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19 का उत्तराखंडः जब त्रिपाल के नीचे बैठी थी पूरी कैबिनेट - देहरादून न्यूज

उत्तराखंड राज्य को 19 साल पूरे होने वाले हैं. क्या आपको पता है, साल 2000 में उत्तरप्रदेश से अलग होने के बाद इस पहाड़ी प्रदेश का पहला विधानसभा सत्र एक त्रिपाल के नीचे हुआ था. चलिए, जानते हैं पूरी कहानी.

जब त्रिपाल के नीचे बैठी थी पूरी कैबिनेट
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Published : Nov 4, 2019, 9:52 PM IST

Updated : Nov 5, 2019, 12:05 PM IST

देहरादून: कुछ दिनों में उत्तराखंड पूरे 19 साल का हो जाएगा. इस कड़ी में आज हम आपको इस पहाड़ी प्रदेश की ऐसी सच्चाई से रूबरू कराएंगे, जो 19 साल पहले भी ऐसी ही थी और आज भी ऐसी ही है. यहां बात हो रही है राजधानी की. राजधानी की बात जब भी जेहन में आती है तो मन के अंदर दो सुंदर जगहों की तस्वीर उभर आती है. पहला तीन पहाड़ियों के बीच बसी खूबसूरत दून घाटी और गैरसैंण. लेकिन, राजनैतिक अति महत्वकांक्षाओं के चलते स्थायी राजधानी का सपना आज भी पूरा नहीं हो पाया है.

जब त्रिपाल के नीचे बैठी थी पूरी कैबिनेट.


चलिए, इस बात का जिक्र थोड़ी देर बाद करेंगे, फिलहाल बात करते हैं विधानसभा भवन की. ये बात बहुत कम लोगों को पता है कि साल 2000 में उत्तरप्रदेश से अलग होने के बाद पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड का पहला विधानसभा सत्र एक त्रिपाल के नीचे हुआ था.


साल 2000 के नवंबर माह में देश के 3 नए राज्यों का गठन हुआ था. छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड. इन तीन राज्यों में उत्तराखंड ही ऐसा राज्य है, जहां दो विधानसभा भवन हैं. कुछ वर्ष पहले हरीश रावत की सरकार के वक्त गैरसैंण में विधानसभा भवन का निर्माण किया गया. गैरसैंण विधानसभा भवन की भव्यता भी कम नहीं है.

पढ़ेंः उत्तराखंड: इंडिया के 'जेम्स बांड' को मानद उपाधि देगा गढ़वाल विश्वविद्यालय

अब जरा अन्य दो राज्यों की विधानसभा भवन की ओर नजर दौड़ाते हैं. झारखण्ड में 29 एकड़ में फैला विधानसभा भवन 465 करोड़ की लागत से बना है. ये विधानसभा भवन देश की चंद बेहतरीन इमारतों में शुमार है. वहीं, छत्तीसगढ़ भी कुछ पीछे नहीं. हालांकि गैरसैंण विधानसभा भवन बनने से पहले उत्तराखंड का विधानसभा भवन विकास भवन में है. अभी भी ज्यादातर सत्र का संचालन देहरादून के विकास भवन में ही चलता है.

पढ़ेंः देश विरोधी नारेबाजी: छावनी परिषद के उपाध्यक्ष की सफाई, कहा- चुनाव के चलते भ्रम फैला रहे विरोधी

जब त्रिपाल के नीचे हुआ पहला विधानसभा सत्र
उत्तराखंड विधानसभा भवन की कहानी शुरू होती है, संसद में उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम पास होने के साथ. उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि जब साल 2000 में उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम संसद में पास हुआ था. तत्कालीन कैबिनेट सेक्रेटरी कमल पांडे ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र लिखा और बताया कि नया राज्य तो बन चुका है, बिल भी पास हो गया है. लेकिन अब ये बताएं कि कर्मचारियों का बंटवारा और संपत्तियों का बंटवारा कैसे होगा? इसके अलावा केंद्रीय कैबिनेट सेक्रेटरी द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को जो पत्र लिखा गया था, ये भी पूछा गया कि नए राज्य की राजधानी कहां होगी? हाई कोर्ट कहां होगा? सब कुछ स्पष्ठ करें, ताकि व्यवस्था की जा सके. शुरू से ही उत्तराखंड के राजनीतिक ध्रुवों के चलते कुछ सुनिश्चित नहीं हो पाया.

