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GULLY TALENT: मिलिए, उत्तराखंड के पहले गढ़वाली रैपर 'त्राटक' से - देहरादून सूरज रावत

सूरज रावत 'त्राटक' उत्तराखंड के पहले ऐसे गायक हैं जो गढ़वाली बोली में रैप गातें है. सूरज गढ़वाली गानों के साथ रैप को मिलाकर गाने गाते हैं. इस तरह के गानों की अपनी एक अलग पहचान बना ली है.

Uttarakhand Gali Talent
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Published : Mar 2, 2020, 11:32 AM IST

Updated : Mar 2, 2020, 12:30 PM IST

देहरादून: ईटीवी भारत के खास प्रोग्राम 'गली टैलेंट' में आज आपको उत्तराखंड के एक ऐसे हुनरबाज से मिलाने जा रहे हैं जो पहाड़ी बोली में रैप गाते हैं. साल 2012 से शुरुआत करने वाले सूरज रावत 'त्राटक'आज उत्तराखंड में न सिर्फ युवाओं के स्टार बन चुके हैं, बल्कि बूढ़े बुजुर्ग भी उनके रैप को मन लगाकर सुनते हैं. 'हिट मेरा पहाड़', 'पोथली', 'पाणी' और 'पहाड़ी छों मी' गाने लोगों की जुबान पर हैं.

उत्तराखंड के एक और हुनरबाज से मिलिए.

'त्राटक' क्यों है सूरज रावत ?

सूरज रावत देहरादून के रहने वाले हैं, लेकिन सूरज अपना नाम सूरज त्राटक लिखते हैं. सूरज ने ईटीवी भारत से बताया कि त्राटक उनकी साधना है जोकि उनके काम के प्रति उन्हें एक आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करती है. सूरज रावत ने बताया कि उन्होंने 12 साल की उम्र में पहली बार गढ़वाली गानों को एक अलग अंदाज में गाना शुरू किया था.

2012 में एक कमरे के अंदर किये प्रयोग ने आज ले ली इंडस्ट्री की जगह

गढ़वाली रैप सॉन्ग की शुरुआत करने वाले सूरज रावत ने बताया कि साल 2012 में पहली बार एक कमरे के भीतर उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर गढ़वाली गाने के साथ रैप का तड़का लगाया था. इसे रिकॉर्ड करके उन्होंने सोशल मीडिया पर अपलोड किया, जिसके बाद उनका यह वीडियो वायरल हो गया और लोगों ने उनके इस प्रयोग को हाथों हाथ लिया, जिसके बाद वे एक के बाद एक नए-नए प्रयोग करते गए और अलग-अलग गढ़वाली गानों के साथ रैप को मिलाकर वीडियो बनाते गए और उसके बाद उन्होंने इसे प्रोफेशनली करना शुरू किया और आज इस तरह के गानों की अपनी एक अलग इंडस्ट्री है.

पहाड़ी स्लैंग को रैप के जरिये मिली लोकप्रियता

सूरज रावत 'त्राटक' बताते हैं कि वह अपने रैप सोंग में ज्यादातर पहाड़ी स्लैंग का इस्तेमाल करते हैं, जिसकी वजह से युवाओं में पसंदीदा माने जाने वाले रैप को गढ़वाल के बड़े बुजुर्ग भी बड़े ध्यान लगाकर सुनते हैं. उन्होंने बताया कि इसकी वजह है उनके रैप सॉन्ग में इस्तेमाल किए जाने वाले पहाड़ी स्लैंग यानी फिर गांव में बोले जाने वाले कुछ पुराने ऐसे शब्द जो कि अमूमन आज सुनने में नहीं मिलते हैं, लेकिन वो हमारे पहाड़ी संस्कृति की जड़ों से जुड़े हैं. उन्होंने कहा कि इन शब्दों को सुनकर उनसे हर एक पहाड़ी कनेक्ट करता है और यही वजह है कि उन्हें और उनके रैप को पहाड़ में लोकप्रियता मिली है.

सामाजिक मुद्दों पर भी सूरज लिखते हैं रैप, समाज में संदेश देने का करते हैं काम

सूरज रावत केवल मनोरंजन ही नहीं बल्कि उत्तराखंड के तमाम सामाजिक मुद्दों पर भी रैप बनाते हैं. हाल ही में उन्होंने पेयजल समस्या को लेकर भी एक रैप बनाया था तो वहीं पहाड़ में फैली तमाम सामाजिक कुरीतियों और सामाजिक विषयों पर सूरज लगातार अध्ययन करते हैं, उस पर अपने हुनर के जरिए रैप सॉन्ग बनाते हैं. उन्होंने कहा कि संगीत केवल मनोरंजन ही नहीं बल्कि समाज में एक अच्छा संदेश देने के लिए भी एक महत्वपूर्ण जरिया है.

