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बीमारी की चपेट में महात्मा गांधी का लगाया पेड़, बापू से जुड़ी हैं कई यादें

89 साल का हो चुका ये पेड़ आजादी के संघर्षों की यादों को समेटे हुए है. इस पेड़ ने भारत की आजादी और उसके बाद के भारत को बदलते देखा है, लेकिन इस पेड़ का दुर्भाग्य देखिए जो पेड़ अपनी एक शताब्दी पूरी करने जा रहा है, जिसका सुध लेने वाला कोई नहीं है.

बीमारी की चपेट में महात्मा गांधी का लगाया पेड़
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Published : Jul 7, 2019, 9:55 AM IST

देहरादून: देवभूमि में कई ऐतिहासिक धरोहर हैं, जो देशभर के लोगों को अपनी ओर खीचने के लिए काफी हैं. ऐसी कई चीजें उत्तराखंड अपने आप में ही समेटे हुए है, जिससे देश की महान हस्तियों की यादें भी जुड़ी हुई हैं. आज हम आपको एक ऐसे पेड़ के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे खुद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने लगाया था. 89 साल पहले लगाया गया ये पेड़ आज भी लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है. लेकिन विगत वर्षों में गंभीर बीमारी की चपेट में आने से इस पेड़ के अस्तित्व को खतरा बना हुआ है.

बीमारी की चपेट में महात्मा गांधी का लगाया पेड़.
17 अक्टूबर 1929 को देहरादून के राजपुर क्षेत्र के शहंशाही आश्रम में गांधी जी ने एक पीपल का पेड़ लगाया था. 89 साल का हो चुका ये पेड़ आजादी के संघर्षों की यादों को समेटे हुए है. इस पेड़ ने भारत की आजादी और उसके बाद के भारत को बदलते देखा है, लेकिन इस पेड़ का दुर्भाग्य देखिए जो पेड़ अपनी एक शताब्दी पूरी करने जा रहा है, जिसका सुध लेने वाला कोई नहीं है.

पढ़ें- गंगा से बरामद हुआ शव, गुजरात के डूबे युवक का होने की आशंका

आजादी के संघर्ष की यादें समेटने वाला ये पेड़ गंभीर बीमारी से जूझकर आज सूखने की कगार पर है. हरा-भरा वृक्ष अंदर ही अंदर खोखला होता जा रहा है. जिसके कारण प्रकृति प्रेमी खास चिंतित हैं. बीते दिनों इसकी जानकारी मुख्य वन प्रमुख संरक्षक जयराम को दी गई, जिसके बाद वन महकमा हरकत में आया. लेकिन, दुर्भाग्य देखिए कि जिस वन विभाग पर वनों के संरक्षण की जिम्मेदारी है उसे तो ये भी मालूम नहीं कि बापू का लगाया हुआ पेड़ कौन सा है.

मौके पर पहुंची वन विभाग की टीम ने आश्रम के माली रामजस से पेड़ के बारे में जानकारी तो जुटाई, लेकिन फोटो खिंचवाकर जल्द ही पीपल के पेड़ को ट्रीटमेंट देने का आश्वासन देकर चलते बने. वन विभाग की टीम ने आश्रम के माली रामजस से पेड़ के बारे में जानकारी तो जुटाई, लेकिन फोटो खिंचवाकर जल्द बता दें कि आश्रम का माली रामजस पिछले 31 वर्षों से इस पीपल की हर तरह से देखभाल करता आया है. इतने सालों से पेड़ की ऊंची शाखाओं पर चढ़कर कटाई-छटाई कर पेड़ को बचाए रखा.

लेकिन आज इस पेड़ की तरह ही रामजस भी बूढ़ा हो गया है. जिसके लिए अकेले इतने बड़े पेड़ की देखभाल करना आसान नहीं है. 31 वर्षों से इस पीपल की हर तरह से देखभाल करता आया है. बहरहाल, इस ऐतिहासिक पेड़ को बचाए रखना बेहद जरूरी है. जिससे आने वाली पीढ़ी भी इस ऐतिहासिक पेड़ से रूबरू हो सकें.

देहरादून: देवभूमि में कई ऐतिहासिक धरोहर हैं, जो देशभर के लोगों को अपनी ओर खीचने के लिए काफी हैं. ऐसी कई चीजें उत्तराखंड अपने आप में ही समेटे हुए है, जिससे देश की महान हस्तियों की यादें भी जुड़ी हुई हैं. आज हम आपको एक ऐसे पेड़ के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे खुद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने लगाया था. 89 साल पहले लगाया गया ये पेड़ आज भी लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है. लेकिन विगत वर्षों में गंभीर बीमारी की चपेट में आने से इस पेड़ के अस्तित्व को खतरा बना हुआ है.

बीमारी की चपेट में महात्मा गांधी का लगाया पेड़.
17 अक्टूबर 1929 को देहरादून के राजपुर क्षेत्र के शहंशाही आश्रम में गांधी जी ने एक पीपल का पेड़ लगाया था. 89 साल का हो चुका ये पेड़ आजादी के संघर्षों की यादों को समेटे हुए है. इस पेड़ ने भारत की आजादी और उसके बाद के भारत को बदलते देखा है, लेकिन इस पेड़ का दुर्भाग्य देखिए जो पेड़ अपनी एक शताब्दी पूरी करने जा रहा है, जिसका सुध लेने वाला कोई नहीं है.

