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YEAR ENDER: आपदा में मौत के हिसाब से खराब रहा साल-2021, गहरे जख्म भी दे गई अतिवृष्टि

उत्तराखंड पिछले कुछ समय से प्राकृतिक आपदाओं के प्रदेश के तौर पर उभरकर आया है. उत्तराखंड में आपदा और वनाग्नि के चलते मौत के आंकड़े देखे जाएं तो इस साल यानी 2021 में अब तक उत्तराखंड में 384 से अधिक लोग असमय जान गंवा चुके हैं.

YEAR ENDER
उत्तराखंड में आपदा में मौत
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Published : Dec 22, 2021, 6:43 AM IST

देहरादून: जिस तरह से हम सभी साल 2022 (Year 2022) का स्वागत करने के लिए बेकरार हैं, ठीक उसी तरह साल 2021 (Year 2021) भी हमें बहुत सारी यादें देकर जा रहा है. इन यादों में कुछ खट्टी हैं तो कुछ मीठी हैं, कुछ हंसाती हैं तो कुछ रुलाती हैं, कुछ भूल गए हैं तो कुछ को भूल नहीं सकते. इन सब में सबसे महत्वपूर्ण रही 7 फरवरी को चमोली के रैणी गांव में आई आपदा. हिमालय के ऊपरी हिस्से में आई अचानक बाढ़ (फ्लैश फ्लड) ने आधिकारिक तौर पर 122 लोगों की जान लेते हुए गंगा नदी पर बने दो जलविद्युत संयंत्रों को भी नष्ट कर दिया था.

384 से अधिक मौतें: उत्तराखंड पिछले कुछ समय से प्राकृतिक आपदाओं के प्रदेश के तौर पर उभरकर आया है. स्टेट ऑपरेशन इमरजेंसी सेंटर यानी SEOC के आंकड़ों के मुताबिक इस साल उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं में 384 से अधिक लोगों की मौत हुई है. इन आपदाओं में बाढ़, बादल फटने, हिमस्खलन, भूस्खलन और अतिवृष्टि से बने हालात शामिल हैं. प्राकृतिक आपदाओं के हिसाब से देखें तो यह रिकॉर्ड 2013 में केदारनाथ जलप्रलय के बाद सबसे ज्यादा और भयावह है.

क्या थी रैणी आपदा: 7 फरवरी रविवार को सुबह करीब 10.30 बजे के आस-पास रैणी गांव के ऊपर ग्लेशियर फटा. इस हादसे के बाद से ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदी में हिमस्खलन और बाढ़ के चलते आसपास के इलाकों में तबाही मचनी शुरू हो गई. ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट तबाह हो गया था. पानी के सैलाब में चमोली जिले के तपोवन में NTPC का पावर पावर प्रोजेक्ट बर्बाद हो गया.

हरकत में आई सरकार: चमोली में ग्लेशियर फटने की सूचना पर राज्य सरकार तुरंत हरकत में आई है. सरकार ने आईटीबीपी, NDRF और SDRF की कई टीमों को मौके पर रवाना करते हुए श्रीनगर, ऋषिकेश और हरिद्वार में अलर्ट जारी किया.

तत्कालीन सीएम ने किया दौरा: ग्लेशियर फटने की खबर के बाद फ्रंटलाइन पर आते हुए स्थिति को खुद संभालते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सचिव आपदा प्रबंधन और डीएम चमोली से पूरी जानकारी ली. इसके साथ ही सीएम त्रिवेंद्र करीब 12 बजे हालात का जायजा लेने के लिए चमोली और तपोवन गए और आपदाग्रस्त इलाकों का दौरा करते हुए अधिकारियों से स्थिति का जायजा लिया. पानी के सैलाब को काबू करने के लिए सरकार ने एहतियातन भागीरथी नदी का फ्लो रोक दिया. अलकनंदा में पानी का बहाव रोका जा सके, इसलिए सरकार ने श्रीनगर डैम और ऋषिकेश डैम को खाली करा दिया था.

ये भी पढ़ें: एक क्लिक में पढ़ें चमोली त्रासदी की पूरी कहानी, जानें कब और कैसे हुई शुरुआत

राहत और बचाव कार्य: आपदा के बीच एक राहत की खबर आई कि नंदप्रयाग से आगे अलकनंदा नदी का बहाव सामान्य हो गया है. नदी का जलस्तर सामान्य से अब 1 मीटर ऊपर है. लेकिन बहाव कम होता जा रहा है. राज्य के मुख्य सचिव, आपदा सचिव, पुलिस अधिकारी एवं आपदा कंट्रोल रूम में स्थिति पर लगातार नजर रख रही थी. इस आपदा के बाद यूपी में भी अलर्ट जारी किया गया था. गंगा किनारे वाले जिलों में प्रशासन को अलर्ट रहने के लिए कहा गया था. यूपी के बिजनौर, कन्नौज, फतेहगढ़, प्रयागराज, कानपुर, मिर्ज़ापुर, गढ़मुक्तेश्वर, गाजीपुर, वाराणसी में हाई अलर्ट जारी किया गया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से बात की. उन्होंने बचाव और राहत कार्य का जायजा लिया और अधिकारियों को पीड़ितों को हर संभव मदद देने का निर्देश दिया था. आईटीबीपी, सेना, एनडीआरएफ-एसडीआरएफ सहित जिला पुलिस लगातार कई दिनों तक तपोवन टनल में रेस्क्यू ऑपरेशन चलाती रही. आखिर कई महीनों तक चले इस अभियान में करीब 122 लोगों के शव बरामद करते हुए लापता लोगों को मृत घोषित कर दिया गया.

