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उत्तराखंड विधानसभा चुनाव से जुड़ी दिनभर की अपडेट जानिए एक क्लिक में...

उत्तराखंड में इन दिनों चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई है. नेताओं ने पार्टियों को अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं. वहीं चुनाव समय नजदीक आते ही बीजेपी, कांग्रेस और आप के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला तेज हो गया है. उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 से जुड़ी दिनभर की खबरों पर एक नजर...

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उत्तराखंड विधानसभा चुनाव
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Published : Jan 21, 2022, 9:48 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में सियासत के तौर पर आज 21 जनवरी 2022 का दिन बेहद रोचक रहा. उत्तराखंड की राजनीति और उसको जानने वाले लोगों के लिए हरक सिंह रावत के लिए यह दिन मानो किसी राजनीति में पुनर्जन्म से कम नहीं था. पांच दिनों से कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस का मुंह देख रहे हरक सिंह रावत को आखिरकार आज कांग्रेस ने अपनी सदस्यता दे ही दी. दिल्ली कांग्रेस भवन में ये कार्यक्रम इतना चुपचाप हुआ कि इसके बारे में भी तब पता लगा जब कांग्रेस के कुछ नेताओं ने हरक सिंह रावत और उनकी बहू अनुकृति गुसाईं की फोटो शेयर की.

हरक सिंह रावत के आगे कांग्रेस ने क्या शर्त रखी ये तो नहीं मालूम, लेकिन इतना जरूर है कि बीजेपी से निष्कासित होने के 5 दिनों के बाद हुई इस ज्वाइनिंग में कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. सबसे बड़ा सवाल ये कि क्या कांग्रेस की टीम हरक सिंह रावत को उत्तराखंड में तवज्जो देगी या फिर उनका वजूद अब कम हो जाएगा?

हरक की कांग्रेस में वापसी: लगभग 25 सालों से उत्तराखंड की राजनीति में अपनी अलग पहचान बना चुके हरक सिंह रावत ने कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और बसपा सभी पार्टियों में अपना भाग्य आजमाया है. वो जिस भी पद पर रहे हमेशा पावरफुल बने रहे. उनके बारे में कहा जाता है कि वो उत्तराखंड के एकमात्र ऐसे नेता हैं जो उत्तराखंड बनने के बाद से आज तक सरकारी मेहमान या या कहें सरकारी बंगला, गाड़ी सब इस्तेमाल कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें: 2016 की 'गलती' मानकर हरक सिंह रावत ने थामा 'हाथ', हरीश रावत ने किया 'स्वागत'

उनका ये दबदबा रहा कि अगर वो कांग्रेस में रहे और बीजेपी सत्ता में रही तो उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनाया गया और जब-जब सत्ता में आए तो प्रमुख मंत्रालयों जैसे- पर्यावरण, वन, विद्युत और PWD विभाग के मंत्री बनाए गए. उन्होंने बीजेपी में रहते हुए कई बड़े मंत्रालयों का दायित्व संभालास लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी जब बीजेपी में उनका मन नहीं नहीं लगा तो एक बार फिर से उन्होंने कांग्रेस में जाने की सोची लेकिन यहां रोड़ा बने थे हरीश रावत, क्योंकि हरक सिंह रावत ही वो इंसान थे जिन्होंने विजय बहुगुणा के साथ मिलकर साल 2016 में हरीश रावत की सरकार को गिराने के लिए विधानसभा में 9 विधायकों को तोड़ा था. हरीश रावत इस घटना को आज तक नहीं भूले हैं और यही कारण है कि 5 दिनों की कड़ी जद्दोजहद के बाद कहीं जाकर हरक सिंह रावत को कांग्रेस में शामिल किया गया है.

