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पड़ताल: दून में प्रदूषण की वजह से बढ़ रही है अस्थमा रोगियों की संख्या - विश्व अस्थमा दिवस

राजधानी के दून मेडिकल कॉलेज में हर दिन 25 से 30 मरीज श्वास संबंधी समस्याओं को लेकर अस्पताल पहुंच रहे हैं. ऐसे में कुछ मरीजों की हालत इतनी खराब रहती है कि उन्हें एडमिट भी करना पड़ता है.

दून अस्पताल
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Published : May 7, 2019, 8:23 PM IST

देहरादून: मई महीने के पहले मंगलवार को देश-दुनिया में विश्व अस्थमा दिवस मनाया जाता है. अस्थमा के रोग में प्रदूषण एक बहुत बड़ा कारक होता है. इस बीमारी के कारण व्यक्ति के फेफड़ों की नसें सिकुड़ने लगती है और मरीज की सांस फूलने लगती है. यह बीमारी हर वर्ग के व्यक्ति को हो सकती है. राजधानी देहरादून में भी प्रदूषण के बढ़ते स्तर की वजह से दमा रोगियों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है. उत्तराखंड के सबसे बड़े सरकारी दून मेडिकल कॉलेज के चिकित्सक भी इस बात की तस्दीक कर रहे हैं.

दून में प्रदूषण की वजह से बढ़ रही है अस्थमा रोगियों की संख्या.

बता दें कि राजधानी के दून मेडिकल कॉलेज में हर दिन 25 से 30 मरीज श्वास संबंधी समस्याओं को लेकर अस्पताल पहुंच रहे हैं. ऐसे में कुछ मरीजों की हालत इतनी खराब रहती है कि उन्हें एडमिट भी करना पड़ता है. विशेषज्ञ मानते हैं कि देहरादून में अस्थमा के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. जिसका कारण शहर में तेजी से बढ़ता प्रदूषण भी है.

दून मेडिकल कॉलेज के श्वास रोग विशेषज्ञ श्वेताभ पुरोहित बताते हैं कि प्रत्येक दिन 25 से 30 मरीज सांस संबंधी दिक्कतों को लेकर ओपीडी में आ रहे हैं. अस्थमा के साथ ही सीओपीडी की बीमारी ग्रस्त मरीज भी अस्पताल पहुंच रहे है. अधिकतर लोगों में दमे की बीमारी अनुवांशिक होती है, जिसका असर आने वाली पीढ़ी पर देखने को मिलता है. वहीं, धूम्रपान करने वालों में भी दमे की बीमारी तेज से घर कर रही है. डॉक्टर बताते है कि वातावरण में बढ़ रहा प्रदूषण भी अस्थमा की वजह बनते है. देहरादून में प्रदूषण का स्तर भी तेजी से बढ़ता जा रहा है. जो लोगों मे एलर्जीक कंडीशन पैदा कर रहा है. उन्होंने बताया कि अस्पताल में दमा रोगियों के इलाज की पर्याप्त सुविधाएं मौजूद है. अगर, दमे का इलाज सही तरीके से किया जाए तो इस बीमारी को रोका जा सकता है.

वहीं, दून मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. एसडी जोशी ने बताया कि प्रदूषण के कारण इस रोग की संभावनाएं ज्यादा बनी रहती है. इसलिए प्रदूषण से बचना और पीक ऑवर में घर से नहीं निकलना चाहिए. साथ ही फ्लावरिंग सीजन के समय दमे के मरीजों को विशेष सतर्कता बरतनी होती है. हाई-वे के आसपास और जिन जगहों में ज्यादा धूल उड़ती है, वहां मास्क का उपयोग करना चाहिए. जिनके घरों के आसपास खेत हैं और वहां कटाई चल रही होती है. वहां अस्थमा की समस्या ज्यादा रहती है. इसके अलावा इस बीमारी में धूल भरे स्थानों में जाने से भी बचना चाहिए.

दून मेडिकल कॉलेज में आने वाली मरीजों की संख्या भी यह तस्दीक कर रही है कि शहर में अस्थमा के मरीजों की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है. जिसकी मुख्य वजह शहर में तेजी से बढ़ता प्रदूषण भी है. करीब हजार लोगों में 40 से 50 लोग अस्थमा से ग्रसित है. जिसमें छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक शामिल है. ज्यादातर केसों मे इसकी मुख्य वजह बढ़ते प्रदूषण से होने वाली एलर्जीक कंडीशन है.

