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जल्द लागू होगी कीड़ा जड़ी पॉलिसी, स्मगलिंग पर लगेगी लगाम

कीड़ा-जड़ी की नियमावली को लेकर बोलते हुए प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने बताया कि कीड़ा-जड़ी पॉलिसी की जानकारी सभी डीएफओ को दे दी गई है. साथ ही इस पॉलिस का धरातल पर इंप्लीमेंटेशन शुरू हो गया है.

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जल्द धरातल पर इम्प्लीमेंट होगी कीड़ा जड़ी पॉलिसी
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Published : Oct 29, 2020, 6:49 PM IST

Updated : Oct 29, 2020, 7:00 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड राज्य ना सिर्फ पर्यटन क्षेत्र के लिहाज से महत्वपूर्ण है बल्कि उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रो में हजारों प्रकार की जड़ी- बूटियां भी पाई जाती हैं, जिनसे बड़ी से बड़ी बीमारियों से निजात मिलती है. कीड़ा-जड़ी उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाने वाली इन्हीं जड़ी- बूटियों में शामिल है. उत्तराखंड सरकार ने कीड़ा-जड़ी के दोहन और व्यापार को लेकर नियमावली पहले ही तैयार कर दी है. इसके बाद भी अभी तक यह नियमावली धरातल पर नहीं उतर पायी है.

कीड़ा-जड़ी को लेकर बनाई गई नियमावली के धरातलीय इम्प्लीमेंट पर बोलते हुए वन प्रमुख संरक्षक जयराज ने बताया कि अभी तक कीड़ा जड़ी को लेकर कोई नीति नहीं बनी थी. मगर अब अब कीड़ा जड़ी के चुगान और व्यापार को लेकर नीति बना दी गई है. जिसमें कीड़ा जड़ी का किस तरह से चुगान किया जाना है. इसका जिक्र किया गया है. इसके साथ ही कीड़ा जड़ी का उत्पादन कितना होता है, किस स्थान से सप्लाई होती है, किस तरह से इसे संरक्षित किया जाना है आदि तमाम जानकारियां इसमें निहित की गई हैं.

जल्द धरातल पर इम्प्लीमेंट होगी कीड़ा जड़ी पॉलिसी

पढ़ें- काशीपुर: IPL में ऑनलाइन सट्टा लगाते 4 गिरफ्तार, 1.49 लाख रुपया बरामद

प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने बताया कि कीड़ा-जड़ी कि इस पॉलिसी की जानकारी सभी डीएफओ को दे दी गई है. इसके साथ ही इससे जुड़े सभी लोगों को जानकारियां दे दी गई हैं. इस पॉलिस का धरातल पर इंप्लीमेंटेशन शुरू हो गया है. अभी फिलहाल इसे पूर्ण रूप से धरातल पर उतारने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है. यही नहीं, अमूमन तौर पर जो कीड़ा जड़ी, चीन में स्मगलिंग की जाती है उस पर भी लगाम लगाने के लिए नियमावली में प्रावधान किया गया है. जैसे ही नियमावली धरातल पर उतरेगी उसके बाद स्मगलिंग पर भी लगाम लगेगी.

पढ़ें- प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज के लिए जेब करनी पड़ रही ढीली, शासन को भेजे प्रस्ताव पर अभी नहीं हुआ विचार

क्या है कीड़ा-जड़ी

कीड़ा जड़ी एक तरह की फफूंद है, ये जड़ी पहाड़ों के लगभग 3,500 मीटर की ऊंचाई वाले इलाकों में पाई जाती है. जहां ट्रीलाइन ख़त्म हो जाती है, यानी जहां पेड़ उगने बंद हो जाते हैं. एक कीट का प्यूपा लगभग 5 साल पहले हिमालय और तिब्बत के पठारों में भूमिगत रहता है. इसके बाद यह फफूंदी (मशरूम) सूंडी के माथे से निकलती है.

पढ़ें- रेखा आर्य ने कोटली कुलाऊ गांव में वृद्ध महिलाओं को किया सम्मानित

कीड़ा जड़ी की पहचान

कीड़ा जड़ी मुख्य रूप से एक कीड़े के रूप में एक जड़ी बूटी होती है. उगते समय हरे रंग की होती है. कीड़ा जड़ी खुरदरी होती है. यह कई जगहों से नुकीली होती है. खाने के लिए इसे या तो छीला जाता है या फिर कीड़ा जड़ी को चूर्ण या पाउडर के रूप में पीसा जाता है.