बीजेपी को कई सीट पर पहुंचा सकते हैं नुकसान: इसमें कोई दो राय नहीं कि हरक सिंह रावत उत्तराखंड में अपनी एक अलग पहचान रखते हैं. उनके कांग्रेस में आने के बाद कई सीटों पर बीजेपी को नुकसान हो सकता है. हरक सिंह रावत का दायरा राजनीति में अच्छा खासा है, ऐसे में उनके साथ काम करने वाली और उन्हें चुनाव लड़ाने वाली पूरी टीम अब कांग्रेस के लिए ही काम करेगी. हरक सिंह रावत के साथ उनकी बहू अनुकृति गुसाईं ने भी कांग्रेस की सदस्यता ली है. खबरें यही सामने आ रही हैं कि अनुकृति को कांग्रेस पार्टी लैंसडाउन से टिकट देगी. इस खबर के बाद हालांकि, लैंसडाउन में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उनका विरोध करना शुरू कर दिया है.

जनता से पहले भगवान की शरण में सीएम: उत्तराखंड में टिकट मिलने के बाद नेता जनता के बीच तो जाएंगे ही लेकिन उससे पहले नेता जी भगवान की शरण में पहुंचने लगे हैं. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी आज अल्मोड़ा पहुंचे और खटीमा से प्रत्याशी बनने के बाद उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर चितई मंदिर गोलू देवता के दर्शन करने गए. आपको बता दें कि, गोलू देवता का मंदिर न्याय के लिए माना जाता है और यहां लोग न्याय की फरियाद लगाने के लिए माथा टेकते हैं.

मंदिर में पूजा अर्चना करने के बाद जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से यह पूछा गया कि जिन लोगों के टिकट काटे गए हैं और जो टिकट की उम्मीद लगाए बैठे थे वो लोग पार्टी से बगावत कर रहे हैं, इसका जवाब देते हुए पुष्कर सिंह धामी ने ऐसा कुछ भी होने से इनकार किया और कहा कि सभी लोग पार्टी के लिए काम करेंगे. सभी के साथ बैठकर बातचीत शुरू हो चुकी है. मतलब साफ है कि उत्तराखंड में बीजेपी के लिए आने वाले दिन आसान नहीं होंगे. बीजेपी को जहां प्रचार-प्रसार में तेजी लानी होगी, वहीं अपने रूठे हुए नेताओं को भी मनाने में उन्हें जद्दोजहद करनी पड़ सकती है, जबकि चुनाव और मतदान में समय बेहद कम रह गया है.

ये भी पढ़ें: टिकट वितरण के बाद सबसे पहले अल्मोड़ा पहुंचे CM धामी, जीत के लिए गोलू देवता से मांगा आशीर्वाद

उधर, बीजेपी ने जिन नेताओं के टिकट काटे हैं उन नेताओं का कांग्रेस में जाने का सिलसिला शुरू हो गया है. बताया जा रहा है कि नरेंद्र नगर से एक बार फिर से सुबोध उनियाल को टिकट दिए जाने के बाद बीजेपी के संपर्क में चल रहे ओम गोपाल रावत जल्द ही कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं. ओम गोपाल रावत पूर्व में भी चुनाव लड़ चुके हैं, तब उन्हें बेहद कम वोटों से हार का सामना करना पड़ा था.

इतना ही नहीं, बागेश्वर जिले से पूर्व विधायक शेर सिंह गढ़िया ने भी बीजेपी को आंखें दिखानी शुरू कर दी है. बताया जा रहा है कि उन्होंने भी कांग्रेस से संपर्क साधा है और वो भी जल्द ही कांग्रेस पार्टी से मैदान में ताल ठोक सकते हैं. उधर, ऐसा ही हाल हरिद्वार की झबरेड़ा विधानसभा सीट पर विधायक देशराज कर्णवाल का भी है. कर्णवाल ने भी पार्टी अध्यक्ष को पत्र लिखकर कहा है कि उनकी पत्नी को भी टिकट दिया जाए. उनकी मांग है कि उनकी पत्नी राजनीतिक हैसियत में कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन की पत्नी कुंवरानी देवयानी से बड़ी नेता हैं, जब देवयानी को टिकट दिया जा सकता है तो उनकी पत्नी भी टिकट की दावेदार हैं. आपको बता दें कि अभी जिन 11 सीटों पर पार्टी ने प्रत्याशी नहीं उतारे हैं उनमें से एक झबरेड़ा सीट भी है. खबरें तो यहां तक हैं कि कर्णवाल के तेवर देख उनको भी हरक सिंह रावत की तरह ट्रीटमेंट दिया जा सकता है.

