मसूरी: 2 सितंबर 1994, उत्तराखंड आंदोलन का वो दिन है, जिसे कोई भी उत्तराखंड वासी कभी नहीं भूल पायेगा. उस दर्दनाक घटना को याद कर आज भी शहीर में सिहरन दौड़ जाती है. 2 सितंबर की सुबह मौन जुलूस निकाल रहे राज्य आंदोलनकारियों पर पुलिस और पीएसी ने ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर छह लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. इस दर्दनाक घटना को उत्तराखंड वासी बसरी के रूप में मनाते हैं और उनकी याद में लोगों ने झूलाघर स्थित शहीद स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की.
मसूरी की स्वच्छ हवा में फैली थी बारूद की गंध
हमेशा शांत रहने वाली मसूरी में गोलियों की तड़तड़ाहट से वातावरण में बारूदी गंध फैल गई. आज भी उस दर्दनाक घटना को याद करने वालों की रूह कांप जाती है. मसूरी के झूलाघर के शहीद स्थल में पिछले 26 सालों से लगातार शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है. वहीं, प्रदेश के कई बड़े सत्ताधारी नेता मसूरी आते हैं और शहीदों को श्रद्वांजलि अर्पित करते हैं, लेकिन राज्य आंदोलनकारी आज भी मानते हैं कि उनके सपनों का उत्तराखंड नहीं बन पाया.
उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों की मानें तो प्रदेश में राजनीतिक संगठनों और अफसरशाही की अनदेखी के कारण उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से अलग करने का मकसद पूरा नहीं हो पाया है. प्रदेश के गांव और पहाड़ खाली हो गए हैं. युवा गांवों से पलायन कर चुके हैं. कई सरकारें आईं और गईं लेकिन किसी ने भी पहाड़ के दर्द को नहीं समझा. सब ने सिर्फ अपना फायदा देखा, जिस कारण आज प्रदेश के शहीद और आंदोलनकारी खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं.
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क्या हुआ था 2 सितंबर, 1994 की सुबह
1 सितंबर, 1994 को खटीमा में भी पुलिस ने राज्य आंदोलनकारियों पर गोलियां बरसाईं थी. इसके बाद पुलिस व पीएसी ने रात में ही राज्य आंदोलन की संयुक्त संघर्ष समिति के झूलाघर स्थित कार्यालय पर कब्जा कर लिया था और वहां क्रमिक धरने पर बैठे पांच आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर लिया था. इसके विरोध में 2 सितंबर को नगर के अन्य आदोलनकारियों ने झूलाघर पहुंचकर शांतिपूर्ण धरना शुरू कर दिया. यह देख रात से ही वहां तैनात सशस्त्र पुलिसकर्मियों ने बिना किसी पूर्व चेतावनी के आंदोलनकारियों पर गोलियां बरसानी शुरू कर दी थीं.
![Mussoorie shootout](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/8645872_pic13.jpg)
पुलिस और पीएसी की इस कार्रवाई में 6 आंदोलनकारी बेलमती चौहान, हंसा धनाई, युवा बलबीर सिंह नेगी, रायसिंह बंगारी, धनपत सिंह और मदन मोहन ममगाईं शहीद हो गए. साथ ही बड़ी संख्या में आंदोलनकारी गंभीर रूप से घायल हुए. पुलिस ने शहरभर में आंदोलनकारियों की धरपकड़ शुरू की तो पूरे शहर में अफरा-तफरी फैल गई.
पुलिस की गोली से घायल पुलिस उपाधीक्षक उमाकांत त्रिपाठी ने सेंट मेरी अस्पताल में दम तोड़ दिया. पुलिस और पीएसी का कहर यहीं नहीं थमा. इसके बाद कर्फ्यू के दौरान आंदोलनकारियों का उत्पीड़न किया गया. 2 सितंबर से करीब एक पखवाड़े तक चले कर्फ्यू के दौरान लोगों को जरूरी सामानों को तरसना पड़ा.
आंदोलन का मसूरी में नेतृत्व कर रहे वृद्ध नेता हुकुम सिंह पंवार को पुलिस 2 सितंबर को बरेली जेल ले गई. जुलूस में उनके युवा पुत्र एडवोकेट राजेंद्र सिंह पंवार को गोली लगी और वे बुरी तरह जख्मी हो गए. कुछ सालों तक उनकी आवाज ही गुम हो गई. उनका इलाज एम्स दिल्ली में हुआ, लेकिन अफसोस सक्रिय आंदोलनकारियों में आज तक उनका चिन्हीकरण नहीं हो पाया और इसी साल 2020 में उनकी मौत हो गई.
![Mussoorie shootout](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/8645872_pic.jpg)
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राज्य आंदोलनकारियों के जिस सपने को लेकर उत्तराखंड बनाने की कल्पना की थी, वह आज अधूरी है. पहाड़ से पलायन होने के कारण गांव-गांव खाली हो गये हैं. बेरोजगारी अपने चरम पर है. राज्य अंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले आंदोलनकारियों का आज तक चिन्हीकरण नहीं हो पाया है, जिससे आंदोलनकारी मायूस हैं.
मसूरी के शहीदों के नाम
- शहीद बेलमती चौहान (48), पत्नी धर्म सिंह चौहान, ग्राम खलोन, पट्टी घाट, अकोदया, टिहरी.
- शहीद हंसा धनई (45), पत्नी भगवान सिंह धनई, ग्राम बंगधार, पट्टी धारमंडल, टिहरी.
- शहीद बलबीर सिंह नेगी (22), पुत्र भगवान सिंह नेगी, लक्ष्मी मिष्ठान्न भंडार, मसूरी.
- शहीद धनपत सिंह (50), ग्राम गंगवाड़ा, पट्टी गंगवाड़स्यूं, टिहरी.
- शहीद मदन मोहन ममगाईं (45), ग्राम नागजली, पट्टी कुलड़ी, मसूरी.
- शहीद राय सिंह बंगारी (54), ग्राम तोडेरा, पट्टी पूर्वी भरदार, टिहरी.