पढ़ें- एक से सात नवंबर तक चलेगा पल्स पोलियो अभियान, प्रशासन ने कसी कमर

कीड़ा-जड़ी के औषधीय गुण

  • कीड़ा जड़ी या यार्सगुम्बा को फेफड़ों और गुर्दे को मजबूत करने, ऊर्जा और जीवन शक्ति को बढ़ाने, रक्तचाप को रोकने, कर्कश को कम करने के लिए भी शक्तिशाली माना जाता है.
  • कीड़ा जड़ी या यार्सगुम्बा पारंपरिक रूप से नपुंसकता, पीठ दर्द, शुक्राणु उत्पादन में वृद्धि और रक्त उत्पादन में वृद्धि के लिए उपयोग किया जाता है.
  • यार्सगुम्बा या यारचगुम्बा का उपयोग अस्थि मज्जा बनाने के लिए विशेष रूप से अतिरिक्त थकावट, पुरानी खांसी और अस्थमा, नपुंसकता, दुर्बलता, एनीमिया के लिए किया जाता है.
  • कीड़ा जड़ी को सांस, अस्थमा, नपुंसकता, उत्सर्जन, कमर और घुटनों, चक्कर आना और टिनिटस की सूजन की कमी के लिए लिया जाता है.
  • कीड़ा जड़ी का उपयोग ट्यूमर रोगियों की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए भी किया जाता है, जिन्हें रेडियोथेरेपी, कीमोथेरेपी या ऑपरेशन कॉर्डिसप्स या यार्सगुम्बा या यारचगुम्बा प्राप्त किया जाता है, प्राकृतिक वियाग्रा भी उपयोग किया जा सकता है.
  • शरीर को प्रतिरोध करने और वायरस और बैक्टीरिया से होने वाले हमलों का सामना करने में मदद करने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को सुदृढ़ करने में.
  • ट्यूमर की गतिविधि रोकता है.
  • रात में नींद की समस्याएं नियंत्रित करती है और इस प्रकार नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है, इससे न्यूटुरिया की गंभीरता भी कम हो जाती है.
  • रक्त परिसंचरण में सुधार करता है और रक्तचाप को नियंत्रित करता है.
  • ट्राइग्लिसराइड्स और कोलेस्ट्रॉल स्तर को कम करे, इस प्रकार कार्डियोवैस्कुलर हीथ को बढ़ावा देना.
  • पुरुषों में यौन उत्थान में सुधार और महिलाओं में बांझपन का मुकाबला भी करता है.
  • एराइथेमिया को कम करता है, इस प्रकार दिल की रक्षा करता है.
  • एलर्जी का प्रतिरोध करता है.
  • जीवन शक्ति और सहनशक्ति बढ़ाता है। यह थकान को कम करने, शारीरिक धीरज और मानसिक तीक्षणता बढ़ाने में विशेष रूप से उपयोगी है.
  • यकृत, फेफड़े और गुर्दे की समस्या को नियंत्रित करता है. यह श्वसन समस्याओं का भी प्रतिरोध करता है.
  • कमर और घुटनों के दर्द को कम करता है.
  • रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी के कारण दुष्प्रभावों को निष्क्रिय करता है.
  • मुक्त कट्टरपंथी क्षति और ऑक्सीडेटिव तनाव के खिलाफ सुरक्षा करता है, इस प्रकार उम्र बढ़ने के प्रभाव को धीमा कर देता है.

कीड़ा-जड़ी के फायदे

  • ये रक्त में ग्लूकोज का मेटाबोलिज्म संतुलित करता है. इन्सुलिन के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाता है. ये रक्त में शक्कर की मात्रा को कम करके रक्त शर्करा नियंत्रित रखता है.
  • श्वास सम्बन्धी समस्याओं के लिए ये अत्यधिक फायदेमंद होता है. कफ, ब्रोंकाइटिस, अस्थमा आदि समस्याओं में बहुत लाभदायक होता है. चीन में, इसे अस्थमा के इलाज के रूप में दिया जाता है.
  • यह किडनी के लिए भी उपयोगी होता है. उसका सशक्तिकरण करता है. यह किडनी से सम्बंधित रोगों से भी बचाता है. यह लिवर के लिए भी लाभदायक होता है. यह किडनी का संतुलन बनाये रखने में मदद करता है.
  • यह सेल्स तक अधिक ऑक्सीजन का विस्तार करता है. सहनशीलता बढ़ाता है. यह सेलुलर एटीपी में लगभग 28% (एडेनोसाइन त्रि-फॉस्फेट, फॉस्फेट खोकर सेल में ऊर्जा को जारी करता है. एडेनोसाइन के तीन फॉस्फेट रूप से दो फॉस्फेट रूप या एडीपी) बढ़ाता है. ऑक्सीजन की उपयोगिता भी बढ़ाता है.
  • यह पुरुष और महिलाओं, दोनों में प्रजनन क्षमता बढ़ाता है. यह प्रजनन कार्यों में सुधार और शुक्राणुओं की संख्या में वृद्धि करता है. यह शुक्राणुजन्य को भी बढ़ावा देता है.

