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उत्तराखंड@19: सिर्फ एक CM ने पूरे किये 5 साल, जानिए प्रदेश का पूरा राजनीतिक सफर

इन 19 सालों में सिर्फ एनडी तिवारी ही एक मात्र ऐसे मुख्यमंत्री रहे जो पूरे पांच साल सीएम पद पर रहे. प्रदेश के पूरे राजनीतिक सफर पर एक नजर डालिए.

सिर्फ एक सीएम ही रहे पूरे 5 साल
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Published : Nov 5, 2019, 9:57 PM IST

Updated : Nov 6, 2019, 7:29 AM IST

देहरादून: प्रदेश के 20वें स्थापना दिवस का जश्न बड़े ही हर्षोउल्लास से मनाया जा रहा है. हालांकि, प्रदेश की 19वीं वर्षगांठ पर नेतृत्व परिवर्तन पर होने वाली चर्चा से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि इन 19 सालों में राज्य का इतिहास रहा है कि सिर्फ एक मुख्यमंत्री को छोड़कर किसी भी सीएम ने अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया. चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस, केवल पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत एनडी तिवारी ही अपना कार्यकाल पूरा कर सके हैं. सियासी जानकार बार-बार मुख्यमंत्री को बदलने के पीछे की मुख्य वजह राजनीतिक अस्थिरता मानते हैं.

19 सालों में सिर्फ एक सीएम ही रहे पूरे 5 साल


एक नजर इन 19 सालों के राजनीतिक सफर पर
लंबे संघर्ष और आंदोलन के बाद उत्तराखंड का गठन हुआ था. 9 नवम्बर 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने उत्तर प्रदेश से अलग करते हुए उत्तराखंड की घोषणा की थी. जिसके बाद नवगठित राज्य के पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी बनाए गए. लेकिन, सियासी खींचतान के चलते नित्यानंद स्वामी को महज एक साल में ही अपने पद से हाथ धोना पड़ा. जिसके बाद करीब चार माह के लिए बीजेपी ने भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाया. सालभर बाद 2002 में उत्तराखंड राज्य का पहला विधानसभा चुनाव हुआ. इस चुनाव में प्रदेश की जनता ने कांग्रेस को अपना जनाधार दिया और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए एनडी तिवारी.

पढ़ेंः 19 का उत्तराखंडः जब त्रिपाल के नीचे बैठी थी पूरी कैबिनेट

राज्य गठन को 19 साल हो चुके हैं लेकिन, इन सालों में सिर्फ नारायण दत्त तिवारी ही एक ऐसे मुख्यमंत्री रहे जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. एनडी तिवारी के बाद साल 2007 में भाजपा को सत्ता मिली और भुवन चंद्र खंडूड़ी मुख्यमंत्री बने. इस बीच अचानक जून 2009 में रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री की कमान सौंप दी गयी. लेकिन, एक बार फिर पासा पलटा और निशंक पर लगे आरोपों के बाद सितंबर 2011 में मुख्यमंत्री की कमान भुवन चंद्र खंडूड़ी को वापस मिल गई.

पढ़ेंः रिवर्स पलायन कार्यक्रम पर बुद्धिजीवियों ने उठाए सवाल, कहा- पहले रुके नेताओं का पलायन

अबतक अंतरिम सरकार से लेकर पहली निर्वाचित सरकार तक प्रदेश की जनता को बीजेपी के चार मुख्यमंत्री मिले चुके थे. साल 2012 में तीसरे विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता ने बीजेपी-कांग्रेस को मिलजुला जनादेश दिया. इस बीच उत्तराखंड क्रांति दल के विधायक प्रीतम पंवार और कुछ निर्दलीय विधायकों के समर्थन से कांग्रेस की सरकार बनी और कांग्रेस हाई कमान ने मुख्यमंत्री की कमान सौंपी विजय बहुगुणा को.

पढ़ेंः यूं ही नहीं बना उत्तराखंड, दशकों के संघर्ष और शहादतों के बाद मिली अलग पहचान

करीब ढाई साल का ही वक्त बीता था, ये वो वक्त था जब उत्तराखंड ने एक ओर 2013 की आपदा को झेला था. उसी वक्त कांग्रेस हाई कमान ने उत्तराखंड के सीएम की कुर्सी में परिवर्तन किया और साल 2014 में हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया. यानी कांग्रेस के इस कार्यकाल में भी दो मुख्यमंत्री हो गए. अब राज्य के चौथे विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता ने बीजेपी को पूर्ण बहुमत दिया और बीजेपी हाईकमान ने मुख्यमंत्री की कमान त्रिवेंद्र सिंह रावत को सौंपी. सीएम त्रिवेंद्र तमाम बाधाओं के बीच अपना ढाई साल से ज्यादा का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं.

