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कोरोना की तीसरी लहर से बचाव के लिए अस्पताल के दूसरे कर्मियों को भी मिलेगी ट्रेनिंग

उत्तराखंड में कोरोना की तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग तैयारियों में जुट गया है. सतर्कता बरतते हुए इस बार अस्पताल दूसरे कर्मियों को भी ट्रेनिंग दी जाएगी.

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Published : Jun 5, 2021, 12:30 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए वैसे तो स्वास्थ्य विभाग की ओर से तैयारियों को पूरा करने का दावा किया जा रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि राज्य के अस्पतालों में बच्चों के इलाज को लेकर पर्याप्त सुविधाएं मौजूद नहीं हैं. डॉक्टरों की भी राज्य में भारी कमी है. दून मेडिकल कॉलेज इस मामले में बड़े स्तर पर तैयारी कर रहा है.

दून मेडिकल कॉलेज में बच्चों के लिए 200 बेड

दून मेडिकल कॉलेज में 200 बेड बच्चों के उपचार के लिए तैयार किए जा रहे हैं. दरअसल राष्ट्रीय स्तर पर देश में तीसरी लहर के दौरान बच्चों में इसका सबसे ज्यादा असर होने की बात कही गई है. ऐसे में पहले ही इस संबंध में तैयारी को लेकर दून मेडिकल कॉलेज ने न केवल अस्पताल को वेल इक्विप्ड करने के प्रयास शुरू कर दिए हैं, बल्कि डॉक्टरों और दूसरे कर्मियों को भी इसकी ट्रेनिंग और मैनेजमेंट समेत बेड की उपलब्धता पर भी काम किया जा रहा है. दून मेडिकल कॉलेज में न्यू नेटल आईसीयू और पीडियाट्रिक आईसीयू के 200 बेड तैयार किए जा रहे हैं. साथ ही बच्चों के उपचार से जुड़े तमाम जरूरी उपकरणों को भी लाने की तैयारी है. अस्पताल में वरिष्ठ चिकित्सकों से लेकर इंटर और जेआर, एसआर को भी बच्चों के इलाज को लेकर बेसिक क्लीनिकल नॉलेज से से जुड़ा प्रशिक्षण दिए जाने की तैयारी है, ताकि तीसरी लहर के दौरान न केवल चाइल्ड स्पेशलिस्ट बल्कि दूसरा स्टाफ और डॉक्टर भी बच्चों के इलाज को बेसिक जानकारी के साथ कर सकें.

उत्तराखंड में बच्चों के डॉक्टरों की कमी

बता दें कि, प्रदेश में फिलहाल चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की भारी कमी है. खास तौर पर पहाड़ी जनपदों में डॉक्टरों की तैनाती न के बराबर है. प्रदेश में 123 बाल रोग डॉक्टर हैं जिसमें सबसे ज्यादा देहरादून में और मैदानी जिलों में तैनात हैं. देहरादून में 69 तो उधम सिंह नगर में पांच बाल रोग विशेषज्ञ हैं. हरिद्वार में 6 तो नैनीताल में 11 बाल रोग विशेषज्ञ हैं. इसके अलावा बाकी पहाड़ी जनपदों में कहीं एक तो कहीं दो बाल रोग डॉक्टर मौजूद हैं. प्रदेश में 6 साल तक की उम्र के ही लाखों बच्चे मौजूद हैं. 18 साल तक की उम्र का रिकॉर्ड देखें तो यह संख्या और भी ज्यादा हो जाती है. जबकि उपचार देने वाले डॉक्टर डेढ़ सौ की संख्या में भी मौजूद नहीं हैं. इस स्थिति पर चिंता जताई जा रही है.

पढ़ें: सितंबर-अक्टूबर में आ सकती है कोरोना की तीसरी लहर, कैसे बचें ?