पढ़ेंः पिथौरागढ़ उपचुनाव: बीजेपी ने खेला सहानुभूति का कार्ड, कांग्रेस को नहीं मिल रहा तोड़

हालांकि भावनात्मक रूप से राजधानी का केंद्र गैरसैंण ही रहा, लेकिन सरकारी मुहर न लग सकी. तब से लेकर अब तक राजधानी का मुद्दा सियासी वातावरण में ही तैर रहा है. जिस पर आज भी सत्ता पर बैठे दल का कोई भी नेता खुलकर बोलने के लिए तैयार नहीं है. बहरहाल, राजधानी का मुद्दा उत्तराखंड में शुरू से ही एक बड़ा सियासी मुद्दा रहा है. इसका इस्तेमाल राजनीतिक धुरंधर अपने-अपने तरीके से करते आए हैं. लेकिन, अगर बात केवल उस भवन की करें. जहां पर बैठकर प्रदेश की अलग-अलग विधानसभाओं से चुनकर आए विधायक प्रदेश की नीतियों का निर्धारण करते हैं. वे राज्य गठन के बाद राजधानी को लेकर कोई निष्कर्ष नहीं निकाल पाए.

पढ़ेंः रुड़की नगर निगम चुनाव: बीजेपी से बागी हुए गौरव गोयल, निर्दलीय मैदान में कूदे

राज्य गठन की तारीख 9 नवंबर तय हो चुकी थी. इसके लिए वरिष्ठ आईएएस अधिकारी आरएस टोलिया को ओएसडी यानी ऑफिसर्स इन स्पेशल ड्यूटी की जिम्मेदारी दी गई थी. राजधानी के झूलते मुद्दे के बीच तय किया गया कि फिलहाल देहरादून को अस्थाई राजधानी बनाया जाए और फिर खोज शुरू हुई, उस भवन की जहां पहला विधानसभा सत्र आहूत किया जाना था. ये खोज खत्म हुई रिस्पना पुल के पास मौजूद विकास भवन पर जाकर. फिर पहली बार यहां त्रिपाल के नीचे विधानसभा सत्र आहूत की गई. नया राज्य मिलने के जोश में हालांकि ये कोई बड़ी बात नहीं थी, लेकिन इसके बाद भी हालात नहीं सुधर पाए. वक्त बीतता गया और आज विकास भवन ही विधानसभा के नाम से जाना जाने लगा. इसके कुछ पुरानी यादें ताजा करते हुए वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि शुरुआती दौर में विधानसभा सत्र में आग लग गई थी और कई बार माननीय विधायक कुर्सियों से टूट कर धड़ाम गिर जाते थे. जिसके बाद तमाम जांच हुई, लेकिन आज भी हालात कुछ ज्यादा बेहतर नहीं हो पाए हैं.

देहरादून: कुछ दिनों में उत्तराखंड पूरे 19 साल का हो जाएगा. इस कड़ी में आज हम आपको इस पहाड़ी प्रदेश की ऐसी सच्चाई से रूबरू कराएंगे, जो 19 साल पहले भी ऐसी ही थी और आज भी ऐसी ही है. यहां बात हो रही है राजधानी की. राजधानी की बात जब भी जेहन में आती है तो मन के अंदर दो सुंदर जगहों की तस्वीर उभर आती है. पहला तीन पहाड़ियों के बीच बसी खूबसूरत दून घाटी और गैरसैंण. लेकिन, राजनैतिक अति महत्वकांक्षाओं के चलते स्थायी राजधानी का सपना आज भी पूरा नहीं हो पाया है.

जब त्रिपाल के नीचे बैठी थी पूरी कैबिनेट.


चलिए, इस बात का जिक्र थोड़ी देर बाद करेंगे, फिलहाल बात करते हैं विधानसभा भवन की. ये बात बहुत कम लोगों को पता है कि साल 2000 में उत्तरप्रदेश से अलग होने के बाद पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड का पहला विधानसभा सत्र एक त्रिपाल के नीचे हुआ था.


साल 2000 के नवंबर माह में देश के 3 नए राज्यों का गठन हुआ था. छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड. इन तीन राज्यों में उत्तराखंड ही ऐसा राज्य है, जहां दो विधानसभा भवन हैं. कुछ वर्ष पहले हरीश रावत की सरकार के वक्त गैरसैंण में विधानसभा भवन का निर्माण किया गया. गैरसैंण विधानसभा भवन की भव्यता भी कम नहीं है.

