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बड़ा सवालः कब तक मरते रहेंगे लोग मेरे पहाड़ के, देखिए Etv भारत की खास रिपोर्ट

देवभूमि में प्राकृतिक आपदा से निपटने में नौकरशाही की ढिलाई का खामियाजा जनता को भुगतना पड़ता है. शासन स्तर पर जो व्यवस्थाएं की जानी थीं वो लगभग नहीं के बराबर ही नजर आ रहीं हैं.

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Published : Aug 6, 2019, 6:35 PM IST

Updated : Aug 6, 2019, 8:02 PM IST

त्रासदी

देहरादून: यूं तो विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड में आए दिन होने वाली घटनाओं में तमाम लोग काल के ग्रास में समा जाते हैं. बावजूद इसके सरकारी तंत्र दावे तो खूब करता है, लेकिन उनके ज्यादातर दावे फेल ही साबित होते हैं.नतीजा नौकरशाही की ढिलाई का खामियाजा जनता को ही भुगतना पड़ता है. क्या अफसरशाही के अलर्ट रहने से प्रदेश में आए दिन होने वाली मौत की घटनाओं के ग्राफ को कम किया जा सकता है, देखिये ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

पहाड़ों में प्राकतिक आपदा में मरने वालों की संख्या बढ़ रही है.

साल 2013 में आयी त्रासदी के बाद राज्य सरकार ने सबक लेते हुए तमाम राहत बचाव कार्यों के लिए प्लान तैयार रखने और तमाम व्यवस्थाओं को मुकम्मल करने के निर्देश दिए थे. हालांकि साल 2013 के बाद तो कोई भीषण आपदा नहीं आई, लेकिन कहीं न कहीं शासन स्तर पर जो व्यवस्थाएं की जानी थीं वो लगभग नहीं के बराबर ही नजर हैं. जिसका जीता जागता उदाहरण है कि मानसून सीजन के शुरू होते ही पहाड़ी क्षेत्रों में लोगों की मौतों का मामला.

उत्तराखंड राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते आपदा जैसी स्थिति बननी तो आम बात है और यही वजह है कि प्रदेश में पहाड़ी मार्गों पर मालबा आने और सड़कें छतिग्रस्त होने से सड़क दुर्घटनाओं की संख्या भी काफी बढ़ जाती है. हालांकि साल 2013 में केदारघाटी में आयी त्रासदी में सैकड़ों यात्रियों की मौत हो गयी थी, लेकिन आपदा के बाद से मौजूदा वक्त तक करीब 440 लोगों की मौत हो चुकी है. इसके साथ ही 36 लोग अभी तक भी लापता हैं.

साल दर साल हादसों में हुए मौत के आंकड़े.

  • साल 2014 में कुल 66 लोगों की मौत और 66 लोग घायल हुए थे. इसके साथ ही 348 जानवर और 23 बकरियों की हानि हुई थी.
  • साल 2015 में कुल 56 लोगों की मौत और 65 लोग घायल हुए थे. इसके साथ ही 3440 मुर्गियां, 181 छोटे जानवर और 96 बड़े जानवरों की हानि हुई थी.
  • साल 2016 में कुल 119 लोगों की मौत, 102 लोग घायल और 05 लापता हुए थे. इसके साथ ही 1004 छोटे जानवर और 387 बड़े जानवरो की हानि हुई थी.
  • साल 2017 में कुल 84 लोगों की मौत, 66 लोग घायल और 27 लापता हुए थे. इसके साथ ही 577 बकरियां, 264 छोटे जानवर और 179 बड़े जानवरों की हानि हुई थी.
  • साल 2018 में कुल 101 लोगों की मौत, 53 लोग घायल और 3 लापता हुए थे. इसके साथ ही 601 छोटे पशु और 294 बड़े पशुओं की हानि हुई थी.
  • साल 2019 में जुलाई महीने तक कुल 441 घटनाएं घट गईं हैं जिसमे कुल 14 लोगों की मौत और 20 लोग घायल हुए थे. साथ ही एक व्यक्ति लापता है. इसके साथ ही 148 छोटे पशु और 34 पशुओं की हानि हुई है.

वहीं नागरिक उड्डयन व पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर ने बताया कि आपदा विभाग से समय-समय पर निर्देश आते रहते हैं और आपदा विभाग के निर्देश के अनुसार ही गढ़वाल और कुमाऊं में एक-एक हेलीकॉप्टर किसी भी आपातकाल के लिए मौजूद रहता है.

हमारी कोशिश रहती है कि आपदा विभाग जब भी हेली सेवा की मांग करें तो उसको पूरा किया जा सके. साथ ही पर्यटन सचिव ने बताया कि प्रदेश में जो पर्यटन स्थल हैं उस क्षेत्र के संबंधित जिला अधिकारी स्तर से आपदा निवारण के प्लान बने हुए हैं.

