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मंत्री रेखा आर्य ने हंसी की हालात पर जताया दुख, कहा- रोजगार देने का करेंगे प्रयास

हरिद्वार में अपने मासूम बेटे के साथ दर-दर भटक रहीं हंसी प्रहरी की हालात का महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास राज्य मंत्री रेखा आर्य ने संज्ञान लिया है. उन्होंने हंसी को नारी निकेतन में ठहराने की बात कही है. साथ ही उनके बेटे को शिशु सदन में रखने को कहा है. उन्होंने कहा कि हंसी को शारारिक और मानसिक रूप से स्वस्थ करने के बाद उनके योग्यतानुसार स्वरोजगार देने का प्रयास किया जाएगा.

rekha arya and hansi prahari
रेखा आर्य
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Published : Oct 19, 2020, 5:35 PM IST

Updated : Oct 19, 2020, 7:04 PM IST

देहरादूनः नियति का पासा ऐसा पलटा की कभी पूर्व केंद्रीय मंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ चुकी हंसी प्रहरी को हरिद्वार की गलियों में भीख मांगनी पड़ रही है. हंसी के नाम में बेशक 'हंसी' हो, लेकिन उसकी असल जिंदगी में ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. अपने मासूम बेटे के साथ दर-दर भटक रही हंसी की मजबूरी को जब ईटीवी भारत ने प्रमुखता से उठाया तो शासन-प्रशासन से मदद के लिए हाथ आगे बढ़ने लगे हैं. सूबे की महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास राज्य मंत्री रेखा आर्य ने भी खबर का संज्ञान लिया है. उन्होंने आश्वस्त किया है कि वह जल्द से जल्द महिला तक हर संभव मदद पहुंचाएगी.

hansi prahari
हंसी प्रहरी.

दरअसल, बीते दिन ईटीवी भारत ने हरिद्वार में भीख मांग रही हंसी प्रहरी की खबर को प्रमुखता से दिखाया था. खबर दिखाए जाने के बाद महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास राज्यमंत्री रेखा आर्य ने भी मामले को गंभीरता से लिया है. ईटीवी भारत से बात करते हुए राज्य मंत्री रेखा आर्य ने हंसी प्रहरी की हालात पर गहरा दुख जताया है. उन्होंने आश्वस्त किया है कि वो जल्द से जल्द अपने विभागीय अधिकारी को हंसा प्रहरी तक पहुंचने को कहेंगी. साथ ही उनका प्रयास रहेगा कि हंसी को नारी निकेतन में ठहरने की जगह दी जाए और उनके बच्चे को भी शिशु सदन में रखा जाए. जहां बच्चे की बेहतर तरह से देखभाल हो सके. साथ ही बच्चे की पढ़ाई भी अच्छे से हो सके. उन्होंने कहा कि उनका पहला प्रयास हंसी को शारारिक और मानसिक रूप से मजबूत करना है.

हंसी प्रहरी की हालात को लेकर राज्य मंत्री रेखा आर्य से खास बातचीत.

ये भी पढ़ेंः कुमाऊं विवि की जानी-मानी छात्रा मांग रही भीख, पूर्व केंद्रीय मंत्री के खिलाफ लड़ चुकी हैं चुनाव

क्या है हंसी की कहानी

अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर विधानसभा क्षेत्र के हवालबाग विकासखंड के अंतर्गत गोविंदपुर के पास रणखिला गांव निवासी हंसी बचपन से ही काफी मेधावी रहीं हैं. गांव से छोटे से स्कूल से पास होकर उन्होंने कुमाऊं विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया. हंसी पढ़ाई लिखाई और दूसरी एक्टिविटीज में इतनी तेज थी कि साल 1998-99 और 2000 वह चर्चाओं में तब आई, जब कुमाऊं विश्वविद्यालय में छात्रा यूनियन की वाइस प्रेसिडेंट बनी. इसके साथ ही कुमाऊं विश्वविद्यालय से दो बार एमए की पढ़ाई अंग्रेजी और राजनीति विज्ञान में पास करने के बाद हंसी ने कुमाऊं विश्वविद्यालय में ही लाइब्रेरियन की नौकरी की. इसके बाद उन्होंने 2008 तक कई प्राइवेट जॉब भी कीं.

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अपने मासूम बेटे के साथ हंसी प्रहरी.

ये भी पढ़ेंः खबर का असर: हंसी प्रहरी की मदद करेंगे राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा

साल 2011 के बाद हंसी की जिंदगी में अचानक से मोड़ आया. उन्होंने बताया कि जो इस वक्त जिस तरह की जिंदगी जी रही हैं, वह शादी के बाद हुई आपसी तनातनी का नतीजा है. शादीशुदा जिंदगी में हुई उथल-पुथल के बाद हंसी कुछ समय तक अवसाद में रहीं और इसी बीच उनका धर्म की ओर झुकाव भी हो गया. उन्होंने परिवार से अलग होकर धर्मनगरी में बसने की सोची और हरिद्वार पहुंच गईं. तब से ही वो अपने परिवार से अलग हैं.

ये भी पढ़ेंः हंसी के हालातों को सुधारने के लिए बढ़ने लगे मदद के हाथ, नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश ने कही ये बात

वे बताती हैं कि इस दौरान उनकी शारीरिक स्थिति भी गड़बड़ रहने लगी और वह सक्षम नहीं रहीं कि कहीं नौकरी कर सकें. इसी दौरान वक्त का पहिया ऐसा घूमा कि वो आज ऐसी स्थिति में भिक्षा मांगने को मजबूर हैं. वह साल 2012 के बाद से ही हरिद्वार में भिक्षा मांग कर अपना और अपने 6 साल के बच्चे का लालन-पालन कर रही हैं.