हालांकि, बीजेपी के कुछ नेता ऐसे भी हैं जिन्होंने टिकट कटने के बाद भी समर्पण दिखाया है. इनमें पौड़ी से विधायक मुकेश कोली और द्वाराहाट से महेश नेगी का नाम शामिल है. मुकेश कोली का कहना है कि पार्टी ने इस बार उनका टिकट काटा नहीं है, बल्कि टिकट में परिवर्तन किया है, ये जरूरी था क्योंकि पार्टी ने भविष्य की परिस्थितियों को देखते हुए ये फैसला लिया है, जिसका वो तहे दिल से सम्मान करते हैं. उधर, यौन शोषण के आरोप झेल रहे महेश नेगी का कहना है कि विपक्ष के लोगों के साथ सत्ता के भी कुछ लोगों ने उनके खिलाफ षड्यंत्र किया, जिस वजह से उनका टिकट कटा है. पार्टी ने उन पर भरोसा नहीं दिखाया, जिसका उन्हें दुख है लेकिन वो एक सच्चे और ईमानदार कार्यकर्ता के रूप में काम करते रहेंगे.

ये भी पढ़ें: अपने ही बढ़ाएंगे भाजपा की मुश्किलें, टिकट नहीं मिलने से नाखुश कार्यकर्ता लड़ेंगे चुनाव

70 सीटों पर कांग्रेस बनाएगी कंट्रोल रूम: कांग्रेस ने अभी भले ही प्रत्याशी घोषित नहीं किए हैं, लेकिन डिजिटल माध्यम से प्रचार शुरू करने को लेकर प्रदेश की 70 विधानसभा सीटों पर कंट्रोल रूम बनाने जा रही है. इन कंट्रोल रूम में कांग्रेस के दिग्गज नेता डिजिटल माध्यम से वर्चुअल रैलियों को संबोधित करेंगे.

मतदान तारीख में बदलाव की मांग: इसी बीच खबर आई कि चुनाव आयोग द्वारा पंजाब विधानसभा चुनावों की तारीख में बदलाव करने के बाद अब उत्तराखंड में भी विधानसभा चुनाव की डेट बदलने की मांग उठने लगी है. इसके लिए केवल निर्दलीय ही नहीं बल्कि बड़े समाजसेवी व नेताओं ने भी चुनाव आयोग को संज्ञान लेने के लिए कहा है. कांग्रेस के बड़े नेता किशोर उपाध्याय खुद इस बात की पैरवी कर चुके हैं कि प्रदेश की भौगोलिक परिस्थिति को देखते हुए मतदान मार्च महीने के पहले हफ्ते में होना चाहिए.

ऐसी मांग इसलिए उठ रही है कि क्योंकि, मतदान के समय प्रदेश के ऊंचे क्षेत्रों में बर्फबारी अधिक रहती है और इस वजह ऊंचाई और बर्फीले इलाकों में पोलिंग पार्टियों को भी पहुंचाने में प्रशासन को भी काफी परेशानी होगी. वहीं, कड़ाके की ठंड में सबसे अधिक चुनौती निर्दलीय प्रत्याशियों को 14 दिन में अपना चुनाव चिन्ह मतदाताओं तक पहुंचाने की होगी. कोरोना महामारी के कारण चुनावी सभाओं और रोड शो पर बैन लगा है. ऐसे में हर दल और हर प्रत्याशी को मतदाता तक पहुंच बनाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ेगा, फिर भी 14 दिनों में हर गांव, हर मतदाता तक पंहुच पाना उनके लिए टेढ़ी खीर होगी.