पढ़ेंः पीएम मोदी के बदरी-केदार दौरे से यात्रा पर पड़ा बड़ा फर्क, चारधाम यात्रा में टूटे रिकॉर्ड

इन 19 सालों में भारतीय जनता पार्टी के किसी भी मुख्यमंत्री के पांच साल का कार्यकाल पूरा न करने के सवाल पर भाजपा प्रदेश मीडिया प्रभारी देवेंद्र भसीन कहते हैं कि कुछ परिस्थितियों की वजह से ही मुख्यमंत्री अपना 5 साल पूरा नहीं कर पाए. लेकिन अब परिस्थितियां भिन्न हैं. अब प्रदेश में राजनीतिक स्थिरता है और वर्तमान मुख्यमंत्री अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा करेंगे. यही नहीं अगले विधानसभा चुनाव भी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में लड़ा जाएगा.

पढ़ेंः सांसद अनिल बलूनी की मुहिम को आगे बढ़ाएंगे संबित पात्रा, बलूनी के पैतृक गांव में मनाएंगे ईगास पर्व

वहीं, कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना कहते हैं कि कुछ परिस्थितियों की वजह से ही साल 2012 से 2017 तक दो मुख्यमंत्री बनाने पड़े थे. धस्माना भाजपा पर भी हमला करने से नहीं चूके. उन्होंने कहा कि भाजपा ने तो अंतरिम सरकार में ही दो मुख्यमंत्री बना दिए थे, जो चुनी हुई सरकार भी नहीं थी. बहरहाल प्रदेश में एक ही मुख्यमंत्री एनडी तिवारी हैं, जिन्होंने अपने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया.

राजनीति विशेषज्ञ जय सिंह रावत की मानें तो अवसर बाधिता, पद लोलुपता और राजनीतिक अस्थिरता की वजह से इन 19 सालों में कई मुख्यमंत्रियों बदले गए हैं. इस तरह नेतृत्व बदलने के कयासों की वजह से प्रशासनिक कार्यों में भी बाधा पहुंचती है.

देहरादून: प्रदेश के 20वें स्थापना दिवस का जश्न बड़े ही हर्षोउल्लास से मनाया जा रहा है. हालांकि, प्रदेश की 19वीं वर्षगांठ पर नेतृत्व परिवर्तन पर होने वाली चर्चा से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि इन 19 सालों में राज्य का इतिहास रहा है कि सिर्फ एक मुख्यमंत्री को छोड़कर किसी भी सीएम ने अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया. चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस, केवल पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत एनडी तिवारी ही अपना कार्यकाल पूरा कर सके हैं. सियासी जानकार बार-बार मुख्यमंत्री को बदलने के पीछे की मुख्य वजह राजनीतिक अस्थिरता मानते हैं.

19 सालों में सिर्फ एक सीएम ही रहे पूरे 5 साल


एक नजर इन 19 सालों के राजनीतिक सफर पर
लंबे संघर्ष और आंदोलन के बाद उत्तराखंड का गठन हुआ था. 9 नवम्बर 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने उत्तर प्रदेश से अलग करते हुए उत्तराखंड की घोषणा की थी. जिसके बाद नवगठित राज्य के पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी बनाए गए. लेकिन, सियासी खींचतान के चलते नित्यानंद स्वामी को महज एक साल में ही अपने पद से हाथ धोना पड़ा. जिसके बाद करीब चार माह के लिए बीजेपी ने भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाया. सालभर बाद 2002 में उत्तराखंड राज्य का पहला विधानसभा चुनाव हुआ. इस चुनाव में प्रदेश की जनता ने कांग्रेस को अपना जनाधार दिया और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए एनडी तिवारी.

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राज्य गठन को 19 साल हो चुके हैं लेकिन, इन सालों में सिर्फ नारायण दत्त तिवारी ही एक ऐसे मुख्यमंत्री रहे जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. एनडी तिवारी के बाद साल 2007 में भाजपा को सत्ता मिली और भुवन चंद्र खंडूड़ी मुख्यमंत्री बने. इस बीच अचानक जून 2009 में रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री की कमान सौंप दी गयी. लेकिन, एक बार फिर पासा पलटा और निशंक पर लगे आरोपों के बाद सितंबर 2011 में मुख्यमंत्री की कमान भुवन चंद्र खंडूड़ी को वापस मिल गई.