उसमें सभी चीज की डिटेलिंग की जाती है, मसलन कितने यात्री वहां पर आते हैं, कोई घटना होने पर राहत बचाव कार्य कैसे होगा, कौन-कौन से अधिकारी उसको प्रतिसाद करेंगे. साथ ही किसी भी त्रासदी से बचने के लिए वार्षिक प्लान बनता है जो समय-समय पर अपडेट होता रहता है और उसी के अनुसार सभी अधिकारी रिस्पॉन्ड करते हैं.

यह भी पढ़ेंः राजधानी के बाद हल्द्वानी में भी डेंगू की दस्तक, स्वास्थ्य महकमे में हाई अलर्ट

वहीं आपदा विभाग के प्रमुख सचिव एस.ए. मुरुगेशन ने बताया कि पहाड़ी क्षेत्रों में एक्सीडेंट होने के जो सेंसटिव प्वाइंट हैं उसको पहले ही चिन्हित कर व्यवस्था की जा चुकी है. इसके साथ ही जहां लैंड स्लाइडिंग प्वाइंट है वहां जेसीबी लगाई गई है. यह व्यवस्था पहले से ही की हुई है, लेकिन कुछ ऐसी जगह भी है जहां एक्सीडेंट हो जाते हैं जिसकी वजह कहीं न कहीं चालक होते हैं.

इस तरह की घटनाओं की सूचना मिलने के बाद तत्काल प्रभाव से लोगों का रेस्क्यू किया जाता है और उन्हें नजदीकी अस्पताल में पहुंचाया जाता है और अगर व्यक्ति की हालत गंभीर है तो उसके एयर एंबुलेंस या फिर सड़क माध्यम से अन्य अस्पताल भेज दिया जाता है.

देहरादून: यूं तो विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड में आए दिन होने वाली घटनाओं में तमाम लोग काल के ग्रास में समा जाते हैं. बावजूद इसके सरकारी तंत्र दावे तो खूब करता है, लेकिन उनके ज्यादातर दावे फेल ही साबित होते हैं.नतीजा नौकरशाही की ढिलाई का खामियाजा जनता को ही भुगतना पड़ता है. क्या अफसरशाही के अलर्ट रहने से प्रदेश में आए दिन होने वाली मौत की घटनाओं के ग्राफ को कम किया जा सकता है, देखिये ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

पहाड़ों में प्राकतिक आपदा में मरने वालों की संख्या बढ़ रही है.

साल 2013 में आयी त्रासदी के बाद राज्य सरकार ने सबक लेते हुए तमाम राहत बचाव कार्यों के लिए प्लान तैयार रखने और तमाम व्यवस्थाओं को मुकम्मल करने के निर्देश दिए थे. हालांकि साल 2013 के बाद तो कोई भीषण आपदा नहीं आई, लेकिन कहीं न कहीं शासन स्तर पर जो व्यवस्थाएं की जानी थीं वो लगभग नहीं के बराबर ही नजर हैं. जिसका जीता जागता उदाहरण है कि मानसून सीजन के शुरू होते ही पहाड़ी क्षेत्रों में लोगों की मौतों का मामला.

उत्तराखंड राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते आपदा जैसी स्थिति बननी तो आम बात है और यही वजह है कि प्रदेश में पहाड़ी मार्गों पर मालबा आने और सड़कें छतिग्रस्त होने से सड़क दुर्घटनाओं की संख्या भी काफी बढ़ जाती है. हालांकि साल 2013 में केदारघाटी में आयी त्रासदी में सैकड़ों यात्रियों की मौत हो गयी थी, लेकिन आपदा के बाद से मौजूदा वक्त तक करीब 440 लोगों की मौत हो चुकी है. इसके साथ ही 36 लोग अभी तक भी लापता हैं.

साल दर साल हादसों में हुए मौत के आंकड़े.

