विकासनगरः देवभूमि उत्तराखंड शौर्य और बलिदान की अनेक गाथाएं समेटे हुए हैं. आजादी की लड़ाई से लेकर सरहद की सुरक्षा तक कई जवानों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है. इन्हीं में देश को आजादी दिलाने में अमर शहीद वीर केसरी चंद का नाम भी शामिल है. जो भारत मां को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए 3 मई 1945 को 24 साल की अल्पायु में ही फांसी पर झूल गये थे.
बता दें कि देहरादून जिले के चकराता तहसील के रामताल गार्डन में हर साल तीन मई को केसरी चंद मेले का आयोजन होता है. इसी क्रम में शुक्रवार को रामताल गार्डन में विशाल मेले का आयोजन किया गया. हजारों की संख्या में लोग मेले में पहुंचे. इस दौरान मेले में रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. मेले में पहुंले हजारों लोगों ने अमर शहीद वीर केसरी चंद की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि देकर उनकी शहादत को याद किया.
अमर शहीद वीर केसरी चंद की बलिदान की कहानी
अमर शहीद वीर केसरी चंद देहरादून जिले के पिछड़े पर्वतीय क्षेत्र जौनसार बावर के क्यावा गांव में 1 नवंबर 1920 को पैदा हुए थे. उनकी प्रारम्भिक शिक्षा विकासनगर में पूरी हुई. जिसके बाद डीएवी कॉलेज से दसवीं और बारहवीं की शिक्षा ली. खेल कूद में कई खेलों के कप्तान भी रहे. उनके पिता पंडित शिव दत्त उन्हें सरकारी नौकरी में जाने के लिए प्रेरित करते रहे. इंटर की शिक्षा पूरा किए बिना ही वो 10 अप्रैल 1941 को रायल इंडियन आर्मी सर्विस कोर में नायब सूबेदार के पद पर भर्ती हो गए और उसी साल 1942 में ही फिरोजपुर में वायसराय कमीशन ऑफिसर का कोर्स पूरा किया. उन दिनों द्वितीय विश्व युद्ध जोरों पर था. 29 अक्टूबर 1941 को उन्हें मलायी के युद्ध के मोर्चे पर भेजा दिया गया. युद्ध के मोर्चे पर 15 फरवरी 1942 को जापानी फौज ने केसरी चंद को बंदी बना लिया. नेता जी सुभाष चंद्र बोस के नारे 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा' से प्रेरित होकर केसरी चंद आजाद हिंद फौज में भर्ती हो गए थे.
ये भी पढ़ेंः 7 मई को अक्षय तृतीया के दिन खुलेंगे गंगोत्री धाम के कपाट, तैयारियां पूरी
आजाद हिंद फौज की ओर से लड़ते हुए इंफाल के मोर्चे पर उन्हें ब्रिटिश फौजौं ने पकड़ लिया था. जिसके बाद उन्हें दिल्ली जिला जेल में रखा गया. आर्मी एक्ट की दफा 41 के भारतीय दंड संहिता की 121 की विरुद्ध ब्रिटिश राज्य के खिलाफ युद्ध करने के आरोप में 12 और 13 दिसंबर 1944 व 10 जनवरी 1945 को लाल किले में जनरल कोर्ट मार्शल में ट्राई किया गया. 3 फरवरी 1945 को जनरल सीजे आचिनलेक ने उन्हें मृत्यु दंड की सजा सुजाई. 24 साल 6 महीने की अल्पायु में केसरी चंद को 3 मई 1945 को दिल्ली जिला जेल में फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया. जिसके बाद से ही आज के दिन ही यानि तीन मई को उनके वीरता को लेकर वीर केसरी चंद के मेले का आयोजन किया जाता है.