ओरक्षा: 'बुन्देलखण्ड की अयोध्या' कहे जाने वाले ओरछा में भगवान राम मंदिर में नहीं बल्कि रसोई घर में बैठकर अपनी सत्ता चला रहे हैं. जो चतुर्भुज मन्दिर उनके लिए बनवाया गया, वह आज भी अधूरा और खाली पड़ा है. इसके पीछे कई मान्यताएं हैं.
लोगों के बीच सबसे ज्यादा मान्य है कि ओरछा के महाराजा मधुकर शाह जी कृष्ण भक्त थे और उनकी महारानी राम भक्त थी. दोनों में हमेशा इस बात को लेकर झगड़ा बना रहता था कि हमारे भगवान बड़े हैं और हमारे भगवान बड़े हैं. एक दिन महाराजा बोले कि तुम अपने राम को ओरछा लेकर आओ तो मै समझूंगा कि तुम्हारी भक्ति और तुम्हारे राम बड़े हैं. महाराजा की चुनौती स्वीकार कर ओरछा की महारानी कुंअर गणेश राम राजा की भक्ति करने ओरछा से अयोध्या निकल पड़ीं.
जब महारानी ने भगवान से की ओरक्षा आने की प्रार्थना
उन्होंने सालों तपस्या की. जिससे प्रसन्न होकर भगवान ने उनको दर्शन दिए और महारानी से उनके तप करने का कारण पूछा. जिसपर महारानी ने भगवान से ओरछा चलने के लिए कहा. रामजी ने इससे मना किया और कहा कि वह अयोध्या कैसे छोड़ सकते हैं, यहां पर भी हमारे भक्त हैं. इस पर महारानी ने कहा कि आप दिन में ओरछा में रहना और रात्रि में अयोध्या वापिस आ जाना और जैसे ही सुबह हो तो आप फिर से ओरछा आ जाया करना. तो भगवान राम ने महारानी के सामने 3 शर्तें रखीं.
राम जी की 3 शर्तें
पहली शर्त थी कि वह महीने में केवल पुष्य नक्षत्र में चलेंगे वह भी पैदल. दूसरी शर्त थी कि वह एक बार जहां पर बैठ जायेंगे तो फिर नहीं उठेंगे और उनका मंदिर वहीं पर बनेगा. तीसरी शर्त थी कि वह ओरछा के राजा बनेंगे और महाराजा के साथ महारानी को राजधानी छोड़नी पड़ेगी. महारानी ने भगवान राम की सभी शर्तें मानते हुए उनको गोद में बिठाकर बाल रूप में ओरछा लाईं. जैसे ही महारानी ओरछा आयीं तो सबसे पहले वह भगवान राम को लेकर अपनी रसोई में पहुंची.
उन्होंने वहीं पर भगवान को बैठा दिया और अपनी सहेलियों को भगवान के दर्शन करवाये. जब उन्होंने भगवान राम को उठाने का प्रयास किया तो भगवान का वजन इतना अधिक हो गया था कि वह महारानी से नहीं उठे. फिर महारानी को वह शर्त याद आई जिसमें राम राजा ने कहा था कि एक बार जहां बैठ जाऊंगा, फिर नहीं उठूंगा. इसके बाद महारानी ने रसोई खाली कर राम राजा का मन्दिर रशोई में ही बनवा दिया और तभी से राम राजा उसी रसोई में बैठकर अपनी सरकार चला रहे हैं.
एक और मान्यता
इसको लेकर दूसरी मान्यता है कि ओरछा के राजा ने ठीक चतुर्भुज मंदिर के सामने अपना किला बनवाया था और उसमें एक खिड़की बनवायी. जिससे वह किले में बैठकर ही राम राजा को देख सकें. लेकिन राम राजा ने महारानी की मति फेर दी, जिससे महारानी ने उनको रशोई में रख दिया और शर्त के मुताबिक राम राजा वहां से नहीं उठे. ओरछा के राजा मधुकर शाह ने अपनी ओरछा राजधानी राजा राम को दी और अपनी राजधानी टीकमगढ़ बसाई. यह देश का अकेला मंदिर है जहां भगवान राम को राजा के रुप में पूजा और माना जाता है.