देहरादून: उत्तराखंड राज्य ना सिर्फ पर्यटन क्षेत्र के लिहाज से महत्वपूर्ण है बल्कि उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रो में हजारों प्रकार की जड़ी- बूटियां भी पाई जाती हैं, जिनसे बड़ी से बड़ी बीमारियों से निजात मिलती है. कीड़ा-जड़ी उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाने वाली इन्हीं जड़ी- बूटियों में शामिल है. उत्तराखंड सरकार ने कीड़ा-जड़ी के दोहन और व्यापार को लेकर नियमावली पहले ही तैयार कर दी है. इसके बाद भी अभी तक यह नियमावली धरातल पर नहीं उतर पायी है.

कीड़ा-जड़ी को लेकर बनाई गई नियमावली के धरातलीय इम्प्लीमेंट पर बोलते हुए वन प्रमुख संरक्षक जयराज ने बताया कि अभी तक कीड़ा जड़ी को लेकर कोई नीति नहीं बनी थी. मगर अब अब कीड़ा जड़ी के चुगान और व्यापार को लेकर नीति बना दी गई है. जिसमें कीड़ा जड़ी का किस तरह से चुगान किया जाना है. इसका जिक्र किया गया है. इसके साथ ही कीड़ा जड़ी का उत्पादन कितना होता है, किस स्थान से सप्लाई होती है, किस तरह से इसे संरक्षित किया जाना है आदि तमाम जानकारियां इसमें निहित की गई हैं.

जल्द धरातल पर इम्प्लीमेंट होगी कीड़ा जड़ी पॉलिसी

पढ़ें- काशीपुर: IPL में ऑनलाइन सट्टा लगाते 4 गिरफ्तार, 1.49 लाख रुपया बरामद

प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने बताया कि कीड़ा-जड़ी कि इस पॉलिसी की जानकारी सभी डीएफओ को दे दी गई है. इसके साथ ही इससे जुड़े सभी लोगों को जानकारियां दे दी गई हैं. इस पॉलिस का धरातल पर इंप्लीमेंटेशन शुरू हो गया है. अभी फिलहाल इसे पूर्ण रूप से धरातल पर उतारने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है. यही नहीं, अमूमन तौर पर जो कीड़ा जड़ी, चीन में स्मगलिंग की जाती है उस पर भी लगाम लगाने के लिए नियमावली में प्रावधान किया गया है. जैसे ही नियमावली धरातल पर उतरेगी उसके बाद स्मगलिंग पर भी लगाम लगेगी.

पढ़ें- प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज के लिए जेब करनी पड़ रही ढीली, शासन को भेजे प्रस्ताव पर अभी नहीं हुआ विचार

क्या है कीड़ा-जड़ी

कीड़ा जड़ी एक तरह की फफूंद है, ये जड़ी पहाड़ों के लगभग 3,500 मीटर की ऊंचाई वाले इलाकों में पाई जाती है. जहां ट्रीलाइन ख़त्म हो जाती है, यानी जहां पेड़ उगने बंद हो जाते हैं. एक कीट का प्यूपा लगभग 5 साल पहले हिमालय और तिब्बत के पठारों में भूमिगत रहता है. इसके बाद यह फफूंदी (मशरूम) सूंडी के माथे से निकलती है.

पढ़ें- रेखा आर्य ने कोटली कुलाऊ गांव में वृद्ध महिलाओं को किया सम्मानित

कीड़ा जड़ी की पहचान

कीड़ा जड़ी मुख्य रूप से एक कीड़े के रूप में एक जड़ी बूटी होती है. उगते समय हरे रंग की होती है. कीड़ा जड़ी खुरदरी होती है. यह कई जगहों से नुकीली होती है. खाने के लिए इसे या तो छीला जाता है या फिर कीड़ा जड़ी को चूर्ण या पाउडर के रूप में पीसा जाता है.