तो हेट स्पीच बन सकता है चुनावी मुद्दा? उत्तराखंड में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में इस बार हेट स्पीच का मामला भी जोर पकड़ सकता है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बीते दिनों से कहा था कि अगर उनकी सरकार आई तो हेट स्पीच के मामले में दोषियों पर कार्रवाई करेंगे. अब अपनी गिरफ्तारी रुकवाने के लिए धर्म संसद में शामिल हुए स्वामी प्रबोधानंद गिरि हाईकोर्ट पहुंच गए हैं. बताया जा रहा है कि इस पूरे मामले में उनके खिलाफ भी नामजद मुकदमा दर्ज है और पुलिस उन्हें कभी भी गिरफ्तार कर सकती है. प्रबोधानंद गिरि की याचिका पर सरकार से हाईकोर्ट ने 25 जनवरी तक जवाब मांगा है. कोर्ट ने कहा है कि सरकार इस पूरे मामले पर अपना पक्ष साफ करे.

ये भी पढ़ें: Hate Speech Case: गिरफ्तारी रुकवाने हाईकोर्ट पहुंचे प्रबोधानंद गिरि, सरकार से मांगा 5 दिन में जवाब

पुलिस की ताबड़तोड़ कार्रवाई जारी: उधर, उत्तराखंड में चुनाव आचार संहिता लगने के 11 दिन बाद आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि राज्य में आपराधिक मामलों पर भारी संख्या में ताबड़तोड़ कार्रवाई की गई है. चुनाव आयोग के नियमानुसार, हरकत में आई उत्तराखंड पुलिस द्वारा राज्य भर में 9 जनवरी 2022 से 20 जनवरी 2022 तक अवैध शराब, ड्रग तस्करी, अवैध शस्त्र, इलीगल कैश हर तरह के अपराधियों पर शिकंजा कसने के साथ ही इनामी अपराधियों की धरपकड़ और गैंगस्टर गुंडा एक्ट जैसे तमाम मामलों में युद्ध स्तर पर कार्रवाई जारी है.

वांटेड और गुंडा एक्ट में कार्रवाईः उत्तराखंड में 9 जनवरी 2022 को चुनाव आचार संहिता लगने के बाद से अब तक वांटेड 627 अपराधियों में से 250 वांछित अपराधी गिरफ्तार कर जेल भेज दिए गए हैं. इतना ही नहीं, चुनाव में किसी तरह की आपराधिक गतिविधियों की आशंका के चलते गुंडा एक्ट के तहत राज्य में 304 अभियुक्तों का चालान कर कानूनी कार्रवाई की गई. जबकि, 38 पेशेवर अपराधियों को 2 से 4 महीने तक जिला बदर किया गया है. आपराधिक गतिविधियों की रोकथाम को देखते हुए आचार संहिता के बाद अभी तक 20 मुकदमे गैंगस्टर के तहत दर्ज किए गए हैं, इनमें 71 आरोपी नामजद हैं. जबकि, 15 गैंगस्टर गिरफ्तार कर जेल भेजे जा चुके हैं.

ये भी पढ़ें: खटीमा: दो किलो अफीम के साथ तीन तस्कर गिरफ्तार

पिछले 11 दिनों में राज्य भर में चुनावी कार्रवाई के तहत 12 लाख 155.84 लीटर अवैध शराब पकड़ी है. जिसकी बाजार में कुल कीमत 63 लाख 66 हजार 346 रुपये आंकी गई है. इन अवैध शराब तस्करी के मामले में अभी तक 387 मुकदमे दर्ज किए गए, जिसमें 401 अभियुक्तों को गिरफ्तार किया जा चुका है. इसके साथ ही 218 किलो से अधिक अवैध ड्रग्स के रूप में मादक पदार्थ पकड़ी गई है. जिनकी अनुमानित कीमत 1 करोड़ 53 लाख 38 हजार 210 रुपये है.

