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बप्पा की विदाई की आई बेला, जानें गणेश विसर्जन की विधि

गणेश उत्सव के दौरान प्रथम दिन जिस श्रद्धाभाव से गणेश जी को स्थापित किया जाता है, उससे कहीं ज्यादा श्रद्धाभाव संग उनका विसर्जन होता है. इन सबके बीच सबसे जरूरी और अहम बात यह है कि विसर्जन कैसे करें?

गणेश विसर्जन की विधि
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Published : Sep 10, 2019, 11:36 PM IST

वाराणसी: 10 दिन की आवभगत के बाद बप्पा को विदाई देने का अब वक्त आ गया है. सार्वजनिक गणेशोत्सव से लेकर घरों तक में विराजे गणपति विसर्जन के लिए जाएंगे, जिसे लेकर तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. इन सबके बीच सबसे जरूरी और अहम सवाल यह है कि विसर्जन कैसे करें? क्यों सरोवर या नदी के जल में ही विसर्जन शास्त्र सम्मत माना गया है?

दो तरह की होती हैं प्रतिमाएं
विसर्जन को लेकर ज्योतिषाचार्य का कहना है कि मूर्ति पूजन के आठ रूप माने जाते हैं, जिनमें मिट्टी, पत्थर, लोहे की प्रतिमा के साथ अन्य कई तरह की प्रतिमाएं शामिल हैं. चल और अचल दो तरह की प्रतिमाएं मुख्य रूप से लोग स्थापित करते हैं. चल प्रतिमाएं मिट्टी या अन्य किसी पदार्थ से बनती हैं, जबकि अचल प्रतिमाएं पत्थर, मार्बल या अन्य पदार्थ की होती है.

मिट्टी की प्रतिमा अधिकतर पूजा उत्सव में होती है स्थापित
ऐसी स्थिति में जो चल प्रतिमाएं होती हैं, उनका एक समय तक पूजन-पाठ करने के बाद विसर्जित करने का विधान शास्त्रों में कहा गया है, क्योंकि मिट्टी की प्रतिमा अधिकतर पूजा उत्सव में स्थापित की जाती हैं. विधि-विधान से पूजन होता है. जैसा कि गणेश प्रतिमा में भी होता है.

विसर्जन की विधि
गणेश उत्सव के दौरान प्रथम दिन जिस श्रद्धाभाव से गणेशजी को स्थापित किया जाता है, उससे कहीं ज्यादा श्रद्धाभाव संग उनका विसर्जन होता है. मिट्टी की प्रतिमा को बहते नदी या सरोवर में इसलिए विसर्जन किया जाता है, क्योंकि मिट्टी उसमें घुल कर खत्म हो जाती है. ऐसी स्थिति में शास्त्रों में निर्धारित अवधि तक पूजन-पाठ करने के बाद प्रतिमा को विसर्जित करने का यही तरीका बताया गया है, जो अग्नि पुराण में भी वर्णित है.

कुंड या सरोवर में प्रतिमा का विसर्जन करने से पहले मंत्रोच्चारण के साथ भगवान गणेश की प्रतिमा को हिलाया जाता है. इसके बाद किसी वाहन पर रखकर गाजे-बाजे के साथ अबीर-गुलाल खेलते हुए विसर्जन करने जाना चाहिए. इसके पहले भगवान गणेश का विधिवत पूजन-पाठ कर महाआरती का आयोजन करना चाहिए.

वाराणसी: 10 दिन की आवभगत के बाद बप्पा को विदाई देने का अब वक्त आ गया है. सार्वजनिक गणेशोत्सव से लेकर घरों तक में विराजे गणपति विसर्जन के लिए जाएंगे, जिसे लेकर तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. इन सबके बीच सबसे जरूरी और अहम सवाल यह है कि विसर्जन कैसे करें? क्यों सरोवर या नदी के जल में ही विसर्जन शास्त्र सम्मत माना गया है?

दो तरह की होती हैं प्रतिमाएं
विसर्जन को लेकर ज्योतिषाचार्य का कहना है कि मूर्ति पूजन के आठ रूप माने जाते हैं, जिनमें मिट्टी, पत्थर, लोहे की प्रतिमा के साथ अन्य कई तरह की प्रतिमाएं शामिल हैं. चल और अचल दो तरह की प्रतिमाएं मुख्य रूप से लोग स्थापित करते हैं. चल प्रतिमाएं मिट्टी या अन्य किसी पदार्थ से बनती हैं, जबकि अचल प्रतिमाएं पत्थर, मार्बल या अन्य पदार्थ की होती है.

