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Joshimath Sinking: अगर जोशीमठ में बारिश और भूकंप आया तो? तीन फैक्टर तय करेंगे भविष्य!

जोशीमठ शहर 30 से 40 डिग्री पहाड़ के स्लोप पर बसा हुआ है. जिसके चलते जोशीमठ शहर पर पहले से ही काफी अधिक स्ट्रेस है. शहर में हुए भारी भरकम निर्माण कार्यों (Heavy construction work in Joshimath) की वजह से यहां परेशानियां बढ़ी हैं. जोशीमठ लैंडस्लाइड प्रोन एरिया में भी शामिल है. इस क्षेत्र को भूकंप के लिहाज से सिस्मिक जोन 5(Joshimath in Seismic Zone 5) में रखा गया है. इसके साथ ही कई और फैक्टर हैं, जो जोशीमठ भू-धंसाव (Joshimath Sinking) के कारण हैं.

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इन तीन फैक्टर से तय होगा जोशीमठ का भविष्य
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Published : Jan 16, 2023, 7:31 PM IST

Updated : Jan 16, 2023, 8:20 PM IST

इन तीन फैक्टर से तय होगा जोशीमठ का भविष्य

देहरादून: जोशीमठ में आई आपदा (joshimath disaster) के मद्देनजर राज्य सरकार प्राथमिकता के आधार पर प्रभावित परिवारों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचने का काम जोरों-शोरों से कर रही है. साथ ही यहां दरारों की चपेट में आ रहे मकानों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है. अभी तक में 826 घरों में दरारें पड़ चुकी हैं. जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव की असल वजह जानने को लेकर तमाम संस्थानों की टीमें यहां सर्वे का कार्य कर रही हैं. वैज्ञानिक इस बात को मान रहे हैं कि बारिश और भूकंप का आना जोशीमठ के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है.

जोशीमठ शहर में लगातार हो रहे भू-धंसाव (Joshimath Sinking) की घटना राज्य सरकार के लिए चिंता का विषय बनी हुई है. यही वजह है कि राज्य और केंद्र सरकार इसके पीछे की असल वजह जानने को लेकर काम कर रही है. करीब 8 संस्थानों की टीमें जोशीमठ शहर के अलग-अलग इलाकों का साइंटिफिक अध्ययन कर रही हैं. जिसके बाद ही जोशीमठ शहर में हो रहे भू-धंसाव की असल स्थिति स्पष्ट हो पाएगी. जोशीमठ शहर की वर्तमान स्थिति यह है कि अगर इस क्षेत्र में कुछ भी अनावश्यक छेड़छाड़ की गई तो स्थितियां बिगड़ सकती हैं.

पढ़ें- Joshimath Sinking: 'सरकार' अगर सुन लेती दुर्गा प्रसाद की गुहार, बच सकती थी जोशीमठ की 'पहचान'

दरअसल, जोशीमठ शहर 30 से 40 डिग्री पहाड़ के स्लोप पर बसा हुआ है. जिसके चलते जोशीमठ शहर पर पहले से ही काफी अधिक स्ट्रेस है. वहीं, जोशीमठ शहर में हुए भारी भरकम निर्माण कार्यों की वजह से भी स्ट्रेस बढ़ा है. यही नहीं, जोशीमठ शहर लैंडस्लाइड प्रोन एरिया में भी शामिल है. इस क्षेत्र को भूकंप के लिहाज से सिस्मिक जोन 5 में रखा गया है. कुल मिलाकर जोशीमठ शहर चारों तरफ से बेहद ही संवेदनशील है. वाडिया के निदेशक कालाचंद्र साईं के अनुसार जोशीमठ शहर अभी काफी स्ट्रेस में है. इस क्षेत्र पर अभी काफी दबाव और प्रेशर है. ऐसे में अगर उस क्षेत्र में कुछ भी छेड़छाड़ की गई तो वहां की स्थिति और अधिक खतरनाक हो सकती है.

तीन स्टडी तय करेंगी जोशीमठ का भविष्य: वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक कालाचंद साईं (Wadia Institute Director Kalachand Sai) ने बताया जोशीमठ शहर का भविष्य तीन फैक्टर से तय होगा. वाडिया की टीम जोशीमठ में अभी सर्वे के काम कर रही है. जिसके तहत सरफेस स्टडी, लैंडस्लाइड का मैप और क्लाइमेट चेंज होने की वजह से एक्सीसिव रेन और स्नो फॉल का होना है. लिहाजा जब तक विस्तृत स्टडी (comprehensive study) नहीं हो जाती, तब तक यह कहना बहुत मुश्किल है कि जोशीमठ का भविष्य, अगले दिन में कैसा होगा. ऐसे में सभी रिपोर्ट का अध्ययन के बाद जोशीमठ के भविष्य की स्तिथि स्पष्ट हो पाएगी.