  • साल 2014 में कुल 66 लोगों की मौत और 66 लोग घायल हुए थे. इसके साथ ही 348 जानवर और 23 बकरियों की हानि हुई थी.
  • साल 2015 में कुल 56 लोगों की मौत और 65 लोग घायल हुए थे. इसके साथ ही 3440 मुर्गियां, 181 छोटे जानवर और 96 बड़े जानवरों की हानि हुई थी.
  • साल 2016 में कुल 119 लोगों की मौत, 102 लोग घायल और 05 लापता हुए थे. इसके साथ ही 1004 छोटे जानवर और 387 बड़े जानवरो की हानि हुई थी.
  • साल 2017 में कुल 84 लोगों की मौत, 66 लोग घायल और 27 लापता हुए थे. इसके साथ ही 577 बकरियां, 264 छोटे जानवर और 179 बड़े जानवरों की हानि हुई थी.
  • साल 2018 में कुल 101 लोगों की मौत, 53 लोग घायल और 3 लापता हुए थे. इसके साथ ही 601 छोटे पशु और 294 बड़े पशुओं की हानि हुई थी.
  • साल 2019 में जुलाई महीने तक कुल 441 घटनाएं घट गईं हैं जिसमे कुल 14 लोगों की मौत और 20 लोग घायल हुए थे. साथ ही एक व्यक्ति लापता है. इसके साथ ही 148 छोटे पशु और 34 पशुओं की हानि हुई है.

वहीं नागरिक उड्डयन व पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर ने बताया कि आपदा विभाग से समय-समय पर निर्देश आते रहते हैं और आपदा विभाग के निर्देश के अनुसार ही गढ़वाल और कुमाऊं में एक-एक हेलीकॉप्टर किसी भी आपातकाल के लिए मौजूद रहता है.

हमारी कोशिश रहती है कि आपदा विभाग जब भी हेली सेवा की मांग करें तो उसको पूरा किया जा सके. साथ ही पर्यटन सचिव ने बताया कि प्रदेश में जो पर्यटन स्थल हैं उस क्षेत्र के संबंधित जिला अधिकारी स्तर से आपदा निवारण के प्लान बने हुए हैं.

उसमें सभी चीज की डिटेलिंग की जाती है, मसलन कितने यात्री वहां पर आते हैं, कोई घटना होने पर राहत बचाव कार्य कैसे होगा, कौन-कौन से अधिकारी उसको प्रतिसाद करेंगे. साथ ही किसी भी त्रासदी से बचने के लिए वार्षिक प्लान बनता है जो समय-समय पर अपडेट होता रहता है और उसी के अनुसार सभी अधिकारी रिस्पॉन्ड करते हैं.

यह भी पढ़ेंः राजधानी के बाद हल्द्वानी में भी डेंगू की दस्तक, स्वास्थ्य महकमे में हाई अलर्ट

वहीं आपदा विभाग के प्रमुख सचिव एस.ए. मुरुगेशन ने बताया कि पहाड़ी क्षेत्रों में एक्सीडेंट होने के जो सेंसटिव प्वाइंट हैं उसको पहले ही चिन्हित कर व्यवस्था की जा चुकी है. इसके साथ ही जहां लैंड स्लाइडिंग प्वाइंट है वहां जेसीबी लगाई गई है. यह व्यवस्था पहले से ही की हुई है, लेकिन कुछ ऐसी जगह भी है जहां एक्सीडेंट हो जाते हैं जिसकी वजह कहीं न कहीं चालक होते हैं.

इस तरह की घटनाओं की सूचना मिलने के बाद तत्काल प्रभाव से लोगों का रेस्क्यू किया जाता है और उन्हें नजदीकी अस्पताल में पहुंचाया जाता है और अगर व्यक्ति की हालत गंभीर है तो उसके एयर एंबुलेंस या फिर सड़क माध्यम से अन्य अस्पताल भेज दिया जाता है.

Intro:यू तो विषम भगोलिक परिस्थियों वाले उत्तराखंड में आए दिन होने वाली घटनाओं में तमाम लोग काल के ग्रास में समा जाते हैं। बावजूद इसके सरकारी तंत्र दावे तो खूब करता लेकिन जनता सिस्टम के लोगो की जान बचाने के ज्यादातर दावे फेल ही साबित होते हैं। नतीजा नौकरशाही की ढिलाई का खामियाजा जनता को ही भुगतना पड़ता है। क्या अफसरशाही के अलर्ट रहने से प्रदेश में आए दिन होने वाली मौत की घटनाओं के ग्राफ को कम किया जा सकता हैं, देखिये ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट........



Body:साल 2013 में आयी त्रासदी के बाद राज्य सरकार ने सबक लेते हुए तमाम राहत बचाव कार्यो के लिए प्लान तैयार रखने और तमाम व्यवस्थाओं को मुकम्मल करने के निर्देश दिए थे। हालांकि साल 2013 के बाद तो कोई भीषण आपदा नही आया लेकिन कही ना कही शासन स्तर पर जो व्यवस्थाएं की जानी थी वो लगभग नही के बराबर ही नज़र आ रही है। जिसका जीता जागता उदाहरण यह है कि मानसून सीजन शुरू होते ही पहाड़ी क्षेत्रों में लोगो के मौत का शिलशिला बढ़ने लगता है।