ये भी पढ़ेंः कुमाऊं विवि की मेधावी छात्रा हंसी प्रहरी की मदद करेंगे हरिद्वार DM, मिलने पहुंचे पुराने दोस्त

उन्होंने अपनी स्थिति को लेकर कई बार मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा, यहां तक कि कई बार सचिवालय विधानसभा में भी चक्कर काट चुकी हैं. इस बात के दस्तावेज भी हंसी के पास मौजूद हैं. वह कहती हैं कि अगर सरकार उनकी सहायता करती है तो आज भी वह बच्चों को अच्छी शिक्षा दे सकती हैं.

देहरादूनः नियति का पासा ऐसा पलटा की कभी पूर्व केंद्रीय मंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ चुकी हंसी प्रहरी को हरिद्वार की गलियों में भीख मांगनी पड़ रही है. हंसी के नाम में बेशक 'हंसी' हो, लेकिन उसकी असल जिंदगी में ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. अपने मासूम बेटे के साथ दर-दर भटक रही हंसी की मजबूरी को जब ईटीवी भारत ने प्रमुखता से उठाया तो शासन-प्रशासन से मदद के लिए हाथ आगे बढ़ने लगे हैं. सूबे की महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास राज्य मंत्री रेखा आर्य ने भी खबर का संज्ञान लिया है. उन्होंने आश्वस्त किया है कि वह जल्द से जल्द महिला तक हर संभव मदद पहुंचाएगी.

hansi prahari
हंसी प्रहरी.

दरअसल, बीते दिन ईटीवी भारत ने हरिद्वार में भीख मांग रही हंसी प्रहरी की खबर को प्रमुखता से दिखाया था. खबर दिखाए जाने के बाद महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास राज्यमंत्री रेखा आर्य ने भी मामले को गंभीरता से लिया है. ईटीवी भारत से बात करते हुए राज्य मंत्री रेखा आर्य ने हंसी प्रहरी की हालात पर गहरा दुख जताया है. उन्होंने आश्वस्त किया है कि वो जल्द से जल्द अपने विभागीय अधिकारी को हंसा प्रहरी तक पहुंचने को कहेंगी. साथ ही उनका प्रयास रहेगा कि हंसी को नारी निकेतन में ठहरने की जगह दी जाए और उनके बच्चे को भी शिशु सदन में रखा जाए. जहां बच्चे की बेहतर तरह से देखभाल हो सके. साथ ही बच्चे की पढ़ाई भी अच्छे से हो सके. उन्होंने कहा कि उनका पहला प्रयास हंसी को शारारिक और मानसिक रूप से मजबूत करना है.

हंसी प्रहरी की हालात को लेकर राज्य मंत्री रेखा आर्य से खास बातचीत.

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क्या है हंसी की कहानी

अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर विधानसभा क्षेत्र के हवालबाग विकासखंड के अंतर्गत गोविंदपुर के पास रणखिला गांव निवासी हंसी बचपन से ही काफी मेधावी रहीं हैं. गांव से छोटे से स्कूल से पास होकर उन्होंने कुमाऊं विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया. हंसी पढ़ाई लिखाई और दूसरी एक्टिविटीज में इतनी तेज थी कि साल 1998-99 और 2000 वह चर्चाओं में तब आई, जब कुमाऊं विश्वविद्यालय में छात्रा यूनियन की वाइस प्रेसिडेंट बनी. इसके साथ ही कुमाऊं विश्वविद्यालय से दो बार एमए की पढ़ाई अंग्रेजी और राजनीति विज्ञान में पास करने के बाद हंसी ने कुमाऊं विश्वविद्यालय में ही लाइब्रेरियन की नौकरी की. इसके बाद उन्होंने 2008 तक कई प्राइवेट जॉब भी कीं.

hansi prahari
अपने मासूम बेटे के साथ हंसी प्रहरी.

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साल 2011 के बाद हंसी की जिंदगी में अचानक से मोड़ आया. उन्होंने बताया कि जो इस वक्त जिस तरह की जिंदगी जी रही हैं, वह शादी के बाद हुई आपसी तनातनी का नतीजा है. शादीशुदा जिंदगी में हुई उथल-पुथल के बाद हंसी कुछ समय तक अवसाद में रहीं और इसी बीच उनका धर्म की ओर झुकाव भी हो गया. उन्होंने परिवार से अलग होकर धर्मनगरी में बसने की सोची और हरिद्वार पहुंच गईं. तब से ही वो अपने परिवार से अलग हैं.

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वे बताती हैं कि इस दौरान उनकी शारीरिक स्थिति भी गड़बड़ रहने लगी और वह सक्षम नहीं रहीं कि कहीं नौकरी कर सकें. इसी दौरान वक्त का पहिया ऐसा घूमा कि वो आज ऐसी स्थिति में भिक्षा मांगने को मजबूर हैं. वह साल 2012 के बाद से ही हरिद्वार में भिक्षा मांग कर अपना और अपने 6 साल के बच्चे का लालन-पालन कर रही हैं.

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उन्होंने अपनी स्थिति को लेकर कई बार मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा, यहां तक कि कई बार सचिवालय विधानसभा में भी चक्कर काट चुकी हैं. इस बात के दस्तावेज भी हंसी के पास मौजूद हैं. वह कहती हैं कि अगर सरकार उनकी सहायता करती है तो आज भी वह बच्चों को अच्छी शिक्षा दे सकती हैं.

Last Updated : Oct 19, 2020, 7:04 PM IST
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