देहरादूनः राजधानी में तीन साल पहले शुरू किया गया शौर्य स्थल का निर्माण कार्य आज भी अधर में लटका है. जबकि हर बार नेताओं द्वारा भव्य शौर्य स्थल के नाम पर उत्तराखंड को बार-बार सैनिक धाम के रूप में पुकारा जाता है. जबकि जमीनी हकीकत इसके बिल्कुल उलट है. उत्तराखंड में 4 धाम तो हैं ही, लेकिन नेताओं से आपने सैनिक धाम के रूप में पांचवें धाम की बात जरूर सुनी होगी. इतना ही नहीं वीर भूमि उत्तराखंड का देश की रक्षा में बलिदानों को लेकर भी कई तरह की बातें आपने सियासदानों से सुनी होगी, लेकिन अगर पूछा जाय कि सालों पहले प्रदेश के पहले शौर्य स्थल को लेकर जो हल्ला मचाया जा रहा था वो आज कहां है तो इस सम्बंध में शायद ही कोई सियासतदान वाजिब जवाब दे पाए.
बलिदानों में सबसे आगे रहने वाला राज्य उत्तराखंड जिसे की वीर भूमि की भी संज्ञा दी जाती है. आज तक यहां के शहीदों और वीर सैनिकों को उनका वास्तविक सम्मान नहीं मिल पाया है. भले ही अब जल्द ही हम कारगिल युद्ध का 20वां विजय दिवस मनाने जा रहे हों, लेकिन हालात सैनिकों के सम्मान को लेकर आज भी राज्य में कुछ ज्यादा सही नहीं है.
बात अगर उस भव्य शौर्य स्मारक की करें जिसका शिलान्यास 30 अप्रैल 2016 को तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और राज्यसभा सांसद तरुण विजय ने की थी. वास्तविक धरातल पर आज केवल एक काले गेट और कुछ पत्थरों के अलावा आपको कुछ भी नहीं मिलेगा.
दरअसल, तकरीबन तीन साल पहले गढ़ी कैंट के चीड़बाग में इस शौर्य स्थल की नींव राज्य के पहले भव्य आधुनिक शौर्य स्थल के रूप में रखी गयी थी और बताया गया था कि 2 करोड़ की लागत से शौर्य स्थल का निर्माण एक एकड़ भूमि में हो रहा है.
इस वार मेमोरियल निर्माण में राजस्थानी ग्रेनाइट पत्थरों का इस्तेमाल होगा. इतना ही नहीं इसके निर्माण में 3डी तकनीक का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. इसकी वजह से यह किसी भी दिशा से देखा जा सकेगा.
साथ ही शौर्य स्थल में कुमाऊंनी, गढ़वाली और गोर्खाली भाषा में अमर शहीदों की गौरव गाथा दर्शाई जाएगी. स्मारक में अमर शहीदों को हथियारों के साथ दिखाया जाएगा. राज्यस्तरीय शौर्य स्मारक के डिजाइन के अनुसार शौर्य दीवार पर 25 मीटर ऊंचा राष्ट्रीय ध्वज फहरता रहेगा. साथ ही तीनों सेनाओं के 15-15 मीटर ऊंचे ध्वज भी लागये जाने थे. वार मेमोरियल पर 'वॉल ऑफ रिमेंबरेंस' का भी जिक्र था.
यह भी पढ़ेंः उत्तराखंड: उत्तरकाशी में महसूस किए गए भूकंप के झटके
वॉर मेमोरियल को यादगार बनाने के लिए इसके परिसर में म्यूजियम और ऑडिटोरियम भी बनाने की योजना थी. म्यूजियम में सेना के अमर शहीदों से जुड़ी जानकारियां और उनके स्मृति चिन्ह भी लगाए जाने थे और बताया गया था कि मेमोरियल में पहुंचने वाले लोगों को देशभक्ति से जुड़ी फिल्में भी दिखाई जाएंगी, लेकिन एक जोड़ी काले गेट के अलावा यहां आपको कुछ भी नजर नहीं आएगा.
बहरहाल, हम कह सकते हैं कि जिस तरह से तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की यादें सिर्फ हमारे बीच में हैं, उसी तरह से उनकी परिकल्पना स्वरूप ये शौर्य स्थल भी केवल परिकल्पना मात्र ही रह चुका है. आज ये शौर्य स्मारक विभागीय पेचीदगियों के बीच कुछ ऐसा फंस गया है मानो इसने अब हार ही मान ली हो और बात सत्तासीनों की करें तो उनकी इस शौर्य स्थल के प्रति उनकी उदासीनता सैनिक धाम के नाम पर बेमानी सी लगती है.
Conclusion:बहरहाल हम कह सकते हैं कि जिस तरह से तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की यादें सिर्फ हमारे बीच मे बस बाकी है उसी तरह से उनकी परिकल्पना स्वरूप ये शौर्य स्थल भी केवल परिकल्पना मात्र ही रह चुका है। आज ये शौर्य स्मारक विभागीय पेचीदगियों के बीच कुछ ऐसा फस गया है मानो जैसे इसने अब हार ही मान ली हो और बात सत्तासीनों की करें तो उनकी इस शौर्य स्थल के प्रति उनकी उदासीनता सैनिक धाम के नाम पर बेईमानी सी लगती है।