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30 माउज़रः जिससे खौफ खाती थी ब्रिटिश हुकूमत, चंद्रशेखर आजाद को थी प्यारी, क्या आप जानते हैं इसकी खासियत

साल 1920 में जर्मन कंपनी द्वारा बनाई गयी 30 माउज़र (पिस्टल) को चंद्रशेखर आजाद अपने साथ अपनी जीवन संगिनी की तरह रखते थे. अंग्रेजी हुकूमत भी आजाद की इस पिस्टल से खौफ खाती थी.

अंतिम समय तक चंद्रशेखर आजाद के साथ थी 30 माउजर पिस्टल.
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Published : Mar 21, 2019, 1:16 PM IST

Updated : Mar 21, 2019, 2:50 PM IST

देहरादून: देश की आजादी के लिए ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लेने वाले क्रांतिकारी व स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद के पास एक ऐसा नायब हथियार था, जिसके बारे में देश और दुनिया में बहुत कम ही लोग जानते हैं. लेकिन, आज हम आपको आजाद की उस पिस्टल के बारे में बताते हैं जिसने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था.

अंतिम समय तक चंद्रशेखर आजाद के साथ थी 30 माउजर पिस्टल.

पढ़ें-अपने वाहनों में पेट्रोल नहीं भरवाया तो होगी फजीहत, होली में 3 बजे तक बंद रहेंगे पेट्रोल पंप

साल 1920 में जर्मन कंपनी द्वारा बनाई गयी 30 माउज़र (पिस्टल) को चंद्रशेखर आजाद अपने साथ अपनी जीवन संगिनी की तरह रखते थे. अंग्रेजी हुकूमत भी आजाद की इस पिस्टल से खौफ खाती थी.

क्या थी पिस्टल की खासियत
जर्मन में बनी ये पिस्टल आज भी भारत में गिने-चुने लोगों के पास है. इसी में से एक है देहरादून के श्याम सुंदर. जिनके पास आज भी ये जर्मन की 30 माउज़र (पिस्टल) मौजूद है. श्याम सुंदर के मुताबिक, चंद्रशेखर आजाद इस पिस्टल का प्रयोग राइफल की तरहकिया करते थे. इस पिस्टल की खासियत ये है कि इसके पीछे एक लकड़ी का बट लगा होता था, जिसे खोल दिया जाए तो ये राइफल बन जाती थी. चंद्रशेखर आजाद अग्रेजों से लड़ते हुए अक्सर इस पिस्टल का प्रयोग राइफल के तौर पर ही किया करते थे.

पढ़ें-'मैं भी चौकीदार' पर हरदा ने कसा तंज, कहा- जब माल्या, मोदी देश को लूट रहे थे तब चौकीदार पड़ोस में घूमने गये थे

एक हजार गज साधा जा सकता था निशाना
श्याम सुंदर बताते है कि आमतौर पर किसी भी पिस्टल की मारक क्षमता 15 से 25 गज तक हो सकती है, लेकिन जर्मनी में बनी 30 माउज़र (पिस्टल) की मारक क्षमता एक हज़ार गज थी. इतना ही नहीं इस पिस्टल से एक के बाद एक 10 राउंड फायर झोंके जा सकते थे. यही कारण था कि चंद्रशेखर आजाद इस पिस्टल के मुरीद थे.

पढ़ें-बर्फबारी के बाद मदमहेश्वर की तस्वीर आई सामने, धाम को जोड़ने वाला पैदल मार्ग क्षतिग्रस्त

इसी पिस्टल से पूरी की थी अपनी प्रतिज्ञा
जानकारों के मुताबिक 27 फरवरी 1931 को अग्रेजों ने जब चंद्रशेखर आजाद को इलाहाबाद के ऐलीफेंट पार्क में घेरे लिया था, तब उन्होंने इसी पिस्टल से अंग्रेजों का मुकाबला किया था और घंटों तक सिपाहियों की नाक में दम कर रखा था. हालांकि, इस दौरान उनकी गोलियां खत्म हो गई थी. इसके बाद उन्होंने अंतिम प्रतिज्ञा इसी पिस्टल से पूरी की थी.

चंद्रशेखर आजाद ने कहा था कि "मैं आजाद हूं और आजाद ही रहूंगा, कभी अंग्रेजों के शिकंजे में नहीं आऊंगा", लेकिन जब पार्क में उनकी गोलियों खत्म हो गई और अंग्रेजों ने उन्हें घेरे लिया, तब चंद्रशेखर आजाद ने इसी पिस्टल की आखिरी गोली खुद को मार ली और हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो गए.

