देहरादूनः उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर झीलों की भरमार है. ग्लोबल वार्मिंग और मौसम में हो रहे बदलाव के चलते इन झीलों की संख्या में और भी इजाफा हो रहा है, लेकिन इन सब चिंताओं के बावजूद अच्छी खबर ये है कि प्रदेश के लिए 1,263 ग्लेशियर झीलों से कोई भी खतरा नहीं है. यानी वैज्ञानिकों ने इन झीलों से मानव बस्तियों के लिए खतरा नहीं माना है.
दरअसल, उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में 1,263 ग्लेशियर झीलें मौजूद हैं. इस हिमालयी क्षेत्र में करीब 20 से 25 फीसदी ऐसी झीलें हैं, जो खतरनाक मानी जाती हैं, लेकिन इन झीलों का आकार छोटा होने के कारण वैज्ञानिक इन्हें मानव बस्तियों के लिए खतरा नहीं मान रहे हैं. हालांकि, झीलों की संख्या के लिहाज से देखें तो पड़ोसी राज्य हिमाचल में उत्तराखंड से ज्यादा ग्लेशियर होने के बावजूद यहां झीलों की संख्या करीब 900 है.
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वहीं, उत्तराखंड में ग्लेशियर कम होने के बावजूद 1,263 झीलें रिकॉर्ड की गई हैं. इस तरह यह कहा जा सकता है कि उत्तराखंड में ग्लेशियर के पिघलने का क्रम हिमाचल से ज्यादा दिखाई देता है. केदारनाथ आपदा के दौरान भी चौराबाड़ी झील की वजह से जल सैलाब आया था. जिसमें हजारों की जानें चली गई थी.
इसके बाद चमोली में रैणी आपदा आई. उस दौरान भी मुरेंडा के पास एक प्राकृतिक झील बन गई थी. जिसका पानी ठहर सा गया था. जिसके बाद आईटीबीपी के जवानों ने झील के मुहाने पर प्रवाह को रोक रहे मलबा और पेड़ आदि को हटाया था. हालांकि, यह प्राकृतिक झील थी. पहले तो इसे खतरा माना जा रहा था, लेकिन बाद में कोई खतरा न होने की बात कही गई थी. यही वजह है कि उत्तराखंड में झीलों को खतरा माना जाता है.
झीलों की निगरानी रखना बेहद जरूरीः बहरहाल, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी देहरादून के पूर्व वैज्ञानिक डीपी डोभाल कहते हैं कि अध्ययन के दौरान पाया गया है कि करीब 20 से 25 प्रतिशत झीलें खतरा पैदा कर सकती हैं, लेकिन इनका आकार बड़ा नहीं होने के कारण फिलहाल इनसे कोई खतरा नहीं है. हालांकि, वो ये भी कहते हैं कि ऐसी झीलों की निगरानी रखना बेहद जरूरी है.
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उत्तराखंड में ग्लेशियर को लेकर सरकार और वैज्ञानिकों का ज्यादा ध्यान केदारनाथ आपदा के बाद ही दिखाई दिया. साल 2015 में इसके लिए बाकायदा कई वैज्ञानिकों के एक दल ने सभी ग्लेशियर का अध्ययन भी किया. इस दौरान रिकॉर्ड किए गए ग्लेशियर के हालातों ने राज्य की चिंता को कुछ कम करने का भी काम किया. उत्तराखंड में सभी 1,263 ग्लेशियर झीलों की मैपिंग की जा चुकी है. जिसमें सभी तरह की जिलों को शामिल किया गया था.
आंकड़ों के जरिए जानिए उत्तराखंड में ग्लेशियर झील की स्थितिः हिमालय में 8000 से ज्यादा ग्लेशियर हैं, जिनमें हजारों झीलें बन चुकी हैं. समय के साथ इनकी संख्या बढ़ रही है. नेपाल और तिब्बत में खतरा पैदा करने वाली सबसे ज्यादा खतरनाक झीलें पाई गई हैं. साल 2020 के एक अध्ययन में 47 में से 25 तिब्बत और 21 नेपाल, जबकि एक भारतीय क्षेत्र में खतरनाक झील पाई गई है. मोरैन डैकड झीलों के फटने का खतरा रहता है, लेकिन उत्तराखंड में ऐसी झीलें छोटी हैं.
