ऋषिकेश: प्रदेश सरकार भले ही स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर लाख दावे पेश करती हो, लेकिन धरातल पर स्थिति कुछ और ही है. ताजा मामला तीर्थनगरी की चंद्रभागा नदी किनारे बसी बस्ती का है, जहां प्रशासन ने नदी किनारे बसी बस्तियों को तोड़ दिया, लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं को देना भूल गई. जिस कारण प्रशासन की ये लापरवाही बस्तियों में रहने वाले लोगों के ऊपर भारी पड़ रही है. स्थानीय लोग स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण लगातार बीमार हो रहे हैं. वहीं, इस बीमारी के कारण एक बच्ची काल के गाल में समा गई.
दरअसल, 7 सितंबर को एनजीटी के आदेश के बाद नगर निगम की टीम ने चंद्रभागा नदी के किनारे बसी झोपड़ियों को तोड़ दिया था. जिसके बाद वहां रहने वाले लोगों के ऊपर न छत है और ना खाने को रोटी. यही कारण है कि वहां बच्चों के साथ-साथ बड़े बुजुर्ग भी लगातार बीमार हो रहे हैं.
वहीं स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन की अनदेखी के कारण लगातार बीमारियों के चलते एक 5 साल की मासूम बच्ची की मौत भी हो गई. उसके बावजूद भी स्वास्थ्य विभाग और स्थानीय प्रशासन ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया, जिससे अभी भी लोग लगातार बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं.
बस्ती में रहने वाले मुन्ना सिंह के पास जब ईटीवी भारत की टीम पहुंची तो उनके आंसुओं ने प्रशासन की लापरवाही सामने ला दिया. उन्होंने बताया कि जिस दिन नगर निगम ने उनकी बस्ती को उजाड़ा उस दिन उनकी 5 वर्ष की पोती बीमारी से उभरी थी. बस्ती टूटने की वजह से घर में अफरा-तफरी का माहौल हो गया. सभी लोग अपना सामान लेकर सुरक्षित स्थान पर जाने लगे. इस आपाधापी में उनकी पोती अचानक बीमार हो गई. जब तक उसकी बीमारी का पता चलता तब तक उसने दम तोड़ दिया था.
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मुन्ना राजभर ने रोते हुए बताया कि उनकी पोती की मौत के बाद उसकी दादी की भी हालत बेहद नाजुक हो गई. उनको गंभीर हालत में एम्स ऋषिकेश में उपचार के लिए भर्ती कराया गया है. मुन्ना राजभर के परिवार की हालत ये हो गई है कि उनकी बहू बच्चे की मौत के बाद सदमे में हैं और वो कुछ भी नहीं बोल पा रहे हैं. यहां तक की उन्होंने 5 दिनों से अन्न जल भी त्याग दिया है.
ऋषिकेश में NGT के आदेश के बाद नगर निगम ने अगस्त माह में चंद्रभागा नदी किनारे बसी झोपड़ियों को एक माह में हटाने का नोटिस दिया था. उसके बाद 7 सितंबर को नगर निगम ने उन झोपड़ियों को ध्वस्त कर दिया था, जिसके बाद वहां रहने वाले परिवार और उनके बच्चे सड़क पर आ गए. स्थानीय लोगों का आरोप है कि ये हालत होने के बावजूद भी स्थानीय प्रशासन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है. वहीं, स्वास्थ्य विभाग भी लापरवाह बना बैठा हुआ है. अब सवाल उठता है कि एक बच्चे की मौत का जिम्मेदार कौन है और कौन उस परिवार की किलकारी को वापस ला पाएगा.