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AIIMS ने महिला को दिया जीवनदान, 10 साल से इस दुर्लभ बीमारी से थी पीड़ित - Lymphangioleiomyomatosis Disease

AIIMS ऋषिकेश ने एक महिला रोगी को जीवनदान दिया है. एम्स ऋषिकेश के अनुभवी शल्य चिकित्सकों ने 'लिम्फैन्जियो-लेओ-मायोमाटोसिस' नाम की बीमारी से ग्रसित महिला की सफल सर्जरी की है.

AIIMS Rishikesh
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Published : Aug 13, 2021, 7:14 PM IST

ऋषिकेश: फेफड़ों में मांसपेशियां असामान्य तौर से बढ़ जाने के कारण पिछले 3 माह से ऑक्सीजन सपोर्ट पर चल रही एक 34 वर्षीय महिला अब बिना किसी परेशानी के तीन मंजिला भवन की सीढ़ियां चढ़ने में सक्षम है. यह सब संभव हुआ है एम्स ऋषिकेश के अनुभवी शल्य चिकित्सकों की मेहनत से. महिला को 'लिम्फैन्जियो-लेओ-मायोमाटोसिस' नाम की बीमारी थी. एम्स ऋषिकेश के चिकित्सकों ने महिला के सीने की सफलतम जटिल थोरेसिक सर्जरी कर उसे नया जीवन दिया है.

एम्स निदेशक प्रोफेसर रवि कांत ने बताया कि ऐसे जटिल ऑपरेशनों में एजुकेशन और स्किल को साझा करने से परिणाम बेहतर आते हैं. सीने के रोगों से संबंधित थोरेसिक सर्जरी के लिए एम्स ऋषिकेश में उच्च अनुभवी विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम उपलब्ध है. मरीजों को विश्वस्तरीय मेडिकल तकनीक आधारित बेहतर ट्रीटमेंट उपलब्ध कराना एम्स की प्राथमिकता है. रोगी की जान बचाने के लिए जोखिम उठाकर की गई इस सफल सर्जरी के लिए उन्होंने चिकित्सकों की टीम को बधाई दी है.

बता दें, मुजफ्फरनगर निवासी एक 34 वर्षीय महिला करीब 10 साल से सांस लेने की परेशानी से जूझ रही थी. करीब तीन महीने पहले दिक्कतें बढ़ने लगीं और महिला ऑक्सीजन पर निर्भर हो गयी. इस बीच महिला को खांसी के दौरान खून आने की शिकायत भी शुरू हो गई. इलाज के लिए उसने मुजफ्फरनगर और मेरठ के बड़े अस्पतालों के चक्कर भी लगाए.

बीमारी का पर्याप्त उपचार नहीं होने पर महिला एम्स ऋषिकेश की इमरजेंसी पहुंची. जांचें आगे बढ़ी तो पता चला कि महिला 'लिम्फैन्जियो-लेओ-मायोमाटोसिस' नाम की दुर्लभ बीमारी से ग्रसित है. इसकी वजह से उसके फेफड़ों में ऑक्सीजन पहुंचने में रुकावट हो रही है. महिला की स्थिति यह हो चुकी थी कि उसको दैनिक कार्यों की निवृत्ति में भी कठिन चुनौती जान पड़ती थी.

पढ़ें- COVID 3rd Wave से निपटने की तैयारी, BJP का राष्ट्रीय स्वास्थ्य स्वयंसेवक अभियान शुरू

इस बाबत एम्स ऋषिकेश के ट्रॉमा सर्जन ने बताया कि यह बीमारी बहुत ही दुर्लभ है और दस लाख लोगों में से किसी एक को होती है. इस बीमारी के कारण फेफड़ों की अरेखित मांसपेशियां असामान्य रूप से बढ़ जाती हैं. जिससे फेफड़ों के स्वस्थ ऊतकों पर भी अनावश्यक दबाव पड़ता है. उन्होंने बताया कि ऐसे में जरूरी था कि फेफड़ों से इन अप्राकृतिक ऊतकों को हटाया जाए. इसके लिए रोगी के सीने की सर्जरी करने का जोखिम भरा निर्णय लिया गया.