दून मेडिकल कॉलेज के सीएमएस डॉ. केसी पंत का कहना है कि फिलहाल स्थितियों को देखते हुए तैयारियां की जा रही हैं और भविष्य में कैसे आने वाले खतरे से बेहतर तरीके से निपटा जाए इस पर काम किया जा रहा है.

देहरादून: उत्तराखंड में तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए वैसे तो स्वास्थ्य विभाग की ओर से तैयारियों को पूरा करने का दावा किया जा रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि राज्य के अस्पतालों में बच्चों के इलाज को लेकर पर्याप्त सुविधाएं मौजूद नहीं हैं. डॉक्टरों की भी राज्य में भारी कमी है. दून मेडिकल कॉलेज इस मामले में बड़े स्तर पर तैयारी कर रहा है.

दून मेडिकल कॉलेज में बच्चों के लिए 200 बेड

दून मेडिकल कॉलेज में 200 बेड बच्चों के उपचार के लिए तैयार किए जा रहे हैं. दरअसल राष्ट्रीय स्तर पर देश में तीसरी लहर के दौरान बच्चों में इसका सबसे ज्यादा असर होने की बात कही गई है. ऐसे में पहले ही इस संबंध में तैयारी को लेकर दून मेडिकल कॉलेज ने न केवल अस्पताल को वेल इक्विप्ड करने के प्रयास शुरू कर दिए हैं, बल्कि डॉक्टरों और दूसरे कर्मियों को भी इसकी ट्रेनिंग और मैनेजमेंट समेत बेड की उपलब्धता पर भी काम किया जा रहा है. दून मेडिकल कॉलेज में न्यू नेटल आईसीयू और पीडियाट्रिक आईसीयू के 200 बेड तैयार किए जा रहे हैं. साथ ही बच्चों के उपचार से जुड़े तमाम जरूरी उपकरणों को भी लाने की तैयारी है. अस्पताल में वरिष्ठ चिकित्सकों से लेकर इंटर और जेआर, एसआर को भी बच्चों के इलाज को लेकर बेसिक क्लीनिकल नॉलेज से से जुड़ा प्रशिक्षण दिए जाने की तैयारी है, ताकि तीसरी लहर के दौरान न केवल चाइल्ड स्पेशलिस्ट बल्कि दूसरा स्टाफ और डॉक्टर भी बच्चों के इलाज को बेसिक जानकारी के साथ कर सकें.

उत्तराखंड में बच्चों के डॉक्टरों की कमी

बता दें कि, प्रदेश में फिलहाल चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की भारी कमी है. खास तौर पर पहाड़ी जनपदों में डॉक्टरों की तैनाती न के बराबर है. प्रदेश में 123 बाल रोग डॉक्टर हैं जिसमें सबसे ज्यादा देहरादून में और मैदानी जिलों में तैनात हैं. देहरादून में 69 तो उधम सिंह नगर में पांच बाल रोग विशेषज्ञ हैं. हरिद्वार में 6 तो नैनीताल में 11 बाल रोग विशेषज्ञ हैं. इसके अलावा बाकी पहाड़ी जनपदों में कहीं एक तो कहीं दो बाल रोग डॉक्टर मौजूद हैं. प्रदेश में 6 साल तक की उम्र के ही लाखों बच्चे मौजूद हैं. 18 साल तक की उम्र का रिकॉर्ड देखें तो यह संख्या और भी ज्यादा हो जाती है. जबकि उपचार देने वाले डॉक्टर डेढ़ सौ की संख्या में भी मौजूद नहीं हैं. इस स्थिति पर चिंता जताई जा रही है.

पढ़ें: सितंबर-अक्टूबर में आ सकती है कोरोना की तीसरी लहर, कैसे बचें ?

दून मेडिकल कॉलेज के सीएमएस डॉ. केसी पंत का कहना है कि फिलहाल स्थितियों को देखते हुए तैयारियां की जा रही हैं और भविष्य में कैसे आने वाले खतरे से बेहतर तरीके से निपटा जाए इस पर काम किया जा रहा है.

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