पढ़ें- 2013 की आपदा सहायता राशि में बड़ा घोटाला, कहां गए 1,509 करोड़ रुपए?

पहली स्टडी: जोशीमठ शहर के सरफेस में किस तरह का हाल-चाल चल रहा है, इसकी जानकारी एकत्र की जा रही है. जिससे पता चलेगा कि इस क्षेत्र का जियोलॉजिकल साइकिल और जियोलॉजिकल चैनल की स्तिथि क्या है. साथ ही वाटर फ्लो किस तरह से हो रहा है.

दूसरी स्टडी: स्लोप स्पेरिटी, कार्ब्रेचर, रॉक स्ट्रीम और लैंड यूज को देखते हुए लैंडस्लाइड का मैप तैयार किया जाता है. जिससे ये पता चलता है कि यह क्षेत्र हाई वल्नेरेबिलिटी (High vulnerability) में है. जोशीमठ में भी इसका अध्यन किया जा रहा है.

तीसरी स्टडी: क्लाइमेट चेंज होने की वजह से एक्सीसिव रेन और स्नो फॉल हो रहा है. जिसके चलते जोशीमठ पर इसका असर भी पड़ रहा है. ऐसे में एक्सीसिव रेन और स्नो फॉल की वजह से इस क्षेत्र के और अधिक वल्नेरेबल होने की संभावना है.

सरफेस स्टडी से मिलेगी जोशीमठ की जियोलॉजिकल जानकारी: जोशीमठ शहर के भू-धंसाव की असल वजह को जानने को लेकर वाडिया इंस्टिट्यूट (Wadia Institute of Himalayan Geology) जोशीमठ शहर का सरफेस स्टडी कर रहा है. सरफेस स्टडी से इस बात की जानकारी मिलेगी की इस शहर के सतह पर दिख रही दरारें कितनी गहरी हैं. किस दिशा में दरारें बढ़ती हुई नजर आ रही हैं.

जोशीमठ शहर के भूगर्भ में पड़ रही दरारें ही जोशीमठ का भविष्य तय करेंगी. जोशीमठ शहर स्लोप पर स्थित है. ऐसे में अगर दरारें स्लोप की दिशा में नीचे की ओर बढ़ रही है तो ऐसे में आने वाले समय में जोशीमठ शहर के भविष्य पर खतरा बन सकती हैं. बहरहाल, यह जांच का विषय है. वाडिया इंस्टीट्यूट के अनुसार सरफेस स्टडी को पूरा होने में कम से कम 2 माह का समय लगेगा. तभी इसकी फाइनल रिपोर्ट मिल पाएगी.

पढ़ें- Disaster Scam: उत्तराखंड में आपदा के बाद घोटाले का रहा इतिहास, जोशीमठ में न हो राहत में धांधली!

लैंडस्लाइड होने से बढ़ सकती है जोशीमठ में दिक्कतें: साइंटिफिक इन्वेस्टिगेशन से पता चलता है कि यह जोन सस्टेनेबल, वल्नेरेबल लैंडस्लाइड जोन और हाईएस्ट जोन में आता है. ऐसे में अगर इस क्षेत्र में तीन फैक्टर रोल अदा करते हैं, जिसमे मुख्यरूप से बारिश होने से लैंडस्लाइड, भूकंप की वजह से लैंडस्लाइड और मानवजनित गतिविधि (anthropogenic activity) भी अगर उस क्षेत्र को डिस्टर्ब करती है, तो लैंडस्लाइड आने की संभावना बढ़ जाती है. ऐसे में जोशीमठ का भविष्य आगामी दिनों में बारिश और भूकंप की स्थिति तय करेगी. लेकिन जब तक ऐसी घटनाएं नहीं होती है तब तक कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा.

पढ़ें-Cracks in Tehri Houses: रौलाकोट गांव के मकानों में मोटी दरारें, भूवैज्ञानिक ने बताया बड़ा खतरा

संस्थानों ने इन तमाम विषयों पर ध्यान देने की कही बात: वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक कालाचंद साईं ने बताया वाडिया समेत तमाम संस्थानों ने जो रिपोर्ट सौंपी थी, उसमें इस बात का जिक्र किया गया था कि इस क्षेत्र का फाउंडेशन रॉक इतना स्ट्रॉन्ग नहीं है. लिहाजा इस क्षेत्र में जो भी कंस्ट्रक्शन का कार्य हो रहा है, उसपर ध्यान रखना चाहिए. साथ ही स्लोप रीजन में जो भी डेवलपमेंटल कार्य हो रहे हैं उसपर भी ध्यान रखने की जरूरत है. यह क्षेत्र टेक्टोनिक और सिस्मैक्स इतना एक्टिव है, साथ ही क्लाइमेट चेंज फिनोमेना की वजह से भी इंपैक्ट हो रहा है. इसके अलावा यह क्षेत्र लैंडलाइड जोन में भी आता है. लिहाजा, इन तमाम विषयों को ध्यान के रहने की बात रिपोर्ट में कही गई है.

