देहरादून: कांग्रेस ने भले ही उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 (Uttarakhand Assembly Election 2022) को लेकर कोई चेहरा तय न किया हो लेकिन अमित शाह के देहरादून दौरे ने आगामी चुनाव के मोदी वर्सेस हरीश रावत ((Modi VS Harish Rawat) होने के कुछ संकेत दे दिए हैं. हालांकि, कांग्रेस कभी नहीं चाहेगी कि चुनाव मोदी के चेहरे पर हो. ऐसे में भाजपा की कोशिश मतदाताओं का पूरा ध्यान मोदी पर ही केंद्रित करने की होगी. ऐसे हालातों में जाहिर है कि चुनाव खुद-ब-खुद मोदी वर्सेस हरीश रावत बन जाएगा.
राजनीति में छोटे से छोटा मुद्दा कितना अहम होता है. इस बात को राष्ट्रीय दल अच्छी तरह से जानते हैं. इसीलिए चुनावों से पहले मुद्दों का चुनाव करना हो या चेहरे का, हर बिंदु पर बेहद बारीकी से उसका नफा और नुकसान भांपने के बाद ही फैसला लिया जाता है. उत्तराखंड में भी विधानसभा चुनाव नजदीक हैं. ऐसे ही कुछ बिंदुओं और मुद्दों को लेकर इन दिनों राजनीतिक बिसात बिछाई जा रही है.
राजनीतिक जौहरी मुद्दों की परख करने के बाद उन्हें जनता के बीच सरका रहे हैं, फिर उस पर आई प्रतिक्रिया के लिहाज से आगे की रणनीति तैयार की जा रही है. फिलहाल, राजनीतिक पैंतरा बीजेपी की तरफ से चला गया है और अमित शाह के दौरे के जरिए प्रदेश में हरीश रावत को आजमाने की कोशिश की गई है.
हालांकि, बीजेपी की ये कोशिश जाने अनजाने प्रदेश की राजनीति में मोदी वर्सेस हरीश रावत को बढ़ावा दे रही है. वह बात अलग है कि बीजेपी इस बात को सार्वजनिक रूप से मानने को तैयार नहीं कि पार्टी मोदी के चेहरे पर चुनाव को हरीश रावत और कांग्रेस से छीनना चाहती है.
इस मामले पर बीजेपी विधायक खजान दास कहते हैं कि हरीश रावत भले ही प्रदेश के बड़े नेता हो सकते हैं लेकिन उनकी मोदी से कोई तुलना नहीं है. हरीश रावत का इतना कद नहीं है कि उनका नाम मोदी के सामने लिया जाए. खजान दास, अमित शाह द्वारा हरीश रावत पर लगाए गए आरोपों को सच कहने से जोड़ते हैं और हरीश रावत की सरकार द्वारा किए गए गलत कामों को अमित शाह द्वारा बताए जाने की बात कह रहे हैं.
उत्तराखंड में बीजेपी का एक सूत्रीय एजेंडा चुनाव को मोदी के चेहरे पर ले जाना होगा. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दौरे से यह साफ हो गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राज्य को दी गई विभिन्न योजनाओं पर चुनाव लड़ा जाएगा. अपने भाषण के दौरान अमित शाह ने साफ किया कि ₹85 हजार करोड़ की योजनाएं केंद्र की तरफ से राज्य को दी गई, जबकि कांग्रेस ने पिछले 10 सालों में भी इससे आधा काम नहीं किया.
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उधर, सांप्रदायिक मुद्दों पर भी चुनाव की रूपरेखा को आगे बढ़ाया जाएगा. अमित शाह की जनसभा के दौरान कांग्रेस सरकार में शुक्रवार को छुट्टी करने की बात कहना और नेशनल हाईवे को नमाज पढ़ने के लिए खाली करने का तर्क देना यह साफ जाहिर कर देता है.
शाह के निशाने पर रहे हरीश रावत: अमित शाह ने अपने पूरे भाषण के दौरान करीब 8 मिनट हरीश रावत या उनकी योजनाओं से जुड़ी बातों में ही बिता दिए. जाहिर है कि 29 मिनट के अपने भाषण में 8 से 10 मिनट हरीश रावत को देना, किसी खास एजेंडे की तरफ इशारा करता है. हरीश रावत को निशाना बनाकर एक तरफ उन्होंने कांग्रेस शासन काल में जनता के बीच गलत नीतियों के प्रचार को फिर से याद दिलाने की कोशिश की तो दूसरी तरफ केंद्रीय योजनाओं का जिक्र करते हुए चुनाव में मोदी के काम वर्सेस हरीश रावत की सरकार को प्रचारित करने की कोशिश की. इससे साफ है कि अमित शाह हरीश रावत को निशाना बनाकर चुनाव को मोदी वर्सेस हरीश रावत करना चाहते थे.
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भारतीय जनता पार्टी भले ही पहले दिन से ही इस चुनाव को मोदी के चेहरे पर लड़ना चाहती हो लेकिन कांग्रेस ऐसा बिल्कुल भी नहीं चाहती. कांग्रेस का मानना है कि यह चुनाव विकास पर लड़ा जाएगा और हरीश रावत को लेकर जो डर भाजपा के अंदर है, उस डर की वजह से ही प्रदेश से लेकर केंद्र तक के नेता हरीश रावत का नाम लेकर उन्हें निशाना बना रहे हैं.
स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लडना कांग्रेस का मकसद: उत्तराखंड कांग्रेस का मकसद इस चुनाव को स्थानीय मुद्दों पर लाना है. कांग्रेस चाहती है कि मोदी के नाम पर चुनाव केंद्रित ना हो बल्कि स्थानीय मुद्दों पर चुनाव को लाया जाए, ताकि उत्तराखंड में तीन-तीन मुख्यमंत्री देने से लेकर राज्य सरकार की उपलब्धियों पर ही पूरा चुनाव हो. कांग्रेस इस बात को अच्छी तरह जानती है कि राज्य सरकार के पास विकास कार्यों को गिनाने के बहुत ज्यादा मुद्दे नहीं हैं.
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उत्तराखंड कांग्रेस को विधानसभा चुनाव 2022 में बेरोजगारी से लेकर महंगाई तक का फायदा भी मिलेगा. ऐसे में मोदी लहर का जरा भी फायदा बीजेपी को ना हो, इसलिए कांग्रेस इस चुनाव को स्थानीय मुद्दों पर लड़ना चाहती है. उधर, हरीश रावत चाहते हैं कि चुनाव उनके चेहरे बनाम राज्य के मुख्यमंत्री के बीच हों ताकि चुनाव स्थानीय भी रहें और कांग्रेस को उनके नाम का फायदा भी मिल सके.
कांग्रेस के पास मौका: बीजेपी जानती है कि मोदी मैजिक का क्या असर होता है ? प्रदेश में पहली बार 57 सीटों का प्रचंड बहुमत बीजेपी को मिला और कांग्रेस को इससे बड़ा सबक मिला. ऐसे में इसी सबक को याद करते हुए कांग्रेस मोदी नाम से परहेज करना चाहेगी. उधर, हरीश रावत के पास अपने नाम को आगे लाकर साल 2017 में उन पर लगे कलंक को मिटाने की कोशिश होगी. कोशिश होगी कि साल 2017 में 2 सीटों से हारने और महज 11 सीटों पर सिमटने के इतिहास को बदला जा सके और राज्य की सत्ता पर एक बार फिर काबिज हो सके.