पिछले 11 दिनों में चुनाव कार्रवाई के तहत प्रदेश में 113 अवैध शस्त्रों की बरामदगी किए जाने के साथ ही तमाम जनपदों में चुनाव स्टेटिक टीम और फ्लाइंग स्क्वायड टीम द्वारा पिछले 11 दिनों में अलग-अलग चेक पोस्ट और नाकों पर चेकिंग के दौरान अभी तक 67 लाख 76 हजार 40 रुपए पकड़े जा चुके हैं.

देहरादून: उत्तराखंड में सियासत के तौर पर आज 21 जनवरी 2022 का दिन बेहद रोचक रहा. उत्तराखंड की राजनीति और उसको जानने वाले लोगों के लिए हरक सिंह रावत के लिए यह दिन मानो किसी राजनीति में पुनर्जन्म से कम नहीं था. पांच दिनों से कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस का मुंह देख रहे हरक सिंह रावत को आखिरकार आज कांग्रेस ने अपनी सदस्यता दे ही दी. दिल्ली कांग्रेस भवन में ये कार्यक्रम इतना चुपचाप हुआ कि इसके बारे में भी तब पता लगा जब कांग्रेस के कुछ नेताओं ने हरक सिंह रावत और उनकी बहू अनुकृति गुसाईं की फोटो शेयर की.

हरक सिंह रावत के आगे कांग्रेस ने क्या शर्त रखी ये तो नहीं मालूम, लेकिन इतना जरूर है कि बीजेपी से निष्कासित होने के 5 दिनों के बाद हुई इस ज्वाइनिंग में कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. सबसे बड़ा सवाल ये कि क्या कांग्रेस की टीम हरक सिंह रावत को उत्तराखंड में तवज्जो देगी या फिर उनका वजूद अब कम हो जाएगा?

हरक की कांग्रेस में वापसी: लगभग 25 सालों से उत्तराखंड की राजनीति में अपनी अलग पहचान बना चुके हरक सिंह रावत ने कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और बसपा सभी पार्टियों में अपना भाग्य आजमाया है. वो जिस भी पद पर रहे हमेशा पावरफुल बने रहे. उनके बारे में कहा जाता है कि वो उत्तराखंड के एकमात्र ऐसे नेता हैं जो उत्तराखंड बनने के बाद से आज तक सरकारी मेहमान या या कहें सरकारी बंगला, गाड़ी सब इस्तेमाल कर रहे हैं.

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उनका ये दबदबा रहा कि अगर वो कांग्रेस में रहे और बीजेपी सत्ता में रही तो उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनाया गया और जब-जब सत्ता में आए तो प्रमुख मंत्रालयों जैसे- पर्यावरण, वन, विद्युत और PWD विभाग के मंत्री बनाए गए. उन्होंने बीजेपी में रहते हुए कई बड़े मंत्रालयों का दायित्व संभालास लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी जब बीजेपी में उनका मन नहीं नहीं लगा तो एक बार फिर से उन्होंने कांग्रेस में जाने की सोची लेकिन यहां रोड़ा बने थे हरीश रावत, क्योंकि हरक सिंह रावत ही वो इंसान थे जिन्होंने विजय बहुगुणा के साथ मिलकर साल 2016 में हरीश रावत की सरकार को गिराने के लिए विधानसभा में 9 विधायकों को तोड़ा था. हरीश रावत इस घटना को आज तक नहीं भूले हैं और यही कारण है कि 5 दिनों की कड़ी जद्दोजहद के बाद कहीं जाकर हरक सिंह रावत को कांग्रेस में शामिल किया गया है.

