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अनुदान रोका तो सड़कों पर होगा विश्वविद्यालय शिक्षक संगठन, सीएम-राज्यपाल से मिलने का मांगा समय - Central University affiliated college latest news in Uttarakhand

विश्वविद्यालय शिक्षक संगठन के महामंत्री डीके त्यागी का कहना है कि सरकार सहायता प्राप्त महाविद्यालयों के प्रबंधन को दबाव में रखना चाहती है. ऐसे में उन्होंने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से लेकर राज्यपाल बेबी रानी मौर्य तक से मिलने का समय मांगा है ताकि वे अपनी बात उनके सामने रख सके.

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अनुदान रोका तो सड़कों पर होगा विश्वविद्यालय शिक्षक संगठन
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Published : Oct 26, 2020, 3:15 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में केंद्रीय विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालय के शिक्षक और शिक्षणोत्तर कर्मचारी आंदोलन की राह पर हैं. दरअसल, राज्य सरकार अनुदान वाले इन महाविद्यालयों की करोड़ों की सहायता को लेकर विचार कर रही है. शासन स्तर पर बकायदा इसके लिए एक समिति भी गठित की जा चुकी है, जो महाविद्यालयों की प्रशासनिक वित्तीय और नियुक्ति से संबंधित सभी मामलों की रिपोर्ट तैयार करेगी. साथ ही ये समिति इन महाविद्यालयों को दिये जाने वाले अनुदान को लेकर भी अपनी रिपोर्ट तैयार करेगी.

राज्य में हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय से संबंध 18 कॉलेजों के अनुदान को लेकर शासन स्तर पर समिति का गठन किया गया है. जिस पर विश्व विद्यालय में तैनात शिक्षक और शिक्षणोत्तर कर्मचारियों ने विरोध करना शुरू कर दिया है. बता दें कि एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय साल 2009 में केंद्रीय विश्वविद्यालय बन गया था. जबकि इससे पहले सहायता प्राप्त कॉलेज यूपी स्टेट यूनिवर्सिटी एक्ट 1973 के तहत चलाए जा रहे थे. इसी एक्ट के तहत सहायता प्राप्त इन महाविद्यालयों को राज्य सरकार की तरफ से एक बड़ा बजट कर्मचारियों की तनख्वाह के लिए दिया जा रहा था. मगर अब अंब्रेला एक्ट आने के बाद राज्य सरकार इन्हें दिए जाने वाले अनुदान को लेकर पुनर्विचार करने में जुट गई है. बता दें कि राज्य सरकार ने अंब्रेला एक्ट के तहत महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में दखल बढ़ा दिया है.

पढ़ें- सीएम के नैनीताल दौरे का कांग्रेसियों ने किया विरोध, पुलिस ने लिया हिरासत में

सहायता प्राप्त महाविद्यालयों को लेकर विवाद तब बढ़ा जब राज्य सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों को महाविद्यालय यह कहकर खारिज करने लगे कि वह केंद्रीय विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं. उन्हें उसी नियम के तहत चलना होगा. महाविद्यालयों के इस रवैया के बाद राज्य सरकार ने इसे लेकर एक कमेटी का गठन करवाया, ताकि इन महाविद्यालयों की प्रशासनिक नियुक्तियों, वित्तीय स्थितियों का फिर से आकलन किया जा सके. बताया जा रहा है कि केंद्रीय विश्वविद्यालय से संबद्ध होने के बाद अब राज्य को इन महाविद्यालयों को बजट देने का कोई प्रावधान नहीं है.

पढ़ें- बाजपुर में अवैध खनन को लेकर बड़ी कार्रवाई, बन्नाखेड़ा चौकी इंचार्ज सहित सभी पुलिसकर्मी निलंबित

विश्वविद्यालय शिक्षक संगठन के महामंत्री डीके त्यागी बताते हैं कि प्रदेश में राज्य स्थापना के दौरान पुनर्गठन आयोग ने एक समझौता किया था. जिसमें यह महाविद्यालय जिस स्थिति में संचालित हो रहे हैं उसी स्थिति में संचालित होंगे, इस पर फाइनल निर्णय हुआ था. इसीलिए उत्तर प्रदेश के ही एक्ट को अधिकृत करते हुए उत्तराखंड उत्तरांचल यूनिवर्सिटी एक्ट 1973 को महाविद्यालयों पर लागू किया था. अंब्रेला एक्ट लाने के बाद उत्तर प्रदेश के यूपी एक्ट के चैप्टर 11 को समाप्त कर दिया गया है. जिसमें शिक्षकों और शिक्षणोत्तर कर्मचारियों के वेतन के लिए राज्य सरकार द्वारा अनुदान दिए जाने की बात रखी गई थी.

