देहरादून: हर साल की तरह इस साल भी निजी स्कूलों की मनमानी जारी है. प्रदेश के निजी स्कूलों की ड्रेस और महंगी किताबें, बढ़ती फीस से अभिभावक परेशान हैं. अभिभावकों को फिक्स दुकान में जाकर किताबों के सेट खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है. वहीं अभिभावक भी पांच से दस हजार रुपए की किताबों के सेट और बढ़ती स्कूल फीस के नाम पर सिस्टम को कोस रहे हैं.
निजी स्कूलों की खुली लूट: कांग्रेस पार्टी ने भी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि प्राइवेट शिक्षण संस्थान लगातार मनमानी करने में लगे हुए हैं. अभिभावकों को मजबूरी में निजी स्कूलों की मनमानी के आगे झुकना पड़ रहा है. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता शीशपाल बिष्ट का कहना है कि हर बार की तरह इस बार भी स्कूलों ने फीस बढ़ा दी है. दूसरी तरफ किताबों और कॉपियों में 40 से 50 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी कर दी है. लेकिन सरकार निजी स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाने में पूरी तरह से नाकाम साबित हुई है और हवा हवाई दावे कर रही है.
फीस वाली अथॉरिटी हुई फेल: सरकार की ओर से निजी स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाने के कोई गंभीर प्रयास नहीं किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षण संस्थानों में फीस को लेकर सरकार ने एक अथॉरिटी का गठन भी किया था. लेकिन साल भर बाद उस अथॉरिटी के चेयरमैन को इस्तीफा देना पड़ रहा है. क्योंकि सरकारी मशीनरी इसके लिए गंभीर नहीं है. बिष्ट ने कहा कि अब सरकार मात्र दिखावे के लिए छापेमारी कर रही है. यह छापेमारी तब की जा रही है जब अधिकांश स्कूलों में शिक्षण कार्य प्रारंभ हो चुके हैं और अभिभावकों की जेबें कट चुकी हैं.
प्राइमरी स्कूल बेहाल, निजी स्कूल मालामाल: उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर सरकार की दोहरी नीति कब तक जारी रहेगी. उन्होंने कहा कि एक तरफ सरकारी प्राइमरी स्कूलों में बच्चों को शिक्षा नहीं मिली है. इससे अभिभावक प्राइवेट संस्थानों की ओर रुख करने के लिए मजबूर हैं. मगर सरकार प्राइवेट संस्थानों पर लगाम नहीं लगा पा रही है. ऐसे में हर साल स्कूलों की तरफ से अनावश्यक रूप से फीस बढ़ोत्तरी की जा रही है. अभिभावकों को महंगे दामों पर किताबें खरीदने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर इस पर नियंत्रण लगाने की जिम्मेदारी किसकी है.
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निजी स्कूल और प्रकाशकों की साठगांठ: बता दें कि किताबों की दुकानों से निजी स्कूलों की साठगांठ के चलते अभिभावकों को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. देहरादून के निजी स्कूलों की मनमानी फीस और निजी प्रकाशकों की महंगी किताबों पर रोक लगाने के कोई प्रयास नहीं किए गए. यही वजह है कि हर साल की तरह इस बार भी अभिभावक महंगी ड्रेस, बढ़ती फीस और महंगी किताबों से परेशान नजर आए.