बीजेपी को कई सीट पर पहुंचा सकते हैं नुकसान: इसमें कोई दो राय नहीं कि हरक सिंह रावत उत्तराखंड में अपनी एक अलग पहचान रखते हैं. उनके कांग्रेस में आने के बाद कई सीटों पर बीजेपी को नुकसान हो सकता है. हरक सिंह रावत का दायरा राजनीति में अच्छा खासा है, ऐसे में उनके साथ काम करने वाली और उन्हें चुनाव लड़ाने वाली पूरी टीम अब कांग्रेस के लिए ही काम करेगी. हरक सिंह रावत के साथ उनकी बहू अनुकृति गुसाईं ने भी कांग्रेस की सदस्यता ली है. खबरें यही सामने आ रही हैं कि अनुकृति को कांग्रेस पार्टी लैंसडाउन से टिकट देगी. इस खबर के बाद हालांकि, लैंसडाउन में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उनका विरोध करना शुरू कर दिया है.

जनता से पहले भगवान की शरण में सीएम: उत्तराखंड में टिकट मिलने के बाद नेता जनता के बीच तो जाएंगे ही लेकिन उससे पहले नेता जी भगवान की शरण में पहुंचने लगे हैं. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी आज अल्मोड़ा पहुंचे और खटीमा से प्रत्याशी बनने के बाद उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर चितई मंदिर गोलू देवता के दर्शन करने गए. आपको बता दें कि, गोलू देवता का मंदिर न्याय के लिए माना जाता है और यहां लोग न्याय की फरियाद लगाने के लिए माथा टेकते हैं.

मंदिर में पूजा अर्चना करने के बाद जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से यह पूछा गया कि जिन लोगों के टिकट काटे गए हैं और जो टिकट की उम्मीद लगाए बैठे थे वो लोग पार्टी से बगावत कर रहे हैं, इसका जवाब देते हुए पुष्कर सिंह धामी ने ऐसा कुछ भी होने से इनकार किया और कहा कि सभी लोग पार्टी के लिए काम करेंगे. सभी के साथ बैठकर बातचीत शुरू हो चुकी है. मतलब साफ है कि उत्तराखंड में बीजेपी के लिए आने वाले दिन आसान नहीं होंगे. बीजेपी को जहां प्रचार-प्रसार में तेजी लानी होगी, वहीं अपने रूठे हुए नेताओं को भी मनाने में उन्हें जद्दोजहद करनी पड़ सकती है, जबकि चुनाव और मतदान में समय बेहद कम रह गया है.

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उधर, बीजेपी ने जिन नेताओं के टिकट काटे हैं उन नेताओं का कांग्रेस में जाने का सिलसिला शुरू हो गया है. बताया जा रहा है कि नरेंद्र नगर से एक बार फिर से सुबोध उनियाल को टिकट दिए जाने के बाद बीजेपी के संपर्क में चल रहे ओम गोपाल रावत जल्द ही कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं. ओम गोपाल रावत पूर्व में भी चुनाव लड़ चुके हैं, तब उन्हें बेहद कम वोटों से हार का सामना करना पड़ा था.

इतना ही नहीं, बागेश्वर जिले से पूर्व विधायक शेर सिंह गढ़िया ने भी बीजेपी को आंखें दिखानी शुरू कर दी है. बताया जा रहा है कि उन्होंने भी कांग्रेस से संपर्क साधा है और वो भी जल्द ही कांग्रेस पार्टी से मैदान में ताल ठोक सकते हैं. उधर, ऐसा ही हाल हरिद्वार की झबरेड़ा विधानसभा सीट पर विधायक देशराज कर्णवाल का भी है. कर्णवाल ने भी पार्टी अध्यक्ष को पत्र लिखकर कहा है कि उनकी पत्नी को भी टिकट दिया जाए. उनकी मांग है कि उनकी पत्नी राजनीतिक हैसियत में कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन की पत्नी कुंवरानी देवयानी से बड़ी नेता हैं, जब देवयानी को टिकट दिया जा सकता है तो उनकी पत्नी भी टिकट की दावेदार हैं. आपको बता दें कि अभी जिन 11 सीटों पर पार्टी ने प्रत्याशी नहीं उतारे हैं उनमें से एक झबरेड़ा सीट भी है. खबरें तो यहां तक हैं कि कर्णवाल के तेवर देख उनको भी हरक सिंह रावत की तरह ट्रीटमेंट दिया जा सकता है.