देहरादून: मई महीने के पहले मंगलवार को देश-दुनिया में विश्व अस्थमा दिवस मनाया जाता है. अस्थमा के रोग में प्रदूषण एक बहुत बड़ा कारक होता है. इस बीमारी के कारण व्यक्ति के फेफड़ों की नसें सिकुड़ने लगती है और मरीज की सांस फूलने लगती है. यह बीमारी हर वर्ग के व्यक्ति को हो सकती है. राजधानी देहरादून में भी प्रदूषण के बढ़ते स्तर की वजह से दमा रोगियों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है. उत्तराखंड के सबसे बड़े सरकारी दून मेडिकल कॉलेज के चिकित्सक भी इस बात की तस्दीक कर रहे हैं.

दून में प्रदूषण की वजह से बढ़ रही है अस्थमा रोगियों की संख्या.

बता दें कि राजधानी के दून मेडिकल कॉलेज में हर दिन 25 से 30 मरीज श्वास संबंधी समस्याओं को लेकर अस्पताल पहुंच रहे हैं. ऐसे में कुछ मरीजों की हालत इतनी खराब रहती है कि उन्हें एडमिट भी करना पड़ता है. विशेषज्ञ मानते हैं कि देहरादून में अस्थमा के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. जिसका कारण शहर में तेजी से बढ़ता प्रदूषण भी है.

दून मेडिकल कॉलेज के श्वास रोग विशेषज्ञ श्वेताभ पुरोहित बताते हैं कि प्रत्येक दिन 25 से 30 मरीज सांस संबंधी दिक्कतों को लेकर ओपीडी में आ रहे हैं. अस्थमा के साथ ही सीओपीडी की बीमारी ग्रस्त मरीज भी अस्पताल पहुंच रहे है. अधिकतर लोगों में दमे की बीमारी अनुवांशिक होती है, जिसका असर आने वाली पीढ़ी पर देखने को मिलता है. वहीं, धूम्रपान करने वालों में भी दमे की बीमारी तेज से घर कर रही है. डॉक्टर बताते है कि वातावरण में बढ़ रहा प्रदूषण भी अस्थमा की वजह बनते है. देहरादून में प्रदूषण का स्तर भी तेजी से बढ़ता जा रहा है. जो लोगों मे एलर्जीक कंडीशन पैदा कर रहा है. उन्होंने बताया कि अस्पताल में दमा रोगियों के इलाज की पर्याप्त सुविधाएं मौजूद है. अगर, दमे का इलाज सही तरीके से किया जाए तो इस बीमारी को रोका जा सकता है.

वहीं, दून मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. एसडी जोशी ने बताया कि प्रदूषण के कारण इस रोग की संभावनाएं ज्यादा बनी रहती है. इसलिए प्रदूषण से बचना और पीक ऑवर में घर से नहीं निकलना चाहिए. साथ ही फ्लावरिंग सीजन के समय दमे के मरीजों को विशेष सतर्कता बरतनी होती है. हाई-वे के आसपास और जिन जगहों में ज्यादा धूल उड़ती है, वहां मास्क का उपयोग करना चाहिए. जिनके घरों के आसपास खेत हैं और वहां कटाई चल रही होती है. वहां अस्थमा की समस्या ज्यादा रहती है. इसके अलावा इस बीमारी में धूल भरे स्थानों में जाने से भी बचना चाहिए.

दून मेडिकल कॉलेज में आने वाली मरीजों की संख्या भी यह तस्दीक कर रही है कि शहर में अस्थमा के मरीजों की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है. जिसकी मुख्य वजह शहर में तेजी से बढ़ता प्रदूषण भी है. करीब हजार लोगों में 40 से 50 लोग अस्थमा से ग्रसित है. जिसमें छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक शामिल है. ज्यादातर केसों मे इसकी मुख्य वजह बढ़ते प्रदूषण से होने वाली एलर्जीक कंडीशन है.

