देहरादून: उत्तराखंड में जैसे-जैसे चुनाव का दिन पास आता जा रहा है, वैसे-वैसे हर रोज नेताओं के बयानों में भी नये रंग देखने को मिल रहे है. कोई नेता पाला बदल रहा है, कोई दोस्त को बुरा-भला कह रहा है तो कोई किसी तरह से किसी भी पार्टी में अपनी सेटिंग लगाकर टिकट पाना चाह रहा है. यानी प्रदेश में राजनीति अब पूरे चरम पर है.
उत्तराखंड में आज 22 फरवरी 2022 का दिन वैसे तो बेहद ठंडा रहा. सुबह से लेकर शाम तक लगातार बारिश होती रही, जहां पर बारिश नहीं हुई वहां पर बर्फबारी ने मौसम को ठंडक भरा बना दिया. लेकिन इस ठंडे मौसम में भी कांग्रेस के उन नेताओं को पसीना आता रहा जो दिल्ली दरबार की ओर प्रत्याशियों की सूची जारी होने की आस में टकटकी लगाए बैठे रहे.
कांग्रेस प्रत्याशियों की लिस्ट कब होगी जारी: वैसे तो उम्मीद थी कि कम से कम बीजेपी की पहली लिस्ट जारी होने के दो दिन बाद तो कांग्रेस अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर ही देगी लेकिन रात हो चुकी है और कांग्रेस की ओर से चूं भी नहीं है. अब कल सुबह तक लिस्ट होने होने की बात चल रही है. पता नहीं क्यों पर कांग्रेस ने अपनी इस लिस्ट को लेकर इतना सस्पेंस बनाया हुआ है कि बीती देर रात तक कई नेता जागते रहे लेकिन उनका इंतजार 22 जनवरी देर रात तक भी पूरा नहीं हुआ.
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फूंक-फूंक कर कांग्रेस रख रही कदम: प्रदेश की ठंडी हवाओं में तैर रही सियासी चर्चाओं की मानें तो कांग्रेस फूंक-फूंक कर कदम रखना चाहती है. अपनी पिछली गलतियों को सामने रखकर प्रत्याशी फाइनल करना चाहती है. पार्टी इस बात पर गहन मंथन कर रही है कि अगर कुछ खास और आम नेताओं के टिकट काटे गए तो पार्टी में कहीं विद्रोह न हो जाए (क्योंकि वो बीजेपी में ऐसा होते देख रही है). इसलिए कांग्रेस ऐसी विधानसभाओं में एक-एक नेता से बातचीत करके डैमेज कंट्रोल की कोशिश भी हाथों-हाथ कर रही है.
हरीश रावत की टिकट को लेकर चर्चा: बहरहाल, कांग्रेसी खेमे में आज भी दिनभर केवल टिकट को लेकर ही चर्चा होती रही. सबसे ज्यादा चर्चा रही हरीश रावत के टिकट को लेकर. कुमाऊं में हरीश रावत के लिए सेफ सीट देखी जा रही है. पिछली बार की तरह ओवर कॉन्फिडेंस में बिना जनता का रुख़ समझे जो गलती कांग्रेस ने की थी उससे सबक लेकर टिकट पर इतनी माथापच्ची हो रही है.
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9 बागी नेताओं का टूटा परिवार: अब बात करते हैं बीजेपी से निकाले जाने के बाद पिछले कई दिनों से उत्तराखंड में सबसे ज्यादा चर्चाओं में रहे नेता हरक सिंह रावत की. हरक सिंह रावत 2016 में जब बगावत करके कांग्रेस से बीजेपी में आए थे, उस समय उनके साथ आए उनके 'साथी' उनके राजनीतिक परिवार का हिस्सा बन गए थे. वो बीजेपी में भी रहे तो सभी 9 लोग एक साथ रहे, एक साथ हर बात की रणनीति बनाते रहे. लेकिन अब यह परिवार हरक के वापस कांग्रेस में जाने के बाद टूट गया है या फिर ये कह सकते हैं कि जनता के सामने राजनीति करने वाले नेता बयानों के बहाने यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि कांग्रेस में जाने वाले नेता बीजेपी का मित्र नहीं और बीजेपी में जाने वाला नेता कांग्रेस का मित्र नहीं.
हरक को लेकर काऊ के बदले सुर: ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि अबतक हरक सिंह रावत के बेस्ट फ्रेंड रहे रायपुर विधायक उमेश शर्मा काऊ से सुर हरक के कांग्रेसी होते ही बदल गए हैं. पिछले 5 सालों से साए की तरह हरक के साथ चल रहे काऊ भी अब उनके खिलाफ बयानबाजी पर उतर आए हैं. उनका कहना है कि जिस नेता का हाल 5 दिनों में उत्तराखंड की जनता और देश की जनता ने देखा है, उस नेता का किसी भी पार्टी में जाने से बीजेपी को कोई नुकसान नहीं हो सकता.