हालांकि, बीजेपी के कुछ नेता ऐसे भी हैं जिन्होंने टिकट कटने के बाद भी समर्पण दिखाया है. इनमें पौड़ी से विधायक मुकेश कोली और द्वाराहाट से महेश नेगी का नाम शामिल है. मुकेश कोली का कहना है कि पार्टी ने इस बार उनका टिकट काटा नहीं है, बल्कि टिकट में परिवर्तन किया है, ये जरूरी था क्योंकि पार्टी ने भविष्य की परिस्थितियों को देखते हुए ये फैसला लिया है, जिसका वो तहे दिल से सम्मान करते हैं. उधर, यौन शोषण के आरोप झेल रहे महेश नेगी का कहना है कि विपक्ष के लोगों के साथ सत्ता के भी कुछ लोगों ने उनके खिलाफ षड्यंत्र किया, जिस वजह से उनका टिकट कटा है. पार्टी ने उन पर भरोसा नहीं दिखाया, जिसका उन्हें दुख है लेकिन वो एक सच्चे और ईमानदार कार्यकर्ता के रूप में काम करते रहेंगे.

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70 सीटों पर कांग्रेस बनाएगी कंट्रोल रूम: कांग्रेस ने अभी भले ही प्रत्याशी घोषित नहीं किए हैं, लेकिन डिजिटल माध्यम से प्रचार शुरू करने को लेकर प्रदेश की 70 विधानसभा सीटों पर कंट्रोल रूम बनाने जा रही है. इन कंट्रोल रूम में कांग्रेस के दिग्गज नेता डिजिटल माध्यम से वर्चुअल रैलियों को संबोधित करेंगे.

मतदान तारीख में बदलाव की मांग: इसी बीच खबर आई कि चुनाव आयोग द्वारा पंजाब विधानसभा चुनावों की तारीख में बदलाव करने के बाद अब उत्तराखंड में भी विधानसभा चुनाव की डेट बदलने की मांग उठने लगी है. इसके लिए केवल निर्दलीय ही नहीं बल्कि बड़े समाजसेवी व नेताओं ने भी चुनाव आयोग को संज्ञान लेने के लिए कहा है. कांग्रेस के बड़े नेता किशोर उपाध्याय खुद इस बात की पैरवी कर चुके हैं कि प्रदेश की भौगोलिक परिस्थिति को देखते हुए मतदान मार्च महीने के पहले हफ्ते में होना चाहिए.

ऐसी मांग इसलिए उठ रही है कि क्योंकि, मतदान के समय प्रदेश के ऊंचे क्षेत्रों में बर्फबारी अधिक रहती है और इस वजह ऊंचाई और बर्फीले इलाकों में पोलिंग पार्टियों को भी पहुंचाने में प्रशासन को भी काफी परेशानी होगी. वहीं, कड़ाके की ठंड में सबसे अधिक चुनौती निर्दलीय प्रत्याशियों को 14 दिन में अपना चुनाव चिन्ह मतदाताओं तक पहुंचाने की होगी. कोरोना महामारी के कारण चुनावी सभाओं और रोड शो पर बैन लगा है. ऐसे में हर दल और हर प्रत्याशी को मतदाता तक पहुंच बनाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ेगा, फिर भी 14 दिनों में हर गांव, हर मतदाता तक पंहुच पाना उनके लिए टेढ़ी खीर होगी.