पढ़ेंः रिवर्स पलायन कार्यक्रम पर बुद्धिजीवियों ने उठाए सवाल, कहा- पहले रुके नेताओं का पलायन

अबतक अंतरिम सरकार से लेकर पहली निर्वाचित सरकार तक प्रदेश की जनता को बीजेपी के चार मुख्यमंत्री मिले चुके थे. साल 2012 में तीसरे विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता ने बीजेपी-कांग्रेस को मिलजुला जनादेश दिया. इस बीच उत्तराखंड क्रांति दल के विधायक प्रीतम पंवार और कुछ निर्दलीय विधायकों के समर्थन से कांग्रेस की सरकार बनी और कांग्रेस हाई कमान ने मुख्यमंत्री की कमान सौंपी विजय बहुगुणा को.

पढ़ेंः यूं ही नहीं बना उत्तराखंड, दशकों के संघर्ष और शहादतों के बाद मिली अलग पहचान

करीब ढाई साल का ही वक्त बीता था, ये वो वक्त था जब उत्तराखंड ने एक ओर 2013 की आपदा को झेला था. उसी वक्त कांग्रेस हाई कमान ने उत्तराखंड के सीएम की कुर्सी में परिवर्तन किया और साल 2014 में हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया. यानी कांग्रेस के इस कार्यकाल में भी दो मुख्यमंत्री हो गए. अब राज्य के चौथे विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता ने बीजेपी को पूर्ण बहुमत दिया और बीजेपी हाईकमान ने मुख्यमंत्री की कमान त्रिवेंद्र सिंह रावत को सौंपी. सीएम त्रिवेंद्र तमाम बाधाओं के बीच अपना ढाई साल से ज्यादा का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं.

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इन 19 सालों में भारतीय जनता पार्टी के किसी भी मुख्यमंत्री के पांच साल का कार्यकाल पूरा न करने के सवाल पर भाजपा प्रदेश मीडिया प्रभारी देवेंद्र भसीन कहते हैं कि कुछ परिस्थितियों की वजह से ही मुख्यमंत्री अपना 5 साल पूरा नहीं कर पाए. लेकिन अब परिस्थितियां भिन्न हैं. अब प्रदेश में राजनीतिक स्थिरता है और वर्तमान मुख्यमंत्री अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा करेंगे. यही नहीं अगले विधानसभा चुनाव भी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में लड़ा जाएगा.

पढ़ेंः सांसद अनिल बलूनी की मुहिम को आगे बढ़ाएंगे संबित पात्रा, बलूनी के पैतृक गांव में मनाएंगे ईगास पर्व

वहीं, कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना कहते हैं कि कुछ परिस्थितियों की वजह से ही साल 2012 से 2017 तक दो मुख्यमंत्री बनाने पड़े थे. धस्माना भाजपा पर भी हमला करने से नहीं चूके. उन्होंने कहा कि भाजपा ने तो अंतरिम सरकार में ही दो मुख्यमंत्री बना दिए थे, जो चुनी हुई सरकार भी नहीं थी. बहरहाल प्रदेश में एक ही मुख्यमंत्री एनडी तिवारी हैं, जिन्होंने अपने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया.

राजनीति विशेषज्ञ जय सिंह रावत की मानें तो अवसर बाधिता, पद लोलुपता और राजनीतिक अस्थिरता की वजह से इन 19 सालों में कई मुख्यमंत्रियों बदले गए हैं. इस तरह नेतृत्व बदलने के कयासों की वजह से प्रशासनिक कार्यों में भी बाधा पहुंचती है.

Intro:नोट - कुछ इम्पोर्टेन्ट विसुअल्स ftp से भेजी गई है....
uk_deh_03_chief_ministers_term_vis_7205803


देवभूमि उत्तराखंड राज्य स्थापना का जश्न बड़े ही हर्षोउल्लास से मना रहा हैं। राज्य स्थापना दिवस की 19 वी वर्षगांठ पर प्रदेश के नेतृत्व परिवर्तन पर होने वाली चर्चा से इनकार नही किया जा सकता हैं। राज्य गठन से आज तक बीजेपी या कांग्रेस दोनों के सिवाय पूर्व मुख्यमंत्री स्व एनडी तिवारी के कोई भी मुख्यमंत्री पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा नही कर पाया। सियासी जानकार राज्य गठन से चौथी विधानसभा तक बार-बार मुख्यमंत्री को बदलने के पीछे की मुख्य वजह राजनीतिक अस्थिरता मान रहे हैं। आखिर क्या हैं प्रदेश के मुखियाओं को बदलने की हकीकत? देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट......