तीन दिन की अतिवृष्टि से मची तबाही: फरवरी में रैणी आपदा के बाद कुछ महीने के लिए भले ही मौसम साफ रहा लेकिन, अक्टूबर में 3 दिन की भारी बारिश से उत्तराखंड में भारी तबाही और जनहानि हुई. राज्य सरकार के मुताबिक इस घटना में 72 लोगों की मौत हुई थी और प्रदेश को करीब छह हजार करोड़ का नुकसान हुआ था.

बीआरओ कैंप एवलॉन्च की चपेट में: चमोली जिले में जोशीमठ के पास 23 अप्रैल की रात भारत चीन सीमा पर नीती घाटी के सुमना में ग्लेशियर टूटने की घटना हुई है. जोशीमठ सेक्टर के सुमना क्षेत्र में भारी बर्फबारी के चलते एक बीआरओ (BRO) कैंप एवलॉन्च की चपेट में आ गया. जिसमें 10 लोगों की मौत हो गई थी और करीब 291 लोगों को रेस्क्यू किया गया था.

ये भी पढ़ें: हिमालयी ग्लेशियरों के लिए घातक है जंगलों में लगी आग

उत्तराखंड में वनाग्नि से नुकसान: उत्तराखंड के पहाड़ों पर हर साल जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. इससे बड़ी संख्या में पेड़ों, जीव-जंतुओं और पर्यावरण को नुकसान हो रहा है. जंगलों की आग से वायु प्रदूषण की समस्या भी बढ़ रही है. वन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में अक्टूबर तक 928 वनाग्नि की घटनाएं सामने आईं थीं. इसमें 591 आरक्षित वन क्षेत्र और 337 घटनाएं वन पंचायत वन क्षेत्रों में हुई थीं. आग की इन घटनाओं में 1207.88 हेक्टेयर जंगल जल गए. वन विभाग के मुताबिक अक्टूबर तक वनाग्नि की वजह से 37,16,772 रुपये का नुकसान आंका गया. इन घटनाओं में 2 लोग घायल हुए, जबकि दो लोगों की मौत भी हुई. इन घटनाओं में 7 जानवरों की मौत और 22 जानवर घायल हुए.

देहरादून: जिस तरह से हम सभी साल 2022 (Year 2022) का स्वागत करने के लिए बेकरार हैं, ठीक उसी तरह साल 2021 (Year 2021) भी हमें बहुत सारी यादें देकर जा रहा है. इन यादों में कुछ खट्टी हैं तो कुछ मीठी हैं, कुछ हंसाती हैं तो कुछ रुलाती हैं, कुछ भूल गए हैं तो कुछ को भूल नहीं सकते. इन सब में सबसे महत्वपूर्ण रही 7 फरवरी को चमोली के रैणी गांव में आई आपदा. हिमालय के ऊपरी हिस्से में आई अचानक बाढ़ (फ्लैश फ्लड) ने आधिकारिक तौर पर 122 लोगों की जान लेते हुए गंगा नदी पर बने दो जलविद्युत संयंत्रों को भी नष्ट कर दिया था.

384 से अधिक मौतें: उत्तराखंड पिछले कुछ समय से प्राकृतिक आपदाओं के प्रदेश के तौर पर उभरकर आया है. स्टेट ऑपरेशन इमरजेंसी सेंटर यानी SEOC के आंकड़ों के मुताबिक इस साल उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं में 384 से अधिक लोगों की मौत हुई है. इन आपदाओं में बाढ़, बादल फटने, हिमस्खलन, भूस्खलन और अतिवृष्टि से बने हालात शामिल हैं. प्राकृतिक आपदाओं के हिसाब से देखें तो यह रिकॉर्ड 2013 में केदारनाथ जलप्रलय के बाद सबसे ज्यादा और भयावह है.

क्या थी रैणी आपदा: 7 फरवरी रविवार को सुबह करीब 10.30 बजे के आस-पास रैणी गांव के ऊपर ग्लेशियर फटा. इस हादसे के बाद से ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदी में हिमस्खलन और बाढ़ के चलते आसपास के इलाकों में तबाही मचनी शुरू हो गई. ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट तबाह हो गया था. पानी के सैलाब में चमोली जिले के तपोवन में NTPC का पावर पावर प्रोजेक्ट बर्बाद हो गया.

