देहरादून: उत्तराखंड में सरकारी स्कूलों से बच्चों का पलायन हमेशा से ही एक प्रमुख और संवेदनशील मुद्दा रहा है. 22 साल के उत्तराखंड में कई सरकारें आईं और चली गईं, लेकिन कोई भी समस्या का हल नहीं निकाल पाई. सरकारी स्कूलों में छात्रों को अच्छी शिक्षा और सुविधा देने का दावा धरातल पर नहीं दिखा. यही कारण है कि छात्रों का सरकारी स्कूलों से मोह भंग होता चला गया है. इसकी तस्दीक खुद शिक्षा विभाग के आंकड़े कर रहे हैं.
यूपी से अलग करके नए राज्य के तौर पर उत्तराखंड निर्माण का उद्देश्य यही था कि यहां के लोगों को मूलभूत सुविधाएं मिलेंगी. सरकारी स्कूलों में बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलेगी, जिससे प्रदेश के साथ-साथ देश का भविष्य भी संवरेगा. लेकिन जैसे-जैसे उत्तराखंड जवान होता गया, यहां सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर बेहतर होने के बजाए गिरता चला गया है. इसका परिणाम ये हुआ है कि कुमाऊं और गढ़वाल के 7 पहाड़ी जिलों के सरकारी स्कूलों से पिछले चार सालों में करीब 59,345 छात्रों की संख्या घट गई.
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माता-पिता अपने बच्चों का एडमिशन सरकारी स्कूलों में कराएं, इसके लिए उत्तराखंड सरकार कई योजनाएं चला भी रही है. बावजूद इसके माता-पिता बच्चों का सरकारी स्कूलों में एडमिशन नहीं कर रहे हैं. यही कारण है कि लगातार सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ने के बजाए घटती जा रही है.
पिछले चार सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो प्रदेश में कक्षा 1 से 12 तक करीब 1 लाख से अधिक छात्र संख्या सरकारी स्कूलों में घटी है. सरकारी स्कूलों में छात्रों की घटती संख्या ने सरकार और शिक्षा विभाग के सभी दावों को पोल खोल कर रख दी है.
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शायद यह आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि जितना प्रदेश सरकार और शिक्षा महकमे ने सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या बढ़ाने के लिए योजनाओं के विज्ञापन पर खर्च किया, अगर उतना इन स्कूलों में मूलभूत सुविधाएं देने में खर्च किया जाता, तो शायद आज यह नौबत नहीं आती.
प्रदेश के सात जिलों में छात्रों ने छोड़े सरकारी स्कूल
जिला | छात्रों की संख्या |
अल्मोड़ा | 13,081 |
पौड़ी | 11,915 |
टिहरी | 10,747 |
नैनीताल | 8,969 |
पिथौरागढ़ | 8,024 |
चम्पावत | 3,395 |
बागेश्वर | 3,214 |