देहरादूनः तिलाड़ी कांड की बरसी पर विपक्षी दलों ने गांधी पार्क से घंटाघर तक विशाल जुलूस निकाला. इस दौरान विपक्षी दलों के प्रतिनिधियों ने जोरदार नारेबाजी भी की. प्रदर्शनकारियों ने आक्रोश जताते हुए कहा कि जनता से उनके अधिकार छीने जा रहे हैं. तिलाड़ी कांड के 92 साल बाद भी उनको जल, जंगल आदि के अधिकार नहीं मिल पाए हैं.
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सरकार अतिक्रमण हटाने या विकास परियोजनाओं के नाम पर किसी भी परिवार को बेघर ना करें. इसके साथ ही भू कानून पर 2018 में हुए संशोधन को तुरंत रद्द किया जाए. उत्तराखंड में चकबंदी बंदोबस्त (Land consolidation in Uttarakhand) और स्थानीय विकास के लिए भू-कानून बनाया जाए.
वहीं, समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ सत्यनारायण सचान का कहना है कि प्रदेशवासियों को जल-जंगल-जमीन का अधिकार मिलना चाहिए. उत्तराखंड में वन अधिकार कानून (Forest Rights Act in Uttarakhand) पर अमल पूरी तरह से होना चाहिए. वन अधिकार कानून के तहत वन भूमि में किसी भी संसाधन का इस्तेमाल करने से पहले वहां की स्थानीय ग्राम सभा से अनुमति ली जाए.
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वहीं, प्रदर्शन में शामिल विपक्षी दलों के नेताओं का कहना है कि बड़ी परियोजनाओं को दी जा रही सब्सिडी को खत्म किया जाए. उससे जो निधि बचती है, उसके आधार पर महिला किसानों, महिला मजदूरों, एकल महिलाओं और अन्य शोषित महिलाओं को आर्थिक सहायता दी जाए. इस दौरान प्रदर्शन में सीटू के राज्य सचिव लेखराज, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव समर भंडारी, सीपीआईएमएल के गढ़वाल सचिव इंद्रेश मैखुरी, पर्यावरणविद रवि चोपड़ा आदि शामिल रहे.
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क्या है तिलाड़ी कांडः उत्तराखंड में जंगलों से जुड़े अपने हक हकूकों की रक्षा के लिए 92 साल पहले एक आंदोलन हुआ था. उस आंदोलन के दमन को याद कर आज भी सिहरन पैदा हो जाती है. 30 मई 1930 को टिहरी रियासत के अधिकारियों ने तिलाड़ी के मैदान में अपने हक हकूकों को लेकर पंचायत कर रहे सैकड़ों ग्रामीणों को गोलियों से भून डाला था. गोलियों से बचने के लिए भागे कई ग्रामीण यमुना नदी में बह गए थे. तिलाड़ी कांड को रवाईं ढंडक और गढ़वाल का जलियांवाला बाग कांड के नाम से भी जाना जाता है.