पढ़ें- मंत्री हरक सिंह रावत की 'हनक' बरकरार, CM ने नाराजगी का ठीकरा मीडिया पर फोड़ा

डीके त्यागी बताते हैं कि सहायता प्राप्त महाविद्यालयों में शिक्षक और शिक्षणोत्तर कर्मचारी अपना काम कर रहे हैं. उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि उनका महाविद्यालय किस विश्वविद्यालय से संबद्ध है. इन विद्यालयों में 80,000 से लेकर 100000 तक छात्रों को पढ़ाया जा रहा है. इस सब के बावजूद यदि अनुदान रोककर शिक्षकों के वेतन पर कुठाराघात किया जाता है तो शिक्षक सड़कों पर उतरने को मजबूर होगा. उनके मुताबिक सरकार सहायता प्राप्त महाविद्यालयों के प्रबंधन को दबाव में रखना चाहती है. ऐसे में उन्होंने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से लेकर राज्यपाल बेबी रानी मौर्य तक से मिलने का समय मांगा है. ताकि वे अपनी बात उनके सामने रख सके.

देहरादून: उत्तराखंड में केंद्रीय विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालय के शिक्षक और शिक्षणोत्तर कर्मचारी आंदोलन की राह पर हैं. दरअसल, राज्य सरकार अनुदान वाले इन महाविद्यालयों की करोड़ों की सहायता को लेकर विचार कर रही है. शासन स्तर पर बकायदा इसके लिए एक समिति भी गठित की जा चुकी है, जो महाविद्यालयों की प्रशासनिक वित्तीय और नियुक्ति से संबंधित सभी मामलों की रिपोर्ट तैयार करेगी. साथ ही ये समिति इन महाविद्यालयों को दिये जाने वाले अनुदान को लेकर भी अपनी रिपोर्ट तैयार करेगी.

राज्य में हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय से संबंध 18 कॉलेजों के अनुदान को लेकर शासन स्तर पर समिति का गठन किया गया है. जिस पर विश्व विद्यालय में तैनात शिक्षक और शिक्षणोत्तर कर्मचारियों ने विरोध करना शुरू कर दिया है. बता दें कि एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय साल 2009 में केंद्रीय विश्वविद्यालय बन गया था. जबकि इससे पहले सहायता प्राप्त कॉलेज यूपी स्टेट यूनिवर्सिटी एक्ट 1973 के तहत चलाए जा रहे थे. इसी एक्ट के तहत सहायता प्राप्त इन महाविद्यालयों को राज्य सरकार की तरफ से एक बड़ा बजट कर्मचारियों की तनख्वाह के लिए दिया जा रहा था. मगर अब अंब्रेला एक्ट आने के बाद राज्य सरकार इन्हें दिए जाने वाले अनुदान को लेकर पुनर्विचार करने में जुट गई है. बता दें कि राज्य सरकार ने अंब्रेला एक्ट के तहत महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में दखल बढ़ा दिया है.

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सहायता प्राप्त महाविद्यालयों को लेकर विवाद तब बढ़ा जब राज्य सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों को महाविद्यालय यह कहकर खारिज करने लगे कि वह केंद्रीय विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं. उन्हें उसी नियम के तहत चलना होगा. महाविद्यालयों के इस रवैया के बाद राज्य सरकार ने इसे लेकर एक कमेटी का गठन करवाया, ताकि इन महाविद्यालयों की प्रशासनिक नियुक्तियों, वित्तीय स्थितियों का फिर से आकलन किया जा सके. बताया जा रहा है कि केंद्रीय विश्वविद्यालय से संबद्ध होने के बाद अब राज्य को इन महाविद्यालयों को बजट देने का कोई प्रावधान नहीं है.

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विश्वविद्यालय शिक्षक संगठन के महामंत्री डीके त्यागी बताते हैं कि प्रदेश में राज्य स्थापना के दौरान पुनर्गठन आयोग ने एक समझौता किया था. जिसमें यह महाविद्यालय जिस स्थिति में संचालित हो रहे हैं उसी स्थिति में संचालित होंगे, इस पर फाइनल निर्णय हुआ था. इसीलिए उत्तर प्रदेश के ही एक्ट को अधिकृत करते हुए उत्तराखंड उत्तरांचल यूनिवर्सिटी एक्ट 1973 को महाविद्यालयों पर लागू किया था. अंब्रेला एक्ट लाने के बाद उत्तर प्रदेश के यूपी एक्ट के चैप्टर 11 को समाप्त कर दिया गया है. जिसमें शिक्षकों और शिक्षणोत्तर कर्मचारियों के वेतन के लिए राज्य सरकार द्वारा अनुदान दिए जाने की बात रखी गई थी.

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डीके त्यागी बताते हैं कि सहायता प्राप्त महाविद्यालयों में शिक्षक और शिक्षणोत्तर कर्मचारी अपना काम कर रहे हैं. उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि उनका महाविद्यालय किस विश्वविद्यालय से संबद्ध है. इन विद्यालयों में 80,000 से लेकर 100000 तक छात्रों को पढ़ाया जा रहा है. इस सब के बावजूद यदि अनुदान रोककर शिक्षकों के वेतन पर कुठाराघात किया जाता है तो शिक्षक सड़कों पर उतरने को मजबूर होगा. उनके मुताबिक सरकार सहायता प्राप्त महाविद्यालयों के प्रबंधन को दबाव में रखना चाहती है. ऐसे में उन्होंने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से लेकर राज्यपाल बेबी रानी मौर्य तक से मिलने का समय मांगा है. ताकि वे अपनी बात उनके सामने रख सके.

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