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घर का भेदी लंका ढाए: यानी उमेश शर्मा काऊ भी अब राजनीतिक विरोधी के नाते हरक सिंह रावत के खिलाफ खुलकर बयानबाजी कर रहे हैं. आपको बता दें कि जिस वक्त हरक सिंह रावत को बीजेपी ने पार्टी और सरकार से निष्कासित किया था उस वक्त उमेश शर्मा काऊ भी उनके साथ दिल्ली दौरे पर थे. बताया जा रहा है कि उमेश शर्मा काऊ के फीडबैक पर ही हरक सिंह रावत को सरकार और संगठन ने निष्कासित किया था.
चुनाव को लेकर मिथ: उत्तराखंड प्रदेश में अबतक का इतिहास रहा है कि एक बार जिसकी सरकार रही अगली बार वह पार्टी विपक्ष में ही बैठी है. फिलहाल कांग्रेस के नेता इस बात से गदगद हैं कि यशपाल आर्य से लेकर हरक सिंह रावत और तमाम जिला पंचायत से लेकर छोटे बड़े नेता बीजेपी से कांग्रेस का रुख कर रहे हैं. लेकिन 57 सीटों वाली बीजेपी से पार पाना कांग्रेस के लिए अभी बेहद कठिन डगर है.
मोदी लहर में भी इन कांग्रेसियों की हुई थी जीत: भारी मोदी लहर के बीच जीत का परचम लहराने वाले 11 कांग्रेसी विधायक थे. उन्हीं में से एक केदारनाथ विधानसभा सीट से मनोज रावत भी थे, लेकिन कांग्रेस के लिए ये बिलकुल अच्छे सिग्नल नहीं हैं कि उनका विरोध तेजी से होने लगा है. आज उनकी विधानसभा में भारी संख्या में लोग इकट्ठा हुए और विधायक मनोज रावत के ऊपर विधायक निधि कम खर्च करने का आरोप लगाते हुए नारेबाजी की. स्थानीय लोगों का कहना है कि महामारी के दौरान और अन्य समस्याओं के दौरान मनोज रावत जनता के बीच में दिखाई नहीं दिए. इतना ही नहीं, उन्होंने सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मुद्दों पर कभी भी ध्यान नहीं दिया. आपको बता दें मनोज रावत पहली बार केदारनाथ सीट से विधायक बने हैं. इससे पहले वो एक पत्रकार की भूमिका में काम कर रहे थे.
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अब बात कर लेते हैं देहरादून के बीजेपी दफ्तर में खड़े काले कपड़ों वाले सुरक्षाकर्मियों की. बीजेपी का दफ्तर आज पूरे दिन इसलिए चर्चाओं में रहा क्योंकि बीजेपी के नेताओं ने विरोध करने वाले नेताओं को सबक सिखाने के लिए बाउंसर की तैनाती कर दी है. इन बाउंसरों की संख्या दर्जनों में बताई जा रही है. सुबह और शाम तक पार्टी के बड़े नेताओं के दफ्तरों के बाहर और मेन गेट के बाहर खड़े रहकर ये नजर रख रहे हैं कि कहीं किसी नेता का टिकट कटने के बाद उनके समर्थक या खुद नेता विरोध करते हुए पार्टी कार्यालय के सामने हंगामा न करें. यह सुरक्षाकर्मी इस बात पर भी नजर रख रहे हैं कि कोई भी अज्ञात व्यक्ति बीजेपी दफ्तर के अंदर बैठे वरिष्ठ नेताओं के दफ्तर तक सीधे न पहुंचे.
सवाल ये खड़ा होता है कि बीजेपी को अपने कार्यालय में बाउंसर रखने की जरूरत क्यों पड़ी? जबकि बीजेपी तो अपने आप को अनुशासित पार्टी बताती रही है यानी उसमें शामिल होने वाला हर नेता बेहद अनुशासन और संयम के साथ पार्टी के लिए काम करता है. खैर जब ईटीवी भारत ने इस पूरे मामले पर प्रदेश कार्यालय के प्रवक्ता और दफ्तर इंचार्ज से बातचीत करनी चाही तो उन्होंने इस पूरे मामले पर कुछ भी कहने से मना कर दिया.
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चलते-चलते विधानसभा के एक निर्दलीय प्रत्याशी की जानकारी भी हम आपको दे दें. उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के भीमताल सीट से निर्दलीय प्रत्याशी राम सिंह कैड़ा ने अपने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया है. राम सिंह कैड़ा ने आज शाम विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल को अपना इस्तीफा सौंपा, जिसको प्रेमचंद अग्रवाल ने भी स्वीकार कर लिया है. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि कैड़ा निर्दलीय चुनाव जीते थे और फिर बीजेपी में शामिल हो गए. उनके ऊपर कार्रवाई करने के लिए आम आदमी पार्टी ने विधानसभा अध्यक्ष को एक पत्र लिखा था. इस पत्र में राम सिंह कैड़ा के अलावा प्रीतम पंवार का भी जिक्र किया गया था. हालांकि, प्रीतम पंवार पहले ही अपना इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए थे.