पढ़ें- गंगा से बरामद हुआ शव, गुजरात के डूबे युवक का होने की आशंका

आजादी के संघर्ष की यादें समेटने वाला ये पेड़ गंभीर बीमारी से जूझकर आज सूखने की कगार पर है. हरा-भरा वृक्ष अंदर ही अंदर खोखला होता जा रहा है. जिसके कारण प्रकृति प्रेमी खास चिंतित हैं. बीते दिनों इसकी जानकारी मुख्य वन प्रमुख संरक्षक जयराम को दी गई, जिसके बाद वन महकमा हरकत में आया. लेकिन, दुर्भाग्य देखिए कि जिस वन विभाग पर वनों के संरक्षण की जिम्मेदारी है उसे तो ये भी मालूम नहीं कि बापू का लगाया हुआ पेड़ कौन सा है.

मौके पर पहुंची वन विभाग की टीम ने आश्रम के माली रामजस से पेड़ के बारे में जानकारी तो जुटाई, लेकिन फोटो खिंचवाकर जल्द ही पीपल के पेड़ को ट्रीटमेंट देने का आश्वासन देकर चलते बने. वन विभाग की टीम ने आश्रम के माली रामजस से पेड़ के बारे में जानकारी तो जुटाई, लेकिन फोटो खिंचवाकर जल्द बता दें कि आश्रम का माली रामजस पिछले 31 वर्षों से इस पीपल की हर तरह से देखभाल करता आया है. इतने सालों से पेड़ की ऊंची शाखाओं पर चढ़कर कटाई-छटाई कर पेड़ को बचाए रखा.

लेकिन आज इस पेड़ की तरह ही रामजस भी बूढ़ा हो गया है. जिसके लिए अकेले इतने बड़े पेड़ की देखभाल करना आसान नहीं है. 31 वर्षों से इस पीपल की हर तरह से देखभाल करता आया है. बहरहाल, इस ऐतिहासिक पेड़ को बचाए रखना बेहद जरूरी है. जिससे आने वाली पीढ़ी भी इस ऐतिहासिक पेड़ से रूबरू हो सकें.

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story of a tree planted by mahatma gandhi  

बीमारी की चपेट में महात्मा गांधी जी का लगाया हुआ ऐतिहासिक वृक्ष घातक 





देहरादून: देवभूमि में कई ऐतिहासिक धरोहर हैं, जो देशभर के लोगों को अपनी ओर खीचने के लिए काफी हैं. ऐसी कई चीजें उत्तराखंड अपने आप में ही समेटे हुए है, जिससे देश की महान हस्तियों की यादें भी जुड़ी हुई हैं. आज हम आपको एक ऐसे पेड़ के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे खुद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने लगाया था. 89 साल पहले लगाया गया ये पेड़ आज भी लोगों के लिए एक आकर्षण है. 

17 अक्टूबर 1929 को देहरादून के राजपुर क्षेत्र के शहंशाही आश्रम में गांधी जी ने एक पीपल का पेड़ लगाया था. 89 साल का हो चुका ये पेड़ आजादी के संघर्षों की यादों को समेटे हुए है. इस पेड़ ने भारत की आजादी और उसके बाद के भारत को बदलते देखा है लेकिन इस पेड़ का दुर्भाग्य देखिए जो पेड़ अपनी 1 शताब्दी पूरी करने जा रहा है, आज उसे ही देखने वाला कोई नहीं है.

आजादी के संघर्ष की यादें समेटने वाला ये पेड़ गंभीर बीमारी से जूझकर आज सूखने की कगार पर है. हरा-भरा वृक्ष अंदर ही अंदर खोखला होता जा रहा है, जिसके कारण प्रकृति प्रेमी खास चिंतित हैं. बीते दिनों इसकी जानकारी मुख्य वन प्रमुख संरक्षक जयराम को दी गई, जिसके बाद वन महकमा हरकत में आया. लेकिन, दुर्भाग्य देखिए कि जिस वन विभाग पर वनों के संरक्षण की जिम्मेदारी है उसे तो ये भी मालूम नहीं कि बापू का लगाया हुआ पेड़ कौन सा है. 

मौके पर पहुंची वन विभाग की टीम ने आश्रम के माली रामजस से पेड़ के बारे में जानकारी तो जुटाई, लेकिन फोटो खिंचवाकर जल्द ही पीपल के पेड़ को ट्रीटमेंट देने का आश्वासन देकर चलते बने. वन विभाग की टीम ने आश्रम के माली रामजस से पेड़ के बारे में जानकारी तो जुटाई, लेकिन फोटो खिंचवाकर जल्द बता दें कि आश्रम का माली रामजस पिछले 31 वर्षों से इस पीपल की हर तरह से देखभाल करता आया है. इतने सालों से पेड़ की ऊंची शाखाओं पर चढ़कर कटाई-छटाई कर पेड़ को बचाए रखा. 

लेकिन आज इस पेड़ की तरह ही रामजस भी बूढ़ा हो गया है. जिसके लिए अकेले इतने बड़े पेड़ की देखभाल करना आसान नहीं है. 31 वर्षों से इस पीपल की हर तरह से देखभाल करता आया है. बहरहाल, इस ऐतिहासिक पेड़ को बचाए रखना बेहद जरूरी है. नहीं तो हमारे आने वाली पीढ़ियां इस पेड़ के बारे में कभी जान नहीं पाएंगी और हम लापरवाही के चलते अपनी ऐतिहासिक धरोहर को खो बैठेंगे.


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