हरकत में आई सरकार: चमोली में ग्लेशियर फटने की सूचना पर राज्य सरकार तुरंत हरकत में आई है. सरकार ने आईटीबीपी, NDRF और SDRF की कई टीमों को मौके पर रवाना करते हुए श्रीनगर, ऋषिकेश और हरिद्वार में अलर्ट जारी किया.

तत्कालीन सीएम ने किया दौरा: ग्लेशियर फटने की खबर के बाद फ्रंटलाइन पर आते हुए स्थिति को खुद संभालते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सचिव आपदा प्रबंधन और डीएम चमोली से पूरी जानकारी ली. इसके साथ ही सीएम त्रिवेंद्र करीब 12 बजे हालात का जायजा लेने के लिए चमोली और तपोवन गए और आपदाग्रस्त इलाकों का दौरा करते हुए अधिकारियों से स्थिति का जायजा लिया. पानी के सैलाब को काबू करने के लिए सरकार ने एहतियातन भागीरथी नदी का फ्लो रोक दिया. अलकनंदा में पानी का बहाव रोका जा सके, इसलिए सरकार ने श्रीनगर डैम और ऋषिकेश डैम को खाली करा दिया था.

ये भी पढ़ें: एक क्लिक में पढ़ें चमोली त्रासदी की पूरी कहानी, जानें कब और कैसे हुई शुरुआत

राहत और बचाव कार्य: आपदा के बीच एक राहत की खबर आई कि नंदप्रयाग से आगे अलकनंदा नदी का बहाव सामान्य हो गया है. नदी का जलस्तर सामान्य से अब 1 मीटर ऊपर है. लेकिन बहाव कम होता जा रहा है. राज्य के मुख्य सचिव, आपदा सचिव, पुलिस अधिकारी एवं आपदा कंट्रोल रूम में स्थिति पर लगातार नजर रख रही थी. इस आपदा के बाद यूपी में भी अलर्ट जारी किया गया था. गंगा किनारे वाले जिलों में प्रशासन को अलर्ट रहने के लिए कहा गया था. यूपी के बिजनौर, कन्नौज, फतेहगढ़, प्रयागराज, कानपुर, मिर्ज़ापुर, गढ़मुक्तेश्वर, गाजीपुर, वाराणसी में हाई अलर्ट जारी किया गया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से बात की. उन्होंने बचाव और राहत कार्य का जायजा लिया और अधिकारियों को पीड़ितों को हर संभव मदद देने का निर्देश दिया था. आईटीबीपी, सेना, एनडीआरएफ-एसडीआरएफ सहित जिला पुलिस लगातार कई दिनों तक तपोवन टनल में रेस्क्यू ऑपरेशन चलाती रही. आखिर कई महीनों तक चले इस अभियान में करीब 122 लोगों के शव बरामद करते हुए लापता लोगों को मृत घोषित कर दिया गया.

तीन दिन की अतिवृष्टि से मची तबाही: फरवरी में रैणी आपदा के बाद कुछ महीने के लिए भले ही मौसम साफ रहा लेकिन, अक्टूबर में 3 दिन की भारी बारिश से उत्तराखंड में भारी तबाही और जनहानि हुई. राज्य सरकार के मुताबिक इस घटना में 72 लोगों की मौत हुई थी और प्रदेश को करीब छह हजार करोड़ का नुकसान हुआ था.

बीआरओ कैंप एवलॉन्च की चपेट में: चमोली जिले में जोशीमठ के पास 23 अप्रैल की रात भारत चीन सीमा पर नीती घाटी के सुमना में ग्लेशियर टूटने की घटना हुई है. जोशीमठ सेक्टर के सुमना क्षेत्र में भारी बर्फबारी के चलते एक बीआरओ (BRO) कैंप एवलॉन्च की चपेट में आ गया. जिसमें 10 लोगों की मौत हो गई थी और करीब 291 लोगों को रेस्क्यू किया गया था.

ये भी पढ़ें: हिमालयी ग्लेशियरों के लिए घातक है जंगलों में लगी आग

उत्तराखंड में वनाग्नि से नुकसान: उत्तराखंड के पहाड़ों पर हर साल जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. इससे बड़ी संख्या में पेड़ों, जीव-जंतुओं और पर्यावरण को नुकसान हो रहा है. जंगलों की आग से वायु प्रदूषण की समस्या भी बढ़ रही है. वन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में अक्टूबर तक 928 वनाग्नि की घटनाएं सामने आईं थीं. इसमें 591 आरक्षित वन क्षेत्र और 337 घटनाएं वन पंचायत वन क्षेत्रों में हुई थीं. आग की इन घटनाओं में 1207.88 हेक्टेयर जंगल जल गए. वन विभाग के मुताबिक अक्टूबर तक वनाग्नि की वजह से 37,16,772 रुपये का नुकसान आंका गया. इन घटनाओं में 2 लोग घायल हुए, जबकि दो लोगों की मौत भी हुई. इन घटनाओं में 7 जानवरों की मौत और 22 जानवर घायल हुए.

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