पढ़ें- एक से सात नवंबर तक चलेगा पल्स पोलियो अभियान, प्रशासन ने कसी कमर

कीड़ा-जड़ी के औषधीय गुण

  • कीड़ा जड़ी या यार्सगुम्बा को फेफड़ों और गुर्दे को मजबूत करने, ऊर्जा और जीवन शक्ति को बढ़ाने, रक्तचाप को रोकने, कर्कश को कम करने के लिए भी शक्तिशाली माना जाता है.
  • कीड़ा जड़ी या यार्सगुम्बा पारंपरिक रूप से नपुंसकता, पीठ दर्द, शुक्राणु उत्पादन में वृद्धि और रक्त उत्पादन में वृद्धि के लिए उपयोग किया जाता है.
  • यार्सगुम्बा या यारचगुम्बा का उपयोग अस्थि मज्जा बनाने के लिए विशेष रूप से अतिरिक्त थकावट, पुरानी खांसी और अस्थमा, नपुंसकता, दुर्बलता, एनीमिया के लिए किया जाता है.
  • कीड़ा जड़ी को सांस, अस्थमा, नपुंसकता, उत्सर्जन, कमर और घुटनों, चक्कर आना और टिनिटस की सूजन की कमी के लिए लिया जाता है.
  • कीड़ा जड़ी का उपयोग ट्यूमर रोगियों की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए भी किया जाता है, जिन्हें रेडियोथेरेपी, कीमोथेरेपी या ऑपरेशन कॉर्डिसप्स या यार्सगुम्बा या यारचगुम्बा प्राप्त किया जाता है, प्राकृतिक वियाग्रा भी उपयोग किया जा सकता है.
  • शरीर को प्रतिरोध करने और वायरस और बैक्टीरिया से होने वाले हमलों का सामना करने में मदद करने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को सुदृढ़ करने में.
  • ट्यूमर की गतिविधि रोकता है.
  • रात में नींद की समस्याएं नियंत्रित करती है और इस प्रकार नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है, इससे न्यूटुरिया की गंभीरता भी कम हो जाती है.
  • रक्त परिसंचरण में सुधार करता है और रक्तचाप को नियंत्रित करता है.
  • ट्राइग्लिसराइड्स और कोलेस्ट्रॉल स्तर को कम करे, इस प्रकार कार्डियोवैस्कुलर हीथ को बढ़ावा देना.
  • पुरुषों में यौन उत्थान में सुधार और महिलाओं में बांझपन का मुकाबला भी करता है.
  • एराइथेमिया को कम करता है, इस प्रकार दिल की रक्षा करता है.
  • एलर्जी का प्रतिरोध करता है.
  • जीवन शक्ति और सहनशक्ति बढ़ाता है। यह थकान को कम करने, शारीरिक धीरज और मानसिक तीक्षणता बढ़ाने में विशेष रूप से उपयोगी है.
  • यकृत, फेफड़े और गुर्दे की समस्या को नियंत्रित करता है. यह श्वसन समस्याओं का भी प्रतिरोध करता है.
  • कमर और घुटनों के दर्द को कम करता है.
  • रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी के कारण दुष्प्रभावों को निष्क्रिय करता है.
  • मुक्त कट्टरपंथी क्षति और ऑक्सीडेटिव तनाव के खिलाफ सुरक्षा करता है, इस प्रकार उम्र बढ़ने के प्रभाव को धीमा कर देता है.

कीड़ा-जड़ी के फायदे

  • ये रक्त में ग्लूकोज का मेटाबोलिज्म संतुलित करता है. इन्सुलिन के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाता है. ये रक्त में शक्कर की मात्रा को कम करके रक्त शर्करा नियंत्रित रखता है.
  • श्वास सम्बन्धी समस्याओं के लिए ये अत्यधिक फायदेमंद होता है. कफ, ब्रोंकाइटिस, अस्थमा आदि समस्याओं में बहुत लाभदायक होता है. चीन में, इसे अस्थमा के इलाज के रूप में दिया जाता है.
  • यह किडनी के लिए भी उपयोगी होता है. उसका सशक्तिकरण करता है. यह किडनी से सम्बंधित रोगों से भी बचाता है. यह लिवर के लिए भी लाभदायक होता है. यह किडनी का संतुलन बनाये रखने में मदद करता है.
  • यह सेल्स तक अधिक ऑक्सीजन का विस्तार करता है. सहनशीलता बढ़ाता है. यह सेलुलर एटीपी में लगभग 28% (एडेनोसाइन त्रि-फॉस्फेट, फॉस्फेट खोकर सेल में ऊर्जा को जारी करता है. एडेनोसाइन के तीन फॉस्फेट रूप से दो फॉस्फेट रूप या एडीपी) बढ़ाता है. ऑक्सीजन की उपयोगिता भी बढ़ाता है.
  • यह पुरुष और महिलाओं, दोनों में प्रजनन क्षमता बढ़ाता है. यह प्रजनन कार्यों में सुधार और शुक्राणुओं की संख्या में वृद्धि करता है. यह शुक्राणुजन्य को भी बढ़ावा देता है.
Last Updated : Oct 29, 2020, 7:00 PM IST

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