उत्तराखंड राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते आपदा जैसी स्तिथि बननी तो आम बात है, और यही वजह है कि प्रदेश में की पहाड़ी मार्गो पर मालवा आना और सड़के छतिग्रस्त होने से सड़क दुर्घटनाओं की संख्या भी काफी बढ़ जाती है। हालांकि साल 2013 में केदारघाटी में आयी त्रासदी में सैकड़ो यात्रियों की मौत हो गयी थी। लेकिन आपदा के बाद से मौजूदा वक्त तक करीब 440 लोगों की मौत हो चुकी हैं। इसके साथ ही 36 लोग अभी तक भी लापता है। 


.........साल दर साल हादसों में हुए मौत के आकड़े........

- साल 2014 में कुल 66 लोगो की मौत और 66 लोग घायल हुए थे। इसके साथ ही 348 जानवर और 23 बकरियों की हानि हुई थी।

- साल 2015 में कुल 56 लोगों की मौत और 65 लोग घायल हुए थे। इसके साथ ही 3440 मुर्गीया, 181 छोटे जानवर और 96 बड़े जानवरो की हानि हुई थी।

- साल 2016 में कुल 119 लोगो की मौत, 102 लोग घायल और 05 लापता हुए थे। इसके साथ ही 1004 छोटे जानवर और 387 बड़े जानवरो की हानि हुई थी।

- साल 2017 में कुल 84 लोगो की मौत, 66 लोग घायल और 27 लापता हुए थे। इसके साथ ही 577 बकरियां, 264 छोटे जानवर और 179 बड़े जानवरों की हानि हुई थी। 

- साल 2018 में कुल 101 लोगो की मौत, 53 लोग घायल और 3 लापता हुए थे। इसके साथ ही 601 छोटे पशु और 294 बड़े पशुओ की हानि हुई थी।

- साल 2019 में जुलाई महीने तक कुल 441 घटनाएं घट गई है जिसमे कुल 14 लोगो की मौत और 20 लोग घायल हुए थे साथ ही एक व्यक्ति लापता है। इसके साथ ही 148 छोटे पशु और 34 पशुओं की हानि हुई है।



वही नागरिक उड्डयन व पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर ने बताया कि आपदा विभाग से समय समय पर निर्देश आते रहते है और आपदा विभाग के निर्देश के अनुसार ही गढ़वाल और कुमाऊँ में एक एक हेलीकॉप्टर किसी भी आपातकाल के लिए मौजूद रहता है। और हमारी कोशिश रहती है कि आपदा विभाग जब भी हेली सेवा की मांग करें तो उसको पूरा किया जा सके। साथ ही पर्यटन सचिव ने बताया कि प्रदेश में जो पर्यटन स्थल है उस क्षेत्र के संबंधित जिला अधिकारी स्तर से आपदा निवारण के प्लान्स बने हुए है। उसमें सभी चीज की डिटीएलिंग की जाती है, कितने यात्री वहाँ पर आते है, कोई घटना घट जाने पर राहत बचाव कार्य कैसे होगा। कौन-कौन से अधिकारी उसको प्रतिसाद करेंगे। और किसी भी त्रासदी से बचने के लिए वार्षिक प्लान बनता है जो समय समय पर अपडेट होता रहता है। और उसी अनुसार सभी अधिकारी रिस्पॉन्ड करते है।

बाइट - दिलीप जावलकर, सचिव, नागरिक उड्डयन व पर्यटन विभाग


वही आपदा विभाग के प्रमुख सचिव एस०ए० मेरुगेशन ने बताया कि पहाड़ी छेत्रो में एक्सीडेंट होने के जो जो सेंसटिव पॉइंट है उसको पहले ही चिन्हित कर व्यवस्था किया जा चुका है। इसके साथ ही जहा लेंड स्लाइडिंग पॉइंट है वहाँ जेसीबी लगाई हुई है। और यह व्यवस्था पहले से ही की हुई है। लेकिन कुछ ऐसी जगह भी है जहाँ एक्सीडेंट हो जाते है जिसकी वजह कही न कही चालक की ही होती है। लेकिन इस तरह के घटनाओं की सूचना मिलने के बाद तत्काल प्रभाव से लोगो का रेस्क्यू किया जाता है और उन्हें नजदीकी अस्पताल में पहुचाया जाता हैं। और अगर व्यक्ति की हालत गंभीर है तो उसके एयर एंबुलेंस या फिर सड़क माध्यम अन्य अस्पताल भेज दिया जाता है।

बाइट - एस०ए० मेरुगेशन, प्रभारी सचिव, आपदा विभाग





Conclusion:
Last Updated : Aug 6, 2019, 8:02 PM IST
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