चंद्रशेखर आजाद मार्का से जानी जाती है ये पिस्टल
देहरादून के हथियार विक्रेता श्याम सुंदर के मुताबिक पूरी दुनिया में ये पिस्टल चंद्रशेखर आजाद के नाम से जानी जाती है जिसे चंद्रशेखर आजाद हमेशा अपने पास रखते थे. आज भी देश और दुनिया के चुनिंदा लोगों के पास ये पिस्टल है.

देहरादून: देश की आजादी के लिए ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लेने वाले क्रांतिकारी व स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद के पास एक ऐसा नायब हथियार था, जिसके बारे में देश और दुनिया में बहुत कम ही लोग जानते हैं. लेकिन, आज हम आपको आजाद की उस पिस्टल के बारे में बताते हैं जिसने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था.

अंतिम समय तक चंद्रशेखर आजाद के साथ थी 30 माउजर पिस्टल.

पढ़ें-अपने वाहनों में पेट्रोल नहीं भरवाया तो होगी फजीहत, होली में 3 बजे तक बंद रहेंगे पेट्रोल पंप

साल 1920 में जर्मन कंपनी द्वारा बनाई गयी 30 माउज़र (पिस्टल) को चंद्रशेखर आजाद अपने साथ अपनी जीवन संगिनी की तरह रखते थे. अंग्रेजी हुकूमत भी आजाद की इस पिस्टल से खौफ खाती थी.

क्या थी पिस्टल की खासियत
जर्मन में बनी ये पिस्टल आज भी भारत में गिने-चुने लोगों के पास है. इसी में से एक है देहरादून के श्याम सुंदर. जिनके पास आज भी ये जर्मन की 30 माउज़र (पिस्टल) मौजूद है. श्याम सुंदर के मुताबिक, चंद्रशेखर आजाद इस पिस्टल का प्रयोग राइफल की तरहकिया करते थे. इस पिस्टल की खासियत ये है कि इसके पीछे एक लकड़ी का बट लगा होता था, जिसे खोल दिया जाए तो ये राइफल बन जाती थी. चंद्रशेखर आजाद अग्रेजों से लड़ते हुए अक्सर इस पिस्टल का प्रयोग राइफल के तौर पर ही किया करते थे.

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एक हजार गज साधा जा सकता था निशाना
श्याम सुंदर बताते है कि आमतौर पर किसी भी पिस्टल की मारक क्षमता 15 से 25 गज तक हो सकती है, लेकिन जर्मनी में बनी 30 माउज़र (पिस्टल) की मारक क्षमता एक हज़ार गज थी. इतना ही नहीं इस पिस्टल से एक के बाद एक 10 राउंड फायर झोंके जा सकते थे. यही कारण था कि चंद्रशेखर आजाद इस पिस्टल के मुरीद थे.

पढ़ें-बर्फबारी के बाद मदमहेश्वर की तस्वीर आई सामने, धाम को जोड़ने वाला पैदल मार्ग क्षतिग्रस्त

इसी पिस्टल से पूरी की थी अपनी प्रतिज्ञा
जानकारों के मुताबिक 27 फरवरी 1931 को अग्रेजों ने जब चंद्रशेखर आजाद को इलाहाबाद के ऐलीफेंट पार्क में घेरे लिया था, तब उन्होंने इसी पिस्टल से अंग्रेजों का मुकाबला किया था और घंटों तक सिपाहियों की नाक में दम कर रखा था. हालांकि, इस दौरान उनकी गोलियां खत्म हो गई थी. इसके बाद उन्होंने अंतिम प्रतिज्ञा इसी पिस्टल से पूरी की थी.

चंद्रशेखर आजाद ने कहा था कि "मैं आजाद हूं और आजाद ही रहूंगा, कभी अंग्रेजों के शिकंजे में नहीं आऊंगा", लेकिन जब पार्क में उनकी गोलियों खत्म हो गई और अंग्रेजों ने उन्हें घेरे लिया, तब चंद्रशेखर आजाद ने इसी पिस्टल की आखिरी गोली खुद को मार ली और हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो गए.

चंद्रशेखर आजाद मार्का से जानी जाती है ये पिस्टल
देहरादून के हथियार विक्रेता श्याम सुंदर के मुताबिक पूरी दुनिया में ये पिस्टल चंद्रशेखर आजाद के नाम से जानी जाती है जिसे चंद्रशेखर आजाद हमेशा अपने पास रखते थे. आज भी देश और दुनिया के चुनिंदा लोगों के पास ये पिस्टल है.

