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ऋषिकेश में 8 और 9 अक्टूबर को होगा नारी संसद का आयोजन, इन मुद्दों पर होगी चर्चा

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Published : Oct 2, 2022, 11:31 AM IST

महिलाओं के सम्मान में आगामी 8 और 9 अक्टूबर को ऋषिकेश में नारी संसद का आयोजन होने जा रहा है. इसका आयोजन माता ललिता देवी सेवा आश्रम में किया जाएगा. इसे लेकर बीजेपी के पूर्व वरिष्ठ नेता गोविंदाचार्य ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए जानकारी दी.

Former BJP Leader Govindacharya
ऋषिकेश में नारी संसद का आयोजन

नई दिल्ली: उत्तराखंड के ऋषिकेश में आगामी 8 एवं 9 अक्टूबर को महिलाओं के सम्मान में नारी संसद (Nari Sansad in Rishikesh) का आयोजन होगा. इसका आयोजन माता ललिता देवी सेवाश्रम ट्रस्ट और परमार्थ निकेतन के संयुक्त प्रयास से किया जा रहा है. दो दिवसीय इस संसद के चार सत्र होंगे.

बता दें कि नारी संसद का पहला सेशन परिवार की संरचना और कार्य संचालन पर केंद्रित रहेगा. दूसरे सत्र में भारतीय नारी के लिए क्या-क्या करना ठीक रहेगा, उसके सपने क्या हैं और चुनौती कहां आ रही है, इसकी जानकारी दी जाएगी. जबकि, तीसरा सत्र नारी शिक्षा, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण से जुड़ा रहेगा. पहले और तीसरे सत्र के दो हिस्से रहेंगे. जबकि, दूसरा हिस्से में संवाद होगा. जिसमें महिलाएं और उनका समूह अपना अनुभव शेयर करेगा. हर सत्र में परमार्थ निकेतन के बच्चे लघु नाटिका से विषय विशेष पर नाट्य मंचन भी करेंगे.

ऋषिकेश में नारी संसद का आयोजन होगा.

नारी संसद के सहसंयोजक ने बताया कि इसके अलग-अलग सत्रों में मुख्य अतिथि के तौर पर केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, केंद्रीय संस्कृति मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भी शामिल होंगे. दो दिवसीय नारी संवाद के आयोजन का मकसद महिलाओं के अतीत और वर्तमान पर संजीदा विमर्श को आगे बढ़ाना है. इससे जो व्यावहारिक ज्ञान निकलेगी, उससे भविष्य की कार्ययोजना के प्रस्ताव तैयार किए जाएंगी.

ये भी पढ़ें: लोक संसद में बनाई जाएगी भारत को भारत के नजरिए से देखने की योजना: केएन गोविंदाचार्य

केएन गोविंदाचार्य ने कहा कि 'नारी को लेकर भारत की जो समझ है, देश-समाज की चेतना है, वह यह कि परस्पर पूरकता ही समाज में संपूर्णता लाती है. लेकिन पिछले 200 साल की स्थितियों में बड़ा बदलाव आया है. आज पश्चिमी सामाजिक परिस्थितियों से प्रभावित विचार हावी होने लगे हैं. इसमें नारी का वस्तुकरण होने लगा है. नारी वस्तु समझी जाने लगी है. यह बाजारवाद की अधिकता का नतीजा है. यहां सुख मतलब केवल भौतिक सुख, सुख मतलब केवल मेरा सुख रह गया है. यह वातावरण के प्रदूषण का परिणाम है. आज के दौर में इन सबकी मीमांसा की जानी चाहिए. नारी की समाज, घर और बाहर में भूमिका क्या हो? इस पर एक बार चिंतन की जरूरत है.'