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अब जरा अन्य दो राज्यों की विधानसभा भवन की ओर नजर दौड़ाते हैं. झारखण्ड में 29 एकड़ में फैला विधानसभा भवन 465 करोड़ की लागत से बना है. ये विधानसभा भवन देश की चंद बेहतरीन इमारतों में शुमार है. वहीं, छत्तीसगढ़ भी कुछ पीछे नहीं. हालांकि गैरसैंण विधानसभा भवन बनने से पहले उत्तराखंड का विधानसभा भवन विकास भवन में है. अभी भी ज्यादातर सत्र का संचालन देहरादून के विकास भवन में ही चलता है.

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जब त्रिपाल के नीचे हुआ पहला विधानसभा सत्र
उत्तराखंड विधानसभा भवन की कहानी शुरू होती है, संसद में उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम पास होने के साथ. उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि जब साल 2000 में उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम संसद में पास हुआ था. तत्कालीन कैबिनेट सेक्रेटरी कमल पांडे ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र लिखा और बताया कि नया राज्य तो बन चुका है, बिल भी पास हो गया है. लेकिन अब ये बताएं कि कर्मचारियों का बंटवारा और संपत्तियों का बंटवारा कैसे होगा? इसके अलावा केंद्रीय कैबिनेट सेक्रेटरी द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को जो पत्र लिखा गया था, ये भी पूछा गया कि नए राज्य की राजधानी कहां होगी? हाई कोर्ट कहां होगा? सब कुछ स्पष्ठ करें, ताकि व्यवस्था की जा सके. शुरू से ही उत्तराखंड के राजनीतिक ध्रुवों के चलते कुछ सुनिश्चित नहीं हो पाया.

पढ़ेंः पिथौरागढ़ उपचुनाव: बीजेपी ने खेला सहानुभूति का कार्ड, कांग्रेस को नहीं मिल रहा तोड़

हालांकि भावनात्मक रूप से राजधानी का केंद्र गैरसैंण ही रहा, लेकिन सरकारी मुहर न लग सकी. तब से लेकर अब तक राजधानी का मुद्दा सियासी वातावरण में ही तैर रहा है. जिस पर आज भी सत्ता पर बैठे दल का कोई भी नेता खुलकर बोलने के लिए तैयार नहीं है. बहरहाल, राजधानी का मुद्दा उत्तराखंड में शुरू से ही एक बड़ा सियासी मुद्दा रहा है. इसका इस्तेमाल राजनीतिक धुरंधर अपने-अपने तरीके से करते आए हैं. लेकिन, अगर बात केवल उस भवन की करें. जहां पर बैठकर प्रदेश की अलग-अलग विधानसभाओं से चुनकर आए विधायक प्रदेश की नीतियों का निर्धारण करते हैं. वे राज्य गठन के बाद राजधानी को लेकर कोई निष्कर्ष नहीं निकाल पाए.

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राज्य गठन की तारीख 9 नवंबर तय हो चुकी थी. इसके लिए वरिष्ठ आईएएस अधिकारी आरएस टोलिया को ओएसडी यानी ऑफिसर्स इन स्पेशल ड्यूटी की जिम्मेदारी दी गई थी. राजधानी के झूलते मुद्दे के बीच तय किया गया कि फिलहाल देहरादून को अस्थाई राजधानी बनाया जाए और फिर खोज शुरू हुई, उस भवन की जहां पहला विधानसभा सत्र आहूत किया जाना था. ये खोज खत्म हुई रिस्पना पुल के पास मौजूद विकास भवन पर जाकर. फिर पहली बार यहां त्रिपाल के नीचे विधानसभा सत्र आहूत की गई. नया राज्य मिलने के जोश में हालांकि ये कोई बड़ी बात नहीं थी, लेकिन इसके बाद भी हालात नहीं सुधर पाए. वक्त बीतता गया और आज विकास भवन ही विधानसभा के नाम से जाना जाने लगा. इसके कुछ पुरानी यादें ताजा करते हुए वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि शुरुआती दौर में विधानसभा सत्र में आग लग गई थी और कई बार माननीय विधायक कुर्सियों से टूट कर धड़ाम गिर जाते थे. जिसके बाद तमाम जांच हुई, लेकिन आज भी हालात कुछ ज्यादा बेहतर नहीं हो पाए हैं.

