अपनी सेवाएं दे रहे हैं.
केंद्रीय प्रोजेक्ट की थी सबसे बड़ी जिम्मेदारी
उत्तराखंड में चल रहे पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए केंद्र ने अपना एक जिम्मेदार अधिकारी उत्तराखंड भेजा था. मुख्य सचिव के तौर पर उन्होंने अपनी इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया भी. आज उत्तराखंड में मोदी ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत ऑल वेदर रोड ऋषिकेश करणप्रयाग रेलवे लाइन और उड़ान योजना सहित कई ऐसी योजनाएं हैं जिन पर मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने व्यक्तिगत रूप से अथक प्रयास कर उन्हें पूरा करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.