उन्होंने कहा कि 'नारी संसद इसी की जमीन तैयार करेगी. इतना ही नहीं इससे ज्यादा जरूरी भी कई दूसरी चीजें हैं. घर की सत्ता, संपत्ति और सम्मान में नारी की भागीदारी हो, गृहलक्ष्मी की भूमिका में वह घर की धुरी कैसे रहे, आज की नारी व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक तीनों दायित्वों में संतुलन बिठा सके, घर में उसकी भूमिका, घर के बाहर उसकी भूमिका, काम करने वाली महिला की भूमिका, म‌जदूरी करने वाली महिला की भूमिका, जो समाज के अलग-अलग स्तरों पर महिला की भूमिका है, उसका भी एक बार विचार, समालोकन होने की आवश्यकता है'.

ये भी पढ़ें: देश की हालात की समीक्षा के मद्देनजर लोक संसद कार्यक्रम का आयोजन, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी मौजूद

केएन गोविंदाचार्य ने आगे कहा कि कहा कि 'कोशिश इन सवालों के जवाब भी ढूढ़ने की होगी कि नारी की स्वतंत्रता और समानता की व्याख्या कौन करेगा और वह क्या होगी? नारी सशक्तिकरण की परिभाषा तय कौन करेगा? परिवार का ढांचा क्या होना चाहिए? क्या हम ऐसे समाज और परिवार की कल्पना कर सकते हैं, जिसमें मां न हो, संबंध न हों? मातृत्व जवाबदेही है या जिम्मेदारी? नारी शिक्षा, स्वास्थ्य, सतत विकास ‌जैसे मसलों का कैसे माकूल हल निकला जाए? घर और बाहर कैसे सुरक्षा सुनिश्चित की जाए? नारी संसद में इन सब बेहद जरूरी मुद्दों पर कई फलप्रद विचार सामने आएंगे और संतों का मार्गदर्शन भी समाज के लिए प्राप्त होगा'.

गोविंदाचार्य ने कहा कि कि गंगा जी हम सबकी मां हैं. एक पहाड़ों में हैं और दूसरी मैदान में. सागर तट तक पहुंचते-पहुंचते मां कुछ और हो जाती है. बावजूद इसके मां गंगा उत्तर भारत के लोगों को सीधे तौर पर और दक्षिण को परोक्ष तौर पर बांधे रखती है. गंगा जी के आंचल में आयोजित नारी संसद गंगा जी के लोक को साथ ला रहा है. ऋषिकेश, गंगा जी के तट पर लोक संस्कृतियों का भी मिलन होगा. 8 और 9 अक्टूबर की शाम 'लोक में गंगा' के नाम से आयोजित कार्यक्रम में पहाड़ से सागर तट के लोक कलाकार साथ-साथ प्रस्तुति देंगे.

नई दिल्ली: उत्तराखंड के ऋषिकेश में आगामी 8 एवं 9 अक्टूबर को महिलाओं के सम्मान में नारी संसद (Nari Sansad in Rishikesh) का आयोजन होगा. इसका आयोजन माता ललिता देवी सेवाश्रम ट्रस्ट और परमार्थ निकेतन के संयुक्त प्रयास से किया जा रहा है. दो दिवसीय इस संसद के चार सत्र होंगे.

बता दें कि नारी संसद का पहला सेशन परिवार की संरचना और कार्य संचालन पर केंद्रित रहेगा. दूसरे सत्र में भारतीय नारी के लिए क्या-क्या करना ठीक रहेगा, उसके सपने क्या हैं और चुनौती कहां आ रही है, इसकी जानकारी दी जाएगी. जबकि, तीसरा सत्र नारी शिक्षा, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण से जुड़ा रहेगा. पहले और तीसरे सत्र के दो हिस्से रहेंगे. जबकि, दूसरा हिस्से में संवाद होगा. जिसमें महिलाएं और उनका समूह अपना अनुभव शेयर करेगा. हर सत्र में परमार्थ निकेतन के बच्चे लघु नाटिका से विषय विशेष पर नाट्य मंचन भी करेंगे.

ऋषिकेश में नारी संसद का आयोजन होगा.