Intro:Note- यह ख़बर राज्य स्थपना दिवस पर श्पेशल स्टोरी है। खबर में पुराने तत्थों की पुष्टि के साथ वरिष्ठ पत्रकार की बाइट mojo से भेज रहा हूं बाकी visual और PTC FTP से भेजी जा रही है।


एंकर- जल्दी उत्तराखंड राज्य अपने 19 साल पूरे कर बीच में वर्ष में कदम रखेगा लेकिन इन 19 सालों में राज्य की दिशा और दशा जिस जगह बैठकर तय होती आई है उस विधानसभा भवन के आज हम आपको कहानी बताने जा रहे हैं।


Body:वीओ- भले आज हमारा राज्य 19 साल पूरा करने जा रहा है लेकिन आज भी कुछ अहम चीजें हैं जो अब तक बदल जानी चाहिए थी लेकिन अफसोस कि इन 19 सालों बाद भी यह रुका हुआ बदलाव देखने के लिए उत्तराखंड के लोगों की आंखे तरस गयी है।
दरअसल हम बात कर रहे हैं उस बदलाव की जिस जगह से सूबे की दिशा और दशा तय की जाती है। वर्ष 2000 में के नवंबर माह में देश के 3 नए राज्यों- छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड का गठन किया गया जिनमे से केवल उत्तराखंड ही ऐसा राज्य है जहां विधानसभा भवन के हालात आज भी 19 वर्षों पहले जैसे ही है। झारखण्ड में 29 एकड़ में 465 करोड़ की लागत से बनी विधान सभा आज देश की चंद बेहतरीन इमारतों में शुमार है तो छत्तीसगढ़ भी कुछ पीछे नही लेकिन उत्तराखंड की विधानसभा आज भी अस्थाई विकास भवन में स्थापित है। जहां से प्रदेश की विकास के लिए मंथन किया जाता है वह आसन ही आज तक सही नहीं हो पाया है। उत्तराखंड विधानसभा भवन की कहानी राज्य गठन के साथ शुरू हुई और अभी तक 19 सालों के बाद भी बिना किसी बड़े बदलाव की वह कहानी जस की तस है आइए आपको बताते हैं कैसे शुरुआत हुई इसकी।

त्रिपाल के नीचे हुआ था राज्य बनने के बाद पहला विधानसभा सत्र---
उत्तराखंड विधानसभा भवन की कहानी शुरू होती है संसद में उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम पास होने के साथ ही। वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि जब वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम संसद में पास हुआ तो तत्कालीन कैबिनेट सेक्रेटरी कमल पांडे ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को लिखा कि नया राज्य तो बन चुका है, बिल भी पास हो गया है लेकिन अब यह बताएं कि कर्मचारियों का बंटवारा और संपत्तियों का बंटवारा कैसे होगा। इसके अलावा केंद्रीय कैबिनेट सेक्रेटरी द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को जो पत्र लिखा गया था उसमें यह भी पूछा गया कि नए राज्य के राजधानी कहां होगी, हाई कोर्ट कहां होगा स्पष्ठ करें ताकि व्यवस्था की जा सके। शुरू से ही उत्तराखंड के राजनीतिक ध्रुवों के चलते कुछ सुनिश्चित नहीं हो पाया।

भावनात्मक रूप से केंद्र बिंदु गैरसैण से शुरू हुई अलग राज्य की चिंगारी जब अंजाम तक पहुंची तो जिस चिंगारी को कोई बुझा नही पाया वो चिंगारी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के सामने ठंडी हो गई और तब से लेकर अब तक राजधानी का मुद्दा सियासी वातावरण में ही तैर रहा है ,जिस पर आज भी कोई खुलकर बोलने के लिए तैयार नहीं है।