वहीं, उत्तराखंड में 1,263 जिलों में 20% खतरनाक मानी जाने वाली झीलें मौजूद हैं. गढ़वाल रीजन में 1044 झीलें तो कुमाऊं रीजन में 219 झीलें मौजूद हैं. उत्तराखंड में ग्लेशियर पर मौजूद झीलें छोटी होने के कारण खतरा नहीं मानी जा रही हैं, जबकि नेपाल और तिब्बत की झीलों को बेहद खतरनाक माना गया है. उत्तराखंड की बात करें तो यहां 6 ग्लेशियर पर मौजूद झीलों की निगरानी की जाती रही है. इनमें गंगोत्री ग्लेशियर पर मौजूद झील, चौराबाड़ी झील, डोरियानी झील, पिंडारी झील, दूनागिरि और कफनी झील शामिल हैं.
जिलों के लिहाज से मौजूद झीलेंः उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री, डोक्रियानी, यमुनोत्री और बंदरपूंछ पर कई झीलें हैं. उत्तराखंड में गंगोत्री ग्लेशियर सबसे बड़ा है, जो तेजी से हर साल पीछे खिसक रहा है. चमोली जिले में बदरीनाथ, द्रोणागिरि, सतोपंथ, भागीरथी और हिपरा बमक ग्लेशियर पर कई झीलें हैं.
वहीं, रुद्रप्रयाग में चौराबाड़ी, केदार ग्लेशियर और खतलिंग ग्लेशियर पर भी झीलें हैं. पिथौरागढ़ में मिलम, हीरामणि, काली, नारामिक, सोना, पिनौरा में झीलें मौजूद हैं. इसके अलावा बागेश्वर में पिंडारी, मैकतोली, कपननी, सुन्दरढूंगा, और सुखराम ग्लेशियर पर भी कई झीलें हैं.
ग्लेशियर पर तीन प्रकार की झीलें बनती हैं, ये होती है खतरनाकः वैज्ञानिक ग्लेशियर पर बनी झीलों को तीन रूप में वर्गीकृत करते हैं. इनमें एक सुपरा झील है, जो कि उत्तराखंड में सबसे ज्यादा हैं. यह झीलें 10 से 20 मीटर तक पाई गई हैं. ये झीलें ग्लेशियर के ऊपर बनती हैं और यह खुद ही बनती और खत्म भी हो जाती हैं. वैज्ञानिकों ने पाया है कि इनमें कई झीलें ऐसी भी हैं, जो ग्लेशियर से खुद-ब-खुद रिस रही है. यानी इसका पानी बाहर निकल जाता है. जिससे झील से खतरा और भी कम हो जाता है.
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वैज्ञानिकों का मानना है कि सबसे खतरनाक मानी जाने वाली झील मोरैन हैं, जो कि ग्लेशियर के मुहाने पर होती हैं. ऐसी स्थिति में पानी रोकने वाला मुहाना कमजोर भी होता है. जिसके कारण दबाव पड़ने पर इन झीलों के फटने का खतरा काफी ज्यादा होता है. जिससे निचले क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा बन जाता है.
इसी तरह से तीसरी झील को इरोसीन के रूप में वर्गीकृत किया गया है. इसे वैज्ञानिक खतरनाक नहीं मानते. इस तरह वैज्ञानिकों ने अब तक के हुए अध्ययन में साफ कर दिया है कि उत्तराखंड में मौजूद झीलें राज्य के लिए खतरनाक नहीं हैं. इसके साथ ही उत्तराखंड के पड़ोसी राज्य भी इससे राहत की सांस ले सकते हैं.