नारी संसद के सहसंयोजक ने बताया कि इसके अलग-अलग सत्रों में मुख्य अतिथि के तौर पर केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, केंद्रीय संस्कृति मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भी शामिल होंगे. दो दिवसीय नारी संवाद के आयोजन का मकसद महिलाओं के अतीत और वर्तमान पर संजीदा विमर्श को आगे बढ़ाना है. इससे जो व्यावहारिक ज्ञान निकलेगी, उससे भविष्य की कार्ययोजना के प्रस्ताव तैयार किए जाएंगी.

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केएन गोविंदाचार्य ने कहा कि 'नारी को लेकर भारत की जो समझ है, देश-समाज की चेतना है, वह यह कि परस्पर पूरकता ही समाज में संपूर्णता लाती है. लेकिन पिछले 200 साल की स्थितियों में बड़ा बदलाव आया है. आज पश्चिमी सामाजिक परिस्थितियों से प्रभावित विचार हावी होने लगे हैं. इसमें नारी का वस्तुकरण होने लगा है. नारी वस्तु समझी जाने लगी है. यह बाजारवाद की अधिकता का नतीजा है. यहां सुख मतलब केवल भौतिक सुख, सुख मतलब केवल मेरा सुख रह गया है. यह वातावरण के प्रदूषण का परिणाम है. आज के दौर में इन सबकी मीमांसा की जानी चाहिए. नारी की समाज, घर और बाहर में भूमिका क्या हो? इस पर एक बार चिंतन की जरूरत है.'

उन्होंने कहा कि 'नारी संसद इसी की जमीन तैयार करेगी. इतना ही नहीं इससे ज्यादा जरूरी भी कई दूसरी चीजें हैं. घर की सत्ता, संपत्ति और सम्मान में नारी की भागीदारी हो, गृहलक्ष्मी की भूमिका में वह घर की धुरी कैसे रहे, आज की नारी व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक तीनों दायित्वों में संतुलन बिठा सके, घर में उसकी भूमिका, घर के बाहर उसकी भूमिका, काम करने वाली महिला की भूमिका, म‌जदूरी करने वाली महिला की भूमिका, जो समाज के अलग-अलग स्तरों पर महिला की भूमिका है, उसका भी एक बार विचार, समालोकन होने की आवश्यकता है'.

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केएन गोविंदाचार्य ने आगे कहा कि कहा कि 'कोशिश इन सवालों के जवाब भी ढूढ़ने की होगी कि नारी की स्वतंत्रता और समानता की व्याख्या कौन करेगा और वह क्या होगी? नारी सशक्तिकरण की परिभाषा तय कौन करेगा? परिवार का ढांचा क्या होना चाहिए? क्या हम ऐसे समाज और परिवार की कल्पना कर सकते हैं, जिसमें मां न हो, संबंध न हों? मातृत्व जवाबदेही है या जिम्मेदारी? नारी शिक्षा, स्वास्थ्य, सतत विकास ‌जैसे मसलों का कैसे माकूल हल निकला जाए? घर और बाहर कैसे सुरक्षा सुनिश्चित की जाए? नारी संसद में इन सब बेहद जरूरी मुद्दों पर कई फलप्रद विचार सामने आएंगे और संतों का मार्गदर्शन भी समाज के लिए प्राप्त होगा'.

गोविंदाचार्य ने कहा कि कि गंगा जी हम सबकी मां हैं. एक पहाड़ों में हैं और दूसरी मैदान में. सागर तट तक पहुंचते-पहुंचते मां कुछ और हो जाती है. बावजूद इसके मां गंगा उत्तर भारत के लोगों को सीधे तौर पर और दक्षिण को परोक्ष तौर पर बांधे रखती है. गंगा जी के आंचल में आयोजित नारी संसद गंगा जी के लोक को साथ ला रहा है. ऋषिकेश, गंगा जी के तट पर लोक संस्कृतियों का भी मिलन होगा. 8 और 9 अक्टूबर की शाम 'लोक में गंगा' के नाम से आयोजित कार्यक्रम में पहाड़ से सागर तट के लोक कलाकार साथ-साथ प्रस्तुति देंगे.

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