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..तो ऐसी नीतियों से कृषि-उद्यान सेक्टर में पिछड़ा उत्तराखंड, रिसर्च के नाम पर बदहाली - पंडित गोविंद बल्लभ पंत

उत्तराखंड में जिस सेक्टर पर प्रदेश की 80 से 90% जनता निर्भर है, वो सरकारी सुस्ती और लापरवाही की मार झेल रहा है. जी हां, कृषि-उद्यान सेक्टर में तमाम संभावनाएं होने के बावजूद इनमें राज्य कुछ खास प्रगति नहीं कर पाया है. बात सिर्फ उद्यान की करें तो यहां हालात और भी खराब हैं. आलम ये है कि यहां अधिकारी निदेशालय में बैठना भी पसंद नहीं करते. नतीजन, अल्मोड़ा के चौबटिया में बना निदेशालय सफेद हाथी बन कर रह गया है.

Directorate Of Horticulture And Food Processing Chaubatiya
चौबटिया में उद्यान निदेशालय और शोध संस्थान
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Published : Jun 27, 2022, 1:28 PM IST

Updated : Jun 28, 2022, 1:22 PM IST

देहरादूनः सूबे में सरकार की गलत नीतियां कैसे राज्य वासियों के लिए बड़े नुकसान की वजह बन जाती हैं, इसका उदाहरण प्रदेश के उद्यान विभाग में देखने को मिल रहा है. जी हां, उत्तराखंड में जहां उद्यान के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं, वहां किसान सरकारी सिस्टम और नीतियों की मार झेलता दिखाई देता है.

ताजा उदाहरण अल्मोड़ा जिले के चौबटिया में स्थित निदेशालय और रिसर्च सेंटर का है. जहां न तो अधिकारी जाना चाहता है और न ही इस सेक्टर को बेहतर बनाने के लिए शोध की तरफ कोई ध्यान दिया जा रहा है. आलम ये है कि रिसर्च सेंटर पूरी तरह से बंद हो गया है. निदेशालय में निदेशक महोदय को देखे किसानों को कई साल हो गए हैं.

कृषि-उद्यान सेक्टर में पिछड़ा उत्तराखंड.

बता दें कि साल 1952-53 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने चौबटिया में उद्यान निदेशालय और शोध संस्थान बनवाया था. बागवानी विकास और रोजगार समेत पहाड़ों पर उद्यानिकी की संभावनाओं को लेकर इसे बनाने का निर्णय लिया गया था. यहां पर सेब, माल्टा और खुबानी जैसे कई पर्वतीय फलों की उन्नत किस्मों को तैयार करने की बात कही गई थी. साल 2011 से ही चौबटिया निदेशालय में निदेशकों ने जाना कम कर दिया था. वहीं, त्रिवेंद्र सरकार में चौबटिया स्थित निदेशालय को बंद करने की कोशिश हुई थी.

ये भी पढ़ेंः किसानों को मालामाल करेगा औषधीय गुणों भरपूर गैनोडर्मा मशरूम, जानिए खासियत

त्रिवेंद्र सरकार में चौबटिया स्थित निदेशालय को बंद करने की पेशकश हुई तो इसका कांग्रेस, यूकेडी समेत तमाम किसानों ने भी विरोध किया. मौजूदा सरकार में भी कई किसानों और स्थानीय विधायकों ने भी निदेशालय में निदेशक के बैठने को लेकर उद्यान मंत्री से मांग की है. विभाग के मंत्री भी मानते हैं कि यहां स्थित रिसर्च सेंटर के बंद होने से राज्य उद्यान के सेक्टर में काफी पिछड़ा है. साथ ही माल्टा, खुबानी जैसे पर्वतीय फलों का उत्पादन भी कम हुआ है.

करीब 106.91 हेक्टेयर भूमि में फैले इस निदेशालय में निदेशक समेत तीन उपनिदेशक, दो संयुक्त निदेशक, अपर निदेशक और उद्यान अधिकारियों व कर्मचारियों की लंबी चौड़ी फौज तैनात की गई, लेकिन कोई टिक नहीं पाया. आज भी निदेशालय के सभी महत्वपूर्ण कार्य देहरादून से ही चल रहे हैं. राज्य में भले ही सरकार पहाड़ों की बात करे, लेकिन सरकार के मंत्री और अधिकारी पहाड़ों पर स्थित कार्यालयों को छोड़कर देहरादून में ही रहना पसंद करते हैं. उद्यान विभाग में निदेशक का देहरादून में अस्थाई कार्यालय बना कर बैठना, इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.

ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड के 439 सरकारी स्कूलों में कृषि बागवानी की दी जाएगी शिक्षा, स्वरोजगार को मिलेगा बढ़ावा

बड़ी बात ये है कि उद्यान सेक्टर को आगे बढ़ाने के लिए सबसे जरूरी शोध संस्थान बदहाली से गुजर रहे हैं. इन जगहों पर शोध हो भी रहा है, वहां पर वैज्ञानिकों के खाली पद सरकारी सिस्टम की सुस्ती को जाहिर कर रहे हैं. बहरहाल, उद्यान मंत्री गणेश जोशी ने अब खुद चौबटिया पहुंचकर इसकी खैर खबर लेने की बात कही है.

देहरादूनः सूबे में सरकार की गलत नीतियां कैसे राज्य वासियों के लिए बड़े नुकसान की वजह बन जाती हैं, इसका उदाहरण प्रदेश के उद्यान विभाग में देखने को मिल रहा है. जी हां, उत्तराखंड में जहां उद्यान के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं, वहां किसान सरकारी सिस्टम और नीतियों की मार झेलता दिखाई देता है.

ताजा उदाहरण अल्मोड़ा जिले के चौबटिया में स्थित निदेशालय और रिसर्च सेंटर का है. जहां न तो अधिकारी जाना चाहता है और न ही इस सेक्टर को बेहतर बनाने के लिए शोध की तरफ कोई ध्यान दिया जा रहा है. आलम ये है कि रिसर्च सेंटर पूरी तरह से बंद हो गया है. निदेशालय में निदेशक महोदय को देखे किसानों को कई साल हो गए हैं.

कृषि-उद्यान सेक्टर में पिछड़ा उत्तराखंड.

बता दें कि साल 1952-53 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने चौबटिया में उद्यान निदेशालय और शोध संस्थान बनवाया था. बागवानी विकास और रोजगार समेत पहाड़ों पर उद्यानिकी की संभावनाओं को लेकर इसे बनाने का निर्णय लिया गया था. यहां पर सेब, माल्टा और खुबानी जैसे कई पर्वतीय फलों की उन्नत किस्मों को तैयार करने की बात कही गई थी. साल 2011 से ही चौबटिया निदेशालय में निदेशकों ने जाना कम कर दिया था. वहीं, त्रिवेंद्र सरकार में चौबटिया स्थित निदेशालय को बंद करने की कोशिश हुई थी.

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त्रिवेंद्र सरकार में चौबटिया स्थित निदेशालय को बंद करने की पेशकश हुई तो इसका कांग्रेस, यूकेडी समेत तमाम किसानों ने भी विरोध किया. मौजूदा सरकार में भी कई किसानों और स्थानीय विधायकों ने भी निदेशालय में निदेशक के बैठने को लेकर उद्यान मंत्री से मांग की है. विभाग के मंत्री भी मानते हैं कि यहां स्थित रिसर्च सेंटर के बंद होने से राज्य उद्यान के सेक्टर में काफी पिछड़ा है. साथ ही माल्टा, खुबानी जैसे पर्वतीय फलों का उत्पादन भी कम हुआ है.

करीब 106.91 हेक्टेयर भूमि में फैले इस निदेशालय में निदेशक समेत तीन उपनिदेशक, दो संयुक्त निदेशक, अपर निदेशक और उद्यान अधिकारियों व कर्मचारियों की लंबी चौड़ी फौज तैनात की गई, लेकिन कोई टिक नहीं पाया. आज भी निदेशालय के सभी महत्वपूर्ण कार्य देहरादून से ही चल रहे हैं. राज्य में भले ही सरकार पहाड़ों की बात करे, लेकिन सरकार के मंत्री और अधिकारी पहाड़ों पर स्थित कार्यालयों को छोड़कर देहरादून में ही रहना पसंद करते हैं. उद्यान विभाग में निदेशक का देहरादून में अस्थाई कार्यालय बना कर बैठना, इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.

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बड़ी बात ये है कि उद्यान सेक्टर को आगे बढ़ाने के लिए सबसे जरूरी शोध संस्थान बदहाली से गुजर रहे हैं. इन जगहों पर शोध हो भी रहा है, वहां पर वैज्ञानिकों के खाली पद सरकारी सिस्टम की सुस्ती को जाहिर कर रहे हैं. बहरहाल, उद्यान मंत्री गणेश जोशी ने अब खुद चौबटिया पहुंचकर इसकी खैर खबर लेने की बात कही है.

Last Updated : Jun 28, 2022, 1:22 PM IST
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