Intro:pls नोट डेस्क- इस एक्सक्लूसिव स्टोरी के लिए PTC देहरादून- देश की आजादी में ब्रिटिश हुकूमत के साथ कई मौकों पर मुठभेड़ के दौरान क्रांतिकारी व स्वतंत्रता सेनानी शहीद चंद्रशेखर आजाद के पास ऐसा नायब हथियार था जिसके बारे में देश -दुनियाभर में कम ही लोग जानते हैं। वर्ष 1920 में जर्मन में निर्मित हुए ऐसे 30 माउज़र (पिस्टल) को चंद्रशेखर आजाद अपने साथ अपनी जीवन संगनी की तरह रखते थे। इसी नायब पिस्टल से जीवनभर निडर होकर अंग्रेजी हुकूमत से अंतिम समय तक मुकाबला करते हुए चंद्रशेखर आजाद ने अंततः अपने जीवन की प्रतिज्ञा को भी जीवन संगनी पिस्टल से पूरा कर... देश के नाम शहादत दी।


Body:पिस्टल को राइफ़ल बना कई मौकों पर चंद्रशेखर आजाद की अंग्रेजों से मुकाबला हथियारों के विषय में विश्व स्तर पर जानकारी रखने वाले देहरादून के श्याम सुंदर के मुताबिक चंद्रशेखर आजाद के पास रहने वाली दुर्लभ 30 माउजर पिस्टल का निर्माण वर्ष 1920 में जर्मन की एक कंपनी ने माउजर के रूप में तैयार किया। यह माउजर किसी भी अन्य पिस्टल से पूरी तरह भिन्न है, आमतौर पर किसी भी पिस्टल की मार 15 से 25 गज तक हो सकती है लेकिन देश दुनिया में चंद्रशेखर आजाद के नाम से जाने जाने वाली 30 माउजर (पिस्टल) का सटीक निशाना आराम से एक हज़ार गज तक लगाया जा सकता था। इतना ही नहीं उस जमाने में चंद्रशेखर आजाद ने ब्रिटिश हुकूमत से कई मौकों पर लोहा लेते हुए इस माउजर को बाकायदा लकड़ी के बट के सहारे राइफल की तरह कई बार मुठभेड़ में इस्तेमाल किया था। अंत मे अपने प्रतिज्ञा को भी अपनी जीवन संगनी पिस्टल से पूरा किया जानकारों के मुताबिक 27 फरवरी सन 1931में इलाहाबाद के एलीफेंट पार्क के अंदर जब अंग्रेजों द्वारा घेराबंदी कर चंद्रशेखर आजाद को चारों ओर से सैनिकों ने घेर लिया। तब माना जाता है कि उस वक्त हमेशा अपने पास अपनी नायाब 30 माउजर पिस्टल से ही चंद्रशेखर आजाद ने घंटो अंग्रेजी हुकूमत की सेना के साथ डटकर मुकाबला किया, बताया जाता हैं कि उस घटनाक्रम में अंग्रेजी सेना काफी देर तक चंद्रशेखर आज़ाद की तरफ से हो रही एक के बाद एक लगातार गोलीबारी से कुछ समय लिए परेशानी में आ गई। हालांकि अंततः अपने पास गोलियां खत्म होने के बाद चंद्रशेखर आजाद ने अपने प्रतिज्ञा को साकार - "मैं आजाद हूं और आजाद ही रहूंगा कभी अंग्रेजों के शिकंजे में नहीं आऊंगा" इस कहावत को भी सच साबित अपने जीवन संगनी की तरह वाली माउजर में बची अंतिम गोली से खुद को खत्म करते हुए देश के नाम अपने प्राणों की आहुति दे दी। बाईट- श्याम सुंदर, हथियार विक्रेता


Conclusion:पिस्टल जिसे दुनियाभर में चंद्रशेखर आजाद के नाम से पहचाना जाता है वहीं देश की आज़ादी में क्रांतिकारी रहे चंद्रशेखर आजाद के पास अंतिम समय तक रहने वाली इस 30 माउजर पिस्टल को रख इसके विषय में विशेष जानकारी रखने वाले श्याम सुंदर ने बताया कि सन 1920 में जर्मन में निर्मित हुई इस माउजर वाली पिस्टल को आज भी पूरे दुनिया में आजादी के स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के नाम से ही जाना जाता है। आज की तारिख दुनियाभर में बहुत कम लोग हैं जिनके पास चंद्रशेखर की याद दिलाने वाली है यह 30 माउज़र पिस्तौल उपलब्ध है। देहरादून में सन 1972 से लाइसेंसी हथियारों को खरीदने और बेचने का कार्य करने वाले श्याम सुंदर के मुताबिक इस माउजर से उस जमाने में एक हज़ार गज तक कि दूरी पर एक साथ 10 राउंड का सटीक निशाना लगाया जा सकता था। इसी हथियार को अपने पास हर वक्त रखकर निडरता से देश की आजादी की लड़ाई में चंद्रशेखर आजाद उस समय ब्रिटिश सैनिकों से अंत समय तक लोहा लेते हुए अपने जीवन के अंत समय तक लड़ते रहे। बाईट- श्याम सुंदर, हथियार विक्रेता
Last Updated : Mar 21, 2019, 2:50 PM IST
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