बहरहाल राजधानी का मुद्दा उत्तराखंड में एक बड़ा सियासी मुद्दा है जिसका इस्तेमाल राजनीतिक धुरंधर अपने अपने तरीके से करते आए हैं लेकिन अगर बात केवल उस भवन की करें जहां पर बैठकर प्रदेश की अलग-अलग विधानसभाओं से चुनकर आए विधायक प्रदेश की नीतियों का निर्धारण करते हैं तो। राज्य गठन के बाद राजधानी को लेकर तो कोई निष्कर्ष नहीं निकला लेकिन राज्य गठन की तारीख 9 नवंबर तय हो चुकी थी। जिसके लिए वरिष्ठ आईएएस अधिकारी आरएस टोलिया को ओएसडी यानी ऑफिसर्स इन स्पेशल ड्यूटी की जिम्मेदारी दी गई थी। राजधानी के झूलते मुद्दे के बीच तय किया गया कि फिलहाल देहरादून को अस्थाई राजधानी बनाया जाए और फिर खोज शुरू उस भवन की जंहा पहला विधानसभा सत्र आहूत किया जाना था और यह खोज खत्म हुई रिष्पना पुल के पास मौजूद विकास भवन पर जाकर और फिर पहली बार यहां त्रिपाल के नीचे विधानसभा सत्र आहूत किया गया। नए राज्य मिलने के जोश में यह कोई बड़ी बात नहीं थी लेकिन इसके बाद भी हालात नहीं सुधरे वक्त बीतता गया और आज विकास भवन ही विधानसभा के नाम से जाना जाने लगा। इसके कुछ पुरानी यादें ताजा करते हुए वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि शुरुआती दौर में विधानसभा सत्र में आग लग गई थी और कई बार माननीय विधायक कुर्सियों से टूट कर धड़ाम गिर जाते थे। जिसके बाद तमाम जांच हुई लेकिन आज भी हालात कुछ ज्यादा बेहतर नहीं हो पाए हैं।

बाइट- जय सिंह रावत, वरिष्ठ पत्रकार


सत्र के दौरान हर बार राष्ट्रीय राजमार्ग को भी रोक दिया जाता है।---
एक जमाने में विकास भवन के नाम से जाना जाने वाला विकास भवन में पिछले 19 सालों से विधानसभा सत्र आहूत किए जा रहे हैं। लेकिन हालात यह है कि जितनी बार यंहा विधानसभा सत्र आहूत किए जाते हैं उतनी दफा सत्र के कई दिनों पहले से ही रिस्पना पुल से गुजरने वाले सभी मार्गों पर बैरिकेडिंग लगाकर यातायात को बाधित कर दिया जाता है। जिसमें सहारनपुर ऋषिकेश हरिद्वार राष्ट्रीय राजमार्ग भी शामिल है। सत्र के दौरान पूरा क्षेत्र जीरो जोन कर दिया जाता है और प्रदेश का वह शहर जो सबसे तेज रफ्तार के साथ दौड़ता है उसकी रफ्तार तब थम जाती है जब देहरादून में विधानसभा सत्र किए जाते हैं। देहरादून विकास भवन में चल रही अस्थाई विधानसभा किसी भी तरह से विधानसभा के मानकों के अनुकूल नहीं है। आसपास के लोगों को हर बार समस्याओं का सामना करना पड़ता है वहीं सदन के अंदर की बात करें तो वहां भी स्थिति ऐसी ही है जहां माननीय विधायकों ज्यादा देर तक आराम से बैठ भी नही पाते हैं।

बाइट- जय सिंह रावत, वरिष्ठ पत्रकार

उत्तराखंड के साथ बने राज्यों की के विधानसभा भवन की स्थिति---
वर्ष 2000 के नवम्बर माह में देश मे देश के 3 नए राज्यों का गठन किया गया, 1 नवम्बर छत्तीसगढ़, 9 नवम्बर उत्तराखंड और 15 नवम्बर झारखंड। विधानसभा भवन के लिहाज से देखें तो झारखंड में 29 एकड़ में 465 करोड़ की लागत से विधानसभा की भव्य आधुनिक इमारत तैयार की गई है जिसका लोकार्पण खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल किया है। झारखंड का विधानभवन देश की सबसे हाईटेक बिल्डिंगों में से एक है तो वहीं छत्तीसगढ़ की बात करें तो यंहा भी 400 करोड़ की लागत से 50 एकड़ में भव्य विधानभवन निर्माणाधीन है। तो वहीं उत्तराखंड में देहरादून, गैरसैंण, रायपुर तमाम तरह के सियासी शगूफे सुन ने को मिलते है। विधानभवन के नाम पर गैरसैंण के भराड़ीसैण में एक भीमकाय भवन तो बनाया गया है लेकिन उसके नसीब में सत्र नाम मात्र के ही है। साल में 1 या 2 दफा वहां सत्र आहूत होते बाकी सारा समय चील कवों के लिए ही वो आरक्षित है।

पीटीसी धीरज सजवाण


Conclusion:
Last Updated : Nov 5, 2019, 12:05 PM IST
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