देहरादून: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के विभाग में बिना होमवर्क तबादले किए जाएं तो सवाल उठना लाजिमी है. मामला ऊर्जा विभाग का है, जहां अक्सर अफसरों के तबादले होने के बाद संशोधित कर दिए जाते हैं. ताजा उदाहरण अधीक्षण अभियंता के तबादलों से जुड़ा है. जहां तबादला आदेश जारी होने के एक दिन बाद ही आदेश को निरस्त कर दिया गया.
उत्तराखंड में तबादला प्रक्रिया कई बार सवालों के घेरे में रही है. प्रभावशाली अधिकारियों को मलाईदार पोस्टिंग देने पर भी राज्य अक्सर चर्चाओं में बना रहता है. बहरहाल इस बार मुद्दा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के ऊर्जा विभाग का है, जहां तबादलों में अक्सर संशोधन होना कई सवाल खड़े कर रहा है. ताजा मामला उत्तराखंड पावर कारपोरेशन लिमिटेड में अधीक्षण अभियंताओं के तबादलों से जुड़ा है.
दरअसल 27 मार्च को चार अधीक्षण अभियंताओं के तबादले किए जाते हैं, जिनमें पहला नाम नरेंद्र सिंह बिष्ट जो इस वक्त ऊर्जा भवन में तैनात हैं. दूसरा नाम प्रदीप कुमार का है, जो हरिद्वार में तैनाती लिए हुए हैं. इसके अलावा कर्णप्रयाग में तैनात सुरेंद्र सिंह कंवर और देहरादून में ऊर्जा भवन में तैनात रघुराज सिंह का भी तबादला किया गया था.
खबर है कि फील्ड में तैनात अधीक्षण अभियंताओं की लगातार काफी शिकायतें मिल रही थी. जाहिर है कि इन तबादलों के पीछे मिल रही शिकायतें भी वजह हो सकती है, लेकिन अभी 24 घंटे ही बीते थे कि अगले ही दिन 28 मार्च को एक नया आदेश जारी किया जाता है और इसमें प्रदीप कुमार को हरिद्वार से ऊर्जा भवन में तबादला करने का आदेश निरस्त कर दिया जाता है.
बताया जा रहा है कि अधीक्षण अभियंता प्रदीप कुमार के तबादले से जुड़ा ये आदेश निरस्त करने के पीछे कुछ खास वजह रही है. वजह क्या थी यह तो सचिव ऊर्जा मीनाक्षी सुंदरम ही बता सकते हैं. लेकिन इतना तय है कि मीनाक्षी सुंदरम के ही आदेश से पूर्व में हुए इस तबादले को निरस्त करना कई सवाल खड़े कर रहा है.
दरअसल अधीक्षण अभियंता हरिद्वार प्राइम पोस्ट है. यहां से प्रदीप कुमार को ऊर्जा भवन में लाने से जुड़ा आदेश होने के साथ ही, इसमें बदलाव होने की संभावना जताई जाने लगी थी. सबसे बड़ी बात यह है कि यूपीसीएल के प्रबंध निदेशक के आदेश से यह तबादले नहीं हो रहे हैं, बल्कि खुद सचिव ऊर्जा के आदेश से यह तबादले किए गए. लिहाजा या तो तबादला करने से पहले होमवर्क नहीं किया गया या फिर अफसर इतने ताकतवर हो गए हैं कि तबादलों के बाद इन्हें निरस्त करवा दिया जाता है.
ऐसे संशोधित आदेश इसलिए भी गंभीर हैं. क्योंकि इन निर्णयों में सीधे सचिव ऊर्जा संलिप्त रहते हैं और बकायदा आदेश भी उन्हीं के हस्ताक्षर से किए जाते हैं. वैसे ऊर्जा विभाग में तबादलों का इस तरह संशोधित होना कोई नई बात नहीं है, इससे पहले भी ऐसे कई आदेश हैं, जो सवालों में रहे हैं.