इन तीन फैक्टर से तय होगा जोशीमठ का भविष्य

देहरादून: जोशीमठ में आई आपदा (joshimath disaster) के मद्देनजर राज्य सरकार प्राथमिकता के आधार पर प्रभावित परिवारों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचने का काम जोरों-शोरों से कर रही है. साथ ही यहां दरारों की चपेट में आ रहे मकानों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है. अभी तक में 826 घरों में दरारें पड़ चुकी हैं. जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव की असल वजह जानने को लेकर तमाम संस्थानों की टीमें यहां सर्वे का कार्य कर रही हैं. वैज्ञानिक इस बात को मान रहे हैं कि बारिश और भूकंप का आना जोशीमठ के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है.

जोशीमठ शहर में लगातार हो रहे भू-धंसाव (Joshimath Sinking) की घटना राज्य सरकार के लिए चिंता का विषय बनी हुई है. यही वजह है कि राज्य और केंद्र सरकार इसके पीछे की असल वजह जानने को लेकर काम कर रही है. करीब 8 संस्थानों की टीमें जोशीमठ शहर के अलग-अलग इलाकों का साइंटिफिक अध्ययन कर रही हैं. जिसके बाद ही जोशीमठ शहर में हो रहे भू-धंसाव की असल स्थिति स्पष्ट हो पाएगी. जोशीमठ शहर की वर्तमान स्थिति यह है कि अगर इस क्षेत्र में कुछ भी अनावश्यक छेड़छाड़ की गई तो स्थितियां बिगड़ सकती हैं.

पढ़ें- Joshimath Sinking: 'सरकार' अगर सुन लेती दुर्गा प्रसाद की गुहार, बच सकती थी जोशीमठ की 'पहचान'

दरअसल, जोशीमठ शहर 30 से 40 डिग्री पहाड़ के स्लोप पर बसा हुआ है. जिसके चलते जोशीमठ शहर पर पहले से ही काफी अधिक स्ट्रेस है. वहीं, जोशीमठ शहर में हुए भारी भरकम निर्माण कार्यों की वजह से भी स्ट्रेस बढ़ा है. यही नहीं, जोशीमठ शहर लैंडस्लाइड प्रोन एरिया में भी शामिल है. इस क्षेत्र को भूकंप के लिहाज से सिस्मिक जोन 5 में रखा गया है. कुल मिलाकर जोशीमठ शहर चारों तरफ से बेहद ही संवेदनशील है. वाडिया के निदेशक कालाचंद्र साईं के अनुसार जोशीमठ शहर अभी काफी स्ट्रेस में है. इस क्षेत्र पर अभी काफी दबाव और प्रेशर है. ऐसे में अगर उस क्षेत्र में कुछ भी छेड़छाड़ की गई तो वहां की स्थिति और अधिक खतरनाक हो सकती है.

तीन स्टडी तय करेंगी जोशीमठ का भविष्य: वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक कालाचंद साईं (Wadia Institute Director Kalachand Sai) ने बताया जोशीमठ शहर का भविष्य तीन फैक्टर से तय होगा. वाडिया की टीम जोशीमठ में अभी सर्वे के काम कर रही है. जिसके तहत सरफेस स्टडी, लैंडस्लाइड का मैप और क्लाइमेट चेंज होने की वजह से एक्सीसिव रेन और स्नो फॉल का होना है. लिहाजा जब तक विस्तृत स्टडी (comprehensive study) नहीं हो जाती, तब तक यह कहना बहुत मुश्किल है कि जोशीमठ का भविष्य, अगले दिन में कैसा होगा. ऐसे में सभी रिपोर्ट का अध्ययन के बाद जोशीमठ के भविष्य की स्तिथि स्पष्ट हो पाएगी.

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पहली स्टडी: जोशीमठ शहर के सरफेस में किस तरह का हाल-चाल चल रहा है, इसकी जानकारी एकत्र की जा रही है. जिससे पता चलेगा कि इस क्षेत्र का जियोलॉजिकल साइकिल और जियोलॉजिकल चैनल की स्तिथि क्या है. साथ ही वाटर फ्लो किस तरह से हो रहा है.