क्या है 'लिम्फैन्जियोले ओमायोमाटोसिस' बीमारी: इस बीमारी में फेफड़ों की मांसपेशियों का असामान्य विकास होने के कारण फेफड़ों में सिस्ट बनने लगती है और मरीज को सांस लेने में अत्यन्त कठिनाई होने लगती है. साथ ही मरीज के लिम्फ नोड्स (लसिका ग्रन्थि) का आकार असामान्य तौर से बढ़ जाता है. ऐसी स्थिति में की जाने वाली सर्जरी की प्रक्रिया बेहद ही जटिल होती है.

ऋषिकेश: फेफड़ों में मांसपेशियां असामान्य तौर से बढ़ जाने के कारण पिछले 3 माह से ऑक्सीजन सपोर्ट पर चल रही एक 34 वर्षीय महिला अब बिना किसी परेशानी के तीन मंजिला भवन की सीढ़ियां चढ़ने में सक्षम है. यह सब संभव हुआ है एम्स ऋषिकेश के अनुभवी शल्य चिकित्सकों की मेहनत से. महिला को 'लिम्फैन्जियो-लेओ-मायोमाटोसिस' नाम की बीमारी थी. एम्स ऋषिकेश के चिकित्सकों ने महिला के सीने की सफलतम जटिल थोरेसिक सर्जरी कर उसे नया जीवन दिया है.

एम्स निदेशक प्रोफेसर रवि कांत ने बताया कि ऐसे जटिल ऑपरेशनों में एजुकेशन और स्किल को साझा करने से परिणाम बेहतर आते हैं. सीने के रोगों से संबंधित थोरेसिक सर्जरी के लिए एम्स ऋषिकेश में उच्च अनुभवी विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम उपलब्ध है. मरीजों को विश्वस्तरीय मेडिकल तकनीक आधारित बेहतर ट्रीटमेंट उपलब्ध कराना एम्स की प्राथमिकता है. रोगी की जान बचाने के लिए जोखिम उठाकर की गई इस सफल सर्जरी के लिए उन्होंने चिकित्सकों की टीम को बधाई दी है.

बता दें, मुजफ्फरनगर निवासी एक 34 वर्षीय महिला करीब 10 साल से सांस लेने की परेशानी से जूझ रही थी. करीब तीन महीने पहले दिक्कतें बढ़ने लगीं और महिला ऑक्सीजन पर निर्भर हो गयी. इस बीच महिला को खांसी के दौरान खून आने की शिकायत भी शुरू हो गई. इलाज के लिए उसने मुजफ्फरनगर और मेरठ के बड़े अस्पतालों के चक्कर भी लगाए.

बीमारी का पर्याप्त उपचार नहीं होने पर महिला एम्स ऋषिकेश की इमरजेंसी पहुंची. जांचें आगे बढ़ी तो पता चला कि महिला 'लिम्फैन्जियो-लेओ-मायोमाटोसिस' नाम की दुर्लभ बीमारी से ग्रसित है. इसकी वजह से उसके फेफड़ों में ऑक्सीजन पहुंचने में रुकावट हो रही है. महिला की स्थिति यह हो चुकी थी कि उसको दैनिक कार्यों की निवृत्ति में भी कठिन चुनौती जान पड़ती थी.

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इस बाबत एम्स ऋषिकेश के ट्रॉमा सर्जन ने बताया कि यह बीमारी बहुत ही दुर्लभ है और दस लाख लोगों में से किसी एक को होती है. इस बीमारी के कारण फेफड़ों की अरेखित मांसपेशियां असामान्य रूप से बढ़ जाती हैं. जिससे फेफड़ों के स्वस्थ ऊतकों पर भी अनावश्यक दबाव पड़ता है. उन्होंने बताया कि ऐसे में जरूरी था कि फेफड़ों से इन अप्राकृतिक ऊतकों को हटाया जाए. इसके लिए रोगी के सीने की सर्जरी करने का जोखिम भरा निर्णय लिया गया.

क्या है 'लिम्फैन्जियोले ओमायोमाटोसिस' बीमारी: इस बीमारी में फेफड़ों की मांसपेशियों का असामान्य विकास होने के कारण फेफड़ों में सिस्ट बनने लगती है और मरीज को सांस लेने में अत्यन्त कठिनाई होने लगती है. साथ ही मरीज के लिम्फ नोड्स (लसिका ग्रन्थि) का आकार असामान्य तौर से बढ़ जाता है. ऐसी स्थिति में की जाने वाली सर्जरी की प्रक्रिया बेहद ही जटिल होती है.

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