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रेडियो कॉलर हटाकर भाग निकला बाघ, देखते रह गए वन महकमे के कर्मचारी

बाघों को रीलोकेट करने के दौरान उन पर कॉलर आईडी के जरिए निगरानी की जाती है. क्योंकि यह बाघ दूसरे जंगलों से लाए जाते हैं, ऐसे में इनकी आबोहवा और क्षेत्र बदलने के कारण इनके अग्रेसिव होने और जंगल से बाहर निकलने का खतरा भी रहता है.

Tiger escapes by removing radio collar while relocation
बाघ
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Published : Jan 12, 2021, 6:58 AM IST

देहरादून: प्रदेश में बाघों को लेकर एक बार फिर वन महकमा कठघरे में आ गया है. जिसने वन महकमे के अधिकारियों और कर्मचारियों की नींद उड़ा दी है. उत्तराखंड वन विभाग में फिलहाल चल रहे सबसे जरूरी प्रोजेक्ट पर सवाल खड़े होने लगे हैं. मामला कॉर्बेट नेशनल पार्क से राजाजी में बाघों के रीलोकेट होने का है. दरअसल, बीते दिन जिस बाघ को राजाजी नेशनल पार्क में रीलोकेट कर छोड़ने के दावे किए गए, लेकिन हकीकत में उसे काफी देरी से छोड़ा जा सका. यही नहीं बाघ अपना कॉलर आईडी को हटाकर भागने में कामयाब रहा. जिससे वन महकमे की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं.

उत्तराखंड वन विभाग में राजाजी नेशनल पार्क से बाघिन के लापता होने का मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ है कि करोड़ों रुपए के बाघों के रीलोकेट होने से जुड़े मामले में चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन, निदेशक राजाजी समेत वह तमाम अधिकारी सवालों के घेरे में हैं. जिन की भूमिका बाघों के रीलोकेट से जुड़ी है. जानकारी के अनुसार जिस बाघ को बीते दिन कॉर्बेट से राजाजी लाया गया था वह अपना कॉलर आईडी हटाकर बाड़े से भाग निकला. आपको बता दें कि 2 दिन पहले ही राजाजी नेशनल पार्क से इस बाघ को छोड़े जाने का दावा किया गया था, लेकिन हकीकत में यह बाघ पार्क में ही बनी एक झोपड़ी में छिपा हुआ था. जहां से इसे जंगल की तरफ रवाना करने की कोशिश की जा रही थी, लेकिन बाघ यहां से निकल गया.

पढ़ें-डीएनए टेस्ट के लिए कोर्ट में पेश नहीं हुए महेश नेगी, स्वास्थ्य कारणों का दिया हवाला

खास बात यह है कि इस बाघ ने अपना कॉलर आईडी हटाकर जंगल की तरफ भाग गया. गौर है कि बाघों को रीलोकेट करने के दौरान उन पर कॉलर आईडी के जरिए निगरानी की जाती है. क्योंकि यह बाघ दूसरे जंगलों से लाए जाते हैं, ऐसे में इनकी आबोहवा और क्षेत्र बदलने के कारण इनके अग्रेसिव होने और जंगल से बाहर निकलने का खतरा भी रहता है. इसी को देखने के लिए कॉलर आईडी लगाई जाती है, ताकि इन पर निगरानी रखी जा सकें. लेकिन जिस तरह से इस बार ने कॉलर आईडी निकालकर यहां से जंगल की तरफ रवाना हुआ है उसके बाद कहीं ना कहीं उस टीम पर सवाल खड़े होने लगे हैं, जिसमें रीलोकेट का पूरा जिम्मा लिया है.

पढ़ें-कुंभ, कोरोना और 'हिफाजत', उत्तराखंड पुलिस के लिए बड़ी चुनौती

सवाल यह भी खड़े हो रहे हैं कि चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन और डायरेक्टर राजाजी नेशनल पार्क की तरफ से क्या इस पूरे प्रोजेक्ट को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है. साथ ही इस टीम के अनुभव पर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं. हालांकि इस पूरे प्रोग्राम के तहत एनटीसीए के अधिकारी इस पर निगरानी रखे हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद भी जिस तरह से कॉलर आईडी को बाघ ने हटाया है. उसके बाद वन विभाग के अधिकारियों पर सवाल खड़ा होना लाजिमी हैं.

देहरादून: प्रदेश में बाघों को लेकर एक बार फिर वन महकमा कठघरे में आ गया है. जिसने वन महकमे के अधिकारियों और कर्मचारियों की नींद उड़ा दी है. उत्तराखंड वन विभाग में फिलहाल चल रहे सबसे जरूरी प्रोजेक्ट पर सवाल खड़े होने लगे हैं. मामला कॉर्बेट नेशनल पार्क से राजाजी में बाघों के रीलोकेट होने का है. दरअसल, बीते दिन जिस बाघ को राजाजी नेशनल पार्क में रीलोकेट कर छोड़ने के दावे किए गए, लेकिन हकीकत में उसे काफी देरी से छोड़ा जा सका. यही नहीं बाघ अपना कॉलर आईडी को हटाकर भागने में कामयाब रहा. जिससे वन महकमे की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं.

उत्तराखंड वन विभाग में राजाजी नेशनल पार्क से बाघिन के लापता होने का मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ है कि करोड़ों रुपए के बाघों के रीलोकेट होने से जुड़े मामले में चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन, निदेशक राजाजी समेत वह तमाम अधिकारी सवालों के घेरे में हैं. जिन की भूमिका बाघों के रीलोकेट से जुड़ी है. जानकारी के अनुसार जिस बाघ को बीते दिन कॉर्बेट से राजाजी लाया गया था वह अपना कॉलर आईडी हटाकर बाड़े से भाग निकला. आपको बता दें कि 2 दिन पहले ही राजाजी नेशनल पार्क से इस बाघ को छोड़े जाने का दावा किया गया था, लेकिन हकीकत में यह बाघ पार्क में ही बनी एक झोपड़ी में छिपा हुआ था. जहां से इसे जंगल की तरफ रवाना करने की कोशिश की जा रही थी, लेकिन बाघ यहां से निकल गया.

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खास बात यह है कि इस बाघ ने अपना कॉलर आईडी हटाकर जंगल की तरफ भाग गया. गौर है कि बाघों को रीलोकेट करने के दौरान उन पर कॉलर आईडी के जरिए निगरानी की जाती है. क्योंकि यह बाघ दूसरे जंगलों से लाए जाते हैं, ऐसे में इनकी आबोहवा और क्षेत्र बदलने के कारण इनके अग्रेसिव होने और जंगल से बाहर निकलने का खतरा भी रहता है. इसी को देखने के लिए कॉलर आईडी लगाई जाती है, ताकि इन पर निगरानी रखी जा सकें. लेकिन जिस तरह से इस बार ने कॉलर आईडी निकालकर यहां से जंगल की तरफ रवाना हुआ है उसके बाद कहीं ना कहीं उस टीम पर सवाल खड़े होने लगे हैं, जिसमें रीलोकेट का पूरा जिम्मा लिया है.

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सवाल यह भी खड़े हो रहे हैं कि चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन और डायरेक्टर राजाजी नेशनल पार्क की तरफ से क्या इस पूरे प्रोजेक्ट को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है. साथ ही इस टीम के अनुभव पर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं. हालांकि इस पूरे प्रोग्राम के तहत एनटीसीए के अधिकारी इस पर निगरानी रखे हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद भी जिस तरह से कॉलर आईडी को बाघ ने हटाया है. उसके बाद वन विभाग के अधिकारियों पर सवाल खड़ा होना लाजिमी हैं.

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