Body:लंबे संघर्ष और आंदोलन के बाद उत्तराखंड राज्य एक अलग पहाड़ी राज्य का गठन हुआ था। 9 नवम्बर 2000 में संयुक्त प्रान्त से अलग पहाड़ी राज्य बना उत्तराखंड की घोषणा तत्कालीन केंद्र की अटल सरकार ने की थी।यही नही अलग राज्य गठन की घोषणा के बाद ही राज्य में अंतरिम सरकार बनायी गयी थी। और नवगठित राज्य के पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी बनाए गए।


लेकिन सियासी खींचतान के चलते नित्यानंद स्वामी को महज एक साल में ही अपने पद से हाथ धोना पड़ा। जिसके बाद करीब चार माह के लिए बीजेपी ने भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बना दिया था। इसके बाद साल 2002 में उत्तराखंड राज्य की पहली विधानसभा का चुनाव हुआ। और प्रदेश की जनता ने कांग्रेस को अपना जनाधार  दिया और चुनावी परिणाम के बाद मुख्यमंत्री एनडी तिवारी बने। 


राज्य गठन को 19 साल हो गए है। लेकिन इन 19 सालो में मात्र नारायण दत्त तिवारी ही एक ऐसे मुख्यमंत्री रहे जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।  इसके बाद साल 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में निर्वाचित सरकार के बाद भुवन चंद्र खंडूरी ने मुख्यमंत्री की कमान संभाली थी। और इसी दौरान जून 2009 में रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री की कमान सौप दी गयी। और फिर दोबारा सितंबर 2011 में मुख्यमंत्री की कमान भुवन चंद्र खंडूरी को सौप दी गई। 


यानी अंतरिम सरकार से लेकर पहली निर्वाचित सरकार तक बीजेपी के चार मुख्यमंत्री बनाए जा चुके थे, इसके बाद फिर राज्य की तीसरी विधानसभा के चुनाव हुए और साल 2012 में फिर से प्रदेश की जनता बीजेपी-कांग्रेस को मिलजुला जनादेश दिया। इस दौरान एक उत्तराखंड क्रांति दल के विधायक प्रीतम पंवार और कुछ निर्दलीय विधायको के समर्थन से कांग्रेस की सरकार बनी और कांग्रेस हाई कमान ने मुख्यमंत्री की कमान विजय बहुगुणा को सौपी गई।


हालांकि करीब ढाई साल बाद कांग्रेस हाईकमान ने उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन किया। और साल 2014 में हरीश रावत को मुख्यमंत्री बना दिया गया। यानी कांग्रेस के इस कार्यकाल में भी दो मुख्यमंत्री हो गए। हालांकि राज्य की चौथी विधानसभा में प्रदेश की जनता ने बीजेपी को पूर्ण बहुमत दिया और बीजेपी हाईकमान ने मुख्यमंत्री की कमान ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री की कमान सौपी। जो अभी तक ढाई साल से ज्यादा का कार्यकाल पूरा कर चुके है। 


इन 19 सालों में भारतीय जनता पार्टी के किसी भी मुख्यमंत्री के पांच साल का कार्यकाल पूरा ना करने के सवाल पर भाजपा प्रदेश मीडिया प्रभारी देवेंद्र भसीन ने बताया कि कुछ अन्य परिस्थितियों की वजह से ही मुख्यमंत्री अपना 5 साल पूरा नहीं कर पाए हैं लेकिन अब परिस्थितियां भिन्न है। और अब पूरी तरह से राजनीतिक स्थिरता है और वर्तमान मुख्यमंत्री अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा करेंगे, यही नहीं अगले विधानसभा चुनाव भी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में लड़ा जाएगा।

बाइट - देवेंद्र भसीन, प्रदेश सह मीडिया प्रभारी, भाजपा


वही कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने बताया कि कुछ विद्यमान स्थितियों की वजह से ही साल 2012 से 2017 तक दो मुख्यमंत्री बनाने पड़े थे। साथ ही भाजपा पर हमला करते हुए बताया कि भाजपा ने तो अंतरिम सरकार में ही दो मुख्यमंत्री बना दिए थे, जो चुनी हुई सरकार भी नहीं थी। हालांकि प्रदेश में एक ही मुख्यमंत्री एनडी तिवारी है जिन्होंने अपने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया।

बाइट - सूर्यकांत धस्माना, प्रदेश उपाध्यक्ष, कांग्रेस




Conclusion:वही राजनीति विशेषज्ञ जय सिंह रावत की माने तो अवसर बधितता, पद लोलुप्ता और राजनीतिक अस्थिरता की वजह से ही इन 19 सालों में कई मुख्यमंत्रियों बदले गए हैं मात्र एक मुख्यमंत्री को छोड़ सभी मुख्यमंत्री अपने 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए हैं। यही नही वर्तमान समय में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को लेकर भी तमाम चर्चा है कि वह आज या कल में चले जाएंगे। इन चर्चा की वजह से प्रशासनिक कार्यों में भी बाधा पहुंचती है।

बाइट - जय सिंह रावत, राजनीतिक विशेषज्ञ

Last Updated : Nov 6, 2019, 7:29 AM IST
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