देहरादून: प्रदेश के 20वें स्थापना दिवस का जश्न बड़े ही हर्षोउल्लास से मनाया जा रहा है. हालांकि, प्रदेश की 19वीं वर्षगांठ पर नेतृत्व परिवर्तन पर होने वाली चर्चा से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि इन 19 सालों में राज्य का इतिहास रहा है कि सिर्फ एक मुख्यमंत्री को छोड़कर किसी भी सीएम ने अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया. चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस, केवल पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत एनडी तिवारी ही अपना कार्यकाल पूरा कर सके हैं. सियासी जानकार बार-बार मुख्यमंत्री को बदलने के पीछे की मुख्य वजह राजनीतिक अस्थिरता मानते हैं.
एक नजर इन 19 सालों के राजनीतिक सफर पर
लंबे संघर्ष और आंदोलन के बाद उत्तराखंड का गठन हुआ था. 9 नवम्बर 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने उत्तर प्रदेश से अलग करते हुए उत्तराखंड की घोषणा की थी. जिसके बाद नवगठित राज्य के पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी बनाए गए. लेकिन, सियासी खींचतान के चलते नित्यानंद स्वामी को महज एक साल में ही अपने पद से हाथ धोना पड़ा. जिसके बाद करीब चार माह के लिए बीजेपी ने भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाया. सालभर बाद 2002 में उत्तराखंड राज्य का पहला विधानसभा चुनाव हुआ. इस चुनाव में प्रदेश की जनता ने कांग्रेस को अपना जनाधार दिया और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए एनडी तिवारी.
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राज्य गठन को 19 साल हो चुके हैं लेकिन, इन सालों में सिर्फ नारायण दत्त तिवारी ही एक ऐसे मुख्यमंत्री रहे जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. एनडी तिवारी के बाद साल 2007 में भाजपा को सत्ता मिली और भुवन चंद्र खंडूड़ी मुख्यमंत्री बने. इस बीच अचानक जून 2009 में रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री की कमान सौंप दी गयी. लेकिन, एक बार फिर पासा पलटा और निशंक पर लगे आरोपों के बाद सितंबर 2011 में मुख्यमंत्री की कमान भुवन चंद्र खंडूड़ी को वापस मिल गई.
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अबतक अंतरिम सरकार से लेकर पहली निर्वाचित सरकार तक प्रदेश की जनता को बीजेपी के चार मुख्यमंत्री मिले चुके थे. साल 2012 में तीसरे विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता ने बीजेपी-कांग्रेस को मिलजुला जनादेश दिया. इस बीच उत्तराखंड क्रांति दल के विधायक प्रीतम पंवार और कुछ निर्दलीय विधायकों के समर्थन से कांग्रेस की सरकार बनी और कांग्रेस हाई कमान ने मुख्यमंत्री की कमान सौंपी विजय बहुगुणा को.
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करीब ढाई साल का ही वक्त बीता था, ये वो वक्त था जब उत्तराखंड ने एक ओर 2013 की आपदा को झेला था. उसी वक्त कांग्रेस हाई कमान ने उत्तराखंड के सीएम की कुर्सी में परिवर्तन किया और साल 2014 में हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया. यानी कांग्रेस के इस कार्यकाल में भी दो मुख्यमंत्री हो गए. अब राज्य के चौथे विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता ने बीजेपी को पूर्ण बहुमत दिया और बीजेपी हाईकमान ने मुख्यमंत्री की कमान त्रिवेंद्र सिंह रावत को सौंपी. सीएम त्रिवेंद्र तमाम बाधाओं के बीच अपना ढाई साल से ज्यादा का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं.
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इन 19 सालों में भारतीय जनता पार्टी के किसी भी मुख्यमंत्री के पांच साल का कार्यकाल पूरा न करने के सवाल पर भाजपा प्रदेश मीडिया प्रभारी देवेंद्र भसीन कहते हैं कि कुछ परिस्थितियों की वजह से ही मुख्यमंत्री अपना 5 साल पूरा नहीं कर पाए. लेकिन अब परिस्थितियां भिन्न हैं. अब प्रदेश में राजनीतिक स्थिरता है और वर्तमान मुख्यमंत्री अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा करेंगे. यही नहीं अगले विधानसभा चुनाव भी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में लड़ा जाएगा.
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वहीं, कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना कहते हैं कि कुछ परिस्थितियों की वजह से ही साल 2012 से 2017 तक दो मुख्यमंत्री बनाने पड़े थे. धस्माना भाजपा पर भी हमला करने से नहीं चूके. उन्होंने कहा कि भाजपा ने तो अंतरिम सरकार में ही दो मुख्यमंत्री बना दिए थे, जो चुनी हुई सरकार भी नहीं थी. बहरहाल प्रदेश में एक ही मुख्यमंत्री एनडी तिवारी हैं, जिन्होंने अपने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया.
राजनीति विशेषज्ञ जय सिंह रावत की मानें तो अवसर बाधिता, पद लोलुपता और राजनीतिक अस्थिरता की वजह से इन 19 सालों में कई मुख्यमंत्रियों बदले गए हैं. इस तरह नेतृत्व बदलने के कयासों की वजह से प्रशासनिक कार्यों में भी बाधा पहुंचती है.