देहरादून: उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का विरोध उसके गठन के बाद से ही जारी है. धामों के तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी देवस्थानम बोर्ड को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं. इसी बीच बदरीनाथ-केदारनाथ धाम से जुड़ा साल 1934 का एक पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. वायरल पत्र से यह स्पष्ट हो रहा है कि अंग्रेजों के शासन काल में भी राज्य सरकार ही धामों में रावल की नियुक्ति करती थी. ऐसे में अब एक बड़ा सवाल खड़ा हो रहा है कि जब शुरू से ही धामों में राज्य सरकार का हस्तक्षेप रहा था तो ऐसे में अब उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का विरोध क्यों किया जा रहा है?
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे पत्र की पुष्टि ईटीवी भारत नहीं करता है. लेकिन, वायरल हो रहे पत्र के अनुसार टिहरी गढ़वाल राज्य के मुख्य सचिव की तरफ से राज्य के पॉलिटिकल एजेंट को 23 मार्च 1934 को एक पत्र लिखा गया था. जिसमें कहा गया है कि 'रावल की नियुक्ति पर सवाल उठाना ठीक नहीं है. क्योंकि, उस समय रावल शारीरिक समस्या के चलते अपना कार्य नहीं कर पा रहे थे, जिसके चलते एक मैनेजर की नियुक्ति कर दी गई है. मंदिर मैनेजमेंट स्कीम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, इस पत्र के साथ रावल की नियुक्ति का आदेश भी संलग्न किया गया था'.
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देवस्थानम बोर्ड का विरोध कर रहे तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारियों की समस्याओं का निस्तारण करने के लिए उत्तराखंड राज्य सरकार ने पूर्व सांसद मनोहर कांत ध्यानी की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय कमेटी बना चुकी है. बावजूद इसके देवस्थानम बोर्ड को लेकर तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारियों का विरोध जारी है.
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वायरल हो रहे इस पत्र पर अगर भरोसा किया जाए तो इससे यह स्पष्ट होता है कि पहले भी धामों पर सरकार का ही नियंत्रण था. ऐसे में अगर यह पत्र सही साबित होता है तो देवस्थानम बोर्ड मामले में नया मोड़ आ सकता है.