देहरादून: ईटीवी भारत के खास प्रोग्राम 'गली टैलेंट' में आज आपको उत्तराखंड के एक ऐसे हुनरबाज से मिलाने जा रहे हैं जो पहाड़ी बोली में रैप गाते हैं. साल 2012 से शुरुआत करने वाले सूरज रावत 'त्राटक'आज उत्तराखंड में न सिर्फ युवाओं के स्टार बन चुके हैं, बल्कि बूढ़े बुजुर्ग भी उनके रैप को मन लगाकर सुनते हैं. 'हिट मेरा पहाड़', 'पोथली', 'पाणी' और 'पहाड़ी छों मी' गाने लोगों की जुबान पर हैं.

उत्तराखंड के एक और हुनरबाज से मिलिए.

'त्राटक' क्यों है सूरज रावत ?

सूरज रावत देहरादून के रहने वाले हैं, लेकिन सूरज अपना नाम सूरज त्राटक लिखते हैं. सूरज ने ईटीवी भारत से बताया कि त्राटक उनकी साधना है जोकि उनके काम के प्रति उन्हें एक आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करती है. सूरज रावत ने बताया कि उन्होंने 12 साल की उम्र में पहली बार गढ़वाली गानों को एक अलग अंदाज में गाना शुरू किया था.

2012 में एक कमरे के अंदर किये प्रयोग ने आज ले ली इंडस्ट्री की जगह

गढ़वाली रैप सॉन्ग की शुरुआत करने वाले सूरज रावत ने बताया कि साल 2012 में पहली बार एक कमरे के भीतर उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर गढ़वाली गाने के साथ रैप का तड़का लगाया था. इसे रिकॉर्ड करके उन्होंने सोशल मीडिया पर अपलोड किया, जिसके बाद उनका यह वीडियो वायरल हो गया और लोगों ने उनके इस प्रयोग को हाथों हाथ लिया, जिसके बाद वे एक के बाद एक नए-नए प्रयोग करते गए और अलग-अलग गढ़वाली गानों के साथ रैप को मिलाकर वीडियो बनाते गए और उसके बाद उन्होंने इसे प्रोफेशनली करना शुरू किया और आज इस तरह के गानों की अपनी एक अलग इंडस्ट्री है.

पहाड़ी स्लैंग को रैप के जरिये मिली लोकप्रियता

सूरज रावत 'त्राटक' बताते हैं कि वह अपने रैप सोंग में ज्यादातर पहाड़ी स्लैंग का इस्तेमाल करते हैं, जिसकी वजह से युवाओं में पसंदीदा माने जाने वाले रैप को गढ़वाल के बड़े बुजुर्ग भी बड़े ध्यान लगाकर सुनते हैं. उन्होंने बताया कि इसकी वजह है उनके रैप सॉन्ग में इस्तेमाल किए जाने वाले पहाड़ी स्लैंग यानी फिर गांव में बोले जाने वाले कुछ पुराने ऐसे शब्द जो कि अमूमन आज सुनने में नहीं मिलते हैं, लेकिन वो हमारे पहाड़ी संस्कृति की जड़ों से जुड़े हैं. उन्होंने कहा कि इन शब्दों को सुनकर उनसे हर एक पहाड़ी कनेक्ट करता है और यही वजह है कि उन्हें और उनके रैप को पहाड़ में लोकप्रियता मिली है.

सामाजिक मुद्दों पर भी सूरज लिखते हैं रैप, समाज में संदेश देने का करते हैं काम

सूरज रावत केवल मनोरंजन ही नहीं बल्कि उत्तराखंड के तमाम सामाजिक मुद्दों पर भी रैप बनाते हैं. हाल ही में उन्होंने पेयजल समस्या को लेकर भी एक रैप बनाया था तो वहीं पहाड़ में फैली तमाम सामाजिक कुरीतियों और सामाजिक विषयों पर सूरज लगातार अध्ययन करते हैं, उस पर अपने हुनर के जरिए रैप सॉन्ग बनाते हैं. उन्होंने कहा कि संगीत केवल मनोरंजन ही नहीं बल्कि समाज में एक अच्छा संदेश देने के लिए भी एक महत्वपूर्ण जरिया है.

Last Updated : Mar 2, 2020, 12:30 PM IST
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