मिट्टी की प्रतिमा अधिकतर पूजा उत्सव में होती है स्थापित
ऐसी स्थिति में जो चल प्रतिमाएं होती हैं, उनका एक समय तक पूजन-पाठ करने के बाद विसर्जित करने का विधान शास्त्रों में कहा गया है, क्योंकि मिट्टी की प्रतिमा अधिकतर पूजा उत्सव में स्थापित की जाती हैं. विधि-विधान से पूजन होता है. जैसा कि गणेश प्रतिमा में भी होता है.

विसर्जन की विधि
गणेश उत्सव के दौरान प्रथम दिन जिस श्रद्धाभाव से गणेशजी को स्थापित किया जाता है, उससे कहीं ज्यादा श्रद्धाभाव संग उनका विसर्जन होता है. मिट्टी की प्रतिमा को बहते नदी या सरोवर में इसलिए विसर्जन किया जाता है, क्योंकि मिट्टी उसमें घुल कर खत्म हो जाती है. ऐसी स्थिति में शास्त्रों में निर्धारित अवधि तक पूजन-पाठ करने के बाद प्रतिमा को विसर्जित करने का यही तरीका बताया गया है, जो अग्नि पुराण में भी वर्णित है.

कुंड या सरोवर में प्रतिमा का विसर्जन करने से पहले मंत्रोच्चारण के साथ भगवान गणेश की प्रतिमा को हिलाया जाता है. इसके बाद किसी वाहन पर रखकर गाजे-बाजे के साथ अबीर-गुलाल खेलते हुए विसर्जन करने जाना चाहिए. इसके पहले भगवान गणेश का विधिवत पूजन-पाठ कर महाआरती का आयोजन करना चाहिए.

Intro:स्पेशल स्टोरी गणेश प्रतिमा विसर्जन के लिए सुधीर सर के विशेष ध्यानार्थ....

वाराणसी: 10 दिन की आवभगत के बाद अब वक्त आ गया है बप्पा को विदाई देने का सार्वजनिक गणेशोत्सव से लेकर घरों में विराजे गणपति विसर्जन के लिए जाएंगे जिसे लेकर तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं इन सबके बीच सबसे जरूरी और अहम सवाल यह है कि विसर्जन कैसे करें और क्यों सरोवर या नदी के जल में ही विसर्जन शास्त्र सम्मत माना गया है इस बारे में काशी के विद्वानों का क्या कहना है जानिए.


Body:वीओ-01 विसर्जन को लेकर ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि मूर्ति पूजन के 8 रूप माने जाते हैं जिनमें मिट्टी की प्रतिमा पत्थर की प्रतिमा लोहे की प्रतिमा के साथ अन्य कई तरह की प्रतिमाएं शामिल हैं चल और अचल दो तरह की प्रतिमाएं मुख्य रूप से लोग स्थापित करते हैं जल प्रतिमाएं मिट्टी या अन्य किसी पदार्थ से बनती हैं जबकि अचल प्रतिमाएं पत्थर की होती हैं या मार्बल व अन्य पदार्थ की ऐसी स्थिति में जो चल प्रतिमाएं होती हैं उनका एक समय तक पूजन पाठ करने के बाद विसर्जित करने का विधान शास्त्रों में कहा गया है क्योंकि मिट्टी की प्रतिमा अधिकांश पूजा उत्सव में स्थापित की जाती हैं विधि-विधान सिंह का पूजन होता है जैसा कि गणेश प्रतिमा में भी होता है गणेश उत्सव के दौरान प्रथम दिन श्रद्धा भाव से गणेशजी को स्थापित किया जाता है उससे कहीं ज्यादा श्रद्धा भाव संग उनका विसर्जन होता है. क्योंकि मिट्टी की प्रतिमा को बहते नदी जल सरोवर में इसलिए पाया जाता है क्योंकि मिट्टी उस में घुल मिलकर खत्म हो जाती है ऐसी स्थिति में शास्त्रों में निर्धारित अवधि तक पूजन पाठ करने के बाद प्रतिमा को विसर्जन करने का यही तरीका बताया गया है जो अग्नि पुराण में भी वर्णित है.


Conclusion:वीओ-02 पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि कुंड या सरोवर में प्रतिमा का विसर्जन करने से पहले मंत्रोच्चारण के साथ भगवान गणेश की प्रतिमा को हिलाने के बाद फिर उसे किसी वाहन पर रखकर गाजे-बाजे के साथ अबीर गुलाल खेलते हुए का विसर्जन करने जाना चाहिए इसके पहले भगवान गणेश का विधिवत पूजन पाठ कर महाआरती का आयोजन करना चाहिए.

बाईट - पंडित पवन त्रिपाठी, ज्योतिषाचार्य


गोपाल मिश्र

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