देहरादून: आईएमए देहरादून का 88 साल का गौरवपूर्ण इतिहास जवानों का सीना गर्व से चौड़ा कर देता है. भारतीय सेना के साथ आईएमए मित्र देशों की सेना को भी अधिकारी देता है. 13 जून को इंडियन मिलिट्री एकेडमी के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है. इस बार आईएमए के पासिंग आउट परेड में कुछ नई परंपराओं को शुरू किया जाएगा. आईएमए के इतिहास में कुछ परंपराएं टूटेंगी और कुछ नई परंपराएं इसका हिस्सा बनेंगी.
ऐसा पहली बार है जब आईएमए की पासिंग आउट परेड सिर्फ रस्म अदायगी तक सीमित रहेगी. कोरोना संकट की वजह से पीओपी के तहत होने वाली विभिन्न गतिविधियों को सीमित कर दिया है. आईएमए पासिंग आउट परेड में जवानों का जोश और जज्बा देखने लायक होता है. आईएमए की कठिन ट्रेनिंग के बाद पास आउड कैडेट्स के लिए सबसे भावुक करने वाला पल तब होता है, जब उनके परिजन उनकी वर्दी पर रैंक लगाते हैं. लेकिन आईएमए के इतिहास में पहली बार पीपिंग सेरेमनी के दौरान ऑफिसर्स कैडेट्स की वर्दी पर रैंक लगाएंगे.
इस बार आईएमए के कैडेट्स चैटवुड बिल्डिंग से अंतिम पग निकालते हुए अपने करियर की प्रथम 'पग' चढ़ेंगे. दरअसल अंतिम पग के साथ ही पासआउट अधिकारियों को उनके रेजिमेंट में तैनाती दे दी जाएगी. 13 जून को होने वाली पासिंग आउड परेड के दौरान दर्शक दीर्घा पूरी तरह से खाली रहेगा. इस दौरान लाइव स्ट्रीमिंग के जरिए परिजन अपने बच्चों की परेड घर बैठे देख सकेंगे.
ये भी पढ़ें: उत्तराखंड में चाय के बागान कितने सफल? जानिए एक्सपर्ट की राय
आईएमए की पासिंग आउट परेड में पीपिंग सेरेमनी में कसम खाने के बाद कैडेट्स द्वारा पुशअप कर एक-दूसरे का हौसला बढ़ाने का नजारा ही कुछ अलग रहता है. कोरोना वायरस और सोशल डिस्टेंसिंग के चलते यह नजारा इस बार आईएमए में देखने को न मिले. कोरोना वायरस के कारण इस बार का पासिंग आउट परेड कुछ अलग अंदाज में नजर आएगा.
बता दें कि, 1 अक्टूबर 1932 में 40 कैडेट्स के साथ आईएमए की स्थापना हुई और 1934 में इंडियन मिलिट्री एकेडमी से पहला बैच पासआउट हुआ था. 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के नायक रहे भारतीय सेना के पहले फील्ड मार्शल जनरल सैम मानेकशॉ भी इसे एकेडमी के छात्र रह चुके हैं. इंडियन मिलिट्री एकेडमी से देश-विदेश की सेनाओं को 62 हजार 139 युवा अफसर मिल चुके हैं. इनमें मित्र देशों के 2413 युवा अफसर भी शामिल हैं. आईएमए में हर साल जून और दिसंबर में पासिंग आउट परेड का आयोजन किया जाता है. इस परेड के दौरान अंतिम पग पार करते ही कैडेट्स सेना में अधिकारी बन जाते हैं.