Intro:आज विश्व अस्थमा दिवस है और यह दिन मई माह के प्रथम मंगलवार को पूरे विश्व भर में मनाया जाता है राजधानी देहरादून में भी प्रदूषण के प्रति स्तर की वजह से दमा के रोगियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। दरअसल अस्थमा फेफड़ों की बीमारी होती है जो प्रदूषण की वजह से धूल और कणों से एलर्जन्स पैदा करती है,जिससे व्यक्ति के फेफड़ों की नसें सिकुड़ने लगती है और मरीज की सांस फूलने लगती है अगर उस व्यक्ति की सांस ज्यादा फूलती है तो उसका रंग नीला भी पड़ जाता है इसी को अस्थमा कहा जाता हैं और यह बीमारी हर वर्ग के व्यक्ति को हो सकती है।
उत्तराखंड के सबसे बड़े सरकारी दून मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञ चिकित्सक इस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि प्रत्येक दिन 25 से 30 मरीज श्वास संबंधी समस्याओं को लेकर उनके पास आ रहे हैं ऐसे में स्थिति को की गंभीरता को देखते हुए कुछ मरीजों को एडमिट भी करना पड़ता है, विशेषज्ञ मानते हैं कि कभी ग्रीन दून के नाम से चलाए जाने वाले इस शहर में बढ़ता प्रदूषण अस्थमा के रोगियों की संख्या को भी बढ़ा रहा है।


Body:दून मेडिकल कॉलेज के श्वास रोग विशेषज्ञ श्वेताभ पुरोहित लोगों मे दमे की बीमारी के बढ़ते प्रकोप पर विस्तृत जानकारी देते हुए बताते हैं कि मेडिकल कॉलेज में अस्थमा के रोगियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है प्रत्येक दिन 25 से 30 मरीज सॉस संबंधी दिक्कतों को लेकर ओपीडी में आ रहे हैं अस्थमा के साथ ही सीओपीडी की बीमारी से भी ग्रस्त मरीज अपनी शिकायत लेकर यहां पहुंच रहे हैं अधिकतर लोगों में दमे की बीमारी अनुवांशिक होती है जिसका असर आने वाली पीढ़ी पर देखने को मिलता है। वहीं सिगरेट, बीड़ी का सेवन करने वालों में भी दमे के लक्षण पाए जा रहे हैं उन्होंने कहा कि वातावरण में जो कारक होते हैं यह भी अस्थमा की वजह बनते हैं देहरादून में प्रदूषण का स्तर भी लगातार बढ़ता जा रहा है जो लोगों मे एलर्जीक कंडीशन पैदा कर रहा है। उन्होंने बताया कि अस्पताल में दमा रोगियों के इलाज की पर्याप्त सुविधाएं मौजूद है अगर दमे का इलाज सही तरीके से लिया जाए तो इस बीमारी को रोका जा सकता है,और 100 में से 99 मरीज अपना जीवन आराम से व्यतीत कर सकते हैं।

बाईट- श्वेताभ पुरोहित, श्वास रोग विशेषज्ञ, दून मेडिकल कॉलेज

वहीं दून मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ फिजिशियन डॉ एस डी जोशी ने अस्थमा से बचाव और सावधानी बरतने की सलाह देते हुए बताया कि जब भी ऐसा सीजन आता है जिसमें प्रदूषण की संभावनाएं ज्यादा बनी रहती हैं उस मौसम में विशेष सावधानी बरतें । साथ ही फ्लावरिंग सीजन या बोर के सीजन आने का समय होता है उस दौरान भी विशेष सतर्कता बरतें। रवि और खरीफ की फसल कटते समय, बगीचों के बगल में ,हाईवे के आसपास और जिन जगहों में धूल ज्यादा उड़ती है वहां मास्क का उपयोग करें। जिनके घरों के आसपास खेत हैं और वहां कटाई होती रहती है वहां अस्थमा से बचने के लिये सावधानी बरतें। घरों के अंदर ह्यूमिडिटी रखनी चाहिए ताकि घर के अंदर कण जाना ना उडें। सीज़नल कपड़े निकालते में रखने के दौरान कपड़ों की धूल अस्थमा का कारण भी बन सकती है।

बाईट-डॉ एस डी जोशी, वरिष्ठ फिजिशियन, दून मेडिकल कॉलेज


Conclusion:मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय भी इस बात को मान रहा है कि अस्थमा के रोगियों की बढ़ती तादाद की मुख्य वजह शहर में बढ़ता प्रदूषण भी है ।करीब हजार लोगों में 40 से 50 लोग अस्थमा की बीमारी से ग्रसित हो रहे हैं यह बीमारी छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्ग व्यक्ति को प्रभावित कर रही है ज्यादातर केसों मे इसकी मुख्य वजह बढ़ते प्रदूषण से होने वाली एलर्जीक कंडीशन है ,ऐसे मे प्रदूषण नियंत्रण करना भी अपने आप मे एक चुनौती है
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