तो हेट स्पीच बन सकता है चुनावी मुद्दा? उत्तराखंड में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में इस बार हेट स्पीच का मामला भी जोर पकड़ सकता है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बीते दिनों से कहा था कि अगर उनकी सरकार आई तो हेट स्पीच के मामले में दोषियों पर कार्रवाई करेंगे. अब अपनी गिरफ्तारी रुकवाने के लिए धर्म संसद में शामिल हुए स्वामी प्रबोधानंद गिरि हाईकोर्ट पहुंच गए हैं. बताया जा रहा है कि इस पूरे मामले में उनके खिलाफ भी नामजद मुकदमा दर्ज है और पुलिस उन्हें कभी भी गिरफ्तार कर सकती है. प्रबोधानंद गिरि की याचिका पर सरकार से हाईकोर्ट ने 25 जनवरी तक जवाब मांगा है. कोर्ट ने कहा है कि सरकार इस पूरे मामले पर अपना पक्ष साफ करे.

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पुलिस की ताबड़तोड़ कार्रवाई जारी: उधर, उत्तराखंड में चुनाव आचार संहिता लगने के 11 दिन बाद आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि राज्य में आपराधिक मामलों पर भारी संख्या में ताबड़तोड़ कार्रवाई की गई है. चुनाव आयोग के नियमानुसार, हरकत में आई उत्तराखंड पुलिस द्वारा राज्य भर में 9 जनवरी 2022 से 20 जनवरी 2022 तक अवैध शराब, ड्रग तस्करी, अवैध शस्त्र, इलीगल कैश हर तरह के अपराधियों पर शिकंजा कसने के साथ ही इनामी अपराधियों की धरपकड़ और गैंगस्टर गुंडा एक्ट जैसे तमाम मामलों में युद्ध स्तर पर कार्रवाई जारी है.

वांटेड और गुंडा एक्ट में कार्रवाईः उत्तराखंड में 9 जनवरी 2022 को चुनाव आचार संहिता लगने के बाद से अब तक वांटेड 627 अपराधियों में से 250 वांछित अपराधी गिरफ्तार कर जेल भेज दिए गए हैं. इतना ही नहीं, चुनाव में किसी तरह की आपराधिक गतिविधियों की आशंका के चलते गुंडा एक्ट के तहत राज्य में 304 अभियुक्तों का चालान कर कानूनी कार्रवाई की गई. जबकि, 38 पेशेवर अपराधियों को 2 से 4 महीने तक जिला बदर किया गया है. आपराधिक गतिविधियों की रोकथाम को देखते हुए आचार संहिता के बाद अभी तक 20 मुकदमे गैंगस्टर के तहत दर्ज किए गए हैं, इनमें 71 आरोपी नामजद हैं. जबकि, 15 गैंगस्टर गिरफ्तार कर जेल भेजे जा चुके हैं.

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पिछले 11 दिनों में राज्य भर में चुनावी कार्रवाई के तहत 12 लाख 155.84 लीटर अवैध शराब पकड़ी है. जिसकी बाजार में कुल कीमत 63 लाख 66 हजार 346 रुपये आंकी गई है. इन अवैध शराब तस्करी के मामले में अभी तक 387 मुकदमे दर्ज किए गए, जिसमें 401 अभियुक्तों को गिरफ्तार किया जा चुका है. इसके साथ ही 218 किलो से अधिक अवैध ड्रग्स के रूप में मादक पदार्थ पकड़ी गई है. जिनकी अनुमानित कीमत 1 करोड़ 53 लाख 38 हजार 210 रुपये है.

पिछले 11 दिनों में चुनाव कार्रवाई के तहत प्रदेश में 113 अवैध शस्त्रों की बरामदगी किए जाने के साथ ही तमाम जनपदों में चुनाव स्टेटिक टीम और फ्लाइंग स्क्वायड टीम द्वारा पिछले 11 दिनों में अलग-अलग चेक पोस्ट और नाकों पर चेकिंग के दौरान अभी तक 67 लाख 76 हजार 40 रुपए पकड़े जा चुके हैं.

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