दूसरी स्टडी: स्लोप स्पेरिटी, कार्ब्रेचर, रॉक स्ट्रीम और लैंड यूज को देखते हुए लैंडस्लाइड का मैप तैयार किया जाता है. जिससे ये पता चलता है कि यह क्षेत्र हाई वल्नेरेबिलिटी (High vulnerability) में है. जोशीमठ में भी इसका अध्यन किया जा रहा है.

तीसरी स्टडी: क्लाइमेट चेंज होने की वजह से एक्सीसिव रेन और स्नो फॉल हो रहा है. जिसके चलते जोशीमठ पर इसका असर भी पड़ रहा है. ऐसे में एक्सीसिव रेन और स्नो फॉल की वजह से इस क्षेत्र के और अधिक वल्नेरेबल होने की संभावना है.

सरफेस स्टडी से मिलेगी जोशीमठ की जियोलॉजिकल जानकारी: जोशीमठ शहर के भू-धंसाव की असल वजह को जानने को लेकर वाडिया इंस्टिट्यूट (Wadia Institute of Himalayan Geology) जोशीमठ शहर का सरफेस स्टडी कर रहा है. सरफेस स्टडी से इस बात की जानकारी मिलेगी की इस शहर के सतह पर दिख रही दरारें कितनी गहरी हैं. किस दिशा में दरारें बढ़ती हुई नजर आ रही हैं.

जोशीमठ शहर के भूगर्भ में पड़ रही दरारें ही जोशीमठ का भविष्य तय करेंगी. जोशीमठ शहर स्लोप पर स्थित है. ऐसे में अगर दरारें स्लोप की दिशा में नीचे की ओर बढ़ रही है तो ऐसे में आने वाले समय में जोशीमठ शहर के भविष्य पर खतरा बन सकती हैं. बहरहाल, यह जांच का विषय है. वाडिया इंस्टीट्यूट के अनुसार सरफेस स्टडी को पूरा होने में कम से कम 2 माह का समय लगेगा. तभी इसकी फाइनल रिपोर्ट मिल पाएगी.

पढ़ें- Disaster Scam: उत्तराखंड में आपदा के बाद घोटाले का रहा इतिहास, जोशीमठ में न हो राहत में धांधली!

लैंडस्लाइड होने से बढ़ सकती है जोशीमठ में दिक्कतें: साइंटिफिक इन्वेस्टिगेशन से पता चलता है कि यह जोन सस्टेनेबल, वल्नेरेबल लैंडस्लाइड जोन और हाईएस्ट जोन में आता है. ऐसे में अगर इस क्षेत्र में तीन फैक्टर रोल अदा करते हैं, जिसमे मुख्यरूप से बारिश होने से लैंडस्लाइड, भूकंप की वजह से लैंडस्लाइड और मानवजनित गतिविधि (anthropogenic activity) भी अगर उस क्षेत्र को डिस्टर्ब करती है, तो लैंडस्लाइड आने की संभावना बढ़ जाती है. ऐसे में जोशीमठ का भविष्य आगामी दिनों में बारिश और भूकंप की स्थिति तय करेगी. लेकिन जब तक ऐसी घटनाएं नहीं होती है तब तक कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा.

पढ़ें-Cracks in Tehri Houses: रौलाकोट गांव के मकानों में मोटी दरारें, भूवैज्ञानिक ने बताया बड़ा खतरा

संस्थानों ने इन तमाम विषयों पर ध्यान देने की कही बात: वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक कालाचंद साईं ने बताया वाडिया समेत तमाम संस्थानों ने जो रिपोर्ट सौंपी थी, उसमें इस बात का जिक्र किया गया था कि इस क्षेत्र का फाउंडेशन रॉक इतना स्ट्रॉन्ग नहीं है. लिहाजा इस क्षेत्र में जो भी कंस्ट्रक्शन का कार्य हो रहा है, उसपर ध्यान रखना चाहिए. साथ ही स्लोप रीजन में जो भी डेवलपमेंटल कार्य हो रहे हैं उसपर भी ध्यान रखने की जरूरत है. यह क्षेत्र टेक्टोनिक और सिस्मैक्स इतना एक्टिव है, साथ ही क्लाइमेट चेंज फिनोमेना की वजह से भी इंपैक्ट हो रहा है. इसके अलावा यह क्षेत्र लैंडलाइड जोन में भी आता है. लिहाजा, इन तमाम विषयों को ध्यान के रहने की बात रिपोर्ट में कही गई है.

Last Updated : Jan 16, 2023, 8:20 PM IST
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